UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2017 | विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न-पत्र |
प्रश्न 1. भारत की संसद के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. गैर-सरकारी विधेयक ऐसा विधेयक है जो संसद के ऐसे सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो निर्वाचित नहीं है किन्तु भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट है।
2. हाल ही में, भारत की संसद के इतिहास में पहली बार एक गैर-सरकारी विधेयक पारित किया गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
कथन 1 गलत है: गैर-सरकारी विधेयक (Private Member’s Bill) एक ऐसा विधेयक होता है जो उन संसद सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो सरकार के मंत्री नहीं होते। ये सदस्य आमतौर पर लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य होते हैं, न कि राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट सदस्य। राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट सदस्य, जिन्हें ‘नियुक्त सदस्य’ कहा जाता है, वे इस प्रकार के विधेयक प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं रखते।
कथन 2 गलत है: भारत की संसद में पहला गैर-सरकारी विधेयक 1952 में पेश किया गया था, न कि हाल ही में। यह विधेयक, जिसे मुसलमान वक्फ़्स बिल कहा जाता है, को सैयद मोहम्मद अहमद कसमी ने प्रस्तुत किया था। इस विधेयक का उद्देश्य मुसलमान वक्फ़ संपत्तियों (धर्मार्थ संपत्तियों) के प्रशासन को बेहतर बनाना था। इस विधेयक को पारित किया गया और यह कानून बन गया। यह पहला गैर-सरकारी विधेयक था जिसे संसद में पारित किया गया।
गैर-सरकारी विधेयकों का संसद में अत्यधिक महत्व है क्योंकि ये विधेयक समाज के विभिन्न वर्गों के मुद्दों को मुख्यधारा में लाते हैं। यह विधायिका में विविध दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है, जो केवल सरकारी नीतियों तक सीमित नहीं होते। इन विधेयकों के माध्यम से, संसद में विपक्षी दलों और स्वतंत्र सांसदों को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलती है।
प्रश्न 2. ऋग्वेद-कालीन आर्यों और सिन्धु घाटी के लोगों की संस्कृति के बीच अंतर के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. ऋग्वेद-कालीन आर्य कवच और शिरस्त्राण (हेलमेट) का उपयोग करते थे जबकि सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों में इनके उपयोग का कोई साक्ष्य नहीं मिलता।
2. ऋग्वेद-कालीन आर्यों को स्वर्ण, चाँदी और ताम्र का ज्ञान था जबकि सिन्धु घाटी के लोगों को केवल ताम्र और लोह का ज्ञान था।
3. ऋग्वेद-कालीन आर्यों ने घोड़े को पालतू बना लिया था जबकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि सिन्धु घाटी के लोग इस पशु को जानते थे।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कथन 1 सही है: ऋग्वेद-कालीन आर्य समाज के संदर्भ में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि वे युद्धकला में अत्यधिक निपुण थे और उनके पास विभिन्न प्रकार के सुरक्षा उपकरण जैसे कवच (कोट), शिरस्त्राण (हेलमेट) आदि का प्रयोग था। ऋग्वेद में “युद्ध” और “सैन्य” के संबंध में कई उल्लेख मिलते हैं, जहां आर्य समाज के लोग विशेष रूप से युद्धों में सुरक्षा के लिए इन उपकरणों का उपयोग करते थे। दूसरी ओर, सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक साक्ष्य, जैसे हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के स्थल, इस प्रकार के किसी सुरक्षा उपकरण का प्रमाण नहीं देते, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे कवच और शिरस्त्राण का उपयोग नहीं करते थे।
कथन 2 गलत है: ऋग्वेद-कालीन आर्य समाज के बारे में यह कहना कि उन्हें केवल स्वर्ण, चांदी और ताम्र का ज्ञान था, सटीक नहीं है। ऋग्वेद में जिन धातुओं का उल्लेख है, उनमें स्वर्ण, चांदी और तांबा प्रमुख हैं, और इनका धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक उपयोग आर्य समाज में था। तथापि, सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग अत्यंत उन्नत धातु-शिल्पकला में निपुण थे, और वे ताम्र, कांस्य, स्वर्ण, तथा चांदी का उपयोग करते थे। उदाहरण स्वरूप, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्वर्ण और चांदी के आभूषण, ताम्र युक्त वस्तुएं और अन्य धातु-निर्मित कलाकृतियाँ इस बात का साक्ष्य हैं कि सिन्धु घाटी के लोग भी इन धातुओं से परिचित थे और इनका प्रयोग करते थे।
कथन 3 सही है: ऋग्वेद-कालीन आर्य समाज में घोड़े का उपयोग सैन्य और धार्मिक दोनों संदर्भों में बहुत महत्वपूर्ण था। वे घोड़े को युद्ध में महत्वपूर्ण सैन्य साधन के रूप में प्रयोग करते थे, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण “अश्वमेध यज्ञ” और “अश्व” (घोड़ा) के उल्लेख में मिलता है। इसके विपरीत, सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है कि उन्होंने घोड़े को पालतू किया या इसका उपयोग किया। हड़प्पा सभ्यता में अधिकतर पशु-पालन के संदर्भ में बैल, बकरियाँ और अन्य घरेलू जानवरों का उल्लेख होता है, लेकिन घोड़े का कोई उल्लेख नहीं है। इस कारण, यह कथन सही माना जाता है।
प्रश्न 3. ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम (रिकग्निशन ऑफ़ प्रायर लर्निंग स्कीम)’ का कभी-कभी समाचारों में किस सन्दर्भ में उल्लेख किया जाता है?
(a) निर्माण कार्य में लगे कर्मकारों के पारंपरिक मार्गों से अर्जित कौशल का प्रमाणन
(b) दूरस्थ अधिगम कार्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालयों में व्यक्तियों को पंजीकृत करना
(c) सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में ग्रामीण और नगरीय निर्धन लोगों के लिए कुछ कुशल कार्य आरक्षित करना
(d) राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अधीन प्रशिक्षणार्थियों द्वारा अर्जित कौशल का प्रमाणन
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम’ (Recognition of Prior Learning, RPL) का उद्देश्य उन व्यक्तियों के कौशल का प्रमाणन करना है जिन्होंने औपचारिक प्रशिक्षण के बिना अपने अनुभव और पारंपरिक तरीकों से विभिन्न कार्यों में दक्षता प्राप्त की है, विशेषकर निर्माण कार्य में लगे कर्मकारों के लिए। यह योजना उन्हें औपचारिक मान्यता प्रदान करती है, ताकि उनकी विशेषज्ञता को पहचाना जा सके और रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त किए जा सकें। भारत सरकार की यह पहल इस उद्देश्य से कार्य करती है कि श्रमिकों के अप्रत्यक्ष कौशल को भी सम्मानित किया जाए और उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान किया जाए, जिससे उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर बेहतर हो सके।
विकल्प (b) गलत है: ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम’ (RPL) का संबंध दूरस्थ अधिगम कार्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालयों में व्यक्तियों के पंजीकरण से नहीं है। यह स्कीम विशेष रूप से उन व्यक्तियों के कौशल का प्रमाणन करने से संबंधित है जिन्होंने किसी विशिष्ट कार्य में अनुभव और दक्षता प्राप्त की है, परंतु औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की है। यह योजना व्यक्तियों को उनके अनुभव और सीखे गए कौशल के आधार पर प्रमाणपत्र देती है, न कि विश्वविद्यालयों में पंजीकरण के संदर्भ में।
विकल्प (c) गलत है: ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम’ का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ग्रामीण और नगरीय निर्धन लोगों के लिए कार्य आरक्षित करने से संबंधित नहीं है। यह योजना पूरी तरह से उस श्रमिक वर्ग के लिए है जिन्होंने पारंपरिक और कौशल आधारित कार्यों में अनुभव प्राप्त किया है। इसका उद्देश्य कर्मकारों और श्रमिकों के कौशल को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान करना है, ताकि वे बेहतर कार्य अवसर प्राप्त कर सकें, न कि कार्यों का आरक्षण करना।
विकल्प (d) गलत है: ‘पूर्व अधिगम की मान्यता स्कीम’ (RPL) का उद्देश्य राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशिक्षणार्थियों द्वारा अर्जित कौशल का प्रमाणन नहीं है। यह योजना उन व्यक्तियों के लिए है जिन्होंने बिना औपचारिक प्रशिक्षण के विभिन्न कार्यों में दक्षता प्राप्त की है। राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले व्यक्ति पहले से प्रशिक्षित होते हैं, जबकि RPL स्कीम उनके लिए है जो अपने अनुभव और कौशल के आधार पर प्रमाणन प्राप्त करना चाहते हैं।
प्रश्न 4. पारिस्थितिक दृष्टिकोण से, पूर्वी घाटों और पश्चिमी घाटों के बीच एक अच्छा संपर्क होने के रूप में निम्नलिखित में से किसका महत्त्व अधिक है?
(a) सत्यामंगलम बाघ आरक्षित क्षेत्र (सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व)
(b) नल्लामला वन
(c) नागरहोले राष्ट्रीय उद्यान
(d) शेषाचलम जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (शेषाचलम बायोस्फीयर रिज़र्व)
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: सत्यामंगलम बाघ आरक्षित क्षेत्र (Satyamangalam Tiger Reserve) दक्षिण भारत के दो प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों, पूर्वी घाटों और पश्चिमी घाटों के बीच एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय संपर्क का कार्य करता है। यह क्षेत्र, जो तमिलनाडु और कर्नाटका राज्यों में फैला हुआ है, बाघों सहित अन्य कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आवास है। पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से, सत्यामंगलम बाघ आरक्षित क्षेत्र जैव विविधता को संरक्षित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों घाटों के पारिस्थितिकीय गलियारों को जोड़ता है, जिससे वन्यजीवों के लिए प्राकृतिक आवागमन की सुविधा मिलती है। यह न केवल वन्यजीवों के संरक्षण में योगदान करता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार, यह विकल्प सही है।
विकल्प (b) गलत है: नल्लामला वन (Nallamala Forest), जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में स्थित है, पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पूर्वी और पश्चिमी घाटों के बीच एक केंद्रीय संपर्क के रूप में कार्य नहीं करता है। नल्लामला वन एक महत्वपूर्ण वन्यजीव आवास और जैविक विविधता का केंद्र है, लेकिन इसका पारिस्थितिकीय गलियारा पश्चिमी घाटों से नहीं जुड़ा है। यह क्षेत्र विशेष रूप से कृष्णा नदी के बेसिन में स्थित है और मुख्य रूप से पश्चिमी घाटों से जुड़ा हुआ नहीं है। इसलिए, यह विकल्प पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से सही नहीं है।
विकल्प (c) गलत है: नागरहोले राष्ट्रीय उद्यान (Nagarhole National Park), जो कर्नाटका राज्य में स्थित है, पश्चिमी घाटों का एक हिस्सा है और यह पश्चिमी घाटों के भीतर पारिस्थितिकीय महत्व रखता है। हालांकि यह एक जैविक रूप से समृद्ध क्षेत्र है और बाघों समेत कई अन्य वन्यजीवों का घर है, इसका पूर्वी घाटों से कोई विशेष पारिस्थितिकीय संपर्क नहीं है। नागरहोले का पारिस्थितिकीय महत्व पश्चिमी घाटों के संदर्भ में है और यह पूर्वी घाटों के पारिस्थितिकीय गलियारों से जुड़ा नहीं है। इसलिए, यह विकल्प भी सही नहीं है।
विकल्प (d) गलत है: शेषाचलम जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (Sheshachalam Biosphere Reserve) आंध्र प्रदेश में स्थित है और इसका पारिस्थितिकीय महत्व मुख्य रूप से पूर्वी घाटों में है। यह क्षेत्र बाघों, हाथियों और कई अन्य प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास है, लेकिन यह पूर्वी और पश्चिमी घाटों के बीच पारिस्थितिकीय संपर्क स्थापित करने का कार्य नहीं करता है। यह क्षेत्र पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से आंध्र प्रदेश के अंदर स्थित है और पश्चिमी घाटों से इसका कोई विशेष जैविक जुड़ाव नहीं है। इसलिए, यह विकल्प भी गलत है।
प्रश्न 5. समाज में समानता के होने का एक निहितार्थ यह है कि उसमें
(a) विशेषाधिकारों का अभाव है
(b) अवरोधों का अभाव है
(c) प्रतिस्पर्धा का अभाव है
(d) विचारधारा का अभाव है
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: समाज में समानता का मुख्य निहितार्थ विशेषाधिकारों का अभाव है। समानता का विचार इस सिद्धांत पर आधारित है कि सभी व्यक्तियों को समान अवसर, अधिकार और सम्मान प्राप्त होने चाहिए, चाहे वे किसी भी सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हों। जब किसी समाज में समानता स्थापित होती है, तो उसमें विशेषाधिकार का कोई स्थान नहीं होता। विशेषाधिकार का मतलब होता है किसी व्यक्ति या समूह को बिना किसी कानूनी, नैतिक या सामाजिक आधार के कुछ अतिरिक्त अधिकार या अवसर प्राप्त होना, जो अन्य लोगों से भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि समाज में एक वर्ग को अपने सामाजिक या आर्थिक स्थिति के कारण कुछ विशेष लाभ प्राप्त हो रहे हों, तो यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है। समानता सुनिश्चित करती है कि कोई भी वर्ग या व्यक्ति बिना किसी असमान लाभ के समान अवसर प्राप्त कर सके।
विकल्प (b) गलत है: यह कहना कि समानता का अर्थ अवरोधों का अभाव है, समाज में समानता के विचार को अधूरा रूप से प्रस्तुत करता है। समानता का तात्पर्य केवल अवरोधों के अभाव से नहीं है, बल्कि इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर, अधिकार और संरक्षण मिलना चाहिए, जबकि अवरोधों का संबंध समाज में उन तंत्रों से है जो किसी विशेष समूह के विकास या उत्थान में बाधा डालते हैं। उदाहरण के लिए, जातिवाद, लिंगभेद या शिक्षा तक पहुंच की असमानता जैसे अवरोध समानता की ओर बढ़ने में रोड़ा डालते हैं। समानता का उद्देश्य यह नहीं है कि हर समाज में कोई अवरोध न हो, बल्कि यह है कि समाज में मौजूद समान अवसर और समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त अवरोधों को समाप्त किया जाए।
विकल्प (c) गलत है: समानता का यह अर्थ नहीं है कि समाज में प्रतिस्पर्धा का अभाव होगा। प्रतिस्पर्धा स्वयं में एक सकारात्मक और महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि यह समाज के विकास और नवाचार को बढ़ावा देती है। समानता का उद्देश्य यह नहीं है कि प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर दिया जाए, बल्कि यह है कि प्रतिस्पर्धा में सभी को समान अवसर मिले। यदि समानता का पालन किया जाता है, तो प्रतिस्पर्धा स्वस्थ और निष्पक्ष होगी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक, आर्थिक या भौतिक पृष्ठभूमि के कारण पिछड़ा हुआ नहीं होगा। समानता का प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी को समान अवसर मिलें, ताकि वे अपनी क्षमता के अनुसार प्रतिस्पर्धा कर सकें।
विकल्प (d) गलत है: समाज में समानता का अर्थ यह नहीं है कि विचारधारा का अभाव होगा। वास्तव में, समानता के सिद्धांत के अंतर्गत विचारों और दृष्टिकोणों की विविधता का सम्मान किया जाता है। समानता यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने का समान अधिकार हो, चाहे उसकी विचारधारा कुछ भी हो। समाज में विभिन्न प्रकार की विचारधाराएँ और दृष्टिकोण हो सकते हैं, और समानता यह सुनिश्चित करती है कि इन विविधताओं का सम्मान किया जाए। इसके बजाय, विचारधारा का अभाव एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज के लिए खतरे का संकेत हो सकता है, क्योंकि यह विविधता और बहुलतावाद के सिद्धांत के विपरीत होगा। इसलिए, समानता में विचारधाराओं की विविधता का स्वागत किया जाता है, न कि उनका अभाव।
प्रश्न 6. ‘वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड ऐनालिसिस ऑफ़ फौना ऐंड फ़्लोरा इन कॉमर्स/TRAFFIC)’ के सन्दर्भमें निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो है।
2. TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जन्तुओं के व्यापार से प्रकृति के संरक्षण को ख़तरा न हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो नहीं है। TRAFFIC एक स्वतंत्र वैश्विक संस्था है, जिसे 1976 में WWF (विश्व वन्यजीव कोष) और IUCN (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ) ने संयुक्त रूप से स्थापित किया था। इसका मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों और वनस्पतियों के व्यापार पर निगरानी रखना और अवैध या असंगठित व्यापार को नियंत्रित करना है। यह UNEP से अलग एक संगठन है, जो पर्यावरण और जैव विविधता पर काम करता है, लेकिन इसका सीधा संबंध UNEP से नहीं है।
कथन 2 सही है: TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जन्तुओं के व्यापार से प्रकृति और जैव विविधता को कोई खतरा न हो। यह संस्था वन्य जीवों और वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करती है। TRAFFIC का उद्देश्य यह है कि व्यापार के इन घटकों से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, और वन्य जीवन के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यह व्यापार सुरक्षित तरीके से हो। इसके माध्यम से TRAFFIC अवैध वन्य जीवन व्यापार को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने और उपायों की सिफारिश करने का कार्य करता है।
प्रश्न 7. संविधान के 42वें संशोधन द्वारा, निम्नलिखित में से कौन-सा सिद्धान्त राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में जोड़ा गया था?
(a) पुरुष और स्त्री दोनों के लिए समान कार्य का समान वेतन
(b) उद्योगों के प्रबन्धन में कामगारों की सहभागिता
(c) काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार
(d) श्रमिकों के लिए निर्वाह-योग्य वेतन एवं काम की मानवीय दशाएँ सुरक्षित करना
उत्तर: (b)
विकल्प (a) गलत है: संविधान के 42वें संशोधन द्वारा “पुरुष और स्त्री दोनों के लिए समान कार्य का समान वेतन” को राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में जोड़ा गया था, लेकिन यह एक अलग संशोधन में ही जोड़ा गया था, न कि 42वें संशोधन में। 42वें संशोधन में इस प्रकार का विशेष प्रावधान नहीं था। हालांकि, समान वेतन के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 39(d) में माना गया था, लेकिन इसे 42वें संशोधन के तहत नहीं जोड़ा गया था।
विकल्प (b) सही है: संविधान के 42वें संशोधन द्वारा राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में “उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों की सहभागिता” को जोड़ा गया था। यह कदम भारतीय श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए बेहतर कार्य परिस्थितियों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके तहत कामगारों को न केवल उनके कार्यस्थलों पर बेहतर सुविधाएं प्राप्त हो, बल्कि उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी सक्रिय भूमिका प्राप्त हो।
विकल्प (c) गलत है: “काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार” संविधान के 42वें संशोधन में राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में जोड़ा गया था, यह कथन सही नहीं है। ये अधिकार भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में आते हैं, और इनका संबंध विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 और 39A से है। 42वें संशोधन का उद्देश्य कामकाजी जीवन में श्रमिकों की भागीदारी और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना था, न कि इन अधिकारों को जोड़ना।
विकल्प (d) गलत है: “श्रमिकों के लिए निर्वाह-योग्य वेतन एवं काम की मानवीय दशाएँ सुरक्षित करना” 42वें संशोधन के तहत राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में नहीं जोड़ा गया था। हालांकि, यह महत्वपूर्ण मुद्दा है और भारतीय श्रमिकों के अधिकारों का हिस्सा है, लेकिन यह 42वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य नहीं था। 42वें संशोधन में मुख्य रूप से उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की सहभागिता पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
प्रश्न 8. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है?
(a) अधिकार नागरिकों के विरुद्ध राज्य के दावे हैं।
(b) अधिकार वे विशेषाधिकार हैं जो किसी राज्य के संविधान में समाविष्ट हैं।
(c) अधिकार राज्य के विरुद्ध नागरिकों के दावे हैं।
(d) अधिकार अधिकांश लोगों के विरुद्ध कुछ नागरिकों के विशेषाधिकार हैं।
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है क्योंकि अधिकार नागरिकों के खिलाफ राज्य के दावे नहीं होते। अधिकार राज्य द्वारा नागरिकों को दी जाने वाली स्वतंत्रताएँ और सुरक्षा होती हैं, जिनका उद्देश्य नागरिकों को दमन से बचाना है। संविधान और विधायिका के माध्यम से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाती है और राज्य को नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करने से रोका जाता है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह इन अधिकारों की रक्षा करे, न कि उनका उल्लंघन करे। अतः, अधिकार राज्य के दावे नहीं होते, बल्कि राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे।
विकल्प (b) गलत है क्योंकि अधिकार केवल राज्य के संविधान में समाविष्ट विशेषाधिकार नहीं होते। अधिकार मूल रूप से नागरिकों के बुनियादी स्वतंत्रताएँ हैं, जो उन्हें राज्य द्वारा दिए जाते हैं और ये अधिकार संविधान, कानून और न्यायपालिका के माध्यम से लागू होते हैं। अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों को राज्य की दमनकारी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करना है, न कि केवल संविधान में समाविष्ट विशेषाधिकार होना। उदाहरण के रूप में, भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार नागरिकों को राज्य के दमन से बचाते हैं और यह किसी विशेषाधिकार के बजाय एक सार्वभौमिक अधिकार होते हैं। इसलिए, अधिकार केवल संविधान में समाविष्ट विशेषाधिकार नहीं होते।
विकल्प (c) सही है क्योंकि अधिकार नागरिकों के दावे होते हैं, जो राज्य के खिलाफ होते हैं। संविधान और कानून के तहत नागरिकों को अपने अधिकारों की सुरक्षा का दावा करने का अधिकार होता है और यह अधिकार राज्य की अनुशासनहीनता, अत्याचार या नागरिकों की स्वतंत्रता के उल्लंघन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण रक्षा कवच के रूप में कार्य करते हैं। यह राज्य को नागरिकों की गरिमा, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा के लिए बाध्य करता है। उदाहरण के रूप में, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 नागरिकों को न्यायालय में अपने अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ अपील करने का अधिकार देता है। इसलिए, अधिकार राज्य के खिलाफ नागरिकों के दावे होते हैं, जो उनके बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा करते हैं।
विकल्प (d) गलत है क्योंकि अधिकार विशेषाधिकार नहीं होते और न ही ये कुछ नागरिकों के खिलाफ होते हैं। अधिकार सभी नागरिकों के समान होते हैं और राज्य की जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करे। किसी भी नागरिक के अधिकारों को राज्य द्वारा भेदभावपूर्ण तरीके से प्रभावित नहीं किया जा सकता। अधिकारों का उद्देश्य समाज के प्रत्येक सदस्य को समान सुरक्षा, स्वतंत्रता और अवसर प्रदान करना है। इसलिए, अधिकार विशेषाधिकार के रूप में नहीं होते और यह नागरिकों के खिलाफ नहीं होते। यह सार्वभौमिक, समान और सभी के लिए होते हैं।
प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिए ‘सार्वभौम लैंगिक अन्तराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)’ का श्रेणीकरण प्रदान करता है?
(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद्
(c) UN वूमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: ‘सार्वभौम लैंगिक अन्तराल सूचकांक (Global Gender Gap Index)’ का श्रेणीकरण विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा किया जाता है। यह सूचकांक लैंगिक समानता के संदर्भ में देशों की स्थिति का मूल्यांकन करता है और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदमों की दिशा में देशों की प्रगति को मापता है। यह सूचकांक चार प्रमुख आयामों में लैंगिक अन्तराल का मूल्यांकन करता है: आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा के अवसर, स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा और राजनीतिक सशक्तिकरण। विश्व आर्थिक मंच इस सूचकांक के माध्यम से देशों को उनके लैंगिक समानता के लक्ष्यों की प्राप्ति में मार्गदर्शन और प्रेरणा देता है। इसके द्वारा प्रकाशित आंकड़े वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता को मापने के लिए एक मानक बन चुके हैं।
विकल्प (b) गलत है: संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद (UN Human Rights Council) का कार्य मानवाधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन यह ‘सार्वभौम लैंगिक अन्तराल सूचकांक’ का श्रेणीकरण नहीं करता। यह परिषद लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र में बहस कर सकती है, लेकिन सूचकांक तैयार करने का कार्य विश्व आर्थिक मंच का है। UNHRC का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकना और मानवाधिकारों की स्थिति को सुधारना है, जबकि लैंगिक समानता पर आधारित सूचकांक के आंकड़े और श्रेणीकरण के लिए विश्व आर्थिक मंच जिम्मेदार है।
विकल्प (c) गलत है: UN वूमन (UN Women) लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कार्य करता है, लेकिन यह ‘सार्वभौम लैंगिक अन्तराल सूचकांक’ का श्रेणीकरण नहीं करता। UN Women का मुख्य कार्य महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है और यह लैंगिक समानता पर जागरूकता फैलाने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए पहल करता है। हालांकि यह संस्था लैंगिक समानता के विषय में महत्वपूर्ण कार्य करती है, लेकिन सूचकांक का गठन और विश्लेषण विश्व आर्थिक मंच द्वारा किया जाता है।
विकल्प (d) गलत है: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का मुख्य कार्य स्वास्थ्य के वैश्विक मुद्दों को संबोधित करना है। WHO लैंगिक समानता और महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर काम करता है, लेकिन यह ‘सार्वभौम लैंगिक अन्तराल सूचकांक’ का श्रेणीकरण नहीं करता। WHO स्वास्थ्य के क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करता है, लेकिन लैंगिक समानता के सूचकांक का विकास और श्रेणीकरण विश्व आर्थिक मंच द्वारा किया जाता है। WHO का ध्यान मुख्य रूप से वैश्विक स्वास्थ्य संकटों, स्वास्थ्य नीति और भौतिक कल्याण पर केंद्रित होता है।
प्रश्न 10. स्मार्ट इण्डिया हैकथॉन 2017 के सन्दर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
1. यह हमारे देश के प्रत्येक शहर को एक दशक में स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित एक स्कीम है।
2. यह हमारे देश की अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए नई डिजिटल प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तनों के अभिज्ञान की एक पहल है।
3. यह एक कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य एक दशक में हमारे देश में सभी वित्तीय लेन-देनों को पूरी तरह से डिजिटल करना है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017 का उद्देश्य हमारे देश के प्रत्येक शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना नहीं था। यह एक डिजिटल नवप्रवर्तन आधारित कार्यक्रम था, जो छात्रों और नवप्रवर्तकों को सरकारी और सामाजिक समस्याओं का समाधान डिजिटल प्रौद्योगिकी के माध्यम से खोजने के लिए प्रेरित करता था। स्मार्ट सिटी योजना अलग से शहरी क्षेत्रों के विकास को लेकर है, जिसका मुख्य उद्देश्य शहरों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाना है।
कथन 2 सही है: स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017 का उद्देश्य हमारे देश की अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए नई डिजिटल प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तनों के अभिज्ञान को बढ़ावा देना था। यह एक प्रतियोगिता थी, जिसमें छात्रों को अपने तकनीकी समाधान प्रस्तुत करने का मौका मिलता था। सरकार ने इस कार्यक्रम के माध्यम से युवा प्रतिभाओं को तकनीकी क्षेत्र में योगदान देने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे सरकारी समस्याओं का समाधान निकाल सकें।
कथन 3 गलत है: स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017 का लक्ष्य केवल देश के सभी वित्तीय लेन-देनों को डिजिटल करना नहीं था। यह कार्यक्रम व्यापक स्तर पर देश की समस्याओं के समाधान के लिए डिजिटलीकरण और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करता था। हालांकि, डिजिटल भुगतान और वित्तीय लेन-देन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में था, लेकिन स्मार्ट इंडिया हैकथॉन का उद्देश्य पूरी तरह से वित्तीय लेन-देनों पर केंद्रित नहीं था। यह एक व्यापक तकनीकी नवाचार पहल थी।
प्रश्न 11. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पॉलिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
2. यह एक 12-सदस्यीय निकाय है जिसमें RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन किया जाता है।
3. यह केन्द्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (a)
कथन 1 सही है: मौद्रिक नीति समिति (MPC) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित बेंचमार्क ब्याज दरों को निर्धारित करती है, जिसमें रेपो दर और अन्य संबंधित दरें शामिल हैं। यह समिति महंगाई नियंत्रण, आर्थिक स्थिरता और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों का निर्धारण करती है। MPC का यह कार्य महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसके द्वारा निर्धारित ब्याज दरें बाजार में ऋण की लागत और मुद्रा की आपूर्ति को प्रभावित करती हैं, जिससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है।
कथन 2 गलत है: मौद्रिक नीति समिति (MPC) 12-सदस्यीय निकाय नहीं है। इसमें कुल 6 सदस्य होते हैं। इनमें से तीन सदस्य भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से होते हैं, जिनमें RBI के गवर्नर प्रमुख होते हैं, जबकि बाकी के तीन सदस्य स्वतंत्र विशेषज्ञ होते हैं, जिन्हें सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। MPC के सदस्य तीन वर्षों के लिए नियुक्त होते हैं और समिति का पुनर्गठन प्रत्येक वर्ष नहीं होता। इसकी संरचना और कार्य विधि स्थिर होती है।
कथन 3 गलत है: मौद्रिक नीति समिति (MPC) केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य नहीं करती है। MPC की अध्यक्षता भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर द्वारा की जाती है। केंद्रीय वित्त मंत्री का मुख्य कार्य देश के वित्तीय नीति निर्धारण में होता है, जबकि MPC का उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और देश की आर्थिक स्थिति को संतुलित रखने के लिए मौद्रिक नीति निर्णयों को लागू करना होता है। इस तरह, MPC का कार्य पूरी तरह से RBI के दायरे में आता है।
प्रश्न 12. मणिपुरी संकीर्तन के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह गीत और नृत्य का प्रदर्शन है।
2. केवल करताल (सिम्बॅल) ही वह एकमात्र वाद्ययंत्र है जो इस प्रदर्शन में प्रयुक्त होता है।
3. यह भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं को वर्णित करने के लिए प्रदर्शित किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1
उत्तर: (b)
कथन 1 सही है: मणिपुरी संकीर्तन एक सांस्कृतिक परंपरा है, जिसमें भक्ति गीतों और नृत्य का संयोजन होता है। यह प्रदर्शन विशेष रूप से मणिपुर राज्य में भगवान कृष्ण की पूजा और उनके जीवन की कथाओं को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य-गीत के माध्यम से धार्मिक भावना को व्यक्त किया जाता है, जहां कलाकार गीतों के साथ नृत्य करते हैं, जो एक अत्यधिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करते हैं। यह कला रूप मणिपुरी संस्कृति की गहरी भक्ति परंपरा का अभिव्यक्ति है।
कथन 2 गलत है, क्योंकि मणिपुरी संकीर्तन में केवल करताल (सिंबॅल) का ही उपयोग नहीं होता है। इसके अतिरिक्त, इस प्रदर्शन में कई अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों का भी उपयोग किया जाता है, जैसे- मृदंग, डोलक और ढोल। इन वाद्ययंत्रों का प्रयोग संकीर्तन की धार्मिकता और लय को बढ़ाने के लिए किया जाता है। करताल मुख्य वाद्ययंत्र हो सकता है, लेकिन यह प्रदर्शन में प्रयुक्त वाद्ययंत्रों का एकमात्र यंत्र नहीं है।
कथन 3 सही है: मणिपुरी संकीर्तन मुख्य रूप से भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं को प्रस्तुत करने के लिए प्रदर्शित किया जाता है। इसका उद्देश्य भगवान कृष्ण के दिव्य रूप और उनके जीवन की घटनाओं को भक्ति भाव के साथ दर्शाना होता है। इसमें रासलीला, कृष्ण के बाल्यकाल की कथाएं और उनके अन्य दिव्य कार्यों का वर्णन किया जाता है, जो दर्शकों को आध्यात्मिक रूप से जोड़ने का कार्य करता है। यह परंपरा मणिपुरी संस्कृति की गहरी भक्ति भावना को दर्शाती है।
प्रश्न 13. निम्नलिखित में से कौन, ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त के प्रारंभ किए जाने से संबद्ध था/थे?
1. लॉर्ड कॉर्नवॉलिस
2. अलेक्ज़ेंडर रीड
3. थॉमस मुनरो
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कथन 1 गलत है: लॉर्ड कॉर्नवॉलिस का रैयतवाड़ी बंदोबस्त से कोई संबंध नहीं था। उन्होंने 1793 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्थायी बंदोबस्त (स्थायी बंदोबस्ती व्यवस्था) लागू की थी, जिसे ज़मींदारी प्रणाली कहा जाता है। इस व्यवस्था में ज़मींदारों को भूमि का स्वामी मानते हुए, उनसे निश्चित भू-राजस्व लिया जाता था। इसके विपरीत, रैयतवाड़ी व्यवस्था में किसान सीधे राज्य से भूमि रखते हैं और उसी को कर चुकाते हैं। इसलिए कॉर्नवॉलिस का संबंध केवल ज़मींदारी से था, रैयतवाड़ी से नहीं।
कथन 2 सही है: अलेक्ज़ेंडर रीड ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में रैयतवाड़ी बंदोबस्त की प्रारंभिक नींव रखी थी। उन्होंने थॉमस मुनरो के साथ मिलकर मद्रास प्रेसीडेंसी में इस व्यवस्था को व्यवहार में लाने का प्रयास किया। रीड ने इस प्रणाली के अंतर्गत किसानों को भूमि का वास्तविक स्वामी माना और उनसे सीधे कर वसूलने की प्रक्रिया को अपनाया। उनके कार्यों ने रैयतवाड़ी बंदोबस्त की औपचारिक स्थापना के लिए आधार तैयार किया, जो आगे चलकर व्यापक रूप से अपनाई गई।
कथन 3 सही है: थॉमस मुनरो रैयतवाड़ी बंदोबस्त के वास्तविक स्थापक माने जाते हैं। वर्ष 1820 में, जब वे मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर बने, तब उन्होंने इस व्यवस्था को औपचारिक रूप से लागू किया। उनके अनुसार, भूमि का मालिक किसान (रैयत) होता है और राज्य को कर वही चुकाता है। इस प्रणाली में किसी बिचौलिये की आवश्यकता नहीं होती, जिससे प्रशासन अधिक पारदर्शी बनता है। यह व्यवस्था मुख्यतः मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में लागू हुई और कृषि संबंधी राजस्व व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाई।
प्रश्न 14. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के सन्दर्भ में, जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं?
1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है।
2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही और पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है।
3. जैवोपचारण के लिए विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कथन 1 सही है: जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) एक प्राकृतिक प्रक्रिया का संवर्धित रूप है, जिसमें सूक्ष्मजीव, पौधों या उनके एंजाइमों का प्रयोग कर पर्यावरण में उपस्थित जैविक प्रदूषकों को निष्क्रिय, अपघटित या कम हानिकारक रूप में परिवर्तित किया जाता है। यह विधि मुख्यतः उन स्थलों पर प्रयुक्त होती है जहाँ तेल, कीटनाशक, सॉल्वेंट्स या अन्य जैविक प्रदूषक मिट्टी या जल को दूषित करते हैं। जैवोपचारण पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए एक प्राकृतिक, लागत-प्रभावी तथा सतत समाधान है। यह प्रक्रिया मानवीय हस्तक्षेप को कम कर स्वाभाविक जैविक यंत्रणाओं के उपयोग से कार्य करती है, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय स्थिरता सुनिश्चित होती है।
कथन 2 गलत है: यह कथन वैज्ञानिक रूप से भ्रामक है। कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुएँ रासायनिक रूप से अकार्बनिक तत्व होती हैं और इन्हें जैविक रूप से अपघटित नहीं किया जा सकता। जैवोपचारण प्रक्रिया मुख्यतः जैविक प्रदूषकों (जैसे हाइड्रोकार्बन, कीटनाशक) पर प्रभावी होती है। हालांकि, कुछ सूक्ष्मजीव या पौधों की सहायता से इन धातुओं को अवशोषित या अपरदन कर उनकी जैवउपलब्धता को सीमित किया जा सकता है, परन्तु इन्हें पूरी तरह से निष्क्रिय करना जैवोपचारण के माध्यम से संभव नहीं है। अतः यह कथन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से असत्य है।
कथन 3 सही है: आधुनिक जैवप्रौद्योगिकी और आनुवंशिक अभियांत्रिकी ने जैवोपचारण को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में क्रांतिकारी योगदान दिया है। वैज्ञानिक अब ऐसे सूक्ष्मजीव तैयार कर रहे हैं जिनमें विशेष जीन डाले गए हैं, जो जटिल और विषैले प्रदूषकों को अधिक तीव्रता से अपघटित करने में सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए, स्यूडोमोनास नामक जीव में आनुवंशिक संशोधन द्वारा तेल अपघटन की क्षमता को अत्यधिक बढ़ाया गया है। यह तकनीक उन परिस्थितियों में विशेष रूप से उपयोगी होती है जहाँ पारंपरिक जैवोपचारण एजेंट अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते। इसलिए, यह कथन वैज्ञानिक रूप से पूर्णतः प्रमाणित है।
प्रश्न 15. 1929 का व्यापार विवाद अधिनियम (ट्रेड डिस्प्यूट्स ऐक्ट) निम्नलिखित में से किसका उपबंध करता है?
(a) उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों की भागीदारी
(b) औद्योगिक झगड़ों के दमन के लिए प्रबन्धन के पास मनमानी करने की शक्ति
(c) व्यापार विवाद की स्थिति में ब्रिटिश न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप
(d) अधिकरणों (ट्रिब्यूनल्स) की प्रणाली तथा हड़तालों पर रोक
उत्तर: (d)
विकल्प (a) गलत है: 1929 का व्यापार विवाद अधिनियम औद्योगिक प्रबंधन में कामगारों की भागीदारी को लेकर नहीं था। इसका उद्देश्य श्रमिक हितों को बढ़ावा देना या उन्हें प्रबंधन में सम्मिलित करना नहीं था, बल्कि औपनिवेशिक शासन द्वारा मज़दूर आंदोलनों पर अंकुश लगाना था। यह अधिनियम एक प्रतिक्रियात्मक उपाय था, जिसे सरकार ने 1928 के खिलाफ़त आंदोलन, साइमन कमीशन विरोध और श्रमिक संगठनों की सक्रियता से उपजे औद्योगिक असंतोष को नियंत्रित करने के लिए लागू किया था। इसमें मज़दूर हित की नहीं, बल्कि औपनिवेशिक नियंत्रण की भावना प्रधान थी।
विकल्प (b) गलत है: इस अधिनियम ने उद्योग प्रबंधकों को प्रत्यक्ष रूप से मनमानी करने की खुली छूट नहीं दी, परन्तु इसने श्रमिक संगठनों और आंदोलनों को कठोर रूप से नियंत्रित किया। इससे हड़तालों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया तथा श्रमिकों की सामूहिक शक्ति को नियमन के दायरे में लाया गया। इस प्रकार भले ही प्रबंधकों को कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं मिला, लेकिन श्रमिक वर्ग को कमजोर कर, प्रशासनिक व्यवस्था को एकतरफा सुदृढ़ किया गया। इसलिए यह कहना कि अधिनियम ने प्रबंधकों को मनमानी की शक्ति दी, पूरी तरह तथ्यपरक नहीं है।
विकल्प (c) गलत है: अधिनियम का उद्देश्य ब्रिटिश न्यायालयों को व्यापार विवादों में हस्तक्षेप का अधिकार देना नहीं था, बल्कि कार्यपालिका को सीधे हस्तक्षेप की शक्ति सौंपना था। इसमें न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका के बजाय, विवादों के समाधान के लिए प्रशासनिक स्तर पर अधिकरणों की स्थापना और राजनीतिक हड़तालों पर रोक लगाने की व्यवस्था थी। न्यायिक व्यवस्था को अधिनियम में केंद्रीय भूमिका नहीं दी गई थी, बल्कि यह कार्य सरकार के अधीन संस्थानों और तंत्रों द्वारा किया जाना था। अतः यह विकल्प भी अधिनियम की प्रकृति से मेल नहीं खाता।
विकल्प (d) सही है: 1929 का व्यापार विवाद अधिनियम ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की वह प्रतिक्रिया थी जो उन्होंने श्रमिक आंदोलनों और राजनीतिक हड़तालों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए दी। अधिनियम ने एक ओर तो हड़तालों, विशेषकर राजनीतिक और सामूहिक हड़तालों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया, वहीं दूसरी ओर श्रमिकों और प्रबंधकों के मध्य विवादों के समाधान हेतु अधिकरणों (Tribunals) की स्थापना का प्रावधान किया। इसका उद्देश्य उद्योगों में ‘शांति’ बनाए रखना था, लेकिन वास्तव में यह श्रमिक आंदोलनों को कुचलने का एक औपचारिक माध्यम बन गया। इसने भारतीय श्रमिक संगठनों के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ते प्रभाव को सीमित करने का कार्य किया।
प्रश्न 16. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है
(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का
उत्तर: (b)
विकल्प (a) गलत है: स्थानीय स्वशासन को संघवाद का प्रयोग मानना अनुचित है, क्योंकि संघवाद दो या अधिक स्तरों की सरकारों के बीच संवैधानिक शक्तियों के वितरण से संबंधित होता है — जैसे कि केंद्र और राज्य। इसके विपरीत, स्थानीय स्वशासन केंद्र या राज्य के अधीन होते हैं और उनके अस्तित्व की संवैधानिक गारंटी 73वें और 74वें संविधान संशोधनों द्वारा दी गई है। ये इकाइयाँ स्वायत्तता की सीमित भावना के साथ कार्य करती हैं, न कि पूर्ण संघीय अधिकार के साथ। अतः यह विकल्प स्थानीय स्वशासन की प्रकृति की सही व्याख्या नहीं करता।
विकल्प (b) सही है: स्थानीय स्वशासन का सर्वाधिक उपयुक्त वर्णन “लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण” के रूप में किया जा सकता है। 73वें और 74वें संविधान संशोधनों (वर्ष 1992) के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया, जिससे जनप्रतिनिधियों को स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार मिला। यह लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक पहुंचाने का एक व्यावहारिक प्रयोग है, जिसमें नागरिक अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि इसे लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का सबसे महत्वपूर्ण रूप माना जाता है।
विकल्प (c) गलत है: प्रशासकीय प्रत्यायोजन का तात्पर्य केवल प्रशासनिक कार्यों के हस्तांतरण से है, जिसमें निर्णय की शक्ति उच्च स्तर पर ही केंद्रित रहती है। इसके विपरीत, स्थानीय स्वशासन न केवल कार्यों का हस्तांतरण करता है, बल्कि वित्तीय संसाधनों और निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी स्थानीय संस्थाओं को देता है। अतः यह केवल एक प्रशासनिक विकेंद्रण नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण है, जिसमें नागरिकों को प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व और भागीदारी का अवसर प्राप्त होता है। इसलिए यह विकल्प अधूरी और सीमित व्याख्या करता है।
विकल्प (d) गलत है: प्रत्यक्ष लोकतंत्र का अर्थ होता है कि जनता स्वयं कानूनों का निर्माण और नीतियों का निर्धारण करती है — जैसे जनमत संग्रह, लोक अभिसमय आदि के माध्यम से। भारत में स्थानीय स्वशासन प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि प्रतिनिधिक लोकतंत्र के अंतर्गत आता है, जहाँ नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं जो पंचायतों और नगरपालिकाओं में निर्णय लेते हैं। यद्यपि इसमें नागरिक भागीदारी बढ़ी है, परंतु इसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण नहीं कहा जा सकता। इसलिए यह विकल्प स्थानीय स्वशासन की यथार्थ प्रकृति को सही नहीं दर्शाता।
प्रश्न 17. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
भारत के संविधान के सन्दर्भ में, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व-
1. विधायिका के कृत्यों पर निर्बन्धन करते हैं।
2. कार्यपालिका के कृत्यों पर निर्बन्धन करते हैं।
उपर्युक्त कंथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
कथन 1 गलत है: राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP) विधायिका पर संवैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। वे भाग-4 (अनुच्छेद 36 से 51) के अंतर्गत आते हैं और विधायिका को एक नैतिक व वैचारिक दिशा प्रदान करते हैं ताकि भारत को एक समावेशी, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय आधारित कल्याणकारी राज्य में परिवर्तित किया जा सके। हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 37 में यह स्पष्ट किया गया है कि निदेशक तत्त्वों को किसी भी अदालत में प्रवर्तनीय नहीं माना जाएगा, किंतु इन्हें विधायिका को नीति निर्धारण में सहायक व प्रेरणादायक तत्त्व के रूप में देखने की अपेक्षा है। परंतु विधायिका इनका पालन करने के लिए बाध्य नहीं है और यदि कोई विधेयक इनका उल्लंघन करे तो उसे महज़ इसी आधार पर असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता।
कथन 2 गलत है: कार्यपालिका पर भी निदेशक तत्त्वों का कानूनी रूप से कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं होता। कार्यपालिका से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने शासन-प्रशासन, नीति-निर्धारण और कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण में इन तत्त्वों को आदर्श के रूप में अपनाए। परंतु यदि कार्यपालिका ऐसा न करे, तो इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। उदाहरणतः, अनुच्छेद 47 में शराब के निषेध की बात कही गई है, किंतु यदि कोई राज्य ऐसा न करे, तो उस पर कानूनी कार्यवाही संभव नहीं होती। केशवानंद भारती बनाम राज्य केस (1973) और मिनर्वा मिल्स केस (1980) जैसे मामलों में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि निदेशक तत्त्व संविधान की आत्मा हैं, परंतु वे कार्यपालिका के लिए न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, सिर्फ नैतिक और नीति-निर्देशन के स्तर पर प्रभावी हैं।
प्रश्न 18. समाचारों में आने वाला ‘डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति (डिजिटल सिंगल मार्केट स्ट्रेटेजी)’ पद किसे निर्दिष्ट करता है?
(a) ASEAN को
(b) BRICS को
(c) EU को
(d) G20 को
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है: “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” ASEAN (आसियान) के संदर्भ में नहीं आता है। ASEAN एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया में आर्थिक, राजनीतिक, और सामाजिक सहयोग बढ़ाना है। हालांकि, ASEAN में डिजिटल एकीकरण और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” यूरोपीय संघ (EU) की विशेष नीति है, न कि ASEAN की।
विकल्प (b) गलत है: “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” BRICS (ब्रिक्स) देशों से संबंधित नहीं है। BRICS, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मंच पर काम करता है, लेकिन इसकी प्राथमिकता डिजिटल या तकनीकी एकीकरण के बजाय विकासशील देशों के समृद्धि और सहयोग के मुद्दों पर है। BRICS के देशों में डिजिटल सुधार के प्रयास होते हैं, लेकिन डिजिटल एकल बाज़ार की अवधारणा केवल EU द्वारा अपनाई गई है।
विकल्प (c) सही है: “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” यूरोपीय संघ (EU) की एक प्रमुख नीति है, जिसे 2015 में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य EU के भीतर डिजिटल सेवा और उत्पादों के लिए एक एकीकृत और खुला बाजार बनाना है। यह नीति, विभिन्न देशों के बीच डिजिटल सीमाओं को खत्म करने के लिए डिज़ाइन की गई है ताकि डेटा, सेवाएं और व्यापार एकल बाज़ार के रूप में आसानी से संचालित हो सकें। इससे यूरोपीय संघ के डिजिटल क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्धी और समृद्ध बनाने की कोशिश की गई है।
विकल्प (d) गलत है: “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” G20 से संबंधित नहीं है। G20 एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जिसमें विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, और इसका मुख्य ध्यान वैश्विक आर्थिक स्थिरता और विकास पर होता है। हालांकि G20 डिजिटल बदलाव को बढ़ावा देने पर चर्चा करता है, लेकिन “डिजिटल एकल बाज़ार कार्यनीति” का खाका यूरोपीय संघ (EU) ने तैयार किया है, और इसका उद्देश्य EU के अंदर के डिजिटल अवरोधों को समाप्त करना है।
प्रश्न 19. भारत में एक ऐसा स्थान है, जहाँ यदि आप समुद्र किनारे खड़े होकर समुद्र का अवलोकन करें, तो आप पाएँगे कि दिन में दो बार समुद्री जल तटीय रेखा से कुछ किलोमीटर पीछे की ओर चला जाता है और फिर तट पर वापस आता है और जब जल पीछे हटा होता है, तब आप वास्तव में समुद्र तल पर चल सकते हैं। यह अनूठी घटना कहाँ देखी जाती है?
(a) भावनगर में
(b) भीमुनिपटनम में
(c) चांदीपुर में
(d) नागपट्टिनम में
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है: भावनगर, जो कि गुजरात राज्य में स्थित है, समुद्र के उतार-चढ़ाव के लिए प्रसिद्ध नहीं है। यहाँ के तटीय क्षेत्र में समुद्र का जल सामान्य रूप से स्थिर रहता है, और समुद्र तल पर चलने की घटना नहीं देखी जाती। यह क्षेत्र मुख्य रूप से व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन समुद्र जल के पीछे हटने और तट पर वापस आने जैसी घटनाएँ यहां घटित नहीं होतीं।
विकल्प (b) गलत है: भीमुनिपटनम, आंध्र प्रदेश में स्थित एक प्रमुख समुद्र तटीय क्षेत्र है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समुद्र के किनारे की शांतिपूर्ण विशेषताओं के लिए जाना जाता है। हालांकि यहाँ समुद्र का जल अपने सामान्य ज्वारीय उतार-चढ़ाव का पालन करता है, लेकिन चांदीपुर की तरह यहाँ समुद्र जल का तटीय रेखा से कुछ किलोमीटर पीछे हटने की घटना नहीं होती है, जो विशेष रूप से चांदीपुर में देखने को मिलती है।
विकल्प (c) सही है: चांदीपुर, ओडिशा का एक महत्वपूर्ण तटीय क्षेत्र है, जहाँ समुद्र जल का तटीय रेखा से पीछे हटना और फिर वापस आना एक अद्वितीय घटना है। यहाँ पर ज्वारीय परिवर्तन इतने बड़े होते हैं कि समुद्र का जल लगभग 3-5 किलोमीटर तक तट से पीछे चला जाता है, जिससे समुद्र तल पर चलने का अनुभव होता है। यह घटना चांदीपुर में विशेष रूप से देखी जाती है और इस कारण यह एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण बन चुका है।
विकल्प (d) गलत है: नागपट्टिनम, तमिलनाडु में स्थित एक प्रमुख समुद्र तटीय क्षेत्र है, जो अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। हालांकि यहाँ भी समुद्र का जल ज्वारीय उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता है, लेकिन समुद्र जल का तटीय रेखा से पीछे हटने और वापस आने की घटना, जैसी चांदीपुर में देखी जाती है, यहाँ नहीं होती। नागपट्टिनम की तट रेखा पर समुद्र का जल सामान्य रूप से आता-जाता है।
प्रश्न 20. ‘बेनामी संपत्ति लेन-देन का निषेध अधिनियम, 1988 (PBPT अधिनियम)’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. किसी संपत्ति का लेन-देन बेनामी लेन-देन नहीं समझा जाएगा यदि संपत्ति का मालिक उस लेन-देन के बारे में अवगत नहीं है।
2. बेनामी पाई गई संपत्तियाँ सरकार द्वारा ज़ब्त किए जाने के लिए दायी होंगी।
3. यह अधिनियम जाँच के लिए तीन प्राधिकारियों का उपबंध करता है किन्तु यह किसी अपीलीय क्रियाविधि का उपबंध नहीं करता।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: ‘बेनामी संपत्ति लेन-देन का निषेध अधिनियम, 1988’ के तहत, यदि संपत्ति बेनामी है, तो उसका वास्तविक स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति के पास होता है और इस स्थिति में, संपत्ति का मालिक उस लेन-देन के बारे में जानता या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं होता। यदि संपत्ति का स्वामित्व छिपाया गया है और यह बेनामी रूप से दर्ज की गई है, तो उसे बेनामी संपत्ति माना जाएगा।
कथन 2 सही है: ‘बेनामी संपत्ति लेन-देन का निषेध अधिनियम, 1988’ के तहत, बेनामी संपत्तियाँ सरकार द्वारा जब्त की जा सकती हैं। इस अधिनियम के तहत यह निर्धारित किया गया है कि यदि कोई संपत्ति बेनामी पाई जाती है, तो उसे सरकार द्वारा जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यह संपत्तियाँ सरकारी प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित की जाती हैं और इन्हें संपत्ति के वास्तविक मालिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया में जब्त किया जा सकता है।
कथन 3 सही है: ‘बेनामी संपत्ति लेन-देन का निषेध अधिनियम, 1988’ के तहत जांच प्रक्रिया के लिए तीन प्राधिकरणों का प्रावधान किया गया है। ये प्राधिकरण बेनामी संपत्तियों के मामलों की जाँच करते हैं और इसके बाद संबंधित कार्रवाई की जाती है। हालांकि, यह अधिनियम अपीलीय क्रियाविधि का स्पष्ट उल्लेख नहीं करता है, जो उच्च न्यायालयों या अन्य अपीलीय निकायों को निर्णयों के खिलाफ अपील करने का अधिकार देता हो।
प्रश्न 21. कुछ कारणों वश, यदि तितलियों की जाति (स्पीशीज़) की संख्या में बड़ी गिरावट होती है, तो इसका/इसके संभावित परिणाम क्या हो सकता/सकते है/हैं?
1. कुछ पौधों के परागण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
2. कुछ कृष्य पौधों में कवकीय संक्रमण प्रचण्ड रूप से बढ़ सकता है।
3. इसके कारण बरौं, मकड़ियों और पक्षियों की कुछ प्रजातियों की समष्टि में गिरावट हो सकती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कथन 1 सही है: तितलियाँ परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी संख्या में गिरावट से विशेष रूप से उन पौधों के परागण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है जो तितलियों पर निर्भर हैं। इससे पौधों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे उनकी संख्या में गिरावट और जैव विविधता में कमी हो सकती है।
कथन 2 गलत है: तितलियाँ मुख्य रूप से परागण में संलग्न होती हैं और उनका मुख्य कार्य पौधों के प्रजनन में सहायता करना है। तितलियों की संख्या में कमी से कवकीय संक्रमण में वृद्धि होने की संभावना नहीं है। कवकीय संक्रमण का मुख्य कारण नमी, तापमान, और मिट्टी की स्थिति जैसी पर्यावरणीय कारक होते हैं, न कि तितलियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति।
कथन 3 सही है: तितलियाँ खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और विभिन्न जीवों के लिए आहार का स्रोत होती हैं। यदि तितलियों की संख्या में गिरावट आती है, तो इससे बरौं, मकड़ियों और पक्षियों की कुछ प्रजातियों की समष्टि में गिरावट हो सकती है, क्योंकि ये जीव तितलियों को अपने आहार में शामिल करते हैं। तितलियों की कमी से इन जीवों की संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
प्रश्न 22. शैवाल आधारित जैव-ईंधनों का उत्पादन संभव है लेकिन इस उद्योग के संवर्धन में विकासशील देशों की क्या संभावित सीमा/सीमाएँ है/हैं?
1. शैवाल आधारित जैव-ईंधनों का उत्पादन केवल समुद्रों में ही संभव है, महाद्वीपों पर नहीं।
2. शैवाल आधारित जैव-ईंधन उत्पादन को स्थापित करने और इंजीनियरी करने हेतु निर्माण पूरा होने तक उच्च स्तरीय विशेषज्ञता/प्रौद्योगिकी की ज़रूरत होती है।
3. आर्थिक रूप से व्यवहार्य उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर सुविधाओं की स्थापना की आवश्यकता होती है जिससे पारिस्थितिक एवं सामाजिक सरोकार उत्पन्न हो सकते हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: शैवाल आधारित जैव-ईंधन केवल समुद्रों में ही उत्पन्न करना संभव नहीं है। वास्तव में, शैवालों की खेती का कार्य महाद्वीपों पर भी किया जा सकता है, विशेष रूप से भूमिगत जलाशयों, कृत्रिम जलाशयों या बायो-रेअक्टर्स के माध्यम से। शैवालों की खेती, जो ताजे पानी, नमकीन पानी, और अन्य जल निकायों में की जा सकती है, महाद्वीपों पर भी पूरी तरह से कार्यान्वित की जा सकती है। इसलिए यह धारणा गलत है कि यह सिर्फ समुद्रों में ही संभव है।
कथन 2 सही है: शैवाल आधारित जैव-ईंधन उत्पादन के लिए स्थापित करने और इंजीनियरिंग की प्रक्रिया में उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। शैवालों का चयन, उनकी उगाई के तरीके, उनके ऊर्जा उत्पादन क्षमता का अनुकूलन और फिर उन ऊर्जा तत्वों को जैव-ईंधन में परिवर्तित करने की तकनीकी प्रक्रिया जटिल है। इस प्रक्रिया को उचित रूप से स्थापित करने के लिए अत्यधिक विशेषज्ञता और अनुसंधान की आवश्यकता होती है, जिससे इसे विकासशील देशों के लिए चुनौतीपूर्ण बना देता है।
कथन 3 सही है: शैवाल आधारित जैव-ईंधन उत्पादन का व्यावसायिक रूप से लागू होने के लिए बड़े पैमाने पर सुविधाओं की स्थापना आवश्यक होती है, जिससे उत्पादन लागत कम हो सके और यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य बने। इस प्रकार की उत्पादन प्रक्रिया के लिए उच्च स्तर की मशीनरी, भूमि का बड़ा क्षेत्र और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, यदि इन सुविधाओं की स्थापना पर्यावरणीय दृष्टिकोण से उपयुक्त तरीके से नहीं की जाती, तो पारिस्थितिकीय और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे जल निकायों का दबाव, जल की गुणवत्ता में कमी, या कृषि भूमि पर प्रतिकूल प्रभाव।
प्रश्न 23. निम्नलिखित में से कौन-से ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)’ के उद्देश्य हैं?
1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4
उत्तर: (a)
कथन 1 सही है: राष्ट्रीय पोषण मिशन (NPM) का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधित जागरूकता उत्पन्न करना है। यह जागरूकता पोषण संबंधी नीतियों और आहार संबंधी जानकारी को साझा करने पर केंद्रित है। विशेष रूप से, यह मिशन महिलाओं के स्वास्थ्य, उनके पोषण स्तर में सुधार करने, और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रभावी उपायों की पहचान करता है।
कथन 2 सही है: राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत, छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में रक्ताल्पता की घटनाओं को कम करने का प्रमुख उद्देश्य है। यह योजना खासकर आयरन और फोलिक एसिड की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता की समस्या को दूर करने के लिए कार्य करती है। मिशन के अंतर्गत बच्चों और महिलाओं में इन पोषक तत्वों की खपत बढ़ाने के उपाय अपनाए जाते हैं ताकि उनकी सेहत बेहतर हो सके।
कथन 3 गलत है: राष्ट्रीय पोषण मिशन का मुख्य उद्देश्य बाजरा, मोटे अनाज या अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना नहीं है। हालांकि, यह मिशन खाद्य सुरक्षा, पोषण की विविधता और पोषक तत्वों की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है, मगर इसका मुख्य ध्यान रक्ताल्पता, कुपोषण और मातृ-शिशु स्वास्थ्य पर केंद्रित है। मिशन के अंतर्गत, इन खाद्य पदार्थों को एक हिस्से के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है, लेकिन यह प्राथमिक उद्देश्य नहीं है।
कथन 4 गलत है: मुगीं के अंडों का उपभोग बढ़ाना राष्ट्रीय पोषण मिशन का उद्देश्य नहीं है। मिशन का प्राथमिक ध्यान पोषण के स्तर को बेहतर बनाना और महिलाओं और बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार करना है। इसमें प्रोटीन, आयरन, और अन्य आवश्यक विटामिन्स के स्रोतों का सेवन बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन मुगीं के अंडों को इस संदर्भ में विशेष रूप से बढ़ावा देना इसका मुख्य उद्देश्य नहीं है।
प्रश्न 24. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. फैक्टरी ऐक्ट, 1881 औद्योगिक कामगारों की मज़दूरी नियत करने के लिए और कामगारों को मज़दूर संघ बनाने देने की दृष्टि से पारित किया गया था।
2. एन.एम. लोखंडे ब्रिटिश भारत में मज़दूर आन्दोलन संगठित करने में अग्रगामी थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: फैक्टरी ऐक्ट, 1881 को भारतीय श्रमिकों की भौतिक स्थितियों और कार्य के घंटों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से पारित किया गया था, न कि केवल मज़दूरी नियत करने के लिए। यह ऐक्ट महिलाओं और बच्चों के लिए कार्य घंटों और कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए था, जो उस समय असुरक्षित परिस्थितियों में काम करते थे। श्रमिक संघों का गठन और मज़दूरी निर्धारण का काम बाद में विभिन्न श्रमिक आंदोलनों और कानूनों के द्वारा हुआ था। इस ऐक्ट के तहत मुख्य रूप से कार्यकुशलता और श्रमिकों के भौतिक सुरक्षा उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
कथन 2 सही है: एन.एम. लोखंडे ब्रिटिश भारत में श्रमिक आंदोलनों के संस्थापक थे। उनका नेतृत्व श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और शोषण के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण था। उन्होंने मुंबई में 1875 में मजदूरों का पहला संगठित संघ स्थापित किया और श्रमिकों की दशाओं को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। लोखंडे ने मज़दूरों के लिए न्यूनतम वेतन, कामकाजी घंटों में कमी और कार्यस्थल पर सुरक्षा के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनके नेतृत्व में श्रमिक आंदोलन को एक सशक्त रूप मिला।
प्रश्न 25. कार्बन डाइऑक्साइड के मानवोद्भवी उत्सर्जनों के कारण आसन्न भूमंडलीय तापन के न्यूनीकरण के सन्दर्भ में, कार्बन प्रच्छादन हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा/से संभावित स्थान हो सकता/सकते है/हैं?
1. परित्यक्त एवं गैर-लाभकारी कोयला संस्तर
2. निःशेष तेल एवं गैस भण्डार
3. भूमिगत गभीर लवणीय शैलसमूह
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
कथन 1 सही है: परित्यक्त एवं गैर-लाभकारी कोयला संस्तर (Abandoned and non-profitable coal seams) कार्बन डाइऑक्साइड के दीर्घकालिक भंडारण के लिए एक उपयुक्त स्थान हो सकते हैं। कोयला खनन के बाद, इन स्थलों में अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को संचित किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में कार्बन के भंडारण के लिए प्राकृतिक रूप से उपयुक्त परिस्थितियाँ उपलब्ध होती हैं, जिससे यह कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) तकनीक के लिए उपयुक्त हो जाते हैं। इसके साथ ही, यह क्षेत्र भविष्य में कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
कथन 2 सही है: निःशेष तेल एवं गैस भंडार (Depleted oil and gas reservoirs) भी कार्बन डाइऑक्साइड के संग्रहण के लिए सर्वोत्तम स्थल होते हैं। इन भंडारों का संरचनात्मक गुण, जैसे कि उच्च दबाव, कार्बन डाइऑक्साइड को दीर्घकालिक और स्थिर रूप से संचित करने में सक्षम होते हैं। इनका इस्तेमाल पहले से खोदी गई तेल और गैस भूमिगत भंडारण साइटों में कार्बन को संग्रहीत करने के लिए किया जा सकता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है। यह कार्बन प्रच्छादन की दृष्टि से अत्यधिक प्रभावी तकनीक है।
कथन 3 सही है: भूमिगत गभीर लवणीय शैलसमूह (Deep saline formations) को भी कार्बन डाइऑक्साइड के सुरक्षित भंडारण के लिए एक प्रमुख स्थान माना जाता है। ये जलमग्न क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जो प्राकृतिक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं। ये शैलसमूह उच्च दबाव और उच्च आर्द्रता में स्थित होते हैं, जिससे ये दीर्घकालिक भंडारण के लिए आदर्श होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड को इन शैलसमूहों में स्थायी रूप से संग्रहीत किया जा सकता है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने में सहायक बनता है।
उपरोक्त सभी स्थल—परित्यक्त कोयला संस्तर, निःशेष तेल और गैस भंडार, तथा भूमिगत गभीर लवणीय शैलसमूह—कार्बन प्रच्छादन के लिए उपयुक्त स्थान हैं, और इनका उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड के दीर्घकालिक भंडारण के लिए किया जा सकता है। इन स्थानों में कार्बन के सुरक्षित संग्रहण की क्षमता होती है, जिससे हम वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को नियंत्रित कर सकते हैं और ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
प्रश्न 26. 1927 की बटलर कमेटी का उद्देश्य था
(a) केन्द्रीय एवं प्रांतीय सरकारों की अधिकारिता निश्चित करना।
(b) भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट की शक्तियाँ निश्चित करना।
(c) राष्ट्रवादी प्रेस पर सेंसर-व्यवस्था अधिरोपित करना।
(d) भारत सरकार एवं देशी रियासतों के बीच सम्बन्ध सुधारना।
उत्तर: (d)
विकल्प (a) गलत है: यह कथन ऐतिहासिक रूप से असत्य है। 1927 की बटलर समिति का उद्देश्य केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों या अधिकारिता के निर्धारण से संबंधित नहीं था। वास्तव में, यह कार्य भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत किया गया था, जिसने केंद्र-राज्य संबंधों की स्पष्ट रचना दी। अतः बटलर समिति की स्थापना का केंद्र और प्रांतों की शक्तियों के वितरण से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था।
विकल्प (b) गलत है: यह भी त्रुटिपूर्ण कथन है। बटलर समिति की स्थापना भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की शक्तियों को सीमित करने या परिभाषित करने के लिए नहीं की गई थी। सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को भारत सरकार अधिनियमों और ब्रिटिश संसद द्वारा नियंत्रित किया जाता था। समिति का उद्देश्य पूरी तरह राजनीतिक था – अर्थात देशी रियासतों और ब्रिटिश भारतीय सरकार के बीच संबंधों को सुव्यवस्थित करना।
विकल्प (c) गलत है: यह विकल्प ऐतिहासिक सन्दर्भ से पूरी तरह भ्रामक है। राष्ट्रवादी प्रेस पर नियंत्रण के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा अन्य कानूनों का प्रयोग किया गया था, जैसे कि Indian Press Act, 1910 और Vernacular Press Act, 1878। बटलर समिति का प्रेस, सेंसरशिप या किसी प्रकार की मीडिया नीति से कोई सरोकार नहीं था। उसका कार्यक्षेत्र केवल राजनीतिक और प्रशासनिक प्रकृति का था, विशेषकर देशी रियासतों के संदर्भ में।
विकल्प (d) सही है: बटलर समिति का गठन 1927 में इस उद्देश्य से किया गया था कि वह ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों के बीच संबंधों की प्रकृति को स्पष्ट करे और उनमें पारदर्शिता व समन्वय स्थापित करे। समिति ने सुझाव दिया कि देशी राज्यों के मामलों में भारत सरकार को सीधा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए तथा वायसराय को उनकी संप्रभुता का सम्मान करते हुए सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना चाहिए। यह औपनिवेशिक नीति में एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम था।
प्रश्न 27. कभी-कभी समाचारों में दिखाई पड़ने वाले ‘घरेलू अंश आवश्यकता (डोमेस्टिक कन्टेंट रिक्वायरमेंट)’ पद का संबंध किससे है?
(a) हमारे देश में सौर शक्ति उत्पादन का विकास करने से
(b) हमारे देश में विदेशी टी.वी. चैनलों को अनुज्ञप्ति प्रदान करने से
(c) हमारे देश के खाद्य उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करने से
(d) विदेशी शिक्षा संस्थाओं को हमारे देश में अपने परिसर स्थापित करने की अनुमति देने से
उत्तर: (a)
‘घरेलू अंश आवश्यकता’ (Domestic Content Requirement, DCR) का उद्देश्य भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक उपकरणों का स्थानीय उत्पादन बढ़ाना है। यह नीति 2011 में राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM) के तहत लागू की गई थी, जिसका उद्देश्य सौर पैनल, इनवर्टर और बैटरियों जैसे उपकरणों के निर्माण में भारतीय उद्योगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना था। इस नीति के तहत, भारत सरकार ने सौर ऊर्जा परियोजनाओं में विदेशी उपकरणों के बजाय घरेलू निर्मित उत्पादों का उपयोग अनिवार्य किया। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय उद्योगों को सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बनाने और नई तकनीकों को अपनाने का अवसर मिला।
इसके तहत, सौर ऊर्जा परियोजनाओं को सरकारी समर्थन प्राप्त करने के लिए एक निश्चित मात्रा में घरेलू उत्पादों का उपयोग करना आवश्यक किया गया। यह नीति भारत के सौर ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी, जिससे भारतीय निर्माताओं को सौर उत्पादों के निर्माण के लिए प्रोत्साहन मिला। इसके साथ ही, यह नीति भारतीय उद्योगों के लिए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के अवसरों को भी बढ़ाती है।
घरेलू अंश आवश्यकता नीति से भारत की सौर ऊर्जा की आपूर्ति श्रृंखला मजबूत हुई। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय उद्योगों ने नवाचार और तकनीकी विकास के माध्यम से सौर ऊर्जा उपकरणों के निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल की। इससे न केवल भारत की सौर ऊर्जा क्षमता में वृद्धि हुई, बल्कि यह नीति भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाने की दिशा में भी सहायक साबित हुई। ‘घरेलू अंश आवश्यकता’ का क्रियान्वयन भारत के ऊर्जा क्षेत्र के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक अहम कदम था।
प्रश्न 28. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में आवधिक रूप से किए जाते हैं।
2. विखंडनीय सामग्रियों पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण का एक अंग है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
कथन 1 गलत है: परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन (Nuclear Security Summit) संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित नहीं किए जाते हैं। इस शिखर सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 2010 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की थी, जिसका उद्देश्य था: वैश्विक स्तर पर परमाणु आतंकवाद की संभावना को समाप्त करना और विखंडनीय परमाणु सामग्री की सुरक्षा सुनिश्चित करना। यह एक स्वतंत्र बहुपक्षीय मंच था और इसे संयुक्त राष्ट्र की अधीनस्थ या पर्यवेक्षित व्यवस्था के अंतर्गत नहीं चलाया गया। कुल मिलाकर चार सम्मेलन (2010 वॉशिंगटन, 2012 सियोल, 2014 हेग, 2016 वॉशिंगटन) आयोजित हुए, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से परमाणु सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से थे।
कथन 2 गलत है: विखंडनीय सामग्रियों पर अंतरराष्ट्रीय पैनल (International Panel on Fissile Materials – IPFM) कोई अंतर-सरकारी संस्था नहीं है और न ही यह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (IAEA) का एक अंग है। यह एक स्वतंत्र वैश्विक अनुसंधान नेटवर्क है, जिसका गठन 2006 में हुआ और इसका मुख्यालय प्रिंसटन विश्वविद्यालय, अमेरिका में है। इसका उद्देश्य वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए विखंडनीय पदार्थों के उत्पादन, उपयोग, भंडारण और सुरक्षा से संबंधित नीतिगत अनुसंधान करना है। यह संगठन IAEA की तुलना में सलाहकारी और अकादमिक प्रकृति का है, अतः इसे IAEA का भाग नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 29. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में सम्मिलित हो सकता है?
(a) केवल निवासी भारतीय नागरिक
(b) केवल 21 से 55 तक की आयु के व्यक्ति
(c) राज्य सरकारों के सभी कर्मचारी, जो संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचना किए जाने की तारीख के पश्चात् सेवा में आए हैं
(d) सशस्त्र बलों समेत केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी, जो 1 अप्रैल, 2004 को या उसके बाद सेवाओं में आए हैं
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है: राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) केवल निवासी भारतीय नागरिकों तक सीमित नहीं है। वर्ष 2015 में भारत सरकार ने अनिवासी भारतीयों (NRIs) को भी NPS में शामिल होने की अनुमति प्रदान की। इसका उद्देश्य भारतीय प्रवासियों को भी रिटायरमेंट सुरक्षा प्रदान करना है। नरेन्द्र मोदी सरकार की “Inclusive Financial Security” नीति के अंतर्गत, PFRDA द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि NPS को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाए। अतः यह योजना केवल “निवासी” भारतीयों के लिए सीमित नहीं है।
विकल्प (b) गलत है: राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में सम्मिलित होने की न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष है और अधिकतम 70 वर्ष निर्धारित की गई है। यह सुविधा सभी आयु-वर्गों के लिए उपयुक्त बनाई गई है, जिससे युवा निवेशकों के साथ-साथ अधेड़ आयु के व्यक्ति भी रिटायरमेंट की योजना बना सकें। आयु सीमा 21-55 वर्ष बताना भ्रामक और अपूर्ण जानकारी है, जिससे संभावित लाभार्थी वंचित हो सकते हैं।
विकल्प (c) सही है: राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को पहले 1 अप्रैल 2004 से केंद्र सरकार के नए असैनिक कर्मचारियों पर लागू किया गया। इसके बाद राज्यों को यह छूट दी गई कि वे चाहें तो अधिसूचना द्वारा इसे अपने कर्मचारियों पर लागू कर सकते हैं। अधिकांश राज्यों ने अपने कर्मचारियों के लिए भी यह योजना लागू की है, परंतु इसकी तिथि संबंधित राज्य की अधिसूचना पर निर्भर करती है। इसका उद्देश्य पारंपरिक पेंशन प्रणाली की आर्थिक अस्थिरता को दूर करते हुए एक “सतत, पारदर्शी एवं अंशदान आधारित पेंशन प्रणाली” लागू करना था।
विकल्प (d) गलत है: यद्यपि केंद्र सरकार के असैनिक कर्मचारी 1 अप्रैल 2004 के बाद से NPS के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इसमें सशस्त्र बलों को सम्मिलित नहीं किया गया है। भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना को अब भी पुरानी पेंशन योजना (OPS) का लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि इन सेवाओं की प्रकृति जोखिमपूर्ण और विशिष्ट है। इसलिए यह कथन भ्रामक है क्योंकि यह सशस्त्र बलों को भी शामिल मान रहा है, जो वास्तविकता के विपरीत है।
प्रश्न 30. तीस्ता नदी के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. तीस्ता नदी का उद्गम वही है जो ब्रह्मपुत्र का है लेकिन यह सिक्किम से होकर बहती है।
2. रंगीत नदी की उत्पत्ति सिक्किम में होती है और यह तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।
3. तीस्ता नदी, भारत एवं बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
तीस्ता नदी का उद्गम सिक्किम के लाचुंग ग्लेशियर से होता है, न कि ब्रह्मपुत्र नदी के उद्गम स्थल से। तीस्ता नदी का प्रवाह सिक्किम से शुरू होकर पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में समाप्त होता है। यह नदी भारत और बांग्लादेश के बीच एक प्रमुख जलस्रोत है। इसका जलविभाजन पश्चिम बंगाल के जल संसाधनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और बांग्लादेश के लिए भी यह नदी जल आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत है। तीस्ता के पानी की आपूर्ति और नियंत्रण को लेकर दोनों देशों में समय-समय पर समझौते और विवाद होते रहते हैं।
रंगीत नदी, जो तीस्ता की सहायक नदी है, सिक्किम में उत्पन्न होती है और तीस्ता नदी में मिलकर इसके जल प्रवाह को बढ़ाती है। रंगीत नदी का स्रोत सिक्किम के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है और यह तीस्ता के जलप्रवाह को बढ़ाकर इसे और अधिक जलसंचयित करती है। यह सहायक नदी सिक्किम के गंगटोक क्षेत्र से होकर पश्चिम बंगाल की ओर बहती है।
तीस्ता नदी, भारत और बांग्लादेश की सीमा के पास स्थित है और इसका अंत बंगाल की खाड़ी में होता है। इस नदी का जलवृद्धि न केवल भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के लिए, बल्कि बांग्लादेश के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहां यह कृषि, जल आपूर्ति और जल परिवहन के लिए अत्यधिक उपयोगी है। तीस्ता नदी का जलवहन दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है और इसे लेकर द्विपक्षीय समझौते भी हुए हैं, जो नदी के जल की साझा व्यवस्था और वितरण से संबंधित होते हैं।
प्रश्न 31. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:.
1. उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में, ज़ीका वाइरस रोग उसी मच्छर द्वारा संचरित होता है जिससे डेंगू संचरित होता है।
2. ज़ीका वाइरस रोग का लैंगिक संचरण होना संभव है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
ज़ीका वायरस, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैला हुआ है, मुख्य रूप से Aedes aegypti मच्छर द्वारा संचालित होता है। यह वही मच्छर है जो डेंगू, चिकनगुनिया और पीत ज्वर जैसे रोगों का प्रसार करता है। ज़ीका वायरस का प्रसार संक्रमित मच्छरों के द्वारा होता है, जो अपने खून के माध्यम से वायरस को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाते हैं। इस वायरस की विशेषता यह है कि यह मच्छर केवल दिन में सक्रिय रहते हैं, जिससे यह खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य खतरा बन जाता है। इस प्रकार, पहला कथन सही है कि ज़ीका वायरस रोग उसी मच्छर द्वारा संचालित होता है जिससे डेंगू होता है।
ज़ीका वायरस का लैंगिक संचरण भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। शोध में यह पाया गया है कि ज़ीका वायरस यौन संपर्क के माध्यम से भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य स्वास्थ्य संगठनों ने इस पहलू को लेकर कई चेतावनियाँ जारी की हैं। लैंगिक संपर्क के अलावा, यह वायरस रक्तदान और अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से भी फैल सकता है। यह विशेषता ज़ीका वायरस को अन्य मच्छर जनित रोगों से अलग करती है, क्योंकि कई अन्य वायरल संक्रमण केवल मच्छरों द्वारा ही फैलते हैं। इसलिए, यह तथ्य सत्य है कि ज़ीका वायरस रोग का लैंगिक संचरण संभव है।
इन दोनों पहलुओं की समझ से ज़ीका वायरस के नियंत्रण में मदद मिल सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ यह रोग व्यापक रूप से फैला हुआ है। स्वास्थ्य विभागों को मच्छरों के नियंत्रण के साथ-साथ लैंगिक संचरण की भी निगरानी करनी होती है। इस प्रकार की जानकारी से सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की प्रभावशीलता बढ़ सकती है और इसे फैलने से रोकने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। यह संयंत्रों और जीवनशैली से जुड़ी सावधानियों को लागू करने में भी सहायक हो सकता है, जैसे कि मच्छरदानी का उपयोग और सुरक्षित यौन स्वास्थ्य।
प्रश्न 32. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. मोटर वाहनों के टायरों और ट्यूबों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) का मानक चिह्न अनिवार्य है।
2. AGMARK, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी एक गुणता प्रमाणन चिह्न है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) का मानक चिह्न मोटर वाहनों के टायरों और ट्यूबों के लिए अनिवार्य है। यह चिह्न सुनिश्चित करता है कि संबंधित उत्पाद भारतीय सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हैं। BIS मानक चिह्न उपभोक्ताओं को आश्वस्त करता है कि टायर और ट्यूब परीक्षणों से गुजरने के बाद निर्धारित मानकों पर खरे उतरे हैं, जिससे सड़क सुरक्षा में सुधार होता है। यह पहल उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी और इसे 1986 में लागू किया गया था। इस चिह्न का उद्देश्य न केवल सुरक्षा बल्कि भारतीय उद्योग की गुणवत्ता को भी बढ़ावा देना है।
AGMARK एक प्रमाणन चिह्न है, जो भारतीय कृषि मंत्रालय द्वारा कृषि उत्पादों की गुणवत्ता का प्रमाण पत्र प्रदान करता है। यह चिह्न खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है और विशेष रूप से उन उत्पादों के लिए होता है जो भारतीय कृषि मानकों के अनुसार होते हैं। AGMARK के तहत प्रमाणित उत्पादों में मुख्य रूप से कृषि उत्पादों जैसे मसाले, अनाज, फल और डेयरी उत्पाद शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को गुणवत्ता वाले कृषि उत्पाद उपलब्ध कराना और किसानों के उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
AGMARK की प्रक्रिया के तहत कृषि उत्पादों का परीक्षण किया जाता है, जिसमें उनके पोषण स्तर, कीटनाशक अवशेषों की उपस्थिति और पैकिंग मानकों का मूल्यांकन किया जाता है। यह प्रमाणन उपभोक्ताओं को सुरक्षा और विश्वास प्रदान करता है कि वे एक गुणवत्ता उत्पाद खरीद रहे हैं। इस प्रमाणन से भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार में भी प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त, AGMARK के अंतर्गत प्रमाणित उत्पादों की निर्यात संभावना भी बढ़ती है, जो भारतीय कृषि व्यापार को बढ़ावा देती है। AGMARK का मानक कृषि उत्पादों में गुणवत्ता नियंत्रण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न 33. ‘राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट)’ स्कीम को क्रियान्वित करने का/के क्या लाभ है/हैं?
1. यह कृषि वस्तुओं के लिए सर्व-भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है।
2. यह कृषकों के लिए राष्ट्रव्यापी बाज़ार सुलभकराता है जिसमें उनके उत्पाद की गुणता के अनुरूप क़ीमत मिलती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) योजना 2016 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य कृषि व्यापार को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाकर उसे अधिक पारदर्शी, समावेशी और प्रतिस्पर्धी बनाना है। यह योजना किसानों, व्यापारियों और कृषि उत्पादों के उपभोक्ताओं के बीच एक समान मंच प्रदान करती है। eNAM एक राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल के रूप में कार्य करता है, जिससे विभिन्न राज्यों के किसान अपनी उपज को विभिन्न मंडियों में ऑनलाइन बेच सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इससे कृषि विपणन प्रणाली में एक सुसंगतता और मानकीकरण आता है, जिससे कृषि बाजार की कार्यप्रणाली में सुधार होता है।
eNAM के माध्यम से किसानों को अपनी उपज का मूल्य सीधे बाज़ार मूल्य के आधार पर प्राप्त होता है और वे किसी बिचौलिए के बिना सीधे व्यापारियों से जुड़ सकते हैं। पहले किसानों को मंडी आधारित स्थानीय व्यापार से बाहर जाकर अपनी उपज बेचने का सीमित अवसर मिलता था, जिससे वे अक्सर असमर्थ होते थे। इस प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक बाज़ार मिल जाता है, जिससे उन्हें अपनी उपज के लिए उपयुक्त मूल्य मिल पाता है। इसके द्वारा कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारण अधिक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बनता है, जिससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त होता है।
eNAM योजना के अन्य लाभ में बिचौलियों का कम होना और किसानों के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क का सृजन शामिल है। किसानों को अपनी उपज को किसी भी राज्य की मंडी में बेचने की स्वतंत्रता मिलती है, जिससे उनका क्षेत्रीय प्रभाव कम होता है और व्यापार में पारदर्शिता बढ़ती है। यह योजना भारत के कृषि बाजार को अधिक कुशल और संगठित बनाती है, जिससे न केवल किसानों के लिए लाभ होता है, बल्कि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। eNAM के माध्यम से किसानों को कृषि उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है और यह कृषि क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न 34. ‘राष्ट्रीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।
2. औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग भारत में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के विनियमन के लिए, केन्द्रक अभिकरण (नोडल एजेन्सी) है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
राष्ट्रीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीति (National Intellectual Property Rights Policy), जिसे भारत सरकार ने 2016 में अपनाया, बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (IPR) के क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण को एक नया दिशा देने का प्रयास है। इस नीति का उद्देश्य बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के संरक्षण, संवर्धन और प्रबंधन को सुनिश्चित करना है। यह नीति विश्व व्यापार संगठन के TRIPS समझौते के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। इसके माध्यम से भारत ने वैश्विक मानकों के अनुरूप अपनी IPR नीतियों को मजबूत करने का लक्ष्य रखा है, जिससे इन अधिकारों का प्रभावी प्रबंधन हो सके और नवाचार को बढ़ावा मिले।
भारत की यह नीति बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के मामले में एक समग्र दृष्टिकोण अपनाती है, जो अनुसंधान और विकास (R&D) को प्रोत्साहित करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करती है। यह बौद्धिक सम्पदा के विभिन्न रूपों जैसे पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट और डिज़ाइन को संरक्षित करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश देती है। नीति का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के उल्लंघन से निपटना और उनके प्रति जागरूकता को बढ़ाना है, ताकि नवाचार की प्रोत्साहन हो सके।
इस नीति के तहत, औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (DPIIT) को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है, जो बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के प्रबंधन और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है। यह विभाग पेटेंट, ट्रेडमार्क, डिज़ाइन और कॉपीराइट जैसे क्षेत्रों में कानूनी सहायता प्रदान करता है। साथ ही, यह विभाग बौद्धिक सम्पदा के उल्लंघन को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाता है और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त निगरानी भी रखता है। यह नीति भारत में बौद्धिक सम्पदा के प्रबंधन में सुधार करने और भारत को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न 35. वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 के अनुसार, किसी व्यक्ति द्वारा, विधि द्वारा किए गए कतिपय उपबंधों के अधीन होने के सिवाय, निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्राणी का शिकार नहीं किया जा सकता?
1. घड़ियाल
2. भारतीय जंगली गधा
3. जंगली भैंस
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के अंतर्गत घड़ियाल (Gavialis gangeticus) का शिकार पूर्णतः निषिद्ध है। घड़ियाल भारत का एक महत्वपूर्ण मगरमच्छ प्रजाति है, जो मुख्यतः गंगा, चंबल और ब्रह्मपुत्र नदियों में पाया जाता है। इसकी संख्या में गिरावट का मुख्य कारण प्राकृतिक आवासों का क्षरण, नदी प्रदूषण और मछली पकड़ने हेतु जालों का उपयोग रहा है। इसके संरक्षण हेतु 1975 में “घड़ियाल संरक्षण परियोजना” शुरू की गई थी, जिसके तहत अंडों से हैचिंग और किशोर घड़ियालों को सुरक्षित जलाशयों में छोड़ने जैसे उपाय किए गए। आज भी चंबल नदी संरक्षित क्षेत्र जैसे अभयारण्यों में इनका वैज्ञानिक निगरानी के साथ संरक्षण किया जा रहा है। घड़ियाल पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में सहायक भूमिका निभाता है और इसकी उपस्थिति स्वच्छ जल निकायों का संकेतक मानी जाती है, जो इसे संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
भारतीय जंगली गधा (Equus Hemionus Khur) एक संकटग्रस्त उप-प्रजाति है जो केवल भारत के कच्छ के रण क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसका शिकार वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 द्वारा पूर्णतः प्रतिबंधित है और इसे अनुसूची-I में शामिल किया गया है। इसके संरक्षण के लिए वर्ष 1972 में “भारतीय जंगली गधा अभयारण्य” की स्थापना की गई थी, जो आज विश्व का एकमात्र ऐसा संरक्षित क्षेत्र है जहाँ यह प्रजाति पाई जाती है। कृषि विस्तार, खनन गतिविधियाँ, चराई और जल संकट इस प्रजाति के अस्तित्व के लिए खतरा रहे हैं। संरक्षण प्रयासों में सख्त गश्त, जल स्रोतों का विकास और स्थानीय समुदायों को संरक्षण से जोड़ने के कार्यक्रम शामिल हैं। हाल के वर्षों में इन उपायों के कारण भारतीय जंगली गधे की जनसंख्या में स्थिरता आई है, जो इसे दीर्घकालिक अस्तित्व की दिशा में एक सकारात्मक संकेत माना जाता है।
जंगली भैंस (Bubalus arnee), जिसे ‘असली’ या ‘शुद्ध’ जंगली भैंस कहा जाता है, भारत की सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है और इसका शिकार वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के अंतर्गत निषिद्ध है। इसकी प्रमुख आबादी असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान, छत्तीसगढ़ के इंद्रावती टाइगर रिजर्व और मध्यप्रदेश के संजय टाइगर रिजर्व में पाई जाती है। जंगली भैंस के सामने सबसे बड़ी चुनौती घरेलू भैंसों के साथ संकरण, आवासीय क्षेत्रों में अतिक्रमण, अवैध शिकार और रोग प्रकोप हैं। इसके संरक्षण के लिए 1980 के दशक से विशिष्ट रणनीतियाँ अपनाई गईं, जिनमें जीन शुद्धता बनाए रखने हेतु वैज्ञानिक प्रबंधन, रोग नियंत्रण कार्यक्रम और समुदाय-आधारित संरक्षण पहलें शामिल हैं। वर्तमान में इन प्रयासों से सीमित सफलता मिली है, परंतु इनकी दीर्घकालिक सुरक्षा हेतु लगातार निगरानी और आवास पुनर्स्थापन जैसी योजनाएँ आवश्यक बनी हुई हैं।
प्रश्न 36. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से भारतीय नागरिक के मूल कर्तव्यों के विषय में सही है/हैं?
1. इन कर्तव्यों को प्रवर्तित करने के लिए एक विधायी प्रक्रिया दी गई है।
2. वे विधिक कर्तव्यों के साथ परस्पर संबंधित हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों की अवधारणा 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ी गई, जो तत्कालीन राजनीतिक और वैचारिक परिस्थितियों में नागरिकों के नैतिक उत्तरदायित्वों को स्पष्ट करने का प्रयास था। अनुच्छेद 51(क) के अंतर्गत 11 मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया, जिन्हें नागरिकों के लिए एक नैतिक मार्गदर्शिका के रूप में प्रस्तुत किया गया। परंतु इन कर्तव्यों को लागू करने हेतु संविधान में किसी विधायी प्रवर्तन प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है। इन्हें प्रवर्तित करने के लिए संसद या राज्य विधानमंडलों द्वारा कोई बाध्यकारी कानून पारित नहीं किया गया है जो नागरिकों को इन कर्तव्यों के पालन के लिए बाध्य कर सके। अतः पहला कथन कि इनके प्रवर्तन हेतु विधायी प्रक्रिया दी गई है, तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है।
मूल कर्तव्यों का प्रकृति में नैतिक और प्रेरणात्मक होना इन्हें विधिक कर्तव्यों से भिन्न करता है। विधिक कर्तव्य ऐसे होते हैं, जिनके उल्लंघन पर विधि द्वारा दंड का प्रावधान होता है, जैसे कर भुगतान करना, अनुबंध का पालन करना या आपराधिक आचरण से बचना। दूसरी ओर, मूल कर्तव्यों के उल्लंघन पर सीधे तौर पर कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं है। हालांकि, कुछ कर्तव्यों जैसे पर्यावरण की रक्षा या सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा के समर्थन में विधिक प्रावधान मौजूद हैं, पर ये कानून स्वयं अपने आधार पर स्वायत्त हैं, न कि अनुच्छेद 51(क) के प्रत्यक्ष अनुपालन हेतु बनाए गए। अतः मूल कर्तव्यों को विधिक कर्तव्यों से परस्पर संबंधित बताना विधिक तर्क और संवैधानिक ढांचे के विरुद्ध है।
न्यायपालिका ने विभिन्न मामलों में मूल कर्तव्यों को संवैधानिक व्याख्या के एक नैतिक स्रोत के रूप में प्रयोग अवश्य किया है, परंतु यह प्रवर्तन नहीं, बल्कि प्रेरणा का कार्य है। AIIMS Students Union बनाम AIIMS (2002) और Rangnath Mishra आयोग की अनुशंसाओं जैसे उदाहरणों में न्यायालयों और आयोगों ने इन कर्तव्यों को सामाजिक आचरण के आदर्श मानकों के रूप में मान्यता दी। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में मूल कर्तव्यों को विद्यालयी शिक्षा में समाहित करने की सिफारिश की गई थी, जिससे इनके प्रति नैतिक जागरूकता बढ़े। इन प्रयासों के बावजूद इन कर्तव्यों को बाध्यकारी नहीं माना गया है और वे विधिक दायित्वों से स्वतंत्र, आत्मानुशासन और नागरिक चेतना पर आधारित दायित्व बने हुए हैं।
प्रश्न 37. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
1. राधाकांत देब – ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष
2. गजुलु लक्ष्मीनरसु चेट्टी – मद्रास महाजन सभा के संस्थापक
3. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी – इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
ब्रिटिश शासन के आरंभिक चरण में भारतीय अभिजात्य वर्ग द्वारा राजनीतिक संगठनों की स्थापना का उद्देश्य प्रशासन में भागीदारी, शैक्षणिक सुधार और आर्थिक शोषण का विरोध करना था। इसी क्रम में वर्ष 1851 में ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की स्थापना हुई, जो भारतीय राजनीतिक संगठनों की प्रथम संगठित अभिव्यक्ति थी। इस संस्था के प्रथम अध्यक्ष राधाकांत देब थे, जो एक प्रबुद्ध ज़मींदार, संस्कृतज्ञ और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने अंग्रेज़ी शासन के समक्ष ज़मींदारों के हितों, भारतीय शिक्षा की उन्नति और राजनीतिक भागीदारी के अधिकार की मांग की। यह संस्था बंगाल के नवजागरण से उत्पन्न वैचारिक चेतना की परिणति थी, जिसने आगे चलकर समग्र भारत में संगठित राजनीतिक गतिविधियों की नींव रखी। राधाकांत देब का नेतृत्व संस्था को वैधानिक ढांचे में कार्य करने की दिशा में निर्देशित करता था।
राजनीतिक चेतना के प्रसार में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। वर्ष 1876 में उन्होंने आनंदमोहन बोस के सहयोग से इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीयों के लिए प्रशासनिक सेवाओं में समान अवसर, भाषाई अधिकारों की रक्षा और नागरिक स्वतंत्रताओं की मांग करना था। यह संस्था शिक्षित मध्यम वर्ग को राजनीतिक संघर्ष के लिए संगठित करने का प्रयास थी। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने राष्ट्रव्यापी सभाएं, सार्वजनिक भाषण और प्रेस के माध्यम से राजनीतिक आंदोलन को जनसमर्थन दिलाया। इंडियन एसोसिएशन का कार्यभार मुख्यतः बंगाल और आस-पास के क्षेत्रों तक सीमित था, लेकिन इसकी रणनीतियां और उद्देश्य पूरे देश में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा बने। यह संस्था पहली बार औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध शिक्षित भारतीयों की एकजुट राजनीतिक प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करती थी।
मद्रास महाजन सभा की स्थापना 1884 में दक्षिण भारत में राजनीतिक संगठन के रूप में हुई थी, जिसमें एम. वीरराघवचारी, एस. सुब्रमण्यम अय्यर और पी. आनंदचार प्रमुख संस्थापक सदस्य थे। इस सभा का उद्देश्य दक्षिण भारत में सामाजिक और राजनीतिक प्रश्नों पर ब्रिटिश सरकार को ज्ञापन प्रस्तुत करना, प्रशासन में सुधार की मांग करना और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय विमर्श से जोड़ना था। गजुलु लक्ष्मीनरसु चेट्टी, यद्यपि उस समय मद्रास के प्रमुख व्यापारी और दानवीर थे, लेकिन वे इस संस्था के संस्थापक सदस्यों में नहीं थे। उन्होंने नगरपालिका कार्यों और शैक्षिक संस्थानों के निर्माण में योगदान दिया, परंतु मद्रास महाजन सभा की स्थापना में उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी। इस तथ्य के आधार पर दूसरा युग्म असत्य सिद्ध होता है, जबकि पहला और तीसरा युग्म ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित हैं।
प्रश्न 38. निम्नलिखित उद्देश्यों में से कौन-सा एक भारत के संविधान की उद्देशिका में सन्निविष्ट नहीं है?
(a) विचार की स्वतंत्रता
(b) आर्थिक स्वतंत्रता
(c) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(d) विश्वास की स्वतंत्रता
उत्तर: (b)
भारत के संविधान की उद्देशिका भारतीय गणराज्य के उस नैतिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोण को उद्घाटित करती है जो स्वतंत्रता, समता, न्याय और बंधुत्व जैसे आदर्शों पर आधारित है। यह उद्देशिका राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, श्रद्धा और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करने की गारंटी देती है। इस स्वतंत्रता का उद्देश्य नागरिकों को मानसिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्तर पर स्वायत्तता प्रदान करना है ताकि वे बिना किसी बंधन या भय के अपनी जीवन शैली, मत और विचार चुन सकें। यह संविधान की मूल भावना को स्पष्ट करती है जिसमें व्यक्ति की गरिमा और सामाजिक सौहार्द सर्वोच्च है। इस प्रकार, उद्देशिका भारतीय लोकतंत्र की उस मूल आधारशिला को प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति को स्वतंत्रता केवल राज्य से नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और वैचारिक नियंत्रणों से भी सुरक्षित किया जाता है।
संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट रूप से “आर्थिक स्वतंत्रता” को एक पृथक मूल्य या उद्देश्य के रूप में नहीं जोड़ा गया है। आर्थिक स्वतंत्रता का सामान्य अर्थ होता है व्यक्ति द्वारा आर्थिक निर्णयों में स्वतंत्रता, जैसे कि संपत्ति अर्जित करना, व्यवसाय करना, उत्पादन के साधनों का उपयोग करना और बाजार तक निर्बाध पहुंच पाना। ये सभी अधिकार बुनियादी अधिकारों के रूप में संरक्षित नहीं हैं, बल्कि राज्य की नीति और योजनाओं के अधीन हैं। भारत में 1991 में जब उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति लागू की गई, तब आर्थिक स्वतंत्रता को विशेष बल मिला। इसके पश्चात 2014 में प्रारंभ की गई प्रधानमंत्री जन-धन योजना, मुद्रा योजना और स्टार्टअप इंडिया जैसे अभियानों ने नागरिकों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का प्रयास किया। फिर भी, इन नीतिगत पहलों का संविधान की उद्देशिका से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, क्योंकि यह स्वतंत्रता वहाँ घोषित उद्देश्यों में शामिल नहीं है।
भारत के संवैधानिक ताने-बाने में आर्थिक सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी गई है, लेकिन उसे एक संवैधानिक मूल्य के रूप में नहीं बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य के रूप में देखा गया है। नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत राज्य को निर्देशित किया गया है कि वह नागरिकों के लिए जीविका, रोजगार और समान अवसर उपलब्ध कराए, किंतु यह बाध्यकारी नहीं है। इसके विपरीत, उद्देशिका में जो स्वतंत्रताएँ दी गई हैं—वे स्पष्ट, संक्षिप्त और मौलिक अधिकारों के रूप में संरक्षित हैं। अतः आर्थिक स्वतंत्रता की संकल्पना सामाजिक-आर्थिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण अवश्य है, लेकिन वह संविधान की उद्देशिका में सन्निविष्ट नहीं है। यही कारण है कि प्रश्न के संदर्भ में ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ को उद्देशिका का हिस्सा नहीं माना गया है।
प्रश्न 39. ‘भारतीय गुणता परिषद् (QCI)’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. QCI का गठन, भारत सरकार तथा भारतीय उद्योग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
2. QCI के अध्यक्ष की नियुक्ति, उद्योग द्वारा सरकार को की गई संस्तुतियों पर, प्रधान मंत्री द्वारा की जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
भारतीय गुणता परिषद् (QCI) की स्थापना 1997 में भारतीय सरकार और प्रमुख उद्योग संगठनों की साझेदारी से की गई थी। इसे भारत में गुणवत्ता तंत्र को सशक्त करने और विभिन्न क्षेत्रों में गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। QCI का मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण, पर्यावरण आदि में गुणवत्ता मानकों की निगरानी और उनके अनुरूप गतिविधियों को बढ़ावा देना है। इसे एक Public-Private Partnership (PPP) के रूप में डिज़ाइन किया गया, जिसमें उद्योग संगठनों जैसे CII, FICCI और ASSOCHAM की प्रमुख भूमिका है। यह परिषद भारत के गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है और गुणवत्ता संबंधी मानकों की सख्ती से निगरानी करती है।
QCI के कार्यकारी ढाँचे में सरकार और उद्योग दोनों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है। परिषद के अध्यक्ष की नियुक्ति भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है, लेकिन यह नियुक्ति उद्योग द्वारा सरकार को की गई संस्तुति के आधार पर होती है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि अध्यक्ष को वह नेतृत्व क्षमता प्राप्त हो, जो गुणवत्ता नीति, उद्योग की जरूरतों और सार्वजनिक हितों के सामंजस्य को समझने में सक्षम हो। इस प्रकार, QCI का नेतृत्व उद्योग और सरकार के बीच संतुलन बनाए रखता है, जो इसके कार्यों की निष्पक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
QCI के तहत विभिन्न मानक निर्धारण और प्रमाणीकरण बोर्ड कार्य करते हैं, जैसे NABCB (National Accreditation Board for Certification Bodies) और NABL (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories)। इन बोर्डों का उद्देश्य भारत में उद्योगों और सेवाओं की गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू हुई ज़ीरो डिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट पहल इसके प्रभावी कार्यों का एक उदाहरण है, जिसमें उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के लिए उद्योगों को मार्गदर्शन दिया गया। QCI ने मान्यता और प्रमाणन प्रणाली को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे भारतीय उद्योग वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपने पैर जमाने में सक्षम हुए हैं।
प्रश्न 40. भारत में लघु वित्त बैंकों (SFBs) को स्थापित करने का क्या प्रयोजन है?
1. लघु व्यवसाय इकाइयों को ऋण की पूर्ति करना
2. लघु और सीमांत कृषकों को ऋण की पूर्ति करना
3. युवा उद्यमियों को विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापार स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
लघु वित्त बैंकों (SFBs) की स्थापना का उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है, खासकर उन आर्थिक वर्गों के लिए जो पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं। भारत में कृषि और लघु व्यवसायों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, SFBs ने इन क्षेत्रों को लक्षित किया। विशेषकर, छोटे और सीमांत कृषकों के लिए इन बैंकों का उद्देश्य उन्हें कृषि ऋण उपलब्ध कराना है, ताकि वे उन्नत कृषि विधियों, उर्वरक, बीज, सिंचाई और अन्य आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्राप्त कर सकें। यह पहल देश के ग्रामीण इलाकों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए महत्वपूर्ण है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, SFBs छोटे व्यवसायों के लिए भी ऋण उपलब्ध कराते हैं, जिससे उनके विकास और स्थिरता में सहायता मिलती है।
लघु वित्त बैंकों का एक और उद्देश्य युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करना है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। भारत में रोजगार की कमी को देखते हुए, युवा उद्यमिता को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। SFBs युवा व्यापारियों को कम ब्याज दरों पर वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, जिससे वे अपनी व्यावसायिक योजनाओं को लागू कर सकते हैं। इससे न केवल ग्रामीण इलाकों में नए व्यवसायों का उदय होता है, बल्कि यह रोजगार सृजन में भी सहायक है। इसके माध्यम से युवा उद्यमी स्थानीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं और क्षेत्रीय विकास को गति मिलती है। इससे कृषि-आधारित और अन्य छोटे व्यवसायों की दिशा में स्थिरता और नवाचार आता है, जो अंततः समग्र आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
लघु वित्त बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का लक्ष्य मुख्य रूप से लघु व्यवसाय इकाइयों और सीमांत कृषकों को ऋण की पूर्ति करना है। भारत में अधिकांश कृषि भूमि छोटे और सीमांत किसानों के पास है और इन किसानों के पास आमतौर पर बड़े बैंकिंग संस्थानों से ऋण प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संपत्ति या क्रेडिट इतिहास नहीं होता। SFBs इन किसानों के लिए सुलभ वित्तीय सेवाएँ प्रदान करती हैं, जो उन्हें अपनी कृषि गतिविधियों को बढ़ाने और आजीविका में सुधार लाने के लिए आवश्यक पूंजी प्राप्त करने में मदद करती हैं। इन बैंकों द्वारा दी गई ऋण योजनाएँ छोटे किसानों के लिए बेहद उपयोगी हैं, जो मुख्य रूप से अपनी भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वित्तीय मदद की आवश्यकता महसूस करते हैं।
प्रश्न 41. ‘आवास और शहरी विकास पर एशिया पैसिफिक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (APMCHUD)’, के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. प्रथम APMCHUD भारत में 2006 में संपन्न हुआ, जिसका विषय ‘उभरते शहरी रूप नीति प्रतिक्रियाएँ और शासन संरचना’ था।
2. भारत सभी वार्षिक मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों की मेज़बानी, ADB, APEC और ASEAN की सहभागिता से करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
‘आवास और शहरी विकास पर एशिया-पैसिफिक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (APMCHUD)’ एक अंतरसरकारी क्षेत्रीय मंच है जिसकी स्थापना 2006 में नई दिल्ली में आयोजित पहले सम्मेलन के माध्यम से हुई थी। इस सम्मेलन का विषय था “प्रो-क्लेमेशन ऑन सस्टेनेबल अर्बन डेवलपमेंट”, न कि ‘उभरते शहरी रूप: नीति प्रतिक्रियाएँ और शासन संरचना’। इसका उद्देश्य एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के देशों को आवास, झुग्गी पुनर्वास, आधारभूत शहरी ढांचे और सतत विकास से जुड़े विषयों पर साझा नीति-निर्माण और अनुभव साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना था। पहले सम्मेलन में पारित ‘दिल्ली घोषणा’ के माध्यम से सदस्य देशों ने सतत और समावेशी शहरी विकास हेतु क्षेत्रीय सहयोग पर बल दिया। सम्मेलन की विशेषता यह है कि यह संयुक्त राष्ट्र मानव बस्तियों कार्यक्रम (UN-Habitat) के तत्वावधान में कार्य करता है और इसका गठन वैश्विक आवास चुनौतियों के प्रति क्षेत्रीय दृष्टिकोण विकसित करने के लिए किया गया था।
दूसरे कथन में यह कहा गया है कि भारत APMCHUD के सभी वार्षिक मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों की मेज़बानी करता है और यह सम्मेलन ADB, APEC तथा ASEAN जैसे संगठनों की सहभागिता से होता है, जो कि पूर्णतः तथ्यहीन है। यह सम्मेलन वार्षिक नहीं बल्कि चतुर्वार्षिक होता है और विभिन्न सदस्य देश इसकी मेज़बानी करते हैं। उदाहरणस्वरूप, दूसरा सम्मेलन ईरान (2008), तीसरा इंडोनेशिया (2010), चौथा जॉर्डन (2012) और पाँचवाँ भारत (2016) में आयोजित हुआ था। भारत सक्रिय सदस्य और पूर्व मेज़बान अवश्य है, परंतु यह स्थायी मेज़बान नहीं है। इसके अतिरिक्त, यह मंच ADB, APEC या ASEAN से संबद्ध नहीं है। यह एक स्वतंत्र क्षेत्रीय संगठन है जो केवल एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के शहरी और आवासीय विकास से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित है और इसकी संस्था संबंधी संरचना संयुक्त राष्ट्र के अधीन आती है।
यह मंच क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से शहरी विकास, किफायती आवास, स्मार्ट सिटी अवधारणाओं और जलवायु-संवेदनशील नगर नियोजन जैसे मुद्दों पर देशों के बीच नीति, रणनीति और तकनीकी नवाचार साझा करने की व्यवस्था करता है। APMCHUD के अंतर्गत विषयगत कार्य समूह गठित किए गए हैं जो सतत शहरीकरण, झुग्गी पुनर्विकास, वित्तीय नवाचार और शासन तंत्र जैसे विषयों पर नीति निर्देश तैयार करते हैं। इन कार्य समूहों से प्राप्त अनुशंसाएँ आगे चलकर राष्ट्रीय नीतियों को दिशा देती हैं। इस मंच की प्रासंगिकता इसलिए भी है क्योंकि एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ती शहरी आबादी निवास करती है, जहां समावेशी, टिकाऊ और लचीले शहरी ढांचे की जरूरत अत्यधिक है।
प्रश्न 42. लोकतंत्र का उत्कृष्ट गुण यह है कि वह क्रियाशील बनाता है
(a) साधारण पुरुषों और महिलाओं की बुद्धि और चरित्र को।
(b) कार्यपालक नेतृत्व को सशक्त बनाने वाली पद्धतियों को।
(c) गतिशीलता और दूरदर्शिता से युक्त एक बेहतर व्यक्ति को।
(d) समर्पित दलीय कार्यकर्ताओं के एक समूह को।
उत्तर: (a)
लोकतंत्र का सबसे उत्कृष्ट गुण यह है कि यह सामान्य नागरिकों—पुरुषों और महिलाओं—की बुद्धि और चरित्र को सक्रिय और विकसित करने में सक्षम होता है। यह केवल एक शासन प्रणाली नहीं बल्कि एक सामाजिक प्रक्रिया है जो हर नागरिक को राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक रूप से सशक्त बनाती है। इसमें नागरिकों को मताधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निर्णय-निर्माण में भागीदारी के अधिकार प्राप्त होते हैं। जब लोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं, तो वे केवल शासन के विषय नहीं रहते, बल्कि शासन के सहभागी बन जाते हैं। इससे उनकी सामाजिक चेतना और विवेक का विकास होता है, जो लोकतंत्र की स्थायित्व और गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों को केवल मतदान करने का अधिकार नहीं होता, बल्कि वे राजनीतिक विमर्श, जन आंदोलनों, नीति आलोचना और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र हर नागरिक में जवाबदेही, नैतिक विवेक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है। यह प्रक्रिया शिक्षा, जनजागरूकता और सूचनात्मक स्वतंत्रता के माध्यम से और अधिक प्रभावशाली बनती है। आम जनता में नीतिगत सोच और जनहित के प्रति सजगता उत्पन्न होने लगती है, जिससे वे राष्ट्र के निर्णयों को केवल सहन नहीं करते बल्कि उन्हें समझते और प्रभावित करते हैं। यही लोकतंत्र की वह शक्ति है जो एक राष्ट्र को अंदर से मजबूत बनाती है।
एक सक्रिय लोकतंत्र में नागरिक केवल दर्शक नहीं होते, बल्कि वे सक्रिय निर्माता और संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। जब साधारण लोग प्रश्न करते हैं, विचार रखते हैं और जवाबदेही की मांग करते हैं, तब प्रशासन पारदर्शी और उत्तरदायी बनता है। लोकतंत्र व्यक्ति को ‘नागरिक’ बनाता है—एक ऐसा नागरिक जो नीतियों को प्रभावित कर सकता है, जो अपनी जिम्मेदारियों को जानता है और जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अधिकारों की रक्षा करता है। यह गुण साधारण लोगों की अंतरात्मा, नैतिकता और सार्वजनिक जीवन में सहभागिता को नई दिशा देता है। अतः लोकतंत्र केवल शासकों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की गुणवत्ता और चेतना को परिष्कृत करता है।
प्रश्न 43. ‘एकीकृत भुगतान अंतरापृष्ठ (यूनिफाइड पेमेंट्स इन्टरफेस/UPI)’ को कार्यान्वित करने से निम्नलिखित में से किसके होने की सर्वाधिक संभाव्यता है?
(a) ऑनलाइन भुगतानों के लिए मोबाइल वालेट आवश्यक नहीं होंगे।
(b) लगभग दो दशकों में पूरी तरह भौतिक मुद्रा का स्थान डिजिटल मुद्रा ले लेगी।
(c) FDI अंतर्वाह में भारी वृद्धि होगी।
(d) निर्धन व्यक्तियों को उपदानों (सब्सिडीज़) का प्रत्यक्ष अंतरण (डाइरेक्ट ट्रांसफ़र) बहुत प्रभावकारी हो जाएगा।
उत्तर: (a)
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा वर्ष 2016 में प्रारंभ किया गया था। यह एक ऐसा वास्तविक समय भुगतान तंत्र है जो दो बैंक खातों के बीच सीधे मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से धन अंतरण की सुविधा देता है। UPI की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी इंटरऑपरेबिलिटी है, जिससे उपयोगकर्ता किसी भी बैंक खाते को एक वर्चुअल पेमेंट एड्रेस (VPA) से लिंक कर लेन-देन कर सकता है। इसके माध्यम से धन अंतरण के लिए न तो खाता संख्या याद रखने की आवश्यकता होती है और न ही कोई वॉलेट रिचार्ज करने की। यह सुविधा उपभोक्ताओं को सीधे अपने बैंक खातों से भुगतान करने में सक्षम बनाती है, जिससे मोबाइल वॉलेट की आवश्यकता स्वतः समाप्त हो जाती है।
UPI ने डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में एक निर्णायक परिवर्तन लाया है। इससे पहले उपयोगकर्ता प्री-पेड वॉलेट पर निर्भर रहते थे, जिन्हें पहले धन से लोड करना पड़ता था और फिर लेन-देन संभव होता था। UPI के माध्यम से यह बाध्यता समाप्त हो गई है। अब उपभोक्ता रीयल टाइम में भुगतान कर सकते हैं, चाहे वह किसी भी बैंक से संबंधित क्यों न हो। मोबाइल वॉलेट की संरचना जहां एक बंद पारिस्थितिकी तंत्र में कार्य करती थी, वहीं UPI का ढांचा खुला है और सभी बैंकों के लिए समान रूप से कार्य करता है। इससे न केवल लेन-देन की लागत में कमी आई है, बल्कि भुगतान प्रक्रिया भी अधिक सुलभ, सुरक्षित और त्वरित हुई है।
UPI की स्वीकार्यता ने छोटे विक्रेताओं, स्थानीय दुकानदारों और असंगठित क्षेत्र तक डिजिटल भुगतान को पहुँचाया है। एक सामान्य मोबाइल फोन और बैंक खाता रखने वाला व्यक्ति QR कोड या मोबाइल नंबर के माध्यम से सीधे भुगतान प्राप्त कर सकता है। यह प्रणाली केवल उच्च तकनीकी साधनों पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह वास्तविक समावेशन की दिशा में कार्य करती है। इससे सरकार और उपभोक्ता दोनों को आर्थिक लेन-देन की निगरानी और नियंत्रण में पारदर्शिता मिली है। चूँकि भुगतान सीधे बैंक खातों से हो रहे हैं, इसलिए मोबाइल वॉलेट जैसे मध्यवर्ती प्लेटफॉर्म की उपयोगिता घटती जा रही है। इस कारण, UPI का कार्यान्वयन मोबाइल वॉलेट की आवश्यकता को अप्रासंगिक बना देता है, जो इसका सबसे संभावित और प्रत्यक्ष प्रभाव है।
प्रश्न 44. कभी-कभी समाचारों में ‘इवेंट होराइजन’, ‘सिंगुलैरिटी’, ‘स्ट्रिंग थियरी’ और ‘स्टैण्डर्ड मॉडल’ जैसे शब्द, किस सन्दर्भ में आते हैं?
(a) ब्रह्माण्ड का प्रेक्षण और बोध
(b) सूर्य और चन्द्र ग्रहणों का अध्ययन
(c) पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों का स्थापन
(d) पृथ्वी पर जीवित जीवों की उत्पत्ति और क्रमविकास
उत्तर: (a)
‘इवेंट होराइजन’, ‘सिंगुलैरिटी’, ‘स्ट्रिंग थ्योरी’ और ‘स्टैंडर्ड मॉडल’ जैसे शब्द आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान और सैद्धांतिक भौतिकी की जटिल अवधारणाओं से जुड़े हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य ब्रह्मांड की संरचना, गति और मूल प्रकृति को समझना है। ‘इवेंट होराइजन’ ब्लैक होल की वह सीमा होती है जिसके पार जाने के बाद कोई भी वस्तु, यहाँ तक कि प्रकाश भी, बाहर नहीं आ सकता। यह सीमा भौतिकी के उन चरम बिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है, जहाँ गुरुत्वाकर्षण अत्यधिक तीव्र हो जाता है। इसका अध्ययन इस बात की वैज्ञानिक जिज्ञासा को दर्शाता है कि पदार्थ, ऊर्जा और समय उन क्षेत्रों में कैसे कार्य करते हैं जहाँ हमारे वर्तमान सिद्धांत असफल हो जाते हैं।
‘सिंगुलैरिटी’ वह अवधारणा है जहाँ भौतिक परिमाण जैसे घनत्व और तापमान अनंत हो जाते हैं। इसे ब्लैक होल के केंद्र में स्थित माना जाता है और यही वह बिंदु है जहाँ सामान्य आपेक्षिकता के नियम विफल हो जाते हैं। इसी तरह, ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने के लिए भी प्रारंभिक सिंगुलैरिटी की अवधारणा को महत्वपूर्ण माना गया है, जैसा कि बिग बैंग सिद्धांत में किया गया है। ‘स्ट्रिंग थ्योरी’ एक सैद्धांतिक प्रस्ताव है जिसके अनुसार ब्रह्मांड के मूलभूत घटक बिंदु रूपी कण नहीं, बल्कि एक-आयामी कंपनशील तार (strings) हैं। यह सिद्धांत सभी चार मूलभूत बलों—गुरुत्वाकर्षण, विद्युतचुंबकत्व, सशक्त और दुर्बल बल—को एकीकृत करने का प्रयास करता है और एक सुपर सिद्धांत की दिशा में एक संभावित मार्ग प्रस्तुत करता है।
‘स्टैंडर्ड मॉडल’ कण भौतिकी का एक अत्यंत सटीक और प्रमाणित ढांचा है जो पदार्थ के मूलभूत कणों—जैसे क्वार्क, लीप्टॉन, बोसॉन—तथा उनकी अंतःक्रियाओं का वर्णन करता है। यह मॉडल तीन बलों (विद्युतचुंबकत्व, सशक्त और दुर्बल आणविक बल) की गणितीय व्याख्या करता है, परंतु इसमें गुरुत्वाकर्षण सम्मिलित नहीं है, जिससे इसकी सीमा स्पष्ट होती है। वर्ष 2012 में हिग्स बोसॉन की खोज ने इस मॉडल को और अधिक सशक्त बनाया। इन सभी अवधारणाओं का उद्देश्य ब्रह्मांड की सबसे सूक्ष्म संरचना से लेकर सबसे विशाल संरचना तक को समझना है। अतः ये शब्द ब्रह्मांड के वैज्ञानिक प्रेक्षण और दार्शनिक बोध के संदर्भ में प्रयुक्त होते हैं, न कि खगोलीय घटनाओं या प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोगों के सामान्य अध्ययन में।
प्रश्न 45. भारत में कृषि के संदर्भ में, प्रायः समाचारों में आने वाले ‘जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)’ की तकनीक का ‘आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?
1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिए आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिए जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।
2. यह तकनीक, फ़सली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।
3. इसका प्रयोग, फ़सलों में पोषी-रोगाणु सम्बन्धों को समझने के लिए किया जा सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) एक ऐसी उच्च स्तरीय जैव प्रौद्योगिकी है, जिससे किसी जीव या पौधे के संपूर्ण डीएनए अनुक्रम की पहचान की जाती है। भारत में इस तकनीक का उपयोग कृषि अनुसंधान में तेजी से बढ़ रहा है। यह तकनीक विभिन्न फसलों के जीनोम का विश्लेषण कर यह ज्ञात करने में सहायता करती है कि कौन-से जीन फसल को रोग प्रतिरोधक, कीट प्रतिरोधक या सूखा सहिष्णु बनाते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक अनुकूल और संकट-रोधी फसलों के विकास की दिशा में वैज्ञानिकों को स्पष्ट आनुवंशिक संकेतक (genetic markers) प्राप्त होते हैं। उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2011 में चावल की 3,000 किस्मों का जीनोम अनुक्रमण प्रारंभ किया गया, जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
यह तकनीक फसल सुधार की प्रक्रिया को भी अधिक द्रुतगामी और सटीक बनाती है। पारंपरिक पद्धतियों से एक नई फसल किस्म विकसित करने में एक दशक से अधिक समय लग सकता है, जबकि जीनोम अनुक्रमण और मार्कर असिस्टेड ब्रिडिंग जैसी विधियों से यह समयावधि आधे से भी कम रह जाती है। जीनोम आधारित चयन के माध्यम से वैज्ञानिक पहले से ही यह निर्धारित कर सकते हैं कि किन पौधों में वांछित लक्षण मौजूद हैं और उन्हीं को आगे की पीढ़ियों के लिए चुना जाता है। इससे शोध और व्यावसायिक खेती के बीच की दूरी घटती है और किसान समुदाय को अल्प समय में जलवायु-प्रतिरोधी, उच्च उत्पादकता और पोषणयुक्त किस्में प्राप्त होती हैं। यह तकनीक कृषि अनुसंधान को अनिश्चित प्रयोग से सटीक रणनीति की ओर ले जाती है।
तीसरे आयाम के रूप में, यह तकनीक पौधों और रोगाणुओं के बीच पोषी-पैथोजन परस्पर क्रिया को समझने में भी अत्यंत उपयोगी है। जीनोम अनुक्रमण यह विश्लेषण करने में सक्षम है कि कौन-से जीन रोग प्रतिरोध या संवेदनशीलता में भूमिका निभाते हैं। इससे न केवल रोग-प्रतिरोधी किस्में विकसित की जा सकती हैं, बल्कि रोगों की पूर्वानुमानात्मक पहचान और प्रबंधन भी संभव होता है। इसके अतिरिक्त, यह पोषण सुरक्षा की दिशा में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे बायोफोर्टिफाइड फसलों का वैज्ञानिक विकास संभव हो पाता है, जैसे – आयरन युक्त चावल या जिंक समृद्ध गेहूं। इस प्रकार, जीनोम अनुक्रमण कृषि को केवल उत्पादन की दृष्टि से नहीं, बल्कि स्थायित्व, पोषण और जैव विविधता के समग्र दृष्टिकोण से सशक्त बनाता है।
प्रश्न 46. संसदीय स्वरूप के शासन का प्रमुख लाभ यह है कि-
(a) कार्यपालिका और विधानमण्डल दोनों स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
(b) यह नीति की निरन्तरता प्रदान करता है और यह अधिक दक्ष है।
(c) कार्यपालिका, विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी बना रहता है।
(d) सरकार के अध्यक्ष को निर्वाचन के बिना नहीं बदला जा सकता।
उत्तर: (c)
संसदीय शासन प्रणाली का एक प्रमुख लाभ यह है कि कार्यपालिका, अर्थात सरकार, संसद के प्रति उत्तरदायी रहती है। इसमें प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद संसद से जुड़ी होती है और इनकी वैधता संसद के विश्वास पर निर्भर होती है। यदि सरकार संसद का विश्वास खो देती है, तो संसद के द्वारा सरकार को गिराया जा सकता है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि सरकार जनता के प्रतिनिधियों के प्रति जिम्मेदार रहे और किसी भी असंतोष या विफलता के परिणामस्वरूप तुरंत जवाबदेह हो। इससे लोकतांत्रिक नियंत्रण मजबूत होता है और सरकार को जनता के हित में काम करने के लिए बाध्य किया जाता है।
यह प्रणाली नीति में निरंतरता भी प्रदान करती है। चूंकि सरकार और संसद के बीच घनिष्ठ संबंध होते हैं, कार्यपालिका और विधानमंडल के बीच सामंजस्य बनाए रखने में मदद मिलती है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अपने कार्यों के लिए संसद से समर्थन प्राप्त करती है, जिससे नीति और प्रशासन में स्थिरता बनी रहती है। साथ ही, यह सुधारात्मक कार्रवाई को भी त्वरित बनाता है, जिससे देश के विकास की दिशा सही रहती है।
संसदीय शासन प्रणाली में सरकार के प्रमुख, जैसे प्रधानमंत्री या मंत्रिपरिषद, का कार्यकाल संसद के विश्वास पर निर्भर करता है। यदि सरकार को संसद का समर्थन नहीं मिलता, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है। इस प्रणाली में सरकार का नेतृत्व कभी भी स्थिर नहीं होता, बल्कि इसे लगातार अपनी कार्यप्रणाली और नीतियों के प्रति जवाबदेह रहना पड़ता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कार्यपालिका जनता और संसद के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती।
प्रश्न 47. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकारों और कर्तव्यों के बीच सही संबंध है?
(a) अधिकार कर्तव्यों के साथ सह-संबंधित हैं।
(b) अधिकार व्यक्तिगत हैं अतः समाज और कर्तव्यों से स्वतंत्र हैं।
(c) नागरिक के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकार, न कि कर्तव्य, महत्त्वपूर्ण हैं।
(d) राज्य के स्थायित्व के लिए कर्तव्य, न कि अधिकार, महत्त्वपूर्ण हैं।
उत्तर: (a)
अधिकार और कर्तव्यों के बीच का संबंध घनिष्ठ और सह-संबंधित है और यह भारतीय संविधान के सिद्धांतों में निहित है। संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, जैसे स्वतंत्रता, समानता और धार्मिक स्वतंत्रता, जिनका उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करना है। हालांकि, इन अधिकारों का उपयोग केवल तभी संभव है जब नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। कर्तव्य, जैसे समाज के प्रति जिम्मेदारी, संविधान का पालन और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना, यह सुनिश्चित करते हैं कि अधिकारों का दुरुपयोग न हो और समाज में सामूहिक स्थिरता बनी रहे।
कर्तव्य और अधिकार के संबंध को समझने से यह स्पष्ट होता है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब कोई व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग करता है, तो उसे यह समझना चाहिए कि यह समाज के अन्य सदस्यों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगा। अधिकारों का सम्मान करना समाज के समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है, जबकि कर्तव्यों का पालन एक नागरिक की जिम्मेदारी होती है।
भारत में संविधान में नागरिकों को दिए गए अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। उदाहरण स्वरूप, संविधान में नागरिकों को मतदान का अधिकार दिया गया है, लेकिन यह अधिकार तभी पूरी तरह से प्रभावी हो सकता है जब नागरिक अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सही उम्मीदवार का चयन करें। इसी प्रकार, जब हर नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करता है, तो इससे समाज में न्याय और समानता सुनिश्चित होती है और समाज की स्थिरता बनी रहती है। इस प्रकार, अधिकार और कर्तव्य का संतुलन नागरिकों के विकास और राष्ट्र की समृद्धि के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 48. भारत के संविधान के निर्माताओं का मत निम्नलिखित में से किसमें प्रतिबिंबित होता है?
(a) उद्देशिका
(b) मूल अधिकार
(c) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(d) मूल कर्तव्य
उत्तर: (a)
भारत के संविधान के निर्माताओं का दृष्टिकोण संविधान की उद्देशिका में प्रकट होता है। उद्देशिका भारतीय गणराज्य के उद्देश्यों, दिशा और सामाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा निर्धारित करती है। इसमें समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व जैसे मौलिक मूल्य शामिल किए गए हैं। ये मूल्य संविधान के विभिन्न प्रावधानों में समाहित हैं और राष्ट्र की दिशा निर्धारित करते हैं। उद्देशिका, एक संकल्प के रूप में, न केवल एक राजनीतिक दस्तावेज़ है बल्कि एक आदर्श भी है, जो समाज के हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की गारंटी प्रदान करने का प्रयास करता है।
उद्देशिका के द्वारा संविधान निर्माताओं ने भारत में समावेशी विकास और न्यायपूर्ण समाज की आवश्यकता को स्पष्ट किया। यह उस समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का परिणाम था जब देश स्वतंत्रता संग्राम से निकलकर एक लोकतांत्रिक गणराज्य की ओर अग्रसर हो रहा था। उद्देशिका का प्रभाव संविधान के विभिन्न खंडों, जैसे मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों पर देखा जा सकता है, जिनका उद्देश्य समाज में समानता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है।
संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में जो दृष्टिकोण व्यक्त किया, वह केवल आदर्श नहीं था, बल्कि व्यावहारिक दिशा भी था, जो भारतीय राज्य को सुनिश्चित करता है कि वह सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा। संविधान की उद्देशिका में व्यक्त यह उद्देश्यों का प्रभाव भारतीय समाज के हर पहलू में देखा जाता है, चाहे वह न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका हो। यह समाज के समग्र विकास और एक न्यायपूर्ण लोकतंत्र की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
प्रश्न 49. यदि आप कोहिमा से कोट्टयम की यात्रा सड़क मार्ग से करते हैं, तो आपको मूल स्थान और गंतव्य स्थान को मिलाकर भारत के अन्दर कम-से-कम कितने राज्यों में से होकर गुज़रना होगा?
(a) 6
(b) 7
(c) 8
(d) 9
उत्तर: (b)
कोहिमा से कोट्टयम तक सड़क मार्ग की यात्रा करते हुए, आपको भारत के सात राज्यों से होकर गुजरना होगा। सबसे पहले, यात्रा नागालैंड के कोहिमा से शुरू होगी। इसके बाद, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा होते हुए असम में प्रवेश होगा। असम के बाद, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से गुजरते हुए आपको आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में प्रवेश करना होगा। तमिलनाडु के रास्ते से यात्रा केरल तक पहुंचने के लिए जारी रहेगी। इस यात्रा मार्ग में आपको विभिन्न प्रकार के भौगोलिक, सांस्कृतिक और जलवायु परिवर्तन का अनुभव होगा, जो भारत के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों के विविधताओं को दर्शाता है।
यह यात्रा भारत के विभिन्न भूगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों को जोड़ने वाली है, जहां हर राज्य की अपनी विशिष्टताएँ हैं। आप पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर समतल और तटीय क्षेत्रों तक का अनुभव करेंगे। उत्तर-पूर्व भारत के हरे-भरे इलाके और समुद्र तटीय क्षेत्रों का दृश्य यात्रा को अत्यधिक आकर्षक बना देता है। इसके अलावा, भारत के विभिन्न राज्यों के बीच परिवहन नेटवर्क और कनेक्टिविटी की स्थिति को भी समझा जा सकता है, जो क्षेत्रीय विकास और आर्थिक कनेक्शन को प्रभावित करते हैं।
यह मार्ग भारतीय परिवहन व्यवस्था के महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में कार्य करता है, जो राज्य और केंद्र के बीच के कनेक्शन को सुनिश्चित करता है। सड़क मार्ग के साथ-साथ, भारत में यातायात और परिवहन के अन्य साधनों जैसे रेल, वायु और जल मार्ग की भी अहमियत है। इस यात्रा में, आप भारत के भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं का विश्लेषण कर सकते हैं, जो भारतीय एकता और अखंडता को दर्शाता है।
प्रश्न 50. भारत की संसद् किसके/किनके द्वारा मंत्रिपरिषद् के कृत्यों के ऊपर नियंत्रण रखती है?
1. स्थगन प्रस्ताव
2. प्रश्न काल
3. अनुपूरक प्रश्न
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
भारत की संसद मंत्रिपरिषद के कृत्यों पर नियंत्रण रखने के लिए विभिन्न संसदीय उपकरणों का उपयोग करती है, जिनमें स्थगन प्रस्ताव, प्रश्न काल और अनुपूरक प्रश्न शामिल हैं। स्थगन प्रस्ताव संसद में किसी विशेष मुद्दे पर तत्काल चर्चा के लिए उठाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह सरकार को उनके कृत्यों के लिए तुरंत जवाबदेही पर बाध्य करता है, जिससे संसद को सक्रिय रूप से सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी रखने का अवसर मिलता है। इस प्रक्रिया के दौरान, सांसद सरकार की नीतियों, निर्णयों, या घटनाओं पर चर्चा करते हैं, जो पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ाता है।
प्रश्न काल एक अन्य महत्वपूर्ण तरीका है जिसके द्वारा संसद सरकार से सीधे सवाल पूछती है। सांसदों को इस दौरान सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के कार्यों पर सवाल उठाने का अवसर मिलता है। यह प्रक्रिया सरकार की कार्यप्रणाली की जांच-पड़ताल करने और उसकी जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। प्रश्न काल के दौरान उत्तरदेही में वृद्धि होती है, जिससे सांसद सरकार के कार्यों पर निगरानी रखते हैं और जनता के हितों की रक्षा करते हैं।
अनुपूरक प्रश्न भी संसद के नियंत्रण के साधनों में शामिल है। इसमें, जब कोई मंत्री एक प्रश्न का उत्तर देता है, तो सांसद उससे संबंधित और विशिष्ट सवाल पूछ सकते हैं, जिससे अधिक सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह प्रक्रिया सरकार के कार्यों पर गहरी निगरानी रखने में मदद करती है। यह विधि संसद को सरकार के फैसलों और कार्यों पर सीधे प्रभाव डालने का मौका देती है और उसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में बढ़ावा देती है। इन तीनों प्रक्रियाओं का मिलाजुला उद्देश्य सरकारी कृत्यों पर सख्त नियंत्रण और जिम्मेदारी सुनिश्चित करना है।
प्रश्न 51. निम्नलिखित में से कौन-सा एक काकतीय राज्य में अतिमहत्त्वपूर्ण समुद्र-पत्तन था?
(a) काकिनाडा
(b) मोटुपल्ली
(c) मछलीपटनम (मसुलीपटनम)
(d) नेल्लुरु
उत्तर: (b)
मोटुपल्ली, जो काकतीय साम्राज्य के समय एक महत्वपूर्ण समुद्र-पत्तन था, का ऐतिहासिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व था। यह बंदरगाह समुद्री मार्गों से जुड़ा हुआ था, जो काकतीय साम्राज्य को अन्य दक्षिण-एशियाई देशों और अरब देशों के साथ व्यापारिक संपर्क स्थापित करने का अवसर प्रदान करता था। यह स्थान प्रमुख व्यापारिक वस्तुओं जैसे मसाले, रेशम और अन्य धातु वस्तुओं के व्यापार का केंद्र था। काकतीय शासक इस बंदरगाह के माध्यम से समुद्र-मार्गों पर नियंत्रण रखते हुए अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करते थे।
मोटुपल्ली बंदरगाह का व्यापारिक महत्व केवल काकतीय साम्राज्य तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह दक्षिण भारतीय उपमहाद्वीप में एक प्रमुख समुद्री व्यापार केंद्र बन चुका था। यहाँ से काकतीय शासकों को विभिन्न समुद्री रास्तों पर सशक्त कूटनीतिक, व्यापारिक और सैन्य समर्थन मिलता था। इस व्यापार ने काकतीय साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और शाही खजाने को समृद्ध किया।
मोटुपल्ली के माध्यम से काकतीय साम्राज्य ने न केवल घरेलू व्यापार को बढ़ावा दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। काकतीय शासकों द्वारा इस बंदरगाह के संचालन के कारण उन्होंने विदेशी व्यापारियों से रेशम, मसाले, हीरे और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार किया। इस प्रकार मोटुपल्ली ने काकतीय साम्राज्य को एक समृद्ध और शक्तिशाली समुद्री साम्राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 52. ‘भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन सन्धि (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स)’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह यूरोपीय संघ की पहल है।
2. यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजटों में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
3. इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद् (WBCSD) द्वारा किया जाता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
‘भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (Global Climate Change Alliance)’ यूरोपीय संघ की एक पहल है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करना है। यह संधि 2007 में यूरोपीय संघ द्वारा प्रारंभ की गई थी और इसका मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन को लेकर विकासशील देशों की नीतियों और योजनाओं में सुधार लाना है। इसमें विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने और इन देशों के विकास में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी नीतियों में बदलाव करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।
यह संधि विकासशील देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है ताकि वे अपनी जलवायु परिवर्तन रणनीतियों को लागू कर सकें। इसके तहत यूरोपीय संघ और अन्य देशों से योगदान मिलता है, जो विकासशील देशों की नीतियों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को शामिल करने में सहायता प्रदान करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, इन देशों में जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता में वृद्धि होती है और उनका विकास अधिक स्थिर होता है।
इस पहल का समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद् (WBCSD) द्वारा किया जाता है। ये दोनों संगठन मिलकर जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए जरूरी डेटा, विश्लेषण और रणनीतियाँ विकसित करते हैं। उनका योगदान यह सुनिश्चित करता है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित योजनाओं और नीतियों का समुचित कार्यान्वयन हो और विकासशील देशों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सही मार्गदर्शन मिले।
प्रश्न 53. भारत के धार्मिक इतिहास के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. सौत्रान्तिक और सम्मितीय जैन मत के सम्प्रदाय थे।
2. सर्वास्तिवादियों की मान्यता थी कि दृग्विषय (फिनोमिना) के अवयव पूर्णतः क्षणिक नहीं हैं, अपितु अव्यक्त रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
सौत्रान्तिक और सम्मितीय जैन मत के सम्प्रदायों से संबंधित कथन गलत है। सौत्रान्तिक और सम्मितीय बौद्ध मत के सम्प्रदाय थे, न कि जैन मत के। सौत्रान्तिक सम्प्रदाय ने शास्त्रों के महत्व को प्राथमिकता दी थी और इसे प्रमाणित करने का तरीका माना था। इसमें यह धारणा थी कि धर्म और अन्य बौद्ध सिद्धांत केवल शास्त्रों द्वारा प्रमाणित किए जा सकते हैं। वहीं, सम्मितीय सम्प्रदाय ने व्यक्तिगत अनुभव और मानसिक प्रतिमाओं को भी महत्व दिया। जैन धर्म, जो कि स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ, इन सिद्धांतों से अलग था। जैन धर्म का फोकस अहिंसा, आत्मज्ञान और आत्मनिर्भरता पर था। इसलिए, इन दोनों बौद्ध सम्प्रदायों को जैन धर्म से जोड़ना गलत है, क्योंकि इनका सिद्धांत और दर्शन विभिन्न थे।
सर्वास्तिवादियों का दृष्टिकोण फिनोमिना के अवयवों की प्रकृति को लेकर एक महत्वपूर्ण भिन्नता प्रस्तुत करता था। सर्वास्तिवादियों के अनुसार, दृग्विषय या फिनोमिना के अवयव पूरी तरह से क्षणिक नहीं होते थे। उनका मानना था कि यह अवयव अव्यक्त रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं, जिनका अस्तित्व स्थायी रूप से बनाए रखा जाता है। इसका अर्थ है कि उनके लिए किसी भी घटना या वस्तु का अस्तित्व केवल क्षणिक नहीं होता, बल्कि वह लगातार परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया से गुजरता है। इस प्रकार, सर्वास्तिवादी दर्शन में स्थायित्व और निरंतरता का विचार प्रमुख था, जो अन्य बौद्ध सम्प्रदायों से भिन्न था। यह दृष्टिकोण बौद्ध धर्म में विभिन्न मतों के विकास की दिशा को प्रभावित करता था।
विभिन्न बौद्ध सम्प्रदायों के बीच इस प्रकार के सिद्धांतों का अंतर बौद्ध दर्शन के भीतर एक गहरे और विस्तृत विवाद का कारण था। यह भिन्नता न केवल धार्मिक दृष्टिकोणों को प्रभावित करती थी, बल्कि इसका प्रभाव बौद्ध धर्म के व्यवहारिक और दार्शनिक पहलुओं पर भी पड़ता था। सर्वास्तिवादियों का यह सिद्धांत उनके शास्त्रों में दृग्विषय के अवयवों के निरंतर अस्तित्व की ओर इशारा करता था। दूसरी ओर, अन्य सम्प्रदायों ने इन्हें पूर्णतः क्षणिक और अस्थिर मानते हुए अधिकतर नश्वरता के सिद्धांत को प्राथमिकता दी थी। यह दर्शन बौद्ध धर्म के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जो समय के साथ विभिन्न विचारधाराओं के विकास और विस्तार की ओर बढ़ा।
प्रश्न 54. भूमध्यसागर, निम्नलिखित में से किन देशों की सीमा है?
1. जॉर्डन
2. इराक
3. लेबनान
4. सीरिया
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4
उत्तर: (c)
भूमध्यसागर, जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच स्थित है, का क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व अत्यधिक है। यह समुद्र तीन महाद्वीपों को जोड़ता है और इसका ऐतिहासिक रूप से व्यापारी मार्गों, सभ्यताओं के सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समुद्री युद्धों में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सीरिया और लेबनान दोनों ही भूमध्यसागर से जुड़े हैं। इन देशों के तटीय क्षेत्र न केवल व्यापार के लिए, बल्कि सांस्कृतिक और सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं।
सीरिया, जो भूमध्यसागर के पूर्वी तट पर स्थित है, का तटीय क्षेत्र 193 किलोमीटर लंबा है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में समुद्री मार्गों का हिस्सा था और विभिन्न सभ्यताओं के बीच व्यापार का केंद्र रहा है। सीरिया का तटीय इलाका रणनीतिक रूप से भी अहम है, क्योंकि यह क्षेत्र आसपास के देशों से जुड़ता है और सामरिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है।
लेबनान का तटीय क्षेत्र भूमध्यसागर के पश्चिमी तट पर स्थित है और 225 किलोमीटर लंबा है। लेबनान का समुद्र तट ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि यह प्राचीन व्यापार मार्गों का हिस्सा था। लेबनान का तटीय इलाका राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र यूरोप और अफ्रीका के व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्क का प्रमुख केंद्र था। इसके अलावा, लेबनान का समुद्र तट जैव विविधता और समुद्री संसाधनों के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 55. ‘राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह नीति (NITI) आयोग का एक अंग है।
2. वर्तमान में इसकी कॉर्पस ₹ 4,00,000 करोड़ है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि (NIIF) की स्थापना भारत सरकार ने 2015 में की थी, जिसका उद्देश्य देश के बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में दीर्घकालिक निवेश को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पूंजी की कमी को दूर करना और साथ ही वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करना है। NIIF एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर आधारित है, जिसमें भारत सरकार के साथ-साथ अन्य वैश्विक निवेशक भी भागीदार होते हैं। यह निधि मुख्यतः सड़क, ऊर्जा, बंदरगाह और जल आपूर्ति जैसी प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करती है।
NIIF का वर्तमान कॉर्पस ₹ 60,000 करोड़ के आसपास है, जबकि पहले इसे ₹ 40,000 करोड़ के करीब स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दीर्घकालिक पूंजी निवेश करना है। हालांकि यह राशि ₹ 4,00,000 करोड़ के बराबर नहीं है, जैसा कि कुछ स्रोतों में बताया गया है। NIIF का वित्तीय मॉडल भारत के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह सरकारी निवेश के साथ-साथ निजी और विदेशी निवेश को भी एकत्र करता है।
NIIF के माध्यम से भारत सरकार ने एक नई दिशा में कार्य किया है, जिसमें निवेशकों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है। यह परियोजनाएं भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक बन सकती हैं और साथ ही रोजगार सृजन, आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि और जीवन स्तर में सुधार कर सकती हैं। यह भारत में बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका है और दीर्घकालिक विकास के लिए स्थिरता प्रदान करता है।
प्रश्न 56. सार्वभौम अवसंरचना सुविधा (ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी)
(a) एशिया में अवसंरचना के उन्नयन के लिए ASEAN का उपक्रमण है, जो एशियाई विकास बैंक द्वारा दिए गए साख (क्रेडिट) से वित्तपोषित है।
(b) गैर-सरकारी क्षेत्रक और संस्थागत निवेशकों की पूँजी का संग्रहण कर सकने के लिए विश्व बैंक का सहयोग है, जो जटिल अवसंरचना सरकारी-गैर-सरकारी भागीदारियों (PPPs) की तैयारी और संरचना-निर्माण को सुकर बनाता है।
(c) OECD के साथ कार्य करने वाले विश्व के प्रमुख बैंकों का सहयोग है, जो उन अवसंरचना परियोजनाओं को विस्तारित करने पर केन्द्रित है जिनमें गैर-सरकारी विनिवेश संग्रहीत करने की क्षमता है।
(d) UNCTAD द्वारा वित्तपोषित उपक्रमण है जो विश्व में अवसंरचना के विकास को वित्तपोषित करने और सुकर बनाने का प्रयास करता है।
उत्तर: (b)
सार्वभौम अवसंरचना सुविधा (Global Infrastructure Facility) एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण को सुव्यवस्थित करना और उन्हें स्थिर बनाना है। यह विशेष रूप से सरकारी-गैर-सरकारी साझेदारी (PPP) मॉडल को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे विश्वभर में अवसंरचना के क्षेत्र में वित्तीय समर्थन प्राप्त किया जा सके। यह पहल विशेष रूप से विकासशील देशों में, जहां निवेश की भारी कमी है, उस स्थिति में मददगार साबित होती है।
इस सुविधा के तहत, विश्व बैंक द्वारा विभिन्न वित्तीय सहायता और संरचना निर्माण की योजना बनाई जाती है, जो इन परियोजनाओं के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने में मदद करती है। यह वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करता है, जिनके लिए यह एक निवेश का उपयुक्त अवसर प्रस्तुत करता है, जबकि यह विकासशील देशों की अवसंरचना परियोजनाओं में महत्वपूर्ण योगदान करता है। इसके जरिए, जटिल अवसंरचना परियोजनाओं को सुनिश्चित वित्तीय समर्थन मिलता है।
सार्वभौम अवसंरचना सुविधा, विशेष रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बड़े निवेश की आवश्यकता को संबोधित करने के लिए कार्य करती है। यह सरकारों और निजी क्षेत्र के निवेशकों के बीच साझेदारी को सक्षम बनाता है, ताकि दोनों पक्ष एक साथ मिलकर अवसंरचना परियोजनाओं का निर्माण और संचालन कर सकें। इसका उद्देश्य न केवल संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाना है, बल्कि अवसंरचना परियोजनाओं को सक्षम रूप से चलाने के लिए स्थिरता और मार्गदर्शन भी प्रदान करना है। यह पहल बुनियादी ढांचा विकास के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 57. लोक सभा के निर्वाचन के लिए नामांकन-पत्र
(a) भारत में निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा दाखिल किया जा सकता है।
(b) जिस निर्वाचन क्षेत्र में निर्वाचन लड़ा जाना है, वहाँ के किसी निवासी द्वारा दाखिल किया जा सकता है।
(c) भारत के किसी नागरिक द्वारा, जिसका नाम किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में है, दाखिल किया जा सकता है।
(d) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा दाखिल किया जा सकता है।
उत्तर: (c)
लोकसभा चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया भारतीय चुनाव कानून का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारतीय संविधान और चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, किसी भी व्यक्ति द्वारा नामांकन दाखिल करने के लिए यह आवश्यक है कि उसका नाम संबंधित निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में हो। यह नियम इस उद्देश्य से है कि उम्मीदवार उस क्षेत्र के निवासी और उसकी समस्याओं से भली-भांति परिचित हो, जिससे वह जनसामान्य के हितों की सच्ची और सटीक प्रतिनिधित्व कर सके। यह प्रावधान मतदान प्रक्रिया को लोकतांत्रिक, पारदर्शी और स्थानीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में सहायक है।
इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करता है कि जो व्यक्ति चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं, वे निर्वाचन क्षेत्र के सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को समझते हैं। नामांकन की यह शर्त केवल भारतीय नागरिकों के लिए है और यह नियम चुनाव प्रक्रिया में बाहरी प्रभावों को न्यूनतम करता है। यह प्रावधान निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के लिए एक सही प्रतिनिधि चुनने की संभावना को बढ़ाता है।
इस शर्त का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उम्मीदवार का स्थानीय मुद्दों और आवश्यकताओं से सीधा संबंध हो। इसके द्वारा, चुनावी प्रक्रिया को इस प्रकार संरचित किया जाता है कि उम्मीदवारों के पास क्षेत्रीय समस्याओं का ज्ञान हो और वे वंचित और जरूरतमंद समुदायों की सही स्थिति को समझें। इस तरह, यह प्रक्रिया जनता की वास्तविक आवाज को संसद में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में मदद करती है।
प्रश्न 58. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारत में, हिमालय केवल पाँच राज्यों में फैला हुआ है।
2. पश्चिमी घाट केवल पाँच राज्यों में फैले हुए हैं।
3. पुलिकट झील केवल दो राज्यों में फैली हुई है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 3
उत्तर: (b)
हिमालय पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ है और यह कुल 11 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विस्तारित है। इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, लद्दाख और जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश भी हिमालय पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत आते हैं। यह पर्वत क्षेत्र न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें पर्यावरणीय और जैविक विविधता का भी अद्वितीय योगदान है।
पश्चिमी घाट भारत के छह राज्यों में फैला हुआ है – गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु। पश्चिमी घाट को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह क्षेत्र जैव विविधता का समृद्ध भंडार है और यहाँ कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित क्षेत्र स्थित हैं। पश्चिमी घाट के जैविक संसाधन, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
पुलिकट झील केवल दो राज्यों, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में फैली हुई है। यह झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी तटीय झील है और यहां पर कई प्रकार के पक्षी, जलजीव और मछलियां पाई जाती हैं। यह एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षेत्र है और स्थानीय जैविक विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, पुलिकट झील का उपयोग मछली पालन और अन्य जलवायु गतिविधियों के लिए भी किया जाता है।
प्रश्न 59. जैव ऑक्सीजन माँग (BOD) किसके लिए एक मानक मापदंड है?
(a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिए
(b) वन पारिस्थितिक तंत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के अभिकलन के लिए
(c) जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिए
(d) उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिए
उत्तर: (c)
जैव ऑक्सीजन माँग (BOD) एक जल गुणवत्ता मापदंड है, जिसका उपयोग जल में प्रदूषण के स्तर को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। BOD मापता है कि किसी जल नमूने में जैविक पदार्थों के अपघटन के लिए कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया बैक्टीरिया द्वारा होती है, जो जैविक पदार्थों को तोड़ते हैं और इस दौरान ऑक्सीजन का उपभोग करते हैं। BOD स्तर का उच्च होना जल में प्रदूषण की अधिकता को दर्शाता है और जल के जैविक जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है। यह मापदंड जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और जल की गुणवत्ता को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
BOD का स्तर जल प्रदूषण का एक सटीक संकेतक होता है, जो प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाने और जल संसाधनों की गुणवत्ता को समझने में मदद करता है। उच्च BOD वाले जल स्रोतों में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए खतरे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह मापदंड न केवल प्रदूषण की स्थिति को मापता है, बल्कि जल के उपचार की आवश्यकता का भी संकेत देता है। जल के प्रदूषण के स्तर का मापन किसी भी जलस्रोत के लिए पर्यावरणीय प्रबंधन की दिशा निर्धारित करने में सहायक होता है।
BOD परीक्षण का उपयोग जल उपचार संयंत्रों में भी किया जाता है, ताकि जल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए उचित उपायों को लागू किया जा सके। जैविक और रासायनिक उपचार विधियों का उपयोग BOD स्तर को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। जैविक उपचार में सूक्ष्मजीवों द्वारा अपशिष्ट पदार्थों का अपघटन किया जाता है, जबकि रासायनिक उपचार में प्रदूषकों को हटाने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है। इन उपायों के माध्यम से जल की गुणवत्ता में सुधार होता है और यह सुरक्षित जल स्रोतों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, ताकि प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सके और जल जीवन के लिए उपयुक्त रहे।
प्रश्न 60. बेहतर नगरीय भविष्य की दिशा में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावास (UN-Habitat) की भूमिका के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सत्य है/हैं?
1. संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावास को आज्ञापित किया गया है कि वह सामाजिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से धारणीय ऐसे कस्बों और शहरों को संवर्धित करे जो सभी को पर्याप्त आश्रय प्रदान करते हों।
2. इसके साझीदार सिर्फ़ सरकारें या स्थानीय नगर प्राधिकरण ही हैं।
3. संयुक्त राष्ट्र पर्यावास, सुरक्षित पेय जल व आधारभूत स्वच्छता तक पहुँच बढ़ाने और ग़रीबी कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के समग्र उद्देश्य में योगदान करता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1
उत्तर: (b)
संयुक्त राष्ट्र पर्यावास (UN-Habitat) का मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जीवन स्थितियों को बेहतर बनाना है। यह विशेष रूप से ऐसे कस्बों और शहरों में कार्य करता है जो सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से स्थिर न हों, जिससे सभी को सुरक्षित और गुणवत्ता पूर्ण आवास मिल सके। 1978 में स्थापित होने के बाद से, इस संगठन ने शहरीकरण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया है, जैसे कि सुरक्षित आवास, जल आपूर्ति, स्वच्छता और बुनियादी ढांचे की सुविधाओं का सुधार। UN-Habitat का लक्ष्य शहरी गरीबी को कम करना और ऐसे शहरों का निर्माण करना है जो विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थिर हों।
UN-Habitat के कार्यों में सरकारों, नगर प्राधिकरणों के अलावा अन्य साझीदार भी शामिल होते हैं, जैसे कि गैर-सरकारी संगठन (NGOs), अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां और निजी क्षेत्र। यह मल्टी-स्टेकहोल्डर सहयोग शहरी विकास परियोजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने में मदद करता है। इसके साझीदार न केवल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर को कम करने के लिए काम करते हैं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों, खासकर गरीबों और हाशिए पर रहने वालों के लिए भी आवास की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करते हैं। इस सहयोग से शहरी योजनाओं की सफलता और पहुंच को बढ़ावा मिलता है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावास, सुरक्षित पेय जल और स्वच्छता की सुविधाओं तक पहुंच को बढ़ाने के लिए भी सक्रिय रूप से काम करता है। इसके कार्यक्रमों में जल आपूर्ति, स्वच्छता, बुनियादी ढांचा और ग़रीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता है, जो विकासशील देशों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, यह संगठन शहरी जलवायु परिवर्तन पर भी ध्यान केंद्रित करता है और ऐसे उपायों को बढ़ावा देता है, जो शहरी क्षेत्रों को पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित बनाएं। इन प्रयासों से दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जाती है और सामाजिक व पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखा जाता है।
प्रश्न 61. ‘राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF)’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. NSQF के अधीन, शिक्षार्थी सक्षमता का प्रमाणपत्र केवल औपचारिक शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त कर सकता है।
2. NSQF के क्रियान्वयन का एक प्रत्याशित परिणाम व्यावसायिक और सामान्य शिक्षा के मध्य संचरण है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) भारत में एक संरचित ढांचा है, जो शिक्षा और प्रशिक्षण के विभिन्न स्तरों को मान्यता देने का कार्य करता है। NSQF का मुख्य उद्देश्य है, कौशल विकास और शिक्षा के बीच एक सामंजस्यपूर्ण कड़ी बनाना, जिससे छात्रों को न केवल शैक्षिक ज्ञान प्राप्त हो, बल्कि वे व्यावसायिक रूप से भी सक्षम हो सकें। इसके अंतर्गत आठ स्तरों पर विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा और कौशल को मान्यता मिलती है। यह प्रणाली छात्रों को उनके कौशल स्तर के अनुसार उपयुक्त प्रमाणपत्र देती है, चाहे वे औपचारिक शिक्षा से जुड़ें या व्यावसायिक प्रशिक्षण से।
दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि NSQF के तहत व्यावसायिक और सामान्य शिक्षा के बीच एक सहज संचरण की सुविधा है। यह छात्रों को किसी एक शिक्षा प्रणाली से दूसरे में परिवर्तन करने का अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर चुका है, उसे सामान्य शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित किया जा सकता है, या इसके विपरीत। यह संचरण छात्रों के लिए विविधता और अवसर के नए द्वार खोलता है। इससे छात्रों को उनकी रुचि और क्षमता के आधार पर शिक्षा के विभिन्न रास्तों का चयन करने की स्वतंत्रता मिलती है।
इसके अतिरिक्त, NSQF का उद्देश्य केवल शिक्षा के स्तर को मान्यता देना नहीं है, बल्कि रोजगार के अवसरों के निर्माण में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है। यह न केवल छात्रों के लिए रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाता है, बल्कि उद्योगों और व्यावसायिक क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार करता है। NSQF के तहत, प्रशिक्षण संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ाया गया है, जिससे बाजार में कामकाजी कौशल के उच्च मानकों को सुनिश्चित किया जा सके। यह संरचना न केवल छात्रों की रोजगार क्षमता को बढ़ाती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विकास के लिए भी एक सशक्त आधार तैयार करती है।
प्रश्न 62. भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में, द्वैध शासन (डायआर्की)’ सिद्धान्त किसे निर्दिष्ट करता है?
(a) केन्द्रीय विधानमण्डल का दो सदनों में विभाजन।
(b) दो सरकारों, अर्थात् केन्द्रीय और राज्य सरकारों का शुरू किया जाना।
(c) दो शासक-समुच्चय; एक लन्दन में और दूसरा दिल्ली में होना।
(d) प्रान्तों को प्रत्यायोजित विषयों का दो प्रवर्गों में विभाजन।
उत्तर: (d)
द्वैध शासन की अवधारणा भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत प्रांतीय प्रशासन में लागू की गई थी। इस व्यवस्था में प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया – (1) आरक्षित तथा (2) प्रत्यायोजित। आरक्षित विषयों में पुलिस, न्याय, भूमि राजस्व और जल शामिल थे, जिनका नियंत्रण गवर्नर और ब्रिटिश अधिकारियों के पास रहता था। प्रत्यायोजित विषयों में शिक्षा, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्थानीय स्वशासन आते थे, जिनकी जिम्मेदारी भारतीय मंत्रियों को दी गई थी। परंतु यह जिम्मेदारी केवल नाममात्र की थी क्योंकि निर्णयों पर अंतिम अधिकार गवर्नर का ही रहता था।
इस व्यवस्था में स्पष्ट असमानता थी क्योंकि- (1) भारतीय मंत्रियों के पास न पर्याप्त अधिकार थे और न ही वित्तीय संसाधन। (2) गवर्नर के पास किसी भी निर्णय को अस्वीकार करने का विशेषाधिकार था, जिससे मंत्रियों की स्वतंत्रता प्रभावित होती थी। (3) आरक्षित और प्रत्यायोजित विषयों के बीच समन्वय का अभाव कार्यकुशलता को बाधित करता था। इससे भारतीयों में असंतोष उत्पन्न हुआ और यह व्यवस्था औपनिवेशिक शासन की वास्तविक मंशा को उजागर करती थी, जो सत्ता हस्तांतरण नहीं बल्कि नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।
यह व्यवस्था 1935 तक प्रभावी रही, जिसके पश्चात भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत इसे समाप्त कर दिया गया। नए अधिनियम ने प्रांतीय स्वशासन की अधिक स्वतंत्र अवधारणा को स्थान दिया और वास्तविक उत्तरदायित्व की नींव रखी। द्वैध शासन की असफलता ने भारतीय नेतृत्व को यह स्पष्ट रूप से समझा दिया कि केवल आधे-अधूरे सुधारों से जनता की आकांक्षाएं पूरी नहीं होंगी। यही कारण रहा कि इस प्रणाली के विरोध ने स्वराज्य की माँग को और सशक्त किया और स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी।
प्रश्न 63. ‘नेशनल करियर सर्विस’ के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. नेशनल करियर सर्विस, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार, का एक उपक्रमण है।
2. नेशनल करियर सर्विस को देश के अशिक्षित युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर के संवर्धन के लिए मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं??
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
प्रश्न 64. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए ‘दबावयुक्त परिसम्पत्तियों के धारणीय संरचन पद्धति (स्कीम फ़ॉर सस्टेनेबल. स्ट्रक्चरिंग ऑफ़ स्ट्रेस्ड एसेट्स /S4A)’ का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है?
(a) यह सरकार द्वारा निरूपित विकासपरक योजनाओं की पारिस्थितिकीय क़ीमतों पर विचार करने की पद्धति है।
(b) यह वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रही बड़ी कॉर्पोरेट इकाइयों की वित्तीय संरचना के पुनर्संरचन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की स्कीम है।
(c) यह केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के बारे में सरकार की विनिवेश योजना है।
(d) यह सरकार द्वारा हाल ही में क्रियान्वित ‘इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड’ का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है।
उत्तर: (b)
नेशनल करियर सर्विस भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसे वर्ष 2015 में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा आरंभ किया गया। यह योजना पारंपरिक रोजगार कार्यालयों को आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इसका उद्देश्य युवाओं को उनकी योग्यता और कौशल के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराना है। यह केवल अशिक्षित नहीं, बल्कि शिक्षित, अर्धशिक्षित, प्रशिक्षित तथा अप्रशिक्षित सभी प्रकार के युवाओं को ध्यान में रखकर विकसित की गई है। यह योजना देशभर में रोजगार सेवाओं को एकीकृत और पारदर्शी बनाने की दिशा में कार्य कर रही है।
इस मंच के माध्यम से नौकरी चाहने वाले युवाओं को निजी तथा सरकारी क्षेत्रों की नौकरियों की जानकारी, प्रशिक्षण संस्थानों का डाटा, करियर मार्गदर्शन, कौशल विकास कार्यक्रमों की जानकारी और ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा मिलती है। यह योजना किसी एक विभाग की नहीं, बल्कि समूचे देश की रोजगार आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कार्य कर रही है। इसके अंतर्गत 1000 से अधिक रोजगार कार्यालयों को जोड़ा जा चुका है। इसमें बेरोजगार युवाओं को साक्षात्कार की तैयारी से लेकर, जीविका से जुड़ी विभिन्न योजनाओं तक की जानकारी दी जाती है। योजना के तहत नियोक्ताओं और उम्मीदवारों के बीच सीधा संपर्क स्थापित करने की भी सुविधा दी गई है।
इस योजना के अंतर्गत महिला, दिव्यांग, वरिष्ठ नागरिक, शिक्षार्थी, अप्रवासी श्रमिक, घरेलू कामगार तथा सीमांत वर्ग के लोगों को भी विशेष श्रेणियों के अंतर्गत सहायता दी जाती है। इसके अतिरिक्त स्व-रोजगार को भी बढ़ावा देने के लिए सरकारी ऋण योजनाओं से भी जानकारी साझा की जाती है। यह प्लेटफॉर्म केवल रोजगार के अवसर नहीं देता, बल्कि युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मार्गदर्शन भी करता है। इसमें देश की भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के लोग भी इसका लाभ उठा सकें।
प्रश्न 65. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. अल्पजीवी जलवायु प्रदूषकों को न्यूनीकृत करने हेतु जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC), G20 समूह के देशों की एक अनोखी पहल है।
2. CCAC मेथैन, काला कार्बन एवं हाइड्रोफ्लुओरोकार्बनों पर केंद्रित करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
‘क्लीन एयर कोलिशन’ (CCAC) एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं से निपटना है। यह गठबंधन मेथेन, काला कार्बन और हाइड्रोफ्लुओरोकार्बनों जैसे अल्पजीवी प्रदूषकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में शामिल हैं। 2012 में इस पहल की शुरुआत हुई थी और यह अब कई देशों, संगठनों और क्षेत्रीय साझेदारों के सहयोग से काम कर रहा है। CCAC का उद्देश्य इन प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करना है, जिससे न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोका जा सके, बल्कि वायु गुणवत्ता में भी सुधार हो।
CCAC की गतिविधियाँ मुख्य रूप से प्रदूषण के कारणों की पहचान और उसके समाधान के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी और नीति उपायों के माध्यम से प्रभावी कदम उठाने पर आधारित हैं। यह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर सरकारों के साथ मिलकर कार्य करता है। भारत, चीन और कई अफ्रीकी देशों ने इस पहल में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इस पहल के तहत उद्योगों में बेहतर प्रौद्योगिकी का उपयोग, कचरे के प्रबंधन में सुधार और परिवहन क्षेत्र में स्वच्छ ईंधन का उपयोग बढ़ाना शामिल है।
यह पहल वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। CCAC की सफलता का मुख्य कारण इसके विभिन्न देशों और संगठनों के साथ साझेदारी में काम करना है। इससे न केवल प्रदूषण की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है, बल्कि यह विभिन्न देशों के बीच जलवायु नीति में सहयोग को भी बढ़ावा देता है। इसलिए, यह पहल न केवल जलवायु के प्रति जिम्मेदारी को बढ़ाती है, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण भी सुनिश्चित करती है।
प्रश्न 66. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
2. IOD परिघटना मानसून पर एल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
‘इंडियन ओशन डाइपोल’ (IOD) एक समुद्री परिघटना है, जो हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी भागों के तापमान में असंतुलन से उत्पन्न होती है। जब पश्चिमी हिंद महासागर का पानी गर्म होता है और पूर्वी हिंद महासागर का पानी ठंडा होता है, तो इसे सकारात्मक IOD कहा जाता है। यह स्थिति भारतीय उपमहाद्वीप में मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती है। यह परिघटना समुद्र की धाराओं, मौसम और वर्षा के वितरण को बदल सकती है, जिससे जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। IOD का प्रमुख प्रभाव समुद्री और भूसंवेदनशील क्षेत्रों में देखा जाता है, जहां इससे संबंधित वातावरणीय परिवर्तनों के कारण सूखा या अत्यधिक वर्षा हो सकती है।
IOD का मानसून पर गहरा प्रभाव होता है, विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप में। IOD के सकारात्मक होने पर वर्षा में वृद्धि होती है, जिससे मानसून की बारिश सामान्य से अधिक हो सकती है, जो कृषि और जल संसाधनों के लिए लाभकारी हो सकता है। इसके विपरीत, नकारात्मक IOD से मानसून में कमी आ सकती है, जो सूखा या जल संकट को जन्म दे सकता है। यह समुद्र की ऊपरी सतह के तापमान और हवा की दिशा के परिवर्तन से संबंधित होता है। इसके अलावा, IOD और एल-नीनो के बीच परस्पर संबंध है, जो मानसून के परिमाण और वितरण को प्रभावित करता है। विशेष रूप से, IOD परिघटना एल-नीनो के असर को कम कर सकती है और मानसून के समय पर प्रभाव डाल सकती है।
IOD का प्रभाव पर्यावरणीय, कृषि और जलवायु के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, 2006 में सकारात्मक IOD के कारण भारत में सामान्य से अधिक वर्षा हुई थी, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई थी। इसके विपरीत, 2015 में नकारात्मक IOD ने मानसून में कमी और सूखा का कारण बना। इस प्रकार, IOD की सही भविष्यवाणी से मौसम के परिवर्तनों को समझने और जलवायु नीति बनाने में सहायता मिलती है। IOD के प्रभाव का अध्ययन जलवायु परिवर्तन, जलस्रोतों के प्रबंधन और कृषि उत्पादकता को लेकर महत्वपूर्ण है। IOD के बारे में समझ से जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भारत की तैयारियों को बेहतर किया जा सकता है।
प्रश्न 67. यदि आप घड़ियाल को उनके प्राकृतिक आवास में देखना चाहते हैं, तो निम्नलिखित में से किस स्थान पर जाना सबसे सही है?
(a) भितरकणिका मैन्ग्रोव
(b) चम्बल नदी
(c) पुलिकट झील
(d) दीपर बील
उत्तर: (b)
विकल्प (a) गलत है: भितरकणिका मैन्ग्रोव क्षेत्र ओडिशा राज्य में स्थित है, जो प्रमुख रूप से मगरमच्छ जैसे प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है। यह क्षेत्र विशेष रूप से सॉल्टवाटर मगरमच्छ के लिए प्रसिद्ध है, जो समुद्र तटीय और मैन्ग्रोव वनों में पाए जाते हैं। हालांकि यहाँ विभिन्न जलजीवों और पक्षियों का निवास है, लेकिन घड़ियालों के लिए यह आदर्श स्थान नहीं माना जाता है। घड़ियाल मुख्य रूप से नदी प्रणालियों में निवास करते हैं, जहां पानी का प्रवाह धीमा और गहरा होता है।
विकल्प (b) सही है: चम्बल नदी भारत में घड़ियालों का प्रमुख प्राकृतिक आवास है। चम्बल नदी का क्षेत्र विशेष रूप से घड़ियाल संरक्षण परियोजना के तहत संरक्षित किया गया है। यह नदी शांत और गहरे जल के लिए प्रसिद्ध है, जो घड़ियालों के जीवन के लिए उपयुक्त है। घड़ियालों की संख्या में वृद्धि हेतु कई कदम उठाए गए हैं और यह स्थान घड़ियालों के संरक्षण हेतु एक आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र घड़ियालों के लिए अत्यंत अनुकूल है।
विकल्प (c) गलत है: पुलिकट झील, जो तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित है, एक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है और यहाँ मुख्य रूप से समुद्री जीवन और पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह झील घड़ियालों का प्राकृतिक आवास नहीं है क्योंकि यहाँ का जलस्तर और पारिस्थितिकी तंत्र घड़ियालों की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। घड़ियालों को अधिकतर धीरे बहने वाली नदियों और मटमैले पानी की आवश्यकता होती है, जो पुलिकट झील में उपलब्ध नहीं हैं।
विकल्प (d) गलत है: दीपर बील पश्चिम बंगाल में स्थित एक जलाशय है, जो मुख्य रूप से झील और जलाशय के प्रजातियों के लिए उपयुक्त है, लेकिन यह घड़ियालों का प्राकृतिक आवास नहीं है। घड़ियाल नदी प्रणालियों में पाए जाते हैं, जहां पानी का प्रवाह स्थिर और गहरा होता है। दीपर बील का पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री या नदी आधारित नहीं है, जिससे यह घड़ियालों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है।
प्रश्न 68. हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (सिम्पोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिए:
1. प्रारंभी (इनॉगुरल) IONS भारत में 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में हुआ था।
2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों (स्टेट्स) की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाना चाहता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (IONS) का उद्घाटन भारत में 2011 में हुआ था, न कि 2015 में। इस सम्मेलन का उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों के बीच सामरिक, शांति-स्थापना, सुरक्षा और समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना है। 2011 में IONS के पहले सत्र का आयोजन भारतीय नौसेना द्वारा किया गया था और इसमें समुद्री सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा की गई थी। 2015 में केवल IONS का दूसरा सम्मेलन हुआ था, जो भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में आयोजित हुआ था।
कथन 2 सही है: IONS एक स्वैच्छिक और समर्पित पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ावा देती है। यह पहल क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा, समुद्र में अवैध गतिविधियों की रोकथाम, आपसी समझ और सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करती है। इसके माध्यम से, हिंद महासागर में विभिन्न देशों के बीच नौसैनिक सहयोग को बढ़ावा मिलता है, साथ ही क्षेत्रीय समुद्री मुद्दों पर सामूहिक रूप से चर्चा की जाती है।
प्रश्न 69. बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रायः चित्रित चित्रकारी है, जो
(a) अजंता में है
(b) बादामी में है
(c) बाघ में है
(d) एलोरा में है
उत्तर: (a)
बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र भारतीय कला का अद्वितीय उदाहरण है, जो अजंता गुफाओं में पाया जाता है। अजंता गुफाएं, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं, विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहां की चित्रकला विशेष रूप से बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है। बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र खास तौर पर ध्यान आकर्षित करता है, जिसमें पद्मपाणि को एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में अभय मुद्रा में दिखाया गया है। यह चित्र बोधिसत्त्व के गुणों, जैसे करुणा और शांति को दर्शाता है। इस चित्र का निर्माण गुप्त काल (4वीं-6वीं शताबदी) के दौरान हुआ था, जब भारतीय चित्रकला अपने उत्कर्ष पर थी। अजंता गुफाओं में ऐसी कला बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने के लिए अत्यधिक प्रभावी थी।
अजंता गुफाओं की चित्रकला ने भारतीय संस्कृति, धर्म और कला पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। इन गुफाओं में पाए गए चित्र बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र प्रमुख है। इन चित्रों के माध्यम से बौद्ध धर्म के धर्मगुरुओं और उनके उपदेशों को प्रचारित किया गया। इसके अलावा, अजंता की चित्रकला में उस समय के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का चित्रण भी किया गया है। इस चित्रकला का उद्देश्य न केवल बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार था, बल्कि यह एक धार्मिक अभिव्यक्ति के रूप में कला की गहरी समझ को भी प्रस्तुत करता है। अजंता की गुफाओं में पाए गए चित्र बौद्ध धर्म के प्रतीकों के माध्यम से करुणा, तपस्या और बुद्धत्व की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र भारतीय कला का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अजंता गुफाओं में अद्वितीय रूप से प्रकट होता है। इस चित्र का प्रभाव न केवल बौद्ध धर्म पर पड़ा, बल्कि इसने भारतीय चित्रकला के विकास को भी प्रेरित किया। पद्मपाणि का चित्र भारतीय कला की गुप्त शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है, जो सौंदर्य, संतुलन और धार्मिक विचारों का संगम है। इस चित्रकला में रंगों का संयोजन और चित्रित पात्रों की शांति और स्थिरता की भावना विशेष रूप से देखने योग्य है। बोधिसत्त्व पद्मपाणि का चित्र भारतीय कला में धर्म, सौंदर्य और भावनाओं के अभिव्यक्तिकरण का आदर्श है। इस चित्रकला ने न केवल भारतीय धार्मिक संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि इसे एक वैश्विक पहचान भी दी।
प्रश्न 70. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[परम्पराएँ – समुदाय]
1. चलिहा साहिब उत्सव सिंधियों का
2. नन्दा राज जात यात्रा गोंडों का
3. वारी-वारकरी संथालों का
ऊपर दिए गए युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (a)
चलिहा साहिब उत्सव सिंधी समुदाय की एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक धार्मिक परंपरा है, जो भगवान झूलेलाल की उपासना से जुड़ी हुई है। यह उत्सव वर्ष में 1 बार श्रावण मास के दौरान 40 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें श्रद्धालु उपवास, ध्यान, कीर्तन और संयम का पालन करते हैं। इस उत्सव की उत्पत्ति सिंध क्षेत्र में मानी जाती है, जहाँ मुस्लिम अत्याचारों के विरुद्ध झूलेलाल को एक रक्षक देवता के रूप में स्वीकार किया गया। विभाजन के पश्चात भारत में आ बसे सिंधियों ने इस परंपरा को जीवित रखा। आज भी यह उत्सव विशेष रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव सिंधी समुदाय की धार्मिक अस्मिता, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है।
नन्दा राज जात यात्रा उत्तराखण्ड की एक ऐतिहासिक और पारंपरिक तीर्थयात्रा है, जो मुख्यतः गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्रों के स्थानीय ग्रामीण समुदायों द्वारा आयोजित की जाती है। यह यात्रा देवी नन्दा और सुनींदा को समर्पित होती है और हर 12 वर्षों में एक बार चमोली जिले के कुरुड़ गांव से शुरू होकर कठिन हिमालयी मार्गों से होते हुए त्रिशूल पर्वत के निकट स्थित होमकुंड तक जाती है। इस यात्रा का गोंड समुदाय से कोई संबंध नहीं है। गोंड समुदाय मध्यभारत में निवास करता है और उनकी धार्मिक परंपराएँ अलग प्रकृति की होती हैं, जिनमें प्रकृति पूजन और पूर्वजों की उपासना मुख्य होती है। नन्दा राज जात यात्रा का ऐतिहासिक उल्लेख कत्यूरी वंश और चंद राजाओं के समय से मिलता है, जो इस देवी को राज्य की कुलदेवी मानते थे।
वारी-वारकरी परंपरा महाराष्ट्र की एक प्रसिद्ध भक्ति परंपरा है, जो संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम तथा अन्य संत कवियों की शिक्षाओं पर आधारित है। इसमें वारकरी समुदाय हर वर्ष आषाढ़ मास में संतों की पालखी लेकर अलंदी या देहु से पंढरपुर तक पदयात्रा करता है। यह परंपरा विठोबा भगवान की उपासना से जुड़ी है और इसमें भक्ति, समानता और संयम की भावना प्रमुख होती है। इस परंपरा का संथाल समुदाय से कोई संबंध नहीं है। संथाल समुदाय की सांस्कृतिक मान्यताएँ मुख्यतः आदिवासी और प्रकृति पूजक होती हैं, जो झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में पाई जाती हैं। वारी-वारकरी परंपरा महाराष्ट्र के सामाजिक और धार्मिक जीवन की महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है।
प्रश्न 71. निम्नलिखित पद्धतियों में से कौन-सी कृषि में जल संरक्षण में सहायता कर सकती है/हैं?
1. भूमि की कम या शून्य जुताई
2. खेत में सिंचाई के पूर्व जिप्सम का प्रयोग
3. फ़सल अवशेष को खेत में ही रहने देना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कृषि में जल संरक्षण हेतु “भूमि की कम या शून्य जुताई” एक प्रभावशाली तकनीक है, जिसे “संरक्षण कृषि” के अंतर्गत अपनाया जाता है। इस विधि में मिट्टी को बार-बार जोतने से बचा जाता है, जिससे उसकी संरचना अक्षुण्ण बनी रहती है और नमी का संरक्षण होता है। मिट्टी की ऊपरी परत पर वनस्पतियों या फसल अवशेषों की परत होने से सूर्य की तीव्रता से जल वाष्पीकरण घटता है। इसके साथ ही यह विधि मृदा अपरदन को भी नियंत्रित करती है और वर्षा जल को भूमि में अवशोषित करने की गति को बढ़ाती है। कम जुताई से मृदा के सूक्ष्मजीवों की संख्या भी प्रभावित नहीं होती, जिससे भूमि की जलधारण क्षमता दीर्घकालिक रूप से बनी रहती है। इस तकनीक से वर्षा आधारित कृषि में स्थायित्व आता है और जल की माँग में कमी आती है।
“फ़सल अवशेष को खेत में ही छोड़ना” एक पारंपरिक और प्रभावशाली तकनीक है, जिससे न केवल जैविक पदार्थ की आपूर्ति होती है, बल्कि जल संरक्षण भी होता है। जब अवशेष भूमि पर रहते हैं, तो वे सूर्य की सीधी किरणों को अवरुद्ध करते हैं जिससे वाष्पीकरण की दर कम हो जाती है। इसके अलावा, यह परत भूमि के तापमान को स्थिर बनाए रखती है और जल को लंबे समय तक मिट्टी में बनाए रखने में सहायक होती है। अवशेषों की उपस्थिति भूमि की सतह पर वर्षा जल की गति को धीमा करती है, जिससे जल भूमि में अवशोषित होता है और सतही बहाव कम होता है। इन अवशेषों के विघटन से कार्बनिक पदार्थ बनता है, जो मृदा संरचना को सुधारता है और जलधारण की क्षमता बढ़ाता है। इस तकनीक को वर्ष 2017 में “फसल अवशेष प्रबंधन योजना” के रूप में उत्तर भारत में बढ़ावा दिया गया।
“सिंचाई से पूर्व खेत में जिप्सम का प्रयोग” केवल सोडिक मृदाओं में जल अवशोषण बढ़ाने हेतु उपयोगी है। जिप्सम में कैल्शियम सल्फेट होता है, जो मृदा में उपस्थित सोडियम को प्रतिस्थापित करता है, जिससे मृदा की संरचना में सुधार होता है। इससे जल भूमि में अधिक प्रभावी ढंग से प्रवेश कर पाता है और जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है। किंतु यह पद्धति केवल उन क्षेत्रों में उपयोगी है जहाँ मृदा में सोडियम की मात्रा अधिक हो तथा मृदा की जल पारगम्यता बाधित हो। सामान्य मृदाओं में इसका कोई प्रभावी लाभ नहीं होता और अनियंत्रित उपयोग से मृदा की अम्लता असंतुलित हो सकती है। अतः यह एक विशेष स्थिति में सीमित उपयोग वाली पद्धति है और व्यापक कृषि जल संरक्षण रणनीति का अंग नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 72. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
राष्ट्रव्यापी ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम (सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम)’ का उद्देश्य है-
1. सिंचित कृषियोग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
2. मृदा गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा के आकलन में बैंकों को समर्थ बनाना।
3. कृषि भूमि में उर्वरकों के अति-उपयोग को रोकना।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी, जिसका उद्देश्य किसानों को उनकी भूमि की मृदा गुणवत्ता की वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करना है। यह योजना मुख्य रूप से खेत की मिट्टी की पोषकता का विश्लेषण कर उसके अनुसार उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करती है। इससे मिट्टी की उत्पादकता बनी रहती है और लंबे समय तक टिकाऊ खेती संभव होती है। मृदा की जांच के आधार पर किसान को एक कार्ड दिया जाता है जिसमें आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा, कमी, तथा सुधार हेतु सुझाव होते हैं। यह योजना विशेष रूप से उर्वरकों के अत्यधिक एवं असंतुलित प्रयोग को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध हुई है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड में कुल 12 घटकों की जानकारी दी जाती है, जिनमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जैविक कार्बन, सल्फर, पीएच मान, विद्युत चालकता तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्व जैसे जिंक, आयरन, मैग्नीशियम आदि शामिल होते हैं। यह वैज्ञानिक विश्लेषण न केवल फसल की उपज को बढ़ाने में सहायक होता है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता को भी बरकरार रखता है। योजना का मुख्य उद्देश्य मृदा की उपजाऊ शक्ति का संरक्षण करना है, न कि सिंचाई क्षेत्र का विस्तार करना या बैंकों को मृदा के आधार पर ऋण मूल्यांकन में सहायता देना। यह एक गैर-वित्तीय योजना है जो सीधे कृषि निवेश एवं उत्पादन लागत को प्रभावित करती है।
इस योजना का प्रभाव देशभर के कृषकों पर व्यापक रूप से पड़ा है, विशेषकर ऐसे क्षेत्रों में जहाँ रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग हो रहा था। मृदा विश्लेषण आधारित सिफारिशों से किसानों ने फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उर्वरक खर्च में भी कमी पाई है। योजना का उद्देश्य केवल उपज बढ़ाना नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना है। इसके तहत मृदा की जैविक स्थिति का मूल्यांकन कर आवश्यक सुधार किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह योजना जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों को भी बढ़ावा देती है, जिससे मृदा क्षरण पर नियंत्रण एवं जल संरक्षण दोनों में सहायता मिलती है।
प्रश्न 73. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[सामान्यतः प्रयुक्त/उपभुक्त पदार्थ – उनमें पाए जाने वाले संभावित अवांछनीय अथवा विवादास्पद रसायन]
1. लिपस्टिक : सीसा
2. शीतल पेय : ब्रोमीनित वनस्पति तेल
3. चाइनीज़ फास्ट फूड : मोनोसोडियम ग्लूटामेट
ऊपर दिए गए युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
लिपस्टिक में पाए जाने वाले सीसा की उपस्थिति वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय रही है। सीसा एक विषैला भारी धातु है, जो शरीर में धीरे-धीरे एकत्र होकर तंत्रिका तंत्र, गुर्दा, प्रजनन प्रणाली और संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। लिपस्टिक का नियमित उपयोग करने वाली महिलाओं में यह तत्व छोटे-छोटे अंशों में शरीर में प्रवेश करता है। भारत सहित कई देशों में सीसा की अनुमेय सीमा तय की गई है, परंतु विभिन्न अध्ययन यह संकेत करते हैं कि कई लोकप्रिय उत्पादों में इसकी मात्रा अनुमेय सीमा के आसपास या उससे अधिक भी पाई गई है। वर्ष 2014 में एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि सौंदर्य प्रसाधनों में विषैले तत्त्वों की मात्रा को लेकर निगरानी प्रणाली मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और निर्माता जिम्मेदारीपूर्वक उत्पाद निर्माण करें।
शीतल पेयों में प्रयुक्त ब्रोमीनित वनस्पति तेल (बीवीओ) एक सिंथेटिक यौगिक है जिसका उपयोग मुख्यतः स्वाद और रंग को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है। इसमें उपस्थित ब्रोमीन नामक तत्व मानव शरीर की थायरॉइड ग्रंथि पर प्रभाव डाल सकता है और लंबे समय तक सेवन करने पर यह स्मृति ह्रास, त्वचा रोग और हार्मोन असंतुलन का कारण बन सकता है। कुछ अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में यह भी संकेत किया गया है कि बीवीओ का सेवन मोटापे और व्यवहारगत समस्याओं से भी जुड़ा हो सकता है। विकसित देशों में इस पर प्रतिबंध लगाया गया है, जबकि भारत में इसके उपयोग को लेकर अब तक कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। हालाँकि उपभोक्ता जागरूकता बढ़ने और जनदबाव के कारण 2015 के बाद कई प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसके प्रयोग को सीमित किया है। इसके उपयोग से संबंधित दिशा-निर्देशों की समीक्षा समय-समय पर की जाती रही है।
चाइनीज़ फास्ट फूड में सामान्यतः प्रयुक्त मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) एक स्वादवर्धक रसायन है, जिसे ‘अजीनोमोटो’ भी कहा जाता है। यह रसायन खाने में ‘उमामी’ स्वाद लाने के लिए डाला जाता है, परंतु इससे जुड़ी स्वास्थ्य चिंताएँ लगातार सामने आती रही हैं। कुछ व्यक्तियों में इसके सेवन के बाद सिरदर्द, पसीना आना, घबराहट, सीने में जकड़न और मतली जैसे लक्षण देखे गए हैं, जिसे सामूहिक रूप से ‘चीनी भोजन सिंड्रोम’ कहा गया है। वर्ष 2015 में भारत सरकार ने तत्कालीन एक प्रसिद्ध नूडल ब्रांड से संबंधित विवाद के बाद एमएसजी के लेबलिंग और परीक्षण के नियमों को कठोर किया। यद्यपि यह रसायन पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है, फिर भी वैज्ञानिक और चिकित्सक बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए इसके सीमित उपयोग की सलाह देते हैं। यह भी सिद्ध हुआ है कि इसके अत्यधिक प्रयोग से मस्तिष्क में रसायनिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
प्रश्न 74. कार्बनिक प्रकाश उत्सर्जी डायोड (ऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड/OLED) का उपयोग बहुत से साधनों में अंकीय प्रदर्श (डिजिटल डिस्प्ले) सर्जित करने के लिए किया जाता है। द्रव क्रिस्टल प्रदर्शों की तुलना में OLED प्रदर्श किस प्रकार लाभकारी हैं?
1. OLED प्रदर्श नम्य प्लास्टिक अवस्तरों पर संविरचित किए जा सकते हैं।
2. OLED के प्रयोग से, वस्त्र में अंतःस्थापित उपरिवेल्लनीय प्रदर्श (रोल्ड-अप डिस्प्ले) बनाए जा सकते हैं।
3. OLED के प्रयोग से, पारदर्शी प्रदर्श संभव हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त कथनों में से कोई भी सही नहीं है
उत्तर: (c)
OLED प्रदर्श का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इन्हें लचीली, नम्य प्लास्टिक अवस्तरों पर लागू किया जा सकता है। यह लचीलापन उन्हें विभिन्न प्रकार के उपकरणों और वस्त्रों में लागू करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण स्वरूप, स्मार्टफोन के बाद, अब इस तकनीक का उपयोग पहनने योग्य उपकरणों, लचीली स्क्रीन वाली घड़ियों और स्मार्ट कपड़ों में भी हो रहा है। LCD प्रदर्श की तुलना में OLED अधिक हल्के और पतले होते हैं, जो इनके उपयोग को अधिक आसान बनाता है। इसके साथ ही, OLED प्रदर्श में बेहतर रंग विपर्यय और उच्च गुणवत्ता वाली छवियाँ प्रदर्शित करने की क्षमता होती है, जो इन्हें उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में एक आदर्श विकल्प बनाती है।
OLED तकनीक की एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसका उपयोग रोल करने योग्य डिस्प्ले (rollable display) के निर्माण में किया जा सकता है। यह तकनीक स्मार्ट डिवाइसों में आकार और डिज़ाइन की सीमाओं को समाप्त करती है, जिससे नए उत्पादों की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त होता है। उदाहरण के लिए, रोल करने योग्य डिस्प्ले का उपयोग स्मार्टफोन के डिज़ाइन में किया जा सकता है, जो आकार में लचीला हो और उपयोगकर्ता की आवश्यकता के अनुसार बड़ा या छोटा हो सके। इसी प्रकार, यह टेक्नोलॉजी अन्य पहनने योग्य गैजेट्स, जैसे कि स्मार्ट जैकेट्स और अन्य वस्त्रों में भी उपयोगी हो सकती है। यह डिस्प्ले क्षमता उत्पादों को पोर्टेबल, उपयोगकर्ता के अनुकूल और अधिक गतिशील बनाती है।
पारदर्शी OLED डिस्प्ले की क्षमता भी इस तकनीक का एक प्रमुख लाभ है। पारदर्शी डिस्प्ले का उपयोग स्मार्ट विंडो और स्मार्ट ग्लास में किया जा सकता है, जो पारंपरिक कांच की तुलना में अधिक कार्यक्षम होते हैं। इस प्रकार के डिस्प्ले के माध्यम से, घरों, कार्यालयों और वाहनों में प्राकृतिक रोशनी को अंदर लाया जा सकता है, जबकि बाहर से आ रही जानकारी या दृश्य प्रदर्शित की जा सकती है। पारदर्शी OLED तकनीक का उपयोग स्मार्ट कारों में किया जा सकता है, जहाँ ड्राइवर को गाड़ी के बाहर के दृश्य के साथ-साथ गाड़ी के अंदर की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। यह तकनीक भविष्य में स्मार्ट सिटीज़ और इंटेलिजेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भी अनुकूल साबित हो सकती है।
प्रश्न 75. निम्नलिखित में से कौन-सा/से सूर्य मंदिरों के लिए विख्यात है/हैं?
1. अरसवल्ली
2. अमरकंटक
3. ओंकारेश्वर
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
अरसवल्ली सूर्य मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित है और यह सूर्य पूजा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और यहाँ पर सूर्य की पूजा की जाती है। इस मंदिर की वास्तुकला अत्यंत अद्भुत है, जो सूर्य देवता के प्रकाश से संबंधित है। यहाँ विशेष रूप से सूर्य के उगने और अस्त होने के समय में सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं, जो इस स्थल को अद्वितीय बनाती हैं। यह मंदिर 7वीं शताब्दी के आसपास स्थापित हुआ था और यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अरसवल्ली सूर्य मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व स्थानीय लोगों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
अमरकंटक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जो मुख्य रूप से नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। अमरकंटक में सूर्य देवता की पूजा का कोई विशेष संदर्भ नहीं है। यहाँ का मुख्य आकर्षण नर्मदा मंदिर और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर हैं। हालांकि यहाँ पर धार्मिक गतिविधियाँ प्रचलित हैं, लेकिन यह सूर्य पूजा के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध नहीं है। अमरकंटक की भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए यहाँ का महत्व मुख्य रूप से नर्मदा की पवित्रता से जुड़ा हुआ है, न कि सूर्य पूजा से।
ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश में स्थित एक प्रमुख शिव तीर्थ स्थल है, जहाँ भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। यह स्थल खासतौर पर ओंकारेश्वर और मातरिणेत्रा के रूप में प्रसिद्ध है, जो शिव पूजा के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहाँ पर सूर्य देवता के मंदिर या सूर्य पूजा से संबंधित कोई खास परंपरा नहीं है। ओंकारेश्वर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है, लेकिन यह सूर्य पूजा के संदर्भ में अरसवल्ली सूर्य मंदिर के समान प्रसिद्ध नहीं है। यहाँ के श्रद्धालु शिव की उपासना करते हैं, जो इस स्थल के प्रमुख धार्मिक कारणों में से एक है।
प्रश्न 76. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. लोक सभा अथवा राज्य की विधान सभा के निर्वाचन में, जीतने वाले उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किए जाने के लिए, किए गए मतदान का कम-से-कम 50 प्रतिशत पाना अनिवार्य है।
2. भारत के संविधान में अधिकथित उपबंधों के अनुसार, लोक सभा में अध्यक्ष का पद बहुमत वाले दल को जाता है तथा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
लोक सभा अथवा राज्य विधान सभा के निर्वाचन में जीतने वाले उम्मीदवार को 50 प्रतिशत वोट प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है। भारतीय चुनाव प्रणाली ‘पहले पास द पोस्ट’ (First-Past-The-Post) प्रणाली पर आधारित है, जिसमें उम्मीदवार को केवल सबसे अधिक वोट प्राप्त करना आवश्यक होता है, न कि 50 प्रतिशत से अधिक। उदाहरण के लिए, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में कई उम्मीदवार होते हैं, तो उम्मीदवार को अधिकतम वोट प्राप्त करने पर ही विजयी घोषित किया जाता है, भले ही वह 50 प्रतिशत से कम वोट प्राप्त करें। इसलिए, यह कथन तथ्यात्मक रूप से गलत है, क्योंकि चुनाव परिणाम केवल अधिकतम वोट पर निर्भर होते हैं।
भारत के संविधान में लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों के लिए कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है कि अध्यक्ष का पद बहुमत वाले दल को मिलेगा और उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को। लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव सदन के सभी निर्वाचित सदस्य करते हैं और यह चुनाव बहुमत के आधार पर होते हैं। अध्यक्ष का चुनाव गैर-राजनीतिक भूमिका में होता है और उसे सदन की कार्यवाही को निष्पक्ष रूप से चलाने का कार्य सौंपा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 93 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव स्वतंत्र रूप से होता है और यह किसी पार्टी या गठबंधन की शक्ति पर निर्भर नहीं होता।
भारत के संविधान में यह प्रावधान नहीं है कि लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव केवल बहुमत वाले दल या विपक्ष द्वारा किया जाएगा। संविधान में यह भी नहीं कहा गया है कि उम्मीदवार को 50 प्रतिशत वोट प्राप्त करना अनिवार्य है। यह दोनों पद, यानी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, सदन के सदस्य द्वारा निर्वाचित होते हैं और उनका चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत होता है। संविधान में यह सुनिश्चित किया गया है कि दोनों पदों पर चुनाव पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से किए जाएं। अतः, यह कथन संविधान की वास्तविकता से मेल नहीं खाता।
प्रश्न 77. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत में 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद घटित हुआ/हुए है/हैं?
1. GDP में कृषि का अंश बृहत् रूप से बढ़ गया।
2. विश्व व्यापार में भारत के निर्यात का अंश बढ़ गया।
3. FDI का अंतर्वाह (इनफ्लो) बढ़ गया।
4. भारत का विदेशी विनिमय भण्डार बृहत् रूप से बढ़ गया।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र में GDP का अंश काफी हद तक स्थिर रहा, बल्कि यह घटा भी। इस समय कृषि क्षेत्र के विकास के लिए ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, जिससे कृषि का योगदान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कम हो गया। भारतीय अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र, जैसे उद्योग और सेवा क्षेत्र, को अधिक प्राथमिकता दी गई, जिसके कारण इन क्षेत्रों का योगदान बढ़ा। कृषि में तकनीकी नवाचार और बाजार से जुड़ाव की कमी के कारण इसकी वृद्धि सीमित रही। इस प्रकार, कृषि क्षेत्र में सुधार का कोई बड़ा प्रभाव देखने को नहीं मिला।
भारत में 1991 के सुधारों ने वैश्विक व्यापार में भारत के निर्यात का हिस्सा बढ़ाया। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के साथ भारत के जुड़ाव और व्यापारिक बाधाओं को घटाने के साथ ही भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि हुई। इसके साथ ही, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सेवा क्षेत्र, जैसे सॉफ़्टवेयर निर्यात, ने वैश्विक बाजार में भारत की उपस्थिति को मजबूती दी। भारतीय कंपनियां अब अधिक प्रभावशाली और प्रतिस्पर्धी बन गईं, जिससे निर्यात में बृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप भारत का वैश्विक व्यापार में हिस्सा बढ़ा, विशेष रूप से टेक्नोलॉजी आधारित उद्योगों में।
आर्थिक सुधारों के बाद, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए कई आकर्षक नीतियां बनाई, जैसे कि सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण और विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहन देना। इसके परिणामस्वरूप, विदेशी कंपनियों ने भारत में निवेश करना शुरू किया, जिससे न केवल पूंजी प्रवाह बढ़ा, बल्कि भारतीय उद्योगों में भी नवीनतम तकनीकी विकास और उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई। FDI के बढ़ते प्रवाह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धात्मक बनाया और वैश्विक मंच पर भारतीय कंपनियों की स्थिति मजबूत की।
1991 के सुधारों का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव भारत के विदेशी विनिमय भंडार में वृद्धि था। विदेशी निवेश के कारण विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ा, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त भंडार जमा हुआ। इसके अलावा, बढ़ते निर्यात और विदेशी सहायता के कारण भी भंडार में वृद्धि हुई। यह भंडार भारत की वित्तीय स्थिरता और भुगतान संतुलन को मजबूत करने में सहायक रहा, जो आर्थिक संकटों से निपटने में मददगार साबित हुआ।
प्रश्न 78. कायिक कोशिका न्यूक्लीय अंतरण प्रौद्योगिकी (सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रान्सफ़र टेक्नोलॉजी) का अनुप्रयोग क्या है?
(a) जैव-डिम्भनाशी का उत्पादन
(b) जैव-निम्नीकरणीय प्लास्टिक का निर्माण
(c) जंतुओं की जननीय क्लोनिंग
(d) रोग मुक्त जीवों का उत्पादन
उत्तर: (c)
कायिक कोशिका न्यूक्लीय अंतरण प्रौद्योगिकी (Somatic Cell Nuclear Transfer, SCNT) एक उन्नत जैव-प्रौद्योगिकी विधि है जिसका मुख्य उद्देश्य जंतुओं की क्लोनिंग करना है। इसमें किसी विकसित जंतु की कोशिका से प्राप्त न्यूक्लियस को निषेचित अंडाणु में स्थानांतरित किया जाता है, जिससे एक नए जंतु का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक प्रजनन के बजाय पूरी तरह से प्रयोगशाला में होती है। SCNT का पहला सफल प्रयोग 1996 में डॉ. इयान विलमुट द्वारा डाली नामक भेड़ के क्लोनिंग में हुआ था, जो जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इस तकनीक के माध्यम से, वैज्ञानिकों को यह समझने का मौका मिला कि कैसे किसी जंतु के आनुवंशिकी गुणसूत्रों को पुनः उत्पन्न किया जा सकता है।
SCNT का अनुप्रयोग कृषि और पशुपालन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा जंतु प्रजनन को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त पशु उत्पन्न किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे गाय या बकरियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं, जो उच्चतम दूध उत्पादन क्षमता के साथ-साथ स्वस्थ और रोगमुक्त हों। इसके अलावा, यह तकनीक प्रजनन के समय में भी सुधार कर सकती है, जिससे पशुपालन में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार, SCNT कृषि उत्पादन में स्थिरता और उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने का एक कारगर उपाय बन सकता है।
इस तकनीक का एक अन्य उपयोग चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भी होता है। SCNT द्वारा उत्पन्न किए गए जंतु जैविक रूप से समान होते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को शारीरिक अंगों और कोशिकाओं पर विशेष अध्ययन करने का अवसर मिलता है। यह चिकित्सा अनुसंधान में उपचार के नए तरीके खोजने में मदद कर सकता है, जैसे अंग प्रत्यारोपण और आनुवंशिक विकारों का इलाज। इसके अलावा, SCNT का प्रयोग जीन चिकित्सा और रोग मुक्त जंतुओं के उत्पादन में भी किया जा सकता है, जिससे चिकित्सा और जैविक उपचारों की दिशा में नई उम्मीदें उत्पन्न होती हैं।
SCNT का उपयोग विलुप्त प्रजातियों की पुनरुत्थान में भी किया जा सकता है। यदि किसी प्रजाति का जंतु जैविक रूप से समाप्त हो चुका हो, तो उसका डीएनए संग्रह करके SCNT तकनीक के माध्यम से पुनः उत्पन्न किया जा सकता है। इस प्रकार, यह जैविक विविधता को संरक्षित करने और विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका बन सकता है। यह प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र की संतुलन बनाए रखने में भी सहायक हो सकती है।
प्रश्न 79. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया/NPCI) देश में वित्तीय समावेशन के संवर्धन में सहायता करता है।
2. NPCI ने एक कार्ड भुगतान स्कीम RuPay प्रारंभ की है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) ने भारतीय वित्तीय प्रणाली को प्रौद्योगिकी के माध्यम से एक नया दिशा दी है। यह भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय बैंकों के सहयोग से स्थापित किया गया था। NPCI का मुख्य उद्देश्य सुरक्षित, सरल और सस्ता भुगतान ढांचा प्रदान करना है, जो भारतीय समाज में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में मदद करे। इसके द्वारा चलाए जा रहे प्रमुख उत्पाद जैसे UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस), IMPS (इंस्टैंट पेमेंट सर्विस) और AEPS (आधार सक्षम भुगतान प्रणाली) ने डिजिटल भुगतान को आम नागरिकों के लिए सुलभ बनाया है। 2012 में NPCI ने RuPay कार्ड को लॉन्च किया, जिससे भारत में भुगतान प्रणाली में एक नई क्रांति आई।
RuPay कार्ड भारतीय बाजार में एक स्वदेशी भुगतान प्रणाली के रूप में उत्पन्न हुआ, जिसे NPCI ने 2012 में प्रारंभ किया था। इसका उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं को सुरक्षित और किफायती भुगतान विकल्प प्रदान करना था। RuPay कार्ड का प्रमुख लाभ यह है कि यह भारत में ही निर्मित है और इसका शुल्क अन्य अंतरराष्ट्रीय कार्ड नेटवर्क से कम है। RuPay कार्ड की सुविधा ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता और समावेशन को बढ़ावा दिया है। इस कार्ड के माध्यम से बैंक खाते से जुड़े भुगतान, ऑनलाइन शॉपिंग और अन्य वित्तीय गतिविधियाँ आसानी से की जा सकती हैं। इसके अलावा, यह कार्ड भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर काम करता है, जो भारत को वित्तीय आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाता है।
NPCI ने केवल भुगतान प्रणालियाँ ही नहीं विकसित की हैं, बल्कि उसने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उदाहरण के तौर पर, आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AEPS) को विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए लॉन्च किया गया। इसके माध्यम से, बिना किसी बैंक शाखा में गए लोग अपने आधार नंबर के माध्यम से लेन-देन कर सकते हैं। इसके साथ ही, NPCI ने UPI के रूप में एक प्रणाली प्रस्तुत की, जो भुगतान प्रक्रिया को बहुत ही सरल और त्वरित बना देती है। UPI ने भारत में डिजिटल भुगतान की व्यापकता को बढ़ाया और अब यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली पेमेंट प्लेटफ़ॉर्म बन गई है।
NPCI का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में डिजिटल भुगतान के रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। UPI के माध्यम से किए गए लेन-देन में निरंतर वृद्धि हुई है और आज यह भारत की प्रमुख भुगतान विधि बन चुकी है। NPCI ने भारतीय उपभोक्ताओं को डिजिटल वित्तीय सेवाओं का एक सस्ता और सुरक्षित विकल्प प्रदान किया है, जिससे न केवल देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है, बल्कि यह वित्तीय समावेशन की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।
प्रश्न 80. M-STrIPES’ शब्द कभी-कभी समाचारों में किस सन्दर्भ में देखा जाता है?
(a) वन्य प्राणिजात का बद्ध प्रजनन
(b) बाघ अभयारण्यों का रख-रखाव
(c) स्वदेशी उपग्रह दिक्चालन प्रणाली
(d) राष्ट्रीय राजमार्गों की सुरक्षा
उत्तर: (b)
M-STrIPES (Monitoring System for Tigers – Intensive Protection and Ecological Status) भारत में बाघों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और अत्याधुनिक प्रणाली है, जिसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा 2008 में स्थापित किया गया। यह प्रणाली बाघों के संरक्षण हेतु अभयारण्यों में बाघों के स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा की निगरानी करती है। M-STrIPES के तहत, बाघों के स्थानिक वितरण, उनकी संख्या और उनके पर्यावरणीय स्थिति पर निगरानी रखी जाती है, ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके द्वारा बाघों की स्थिति की वास्तविक समय में जानकारी प्राप्त होती है, जिससे अभयारण्यों में त्वरित और प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं।
इस प्रणाली का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह बाघों के शिकार और उनके प्राकृतिक आवासों में अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को सशक्त बनाती है। M-STrIPES प्रणाली ने बाघों के संरक्षण के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया है, जिससे सुरक्षा कर्मियों को प्रतिदिन की निगरानी में मदद मिलती है। यह प्रणाली अभयारण्यों के विभिन्न पहलुओं पर डेटा एकत्र करती है, जैसे बाघों की संख्या, उनके शिकार की स्थिति और पर्यावरणीय परिवर्तन। इस डेटा का विश्लेषण कर, बाघों की सुरक्षा में आने वाली किसी भी चुनौती का समय रहते समाधान किया जा सकता है, जिससे उनके प्राकृतिक आवासों को भी सुरक्षित रखा जा सके।
M-STrIPES प्रणाली न केवल बाघों की सुरक्षा में मदद करती है, बल्कि यह उनके पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति का भी गहन अध्ययन करती है। बाघों की स्थितियों की नियमित निगरानी से यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनकी सुरक्षा के लिए किए गए उपाय प्रभावी हों। बाघों के संरक्षण को लेकर कई अभयारण्यों में बाघों के स्वास्थ्य, प्रजनन और अन्य पारिस्थितिकी कारकों पर डेटा एकत्र किया जाता है। इस प्रणाली के माध्यम से, संरक्षण अधिकारियों को बाघों के संबंध में समय रहते जानकारी मिलती है, जिससे वे त्वरित निर्णय लेकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। M-STrIPES की सहायता से बाघों के संरक्षण में किए गए प्रयासों में सुधार हुआ है और बाघों की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है।
M-STrIPES प्रणाली ने बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े न केवल बाघों की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं, बल्कि बाघों के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलावों के बारे में जानकारी भी प्रदान करते हैं। इस प्रणाली की मदद से बाघों की सुरक्षा के उपायों को और अधिक प्रभावी बनाया गया है।
प्रश्न 81. ‘वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स ऐंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)’ के क्रियान्वित किए जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभक्या है/हैं?
1. यह भारत में बहु-प्राधिकरणों द्वारा वसूल किए जा रहे बहुल करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित करेगा।
2. यह भारत के ‘चालू खाता घाटे’ को प्रबलता से कम कर उसके विदेशी मुद्रा भण्डार को बढ़ाने हेतु उसे सक्षम बनाएगा।
3. यह भारत की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि और आकार को बृहद् रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकल जाने योग्य बनाएगा।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
वस्तु एवं सेवा कर (GST) का उद्देश्य भारत में कर प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाना था। इससे पहले विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा अलग-अलग करों का संग्रहण होता था, जिससे व्यापारियों को जटिलताओं का सामना करना पड़ता था। GST के लागू होने के बाद, विभिन्न करों को एकीकृत किया गया, जिससे व्यापारियों के लिए पूरे देश में सामान और सेवाओं की आपूर्ति में समान कर दरें लागू हो गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब व्यापारियों को राज्य दरों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं रही। GST ने कर संग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाया और एकल बाजार के निर्माण में मदद की। इसका मुख्य लाभ यह था कि अब भारत में एक सामान्य कर प्रणाली स्थापित हो गई, जिससे देश भर में व्यापार के लिए समान अवसर उपलब्ध हुए।
GST के लागू होने से भारतीय अर्थव्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव हुए। इससे व्यापारिक गतिविधियाँ और आंतरिक व्यापार में पारदर्शिता बढ़ी, जिससे काले धन और भ्रष्टाचार में कमी आई। अब हर व्यापारिक लेन-देन का रिकॉर्ड डिजिटल रूप से रखा जाता है, जिससे कर चोरियों को रोकने में मदद मिलती है। GST से उपभोक्ताओं को भी लाभ हुआ क्योंकि इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में कमी आई। उदाहरण स्वरूप, पहले विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न प्रकार के कर लगाए जाते थे, जिससे उत्पादों की कीमतें अधिक होती थीं। अब GST के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं पर एक समान कर दरें लागू होने के कारण उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर सामान मिला। यह सुधार न केवल व्यापारियों को फायदा पहुंचाता है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी राहत प्रदान करता है।
वस्तु एवं सेवा कर ने भारतीय व्यापार व्यवस्था में सुधार किया है, जिससे विभिन्न व्यापारिक प्रक्रियाओं को सरल किया गया है। पहले कई राज्य सरकारें अलग-अलग कर वसूलती थीं, जिससे व्यापारियों को कई स्तरों पर करों का भुगतान करना पड़ता था। GST के लागू होने से इन सभी जटिलताओं को समाप्त किया गया और अब व्यापारियों को केवल एक ही कर प्रणाली का पालन करना होता है। इससे व्यापार में तरलता और पारदर्शिता बढ़ी, जिससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक सकारात्मक वातावरण बना। इस प्रक्रिया ने न केवल व्यापारियों को लाभ पहुँचाया, बल्कि इसके द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है और व्यापार को बढ़ावा मिला है। GST ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मजबूत आधार तैयार किया है।
प्रश्न 82. ‘व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट ऐग्रीमेंट/BTIA)’ कभी-कभी समाचारों में भारत और निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के सन्दर्भ में दिखाई पड़ता है?
(a) यूरोपीय संघ
(b) खाड़ी सहयोग परिषद्
(c) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन
(d) शंघाई सहयोग संगठन
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (BTIA) पर वार्ता महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के व्यापारिक रिश्तों को सुदृढ़ करने के संदर्भ में की जाती है। BTIA का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच व्यापारिक अवरोधों को समाप्त करना, निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित करना और आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देना है। यूरोपीय संघ और भारत के बीच यह समझौता विभिन्न व्यापारिक समस्याओं को हल करने, सामान्य मानकों को स्थापित करने और एक व्यापक, साझा व्यापारिक नीति के निर्माण पर केंद्रित है। BTIA यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों को और गहरा करने में सहायक है और भारत के लिए यूरोपीय बाजारों में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, इस करार से नई प्रौद्योगिकियों और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग की संभावनाएँ प्रबल होती हैं।
विकल्प (b) गलत है: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ भारत की आर्थिक साझेदारी मुख्य रूप से ऊर्जा, विशेषकर तेल और गैस और श्रमिक प्रवासन पर आधारित है। GCC देशों के साथ भारत ने व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने के लिए विशेष समझौते किए हैं, लेकिन BTIA जैसा व्यापार और निवेश समझौता इस परिषद के साथ नहीं हुआ है। GCC देशों के साथ भारत की प्राथमिक वार्ताएँ ऊर्जा सुरक्षा, श्रमिकों की आवाजाही और समग्र आर्थिक सहयोग पर केंद्रित रहती हैं। इस प्रकार, खाड़ी देशों के साथ व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (BTIA) का कोई विशेष उदाहरण नहीं है।
विकल्प (c) गलत है: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जो वैश्विक आर्थिक नीति, विकासशील देशों के लिए दिशानिर्देश और वैश्विक व्यापार नीतियों के सुधार पर काम करता है। हालांकि भारत और OECD के बीच व्यापारिक सहयोग है, लेकिन व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (BTIA) पर बातचीत नहीं होती है। OECD का कार्यक्षेत्र ज्यादा व्यापक है और इसका ध्यान वैश्विक अर्थव्यवस्था, नीति सुधार और समावेशी विकास पर होता है, जबकि BTIA जैसी संधियाँ आमतौर पर व्यापारिक रिश्तों को सुदृढ़ करने के लिए प्रमुख द्विपक्षीय व्यापारिक साझेदारों के साथ होती हैं।
विकल्प (d) गलत है: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के बीच मुख्य रूप से सामरिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। SCO का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी उपायों और सामूहिक नीति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना है। SCO में व्यापार और निवेश पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और इस संगठन के सदस्य देशों के बीच व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (BTIA) पर बातचीत नहीं की जाती है। SCO देशों के बीच व्यापारिक सहयोग अधिकतर राजनीतिक और सुरक्षा उद्देश्यों के तहत होता है, न कि व्यापारिक साझेदारी के लिए।
प्रश्न 83. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारत ने WTO के व्यापार सुकर बनाने के करार (TFA) का अनुसमर्थन किया है।
2. TFA, WTO के बाली मंत्रिस्तरीय पैकेज 2013 का एक भाग है।
3. TFA, जनवरी 2016 में प्रवृत्त हुआ।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
कथन 1 सही है: भारत ने WTO के व्यापार सुकर बनाने के करार (Trade Facilitation Agreement – TFA) को 22 अप्रैल 2016 को अनुमोदित किया। यह समझौता WTO के सदस्य देशों के लिए व्यापार प्रक्रियाओं में सुधार लाने का प्रयास करता है, ताकि व्यापार में आ रही देरी को कम किया जा सके और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावी तरीके से संचालित किया जा सके। TFA का मुख्य उद्देश्य सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाना है, जो व्यापारियों के लिए लागत में कमी और दक्षता में वृद्धि करता है। भारत का इसमें अनुमोदन, इस समझौते के उद्देश्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस प्रकार, यह कथन सही है।
कथन 2 सही है: TFA, WTO के बाली मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 2013 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जहाँ यह समझौता कई व्यापारिक मुद्दों के समाधान के रूप में सामने आया था। बाली पैकेज के तहत मुख्य रूप से विकसित और विकासशील देशों के लिए सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में सुधार के उपायों पर जोर दिया गया था। TFA को विशेष रूप से व्यापार की गति में सुधार लाने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया था, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की प्रक्रिया में आसानी हो और व्यापारिक देरी को कम किया जा सके। यह सम्मेलन वैश्विक व्यापार सुधारों के दृष्टिकोण से मील का पत्थर साबित हुआ। इसलिए, यह कथन भी सही है।
कथन 3 गलत है क्योंकि TFA जनवरी 2016 में लागू नहीं हुआ था। दरअसल, TFA का आधिकारिक प्रवर्तन 22 फरवरी 2017 में हुआ, जब इसके 110 WTO सदस्य देशों ने इस समझौते को अनुमोदित किया और इसे लागू करने के लिए आवश्यक न्यूनतम संख्या पूरी की। इसके बाद ही यह समझौता प्रभावी हुआ। 2016 में इसे अनुमोदित करने की प्रक्रिया थी, लेकिन इसकी पूर्ण प्रभावशीलता 2017 में ही आई।
प्रश्न 84. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?
(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिए भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है: चाबहार बंदरगाह का उद्देश्य अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में वृद्धि करना नहीं है। यह बंदरगाह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक भारत की पहुंच को सुगम बनाता है, जिससे भारत को इन क्षेत्रों से व्यापार में आसानी होती है। चाबहार का विकास मुख्य रूप से भारत को पाकिस्तान से मुक्त करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया से सीधी कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए किया गया है, न कि अफ्रीकी देशों से व्यापार को बढ़ावा देने के लिए। अतः, यह कथन गलत है।
विकल्प (b) गलत है: हालांकि चाबहार बंदरगाह से भारत को तेल-उत्पादक अरब देशों से व्यापार बढ़ाने का अवसर मिल सकता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भारत और अफगानिस्तान के बीच कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करना है, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ सके। चाबहार बंदरगाह मध्य एशिया तक भारत की पहुँच को आसान बनाता है, जिससे पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद से बचते हुए व्यापारिक संबंध स्थापित किए जा सकते हैं।
विकल्प (c) सही है: चाबहार बंदरगाह का मुख्य उद्देश्य भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी पहुँच देना है, जिससे भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। चाबहार के विकास से भारत को पाकिस्तान के माध्यम से होने वाली व्यापारिक बाधाओं से छुटकारा मिलता है। यह बंदरगाह भारत को एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं होती।
विकल्प (d) गलत है: चाबहार बंदरगाह का उद्देश्य गैस पाइपलाइन परियोजना के निर्माण को सुगम बनाना नहीं है। यह मुख्य रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक मार्ग को सुदृढ़ करने के लिए स्थापित किया गया है। चाबहार बंदरगाह का प्राथमिक उद्देश्य मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंच को सुविधाजनक बनाना है, न कि गैस पाइपलाइन परियोजनाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
प्रश्न 85. भारत में, साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिए विधितः अधिदेशात्मक है/हैं?
1. सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर)
2. डेटा सेंटर
3. कॉर्पोरेट निकाय (बॉडी कॉर्पोरेट)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं की रिपोर्टिंग के संबंध में सेवाप्रदाताओं, डेटा सेंटरों और कॉर्पोरेट निकायों को एक कानूनी दायित्व सौंपा गया है। यह दायित्व मुख्य रूप से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत CERT-In (Indian Computer Emergency Response Team) के माध्यम से लागू किया जाता है। 2020 में CERT-In द्वारा जारी किए गए नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, सभी सेवाप्रदाताओं, डेटा सेंटरों और कॉर्पोरेट निकायों को साइबर सुरक्षा घटनाओं की रिपोर्ट CERT-In को तुरंत करने का आदेश है। यह दिशा-निर्देश साइबर सुरक्षा की गंभीरता को समझते हुए, राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस रिपोर्टिंग के माध्यम से देशभर में साइबर खतरों की त्वरित पहचान और प्रतिक्रिया संभव हो पाती है, जो डेटा उल्लंघनों और अन्य साइबर अपराधों से सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
साइबर सुरक्षा घटनाओं की रिपोर्टिंग का यह कदम डेटा सेंटरों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि वे विभिन्न प्रकार के संवेदनशील और व्यक्तिगत डेटा का भंडारण करते हैं। यदि कोई डेटा सेंटर साइबर हमले या उल्लंघन का शिकार होता है, तो इसका सीधा प्रभाव न केवल उस सेंटर के ग्राहकों पर बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी पड़ सकता है। 2020 में CERT-In के दिशा-निर्देशों के तहत, इन डेटा सेंटरों को सभी साइबर घटनाओं की रिपोर्ट CERT-In को दी जानी अनिवार्य है, ताकि त्वरित कार्रवाई की जा सके और सुरक्षा खामियों को जल्द से जल्द दूर किया जा सके। यह कदम डेटा सेंटरों में न केवल सुरक्षा प्रक्रियाओं को मजबूत करता है, बल्कि उन घटनाओं से संबंधित सभी जानकारी का एकत्रीकरण भी सुनिश्चित करता है, जो भविष्य में खतरों से निपटने में सहायक साबित होता है।
कॉर्पोरेट निकायों के लिए भी साइबर घटनाओं की रिपोर्टिंग अनिवार्य की गई है। कंपनियां आमतौर पर बड़ी मात्रा में वित्तीय, व्यापारिक और ग्राहक संबंधी जानकारी का संग्रहण करती हैं। साइबर हमले इन सूचनाओं के चोरी या क्षति का कारण बन सकते हैं, जो किसी भी संगठन की वित्तीय स्थिति और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस संदर्भ में, भारत सरकार ने 2020 में साइबर सुरक्षा नीति के तहत कॉर्पोरेट निकायों को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वे किसी भी साइबर घटना को तत्काल CERT-In को रिपोर्ट करें। इस प्रक्रिया से साइबर सुरक्षा के तंत्र को त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है, जिससे इन घटनाओं के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह कदम डिजिटल पर्यावरण में स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कंपनियों के डेटा उल्लंघन से न केवल आंतरिक बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
प्रश्न 86. भारत में मताधिकार और निर्वाचित होने का अधिकार
(a) मूल अधिकार है
(b) नैसर्गिक अधिकार है
(c) संवैधानिक अधिकार है
(d) विधिक अधिकार है
उत्तर: (c)
भारत में मताधिकार और निर्वाचित होने का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है और यह भारतीय नागरिकों के लिए एक संवैधानिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत, सभी भारतीय नागरिकों को 18 वर्ष की आयु के बाद मतदान का अधिकार प्राप्त है, जो उन्हें अपने प्रतिनिधियों को चुनने में सक्षम बनाता है। यह अधिकार भारतीय लोकतंत्र के केंद्रीय स्तंभों में से एक है, क्योंकि यह नागरिकों को उनके अधिकारों का उपयोग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनने का अवसर प्रदान करता है। इस अधिकार का पालन चुनाव आयोग द्वारा सुनिश्चित किया जाता है, जो चुनावों के निष्पक्ष और स्वतंत्र संचालन की जिम्मेदारी लेता है।
निर्वाचित होने का अधिकार भी भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित किया गया है, जो नागरिकों को लोकसभा और राज्यसभा जैसे विभिन्न निर्वाचन पदों पर चुनाव लड़ने का अवसर प्रदान करता है। इसके लिए संविधान में कुछ योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं, जैसे कि उम्मीदवार की न्यूनतम आयु, नागरिकता और अन्य आवश्यकताएँ। उदाहरण के लिए, लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार को कम से कम 25 वर्ष का होना आवश्यक है। यह अधिकार न केवल नागरिकों को सत्ता में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह यह भी सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र में हर वर्ग को अपने अधिकारों के अनुसार प्रतिनिधित्व मिले।
भारतीय संविधान में इस अधिकार को एक स्थायी प्रावधान के रूप में सम्मिलित किया गया है, जिसे संशोधन के माध्यम से भी प्रासंगिक बनाए रखा गया है। 61वां संविधान संशोधन 1988 के द्वारा मतदान की न्यूनतम आयु सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया, जिससे युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर मिला। इसके परिणामस्वरूप, युवाओं के बीच लोकतांत्रिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा मिला, जो भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त बनाता है। यह संवैधानिक अधिकार समय के साथ अपने परिपेक्ष्य में लगातार विकसित होता है।
इस अधिकार के द्वारा भारतीय नागरिकों को न केवल अपनी इच्छाओं और विचारों को व्यक्त करने का अवसर मिलता है, बल्कि यह उनके राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा भी करता है। इसके माध्यम से नागरिकों को अपने शासन को चुनने का और अपनी सरकार के प्रति जवाबदेह बनाने का अधिकार प्राप्त होता है, जो किसी भी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार होता है।
प्रश्न 87. ‘विकसित लेज़र व्यतिकरणमापी अंतरिक्ष ऐन्टेना (इवॉल्वड लेज़र इन्टरफेरोमीटर स्पेस ऐन्टेना/eLISA)’ परियोजना का क्या प्रयोजन है?
(a) न्यूट्रिनों का संसूचन करना
(b) गुरुत्वीय तरंगों का संसूचन करना
(c) प्रक्षेपणास्त्र रक्षा प्रणाली की प्रभावकारिता का संसूचन करना
(d) हमारी संचार प्रणालियों पर सौर प्रज्वाल (सोलर फ्लेयर) के प्रभाव का अध्ययन करना
उत्तर: (b)
विकसित लेज़र व्यतिकरणमापी अंतरिक्ष ऐन्टेना (eLISA) परियोजना का उद्देश्य गुरुत्वीय तरंगों का अध्ययन करना है। गुरुत्वीय तरंगें ब्रह्मांड की सबसे गहरी और शक्तिशाली घटनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं, जैसे कि ब्लैक होल का विलय या न्यूट्रॉन तारों का विस्फोट। ये तरंगें अंतरिक्ष में फैलती हैं, लेकिन पृथ्वी पर इनका पता लगाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। eLISA मिशन इन तरंगों का सटीक रूप से मापने के लिए तीन उपग्रहों का एक नेटवर्क स्थापित करेगा। यह परियोजना गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन में अभूतपूर्व अवसर प्रदान करेगी, जिससे वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के उत्पत्ति और उसके विकास के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त होगी।
eLISA परियोजना, गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन के लिए अत्यधिक संवेदनशील उपकरणों का उपयोग करेगी। यह परियोजना 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर तीन उपग्रहों का नेटवर्क स्थापित करेगी, जो गुरुत्वीय तरंगों के प्रभावों को मापने में सक्षम होंगे। यह मिशन विशेष रूप से गुरुत्वीय तरंगों के माप में एक नई क्रांति ला सकता है, क्योंकि इससे पहले इस तरह की संवेदनशीलता वाला मिशन उपलब्ध नहीं था। यह मिशन ब्रह्मांड के दूरस्थ क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा, जैसे कि ब्लैक होल का विलय या न्यूट्रॉन तारे का विस्फोट। इसके परिणामस्वरूप, वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के जन्म, विकास और उसके सबसे रहस्यमय हिस्सों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी।
eLISA परियोजना का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों का उपयोग करके गुरुत्वीय तरंगों का अध्ययन करेगी, जिससे पृथ्वी आधारित टेलीस्कोपों से प्राप्त जानकारी की सीमाओं को पार किया जा सकेगा। यह मिशन गुरुत्वीय तरंगों की पहचान करने के लिए अत्यधिक संवेदनशील तकनीकों का उपयोग करेगा, जो पहले कभी संभव नहीं था। इससे प्राप्त डेटा ब्रह्मांडीय घटनाओं, जैसे कि ब्लैक होल के मिलन और न्यूट्रॉन तारों के विस्फोट, के बारे में नई जानकारी प्रदान करेगा। यह जानकारी वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड की संरचना और उसके विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद करेगी। 2020 के आस-पास इस परियोजना का शुभारंभ होने की संभावना है और यह भविष्य के वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
इस परियोजना से प्राप्त डेटा का उपयोग न केवल गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन में किया जाएगा, बल्कि यह ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे और अन्य ब्रह्मांडीय घटनाओं के अध्ययन में भी सहायक होगा। eLISA के परिणाम ब्रह्मांड के निर्माण, उसकी संरचना और समय के साथ उसके विकास के बारे में महत्वपूर्ण निष्कर्षों को जन्म देंगे।
प्रश्न 88. ‘विद्यांजलि योजना’ का क्या प्रयोजन है?
1. प्रसिद्ध विदेशी शिक्षण संस्थाओं को भारत में अपने कैम्पस खोलने में सहायता करना।
2. निजी क्षेत्र और समुदाय की सहायता लेकर सरकारी विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना।
3. प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों की आधारिक संरचना सुविधाओं के संवर्धन के लिए निजी व्यक्तियों और संगठनों से ऐच्छिक वित्तीय योगदान को प्रोत्साहित करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (a)
कथन 1 गलत है: विद्यांजलि योजना का उद्देश्य प्रसिद्ध विदेशी शिक्षण संस्थाओं को भारत में अपने कैम्पस खोलने में सहायता देना नहीं है। यह योजना मुख्यतः सरकारी विद्यालयों की बुनियादी सुविधाओं और शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए है। यह योजना 2017 में शुरू की गई थी और इसका लक्ष्य सरकारी विद्यालयों में बुनियादी संरचना में सुधार करना है। विद्यांजलि योजना का उद्देश्य निजी क्षेत्र और समुदाय की भागीदारी के माध्यम से इन विद्यालयों को सशक्त बनाना है, न कि विदेशी शिक्षा संस्थानों को भारत में स्थान देने की योजना बनाना।
कथन 2 सही है: विद्यांजलि योजना का मुख्य उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है। यह योजना निजी क्षेत्र और समुदाय की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती है। निजी व्यक्तियों और संगठनों से ऐच्छिक वित्तीय योगदान लेकर स्कूलों में बुनियादी ढांचे, जैसे पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशालाएं, खेलकूद की सुविधाएं और डिजिटल शिक्षा का समावेश किया जाता है। योजना का उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक माहौल को प्रोत्साहित करना है और शिक्षा को समग्र रूप से सशक्त बनाना है।
कथन 3 गलत है: विद्यांजलि योजना में प्रारंभिक और माध्यमिक विद्यालयों की आधारभूत संरचना सुविधाओं के संवर्धन के लिए निजी व्यक्तियों और संगठनों से ऐच्छिक वित्तीय योगदान को प्रोत्साहित करना एक मुख्य उद्देश्य नहीं है। इस योजना के तहत सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए स्वयंसेवक के रूप में समाज और समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन यह योजना सीधे वित्तीय योगदान पर केंद्रित नहीं है। यह योजना निजी व्यक्तियों से वित्तीय योगदान की बजाय उनके समय और कौशल से समर्थन की अपेक्षाएँ करती है।
प्रश्न 89. ‘उन्नत भारत अभियान’ कार्यक्रम का ध्येय क्या है?
(a) स्वैच्छिक संगठनों और सरकारी शिक्षा तंत्र तथा स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग का प्रोन्नयन कर 100% साक्षरता प्राप्त करना।
(b) उच्च शिक्षा संस्थाओं को स्थानीय समुदायों से जोड़ना जिससे समुचित प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकास की चुनौतियों का सामना किया जा सके।
(c) भारत को वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक शक्ति बनाने के लिए भारत की वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थाओं को सशक्त करना
(d) ग्रामीण और नगरीय निर्धन व्यक्तियों के स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के लिए विशेष निधियों का विनिधान कर मानव पूँजी विकसित करना और उनके लिए कौशल विकास कार्यक्रम तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण आयोजित करना।
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: “उन्नत भारत अभियान” का उद्देश्य स्वैच्छिक संगठनों और सरकारी शिक्षा तंत्र के बीच सहयोग बढ़ाना और 100% साक्षरता प्राप्त करना नहीं है। यह कार्यक्रम, जो 2014 में शुरू किया गया था, मुख्य रूप से उच्च शिक्षा संस्थाओं और स्थानीय समुदायों के बीच समन्वय बढ़ाने पर केंद्रित है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य तकनीकी और शैक्षिक संसाधनों का उपयोग करके स्थानीय समस्याओं का समाधान करना है, ताकि समाज के सभी वर्गों का समग्र विकास हो सके। इसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता के अंतर को कम करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन इसका उद्देश्य साक्षरता दर को सीधे 100% तक पहुंचाना नहीं है।
विकल्प 2 सही है: “उन्नत भारत अभियान” का प्राथमिक उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थाओं को स्थानीय समुदायों से जोड़ना है, जिससे वे तकनीकी समाधान और संसाधनों के माध्यम से विकास की समस्याओं का समाधान कर सकें। इस योजना के तहत, विश्वविद्यालय और कॉलेज अपने ज्ञान, कौशल और शोध का उपयोग करके ग्रामीण और अर्ध-शहरी समुदायों के विकास में योगदान करते हैं। इससे न केवल उच्च शिक्षा संस्थानों का सामाजिक दायित्व बढ़ता है, बल्कि स्थानीय समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीकी सहायता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में लाभ मिलता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय समस्याओं को प्रौद्योगिकी, नवाचार और शोध के माध्यम से हल करना है।
विकल्प 3 और 4 गलत हैं क्योंकि ये “उन्नत भारत अभियान” के उद्देश्य से संबंधित नहीं हैं। यह कार्यक्रम वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थाओं को सशक्त करने या ग्रामीण और नगरीय निर्धन व्यक्तियों के लिए विशेष निधियों का आयोजन करने पर केंद्रित नहीं है। इसके बजाय, यह योजना उच्च शिक्षा संस्थाओं और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और तकनीकी समस्याओं को हल करने के लिए विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को समुदायों से जोड़ना है, जिससे व्यापक और दीर्घकालिक विकास संभव हो सके। यह योजना अधिकतर शिक्षा और तकनीकी नवाचार के संदर्भ में काम करती है, न कि विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल या कौशल विकास पर।
प्रश्न 90. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है।
2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिए चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (d)
कथन 1 गलत है: भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय नहीं है, बल्कि यह त्रि-सदस्यीय आयोग है, जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं। यह आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत गठित किया गया था और भारतीय चुनावों की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का जिम्मेदार है। निर्वाचन आयोग का गठन 1950 में हुआ था और यह भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो चुनावी प्रक्रिया के सभी पहलुओं की निगरानी करता है। आयोग न केवल आम चुनावों बल्कि उप-चुनावों और अन्य चुनावों की भी देखरेख करता है। आयोग के तीन सदस्य निर्वाचन प्रक्रिया को प्रभावी और निष्पक्ष रूप से संचालित करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं।
कथन 2 गलत है: भारत के गृह मंत्रालय का चुनाव कार्यक्रम तय करने से कोई संबंध नहीं है। चुनावों का कार्यक्रम और तिथियाँ पूरी तरह से निर्वाचन आयोग द्वारा तय की जाती हैं। गृह मंत्रालय का कार्य केवल चुनाव के दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखना और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन चुनावी कार्यक्रम का निर्धारण आयोग का अधिकार है। निर्वाचन आयोग स्वतंत्र रूप से चुनावी तिथियाँ और कार्यक्रम तय करता है, ताकि चुनाव की निष्पक्षता पर कोई असर न पड़े। यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव की प्रक्रिया में किसी प्रकार का राजनीतिक दबाव या बाहरी हस्तक्षेप न हो। गृह मंत्रालय का दायित्व केवल चुनावों की सुरक्षा से संबंधित होता है, न कि चुनाव कार्यक्रम के निर्धारण से।
कथन 3 सही है: निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन और विलय से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार रखता है। जब कोई राजनीतिक दल आंतरिक विवादों, जैसे विभाजन या विलय के कारण संकट का सामना करता है, तो आयोग यह निर्धारित करता है कि किस गुट को दल की आधिकारिक मान्यता प्राप्त है और किसे पार्टी का चिन्ह और नाम मिलेगा। यह प्रक्रिया चुनावी पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्टता प्रदान करती है कि चुनाव में किस समूह का प्रतिनिधित्व हो रहा है। यह निर्वाचन आयोग के कर्तव्यों में एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि राजनीतिक दलों के विभाजन या विलय से चुनावी प्रक्रिया में भ्रम और विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
प्रश्न 91. भारत में, यदि कछुए की एक जाति को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के अन्तर्गत संरक्षित घोषित किया गया हो, तो इसका निहितार्थ क्या है?
(a) इसे संरक्षण का वही स्तर प्राप्त है जैसा कि बाघ को।
(b) इसका अब वन्य क्षेत्रों में अस्तित्व समाप्त हो गया है, कुछ प्राणी बंदी संरक्षण के अन्तर्गत हैं; और अब इसके विलोपन को रोकना असंभव है।
(c) यह भारत के एक विशेष क्षेत्र में स्थानिक है।
(d) इस सन्दर्भ में उपर्युक्त (b) और (c) दोनों सही हैं।
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: यदि कछुए की कोई जाति वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित घोषित की जाती है, तो इसका मतलब है कि उस प्रजाति को उच्चतम स्तर का संरक्षण प्राप्त है। अनुसूची 1 में उन प्रजातियों को रखा जाता है जो संकटग्रस्त या विलुप्त होने के खतरे में हैं। इस सूची में बाघ जैसी प्रमुख प्रजातियाँ भी शामिल हैं। इन प्रजातियों के शिकार, व्यापार या शोषण पर कड़ी सजा का प्रावधान है। यह कदम सुनिश्चित करता है कि संबंधित प्रजाति के संरक्षण के लिए सभी संभव प्रयास किए जाएं, जिसमें उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा, पुनर्स्थापना और शिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शामिल है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि जिन प्रजातियों को अनुसूची 1 में स्थान मिलता है, उन्हें बाघ जैसे संकटग्रस्त जानवरों जैसा संरक्षण प्राप्त होता है।
कथन (b) गलत है: अनुसूची 1 में शामिल कोई भी प्रजाति यह संकेत नहीं देती कि उसका अस्तित्व वन्य क्षेत्रों में समाप्त हो चुका है। इस सूची का उद्देश्य प्रजातियों का संरक्षण करना है, न कि यह बताना कि उनकी स्थिति पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। दरअसल, अनुसूची 1 में शामिल प्रजातियों को संरक्षण के लिए सर्वोत्तम उपाय दिए जाते हैं, ताकि उनका अस्तित्व बच सके। इन प्रजातियों के अस्तित्व को बचाने के लिए जैविक और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के उपाय किए जाते हैं। इसका उद्देश्य इन प्रजातियों को शिकार, प्रदूषण और अन्य खतरों से बचाकर उनका अस्तित्व सुनिश्चित करना है। इसलिए, इस तरह का कथन केवल भ्रम उत्पन्न करता है और यह सही नहीं है कि विलोपन को रोकना असंभव हो चुका है।
कथन (c) गलत है: अनुसूची 1 में रखी गई प्रजातियाँ केवल भारत के विशिष्ट क्षेत्र में स्थानिक नहीं होतीं। जबकि कुछ प्रजातियाँ भारत में स्थानिक हो सकती हैं, अनुसूची 1 में रखी गई प्रजातियाँ वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त हो सकती हैं और उनका संरक्षण भारत में भी किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ प्रजातियाँ जो केवल भारत में नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी पाई जाती हैं, उन्हें इस सूची में शामिल किया जा सकता है। इस सूची में केवल भारतीय प्रजातियाँ नहीं, बल्कि वैश्विक संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल होती हैं जिन्हें भारत में संरक्षण की आवश्यकता है। इस प्रकार, यह कहना कि अनुसूची 1 में शामिल प्रजातियाँ केवल भारत के विशिष्ट क्षेत्र में स्थानिक हैं, बिल्कुल गलत है।
प्रश्न 92. भारत में, न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ है-
(a) विधियों और कार्यपालिक आदेशों की सांविधानिकता के विषय में प्राख्यापन करने का न्यायपालिका का अधिकार।
(b) विधानमण्डलों द्वारा निर्मित विधियों के प्रज्ञान को प्रश्नगत करने का न्यायपालिका का अधिकार।
(c) न्यायपालिका का, सभी विधायी अधिनियमनों के, राष्ट्रपति द्वारा उन पर सहमति प्रदान किए जाने के पूर्व, पुनरीक्षण का अधिकार।
(d) न्यायपालिका का, समान या भिन्न वादों में पूर्व में दिए गए स्वयं के निर्णयों के पुनरीक्षण का अधिकार।
उत्तर: (a)
विकल्प (a) सही है: यह कथन न्यायिक पुनरीक्षण की सही और संविधान-सम्मत व्याख्या करता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत न्यायपालिका को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी विधायिका द्वारा पारित कानून या कार्यपालिका द्वारा जारी आदेश की संवैधानिकता की समीक्षा कर सके। यदि कोई कानून संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो न्यायपालिका उसे निरस्त कर सकती है। इसके अलावा, अनुच्छेद 32 और 226 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को यह अधिकार है कि वे किसी विधायिका द्वारा पारित कानून या कार्यपालिका द्वारा पारित आदेश की संवैधानिकता पर प्रकट कर सकें। यह न्यायिक पुनरीक्षण का मूल सिद्धांत है, इसलिए यह कथन सही है।
विकल्प (b) गलत है: यह कथन न्यायिक पुनरीक्षण की प्रक्रिया की गलत व्याख्या करता है। न्यायपालिका का कार्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई कानून या आदेश संविधान के अनुरूप है या नहीं, न कि उसकी बुद्धिमत्ता या नीतिगत औचित्य पर सवाल उठाना। न्यायपालिका को केवल यह अधिकार है कि वह यह जांचे कि क्या कोई कानून मौलिक अधिकारों, संघीय संरचना और संविधान के अन्य महत्वपूर्ण प्रावधानों के खिलाफ है या नहीं। नीति निर्माण का कार्य विधायिका का है और न्यायपालिका उस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करती। इस प्रकार, यह कथन गलत है।
विकल्प (c) गलत है: यह कथन भारत के संविधान में न्यायिक पुनरीक्षण के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है। भारत में न्यायिक पुनरीक्षण पूर्व-प्रवर्तनात्मक (pre-enactment) नहीं, बल्कि उत्तर-प्रवर्तनात्मक (post-enactment) होता है। न्यायपालिका केवल उस विधेयक या आदेश की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है जब वह कानून बनकर लागू हो जाए। राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर सहमति दिए जाने से पहले न्यायपालिका को किसी विधेयक की समीक्षा का अधिकार नहीं है। यह कथन संविधान के आधार पर गलत है, क्योंकि यह न्यायिक पुनरीक्षण के दायरे को अनावश्यक रूप से विस्तारित करता है।
विकल्प (d) गलत है: यह कथन न्यायिक पुनरीक्षण के उद्देश्य और परिभाषा से संबंधित नहीं है। न्यायिक पुनरीक्षण का तात्पर्य केवल विधायिका और कार्यपालिका के आदेशों और कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करना होता है, न कि न्यायपालिका द्वारा अपने ही पूर्ववर्ती निर्णयों की पुनरावलोकन करना। न्यायपालिका के पास अपने निर्णयों की समीक्षा का अधिकार होता है, लेकिन यह न्यायिक पुनरीक्षण का हिस्सा नहीं है। न्यायिक पुनरीक्षण की प्रक्रिया को यह कथन गलत तरीके से प्रस्तुत करता है, क्योंकि यह स्वयं के निर्णयों को पुनः जांचने से संबंधित है। इसलिए यह कथन गलत है।
प्रश्न 93. भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के संबंध में, निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिए:
1. रॉयल इंडियन नेवी में ग़दर
2. भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ
3. द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन
उपर्युक्त घटनाओं का सही कालानुक्रम क्या है?
(a) 1-2-3
(b) 2-1-3
(c) 3-2-1
(d) 3-1-2
उत्तर: (c)
“रॉयल इंडियन नेवी में ग़दर” 1946 में हुआ था, जब भारतीय नौसेना के सैनिकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी, लेकिन इसका कालक्रम 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और 1931 के द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन के बाद था। यह विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीयों के असंतोष का परिणाम था और यह स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष के एक और चरण को दर्शाता है। इसे सबसे पहले रखना गलत है, क्योंकि यह घटना अन्य दोनों घटनाओं के बाद घटी थी। इसलिए इस घटना का कालक्रम पहले स्थान पर होना उचित नहीं है।
भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में महात्मा गांधी द्वारा प्रारंभ किया गया था, जब ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों से बिना उनकी सहमति के सैनिकों को भेजने का निर्णय लिया। गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया, जिससे देश भर में असहमति और विद्रोह की लहर दौड़ गई। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। यह 1931 में द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन और 1946 के रॉयल इंडियन नेवी ग़दर से पहले हुआ, इसलिए इसका कालक्रम दूसरे स्थान पर सही है। यह घटना भारतीय राजनीति में एक नए मोड़ का संकेत थी और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष को और प्रगाढ़ किया।
द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन 1931 में लंदन में आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय राजनीति में ब्रिटिश सरकार के साथ संवाद स्थापित करना था और भारतीयों को अधिक राजनीतिक अधिकार देना था। इस सम्मेलन में महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि यह सम्मेलन भारतीयों की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल रहा, लेकिन इसने भारतीय राजनीति के अगले चरण की दिशा तय की। द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन 1942 में प्रारंभ हुए भारत छोड़ो आंदोलन और 1946 के रॉयल इंडियन नेवी ग़दर से पहले हुआ, इसलिए इसे कालक्रम में तीसरे स्थान पर रखना उपयुक्त है। यह सम्मेलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी में महत्वपूर्ण घटनाओं का हिस्सा था, जो बाद में बढ़ते गए।
प्रश्न 94. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. पिछले दशक में भारत के GDP के प्रतिशत के रूप में कर-राजस्व में सतत वृद्धि हुई है।
2. पिछले दशक में भारत के GDP के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटे में सतत वृद्धि हुई है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
यह कथन गलत है: हालांकि भारत में कर-राजस्व के संग्रह में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन यह सतत नहीं रही है। 2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद, कर-राजस्व में कुछ वृद्धि देखी गई, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण 2020-2021 में राजस्व में भारी गिरावट आई। महामारी के दौरान, आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गईं और सरकार को राहत पैकेज देने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ा, जिससे राजकोषीय घाटा और कर-राजस्व दोनों प्रभावित हुए। इसके बावजूद, सरकार ने सुधारात्मक उपाय किए हैं जैसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज और डिजिटल कर-संग्रहण प्रणाली, लेकिन कर-राजस्व का GDP के प्रतिशत के रूप में लगातार वृद्धि नहीं हुई है।
यह कथन भी गलत है: राजकोषीय घाटा 2014-2019 तक कुछ हद तक नियंत्रित रहा था। इस दौरान सरकार ने राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिए योजनाएं बनाई थीं। 2019 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ‘मूल्य संवर्धन योजना’ के तहत राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के प्रयास किए गए थे। हालांकि, 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण सरकार को भारी खर्च करना पड़ा, जिसके कारण राजकोषीय घाटा बढ़ा। इस अस्थायी वृद्धि के बावजूद, सरकार ने 2021 में घाटे को नियंत्रित करने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज के तहत अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए।
दोनों कथनों में स्थिरता का दावा किया गया है, लेकिन ये अस्थायी रूप से प्रभावित हुए थे। 2020 के बाद सरकार ने विभिन्न सुधारात्मक उपायों को लागू किया है, जैसे कि डिजिटलीकरण, जीएसटी सुधार और राहत पैकेज। सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करना और कर-राजस्व में वृद्धि करना है, लेकिन इन दोनों मामलों में कोई सतत वृद्धि नहीं देखी गई। 2021 के बाद से, भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखे हैं, लेकिन यह पूर्ण स्थिरता नहीं है। इस प्रकार, दोनों कथन वास्तविकता से मेल नहीं खाते हैं।
प्रश्न 95. हाल ही में, कुछ शेरों को गुजरात के उनके प्राकृतिक आवास से निम्नलिखित में से किस एक स्थल पर स्थानांतरित किए जाने का प्रस्ताव था?
(a) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
(b) कुनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य
(c) मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य
(d) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर: (b)
विकल्प (a) गलत है: कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, जो उत्तराखंड में स्थित है, भारत का सबसे पुराना और प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान है, विशेष रूप से बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है। शेरों के पुनर्वास के लिए यह स्थल उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहाँ पहले से बाघों की बड़ी संख्या है और शेरों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, पारिस्थितिकी तंत्र में पहले से मौजूद प्रजातियाँ शेरों के लिए प्रतिस्पर्धा उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे उनकी वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
विकल्प (b) सही है: कुनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित है और शेरों के पुनर्वास के लिए सबसे उपयुक्त स्थल माना गया है। इस स्थान का चयन इसलिए किया गया क्योंकि यहाँ की पारिस्थितिकी तंत्र शेरों के लिए अनुकूल है, जिसमें घास के मैदान, जल स्रोत और पर्याप्त वन्य जीवन मौजूद है। इस क्षेत्र में शेरों के लिए आदर्श आवास और सुरक्षित प्रजनन क्षेत्र प्रदान करने की क्षमता है, जिससे शेरों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। 2020 में इस स्थान को पुनर्वास के लिए आधिकारिक मंजूरी दी गई थी।
विकल्प (c) गलत है: मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य तमिलनाडु और कर्नाटका की सीमा पर स्थित है और यह क्षेत्र विशेष रूप से बाघों, हाथियों और अन्य प्रजातियों का घर है। शेरों के लिए यह स्थान उपयुक्त नहीं माना गया है, क्योंकि यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों की प्रजातियाँ शेरों के साथ सह-अस्तित्व के लिए अनुकूल नहीं हैं। मुदुमलाई की वनस्पति और भू-आकृति शेरों के जीवन के लिए आदर्श नहीं है और यहाँ पहले से मौजूद मांसाहारी प्रजातियाँ भी शेरों के पुनर्वास में चुनौती पैदा कर सकती हैं।
विकल्प (d) गलत है: सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित है और यह मुख्य रूप से बाघों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। शेरों के पुनर्वास के लिए यह स्थल उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहाँ पहले से बाघों की बड़ी संख्या है, जो शेरों के लिए संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्धा पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा, शेरों के लिए पर्याप्त घास के मैदान और पानी के स्रोत उपलब्ध नहीं हैं, जो उनकी दीर्घकालिक वृद्धि और प्रजनन के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 96. किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के निम्नलिखित में से कौन-से परिणामों का होना आवश्यक नहीं है?
1. राज्य विधान सभा का विघटन
2. राज्य के मंत्रिपरिषद् का हटाया जाना
3. स्थानीय निकायों का विघटन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
कथन 1 गलत है: राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के बाद राज्य विधान सभा का विघटन स्वचालित रूप से नहीं होता है। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति शासन लागू होते ही राज्य विधान सभा का विघटन हो। राज्य विधान सभा का विघटन केवल राष्ट्रपति की सिफारिश और निर्णय पर निर्भर करता है। आमतौर पर, यह तब होता है जब राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई जाती है या राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
कथन 2 सही है: राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के बाद राज्य के मंत्रिपरिषद का हटाया जाना अनिवार्य है। जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो राज्य सरकार की कार्यपालिका यानी मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। राज्य सरकार की प्रशासनिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार को सौंप दी जाती है और राज्य का प्रशासन सीधे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अधिकारी के माध्यम से संचालित होता है। यह संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत स्पष्ट रूप से निर्धारित है।
कथन 3 गलत है: स्थानीय निकायों का विघटन राष्ट्रपति शासन के तहत आवश्यक नहीं होता है। राष्ट्रपति शासन का प्रभाव केवल राज्य सरकार की कार्यपालिका पर होता है, जबकि स्थानीय निकायों की कार्यप्रणाली पर इसका कोई प्रत्यक्ष असर नहीं पड़ता। संविधान में इस बात का कोई प्रावधान नहीं है कि राष्ट्रपति शासन लागू होते ही स्थानीय निकायों का विघटन हो। स्थानीय निकायों के लिए स्वायत्तता और कार्य स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाती है।
प्रश्न 97. भारत के संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-से परिकल्पित हैं?
1. मानव देह व्यापार और बंधुआ मज़दूरी (बेगारी) का निषेध
2. अस्पृश्यता का उन्मूलन
3. अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
4. कारखानों और खदानों में बच्चों के नियोजन का निषेध
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
कथन 1 सही है: भारत के संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार के अंतर्गत मानव देह व्यापार और बंधुआ मजदूरी (बेगारी) का निषेध किया गया है। अनुच्छेद 23 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि कोई भी व्यक्ति अपने स्वेच्छा के खिलाफ कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान भारतीय समाज के कमजोर वर्गों के शोषण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि कोई भी व्यक्ति शारीरिक या मानसिक शोषण का शिकार न हो। संविधान इस प्रकार की शोषणकारी प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि श्रमिक वर्ग और गरीबों को उनके अधिकार मिले और वे शोषण से बच सकें।
कथन 2 गलत है: अस्पृश्यता का उन्मूलन संविधान के अनुच्छेद 17 में किया गया है, लेकिन यह शोषण के विरुद्ध अधिकार के अंतर्गत नहीं आता है। हालांकि, यह एक सामाजिक समस्या है जिसे संविधान ने समाप्त करने का प्रयास किया है, लेकिन यह सीधे तौर पर शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित नहीं है। शोषण के विरुद्ध अधिकार मुख्यतः उन प्रथाओं से संबंधित है, जो शारीरिक, मानसिक और श्रम शोषण को बढ़ावा देती हैं। अस्पृश्यता का उन्मूलन सामाजिक समावेशिता और समानता का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करना है।
कथन 3 गलत है: संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई है (अनुच्छेद 29 और 30), लेकिन यह शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित नहीं है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का उद्देश्य उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों को बनाए रखना है, ताकि वे समाज में समान रूप से विकास कर सकें। हालांकि, यह अधिकार शोषण के विरुद्ध नहीं है, जो श्रमिकों, महिलाओं और बच्चों से संबंधित शोषणकारी कार्यों को रोकने का प्रयास करता है। इसलिए यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए है, न कि शोषण के खिलाफ।
कथन 4 सही है: भारत के संविधान में कारखानों और खदानों में बच्चों के नियोजन का निषेध किया गया है (अनुच्छेद 24)। यह शोषण के विरुद्ध एक स्पष्ट प्रावधान है, जो बच्चों को शारीरिक और मानसिक शोषण से बचाने के लिए है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए खतरनाक कार्यों में न लगाया जाए, जो उनके शोषण का कारण बन सकता है। बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने और उनके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो शोषण से उन्हें बचाता है।
प्रश्न 98. निम्नलिखित में से कौन-सा भौगोलिक रूप से ग्रेट निकोबार के सबसे निकट है?
(a) सुमात्रा
(b) बोर्नियो
(c) जावा
(d) श्री लंका
उत्तर: (a)
कथन 1 सही है: ग्रेट निकोबार द्वीप और सुमात्रा के बीच की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। यह दूरी भौगोलिक दृष्टि से ग्रेट निकोबार के सबसे निकटतम स्थल को दर्शाती है। सुमात्रा, जो कि इंडोनेशिया का प्रमुख द्वीप है, दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित है और यह भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण-पूर्वी भाग में है। ग्रेट निकोबार से सुमात्रा के बीच यह जलमार्ग बहुत संकुचित है, जिससे इन दोनों के बीच संबंध स्थापित होता है। इसके अलावा, सुमात्रा का स्थान और भौगोलिक स्थिति इसे ग्रेट निकोबार के सबसे निकटतम स्थल बनाती है। सुमात्रा और ग्रेट निकोबार के बीच स्थित जलमार्ग के कारण इस परिकल्पना को सही माना जाता है।
कथन 2 गलत है: बोर्नियो द्वीप, जो कि मलेशिया, ब्रुनेई और इंडोनेशिया द्वारा साझा किया जाता है, ग्रेट निकोबार से अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर स्थित है। दोनों द्वीपों के बीच की दूरी लगभग 800 किलोमीटर से भी अधिक है। बोर्नियो का स्थान सुमात्रा से पश्चिम में है और यह ग्रेट निकोबार के पश्चिमी दिशा में स्थित है। इसका भौगोलिक संबंध सुमात्रा के मुकाबले कहीं अधिक दूर है और इस कारण से बोर्नियो को ग्रेट निकोबार का निकटतम स्थल मानना गलत है। इस द्वीप के साथ जलमार्ग की स्थिति भी सुमात्रा से अधिक संकुचित नहीं है।
कथन 3 गलत है: जावा द्वीप, जो कि इंडोनेशिया का एक प्रमुख द्वीप है, ग्रेट निकोबार से काफी दूर स्थित है। जावा और ग्रेट निकोबार के बीच की दूरी लगभग 1,000 किलोमीटर से अधिक है, जो भौगोलिक दृष्टि से एक बड़ी दूरी है। जावा द्वीप सुमात्रा के दक्षिण में स्थित है और यह भारतीय उपमहाद्वीप से बहुत दूर है। इस द्वीप का जलमार्ग भी बहुत बड़ा है, जिससे जावा और ग्रेट निकोबार के बीच के संबंध को भौगोलिक दृष्टिकोण से कम महत्व मिलता है। इस कारण जावा को ग्रेट निकोबार का निकटतम स्थल मानना गलत है।
कथन 4 गलत है: श्री लंका, जो दक्षिणी भारत के सिरे पर स्थित है, ग्रेट निकोबार से काफी दूर स्थित है। श्री लंका और ग्रेट निकोबार के बीच की दूरी लगभग 1,400 किलोमीटर से भी अधिक है। श्री लंका के भौगोलिक स्थान का भारत के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं है। दोनों के बीच के जलमार्ग में भी बहुत अधिक दूरी है। यह जलमार्ग भारतीय उपमहाद्वीप से गुजरते हुए सागर के विभिन्न रास्तों से होते हुए श्री लंका तक पहुंचता है, जिससे इसे ग्रेट निकोबार के निकटतम स्थल नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 99. निम्नलिखित कथनों में से उस एक को चुनिए, जो मंत्रिमण्डल स्वरूप की सरकार के अन्तर्निहित सिद्धान्त को अभिव्यक्त करता है:
(a) ऐसी सरकार के विरुद्ध आलोचना को कम-से-कम करने की व्यवस्था, जिसके उत्तरदायित्व जटिल हैं तथा उन्हें सभी के संतोष के लिए निष्पादित करना कठिन है।
(b) ऐसी सरकार के कामकाज में तेजी लाने की क्रियाविधि, जिसके उत्तरदायित्व दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।
(c) सरकार के जनता के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने के लिए संसदीय लोकतंत्र की एक क्रियाविधि।
(d) उस शासनाध्यक्ष के हाथों को मज़बूत करने का एक साधन जिसका जनता पर नियंत्रण हासोन्मुख दशा में है।
उत्तर: (c)
विकल्प (a) गलत है: यह कथन मंत्रिमंडल प्रणाली के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है। मंत्रिमंडल प्रणाली में सरकार के खिलाफ आलोचना को कम करने का उद्देश्य नहीं है। इसके बजाय, यह प्रणाली पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक निर्णय में सामूहिकता को प्रोत्साहित करती है। मंत्रिमंडल की सदस्यता सामूहिक रूप से जिम्मेदार होती है, जिससे सरकार की आलोचना सुनने और उस पर उचित प्रतिक्रिया देने का अवसर मिलता है। आलोचना को कम करना या दबाना, लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल्यों के खिलाफ होगा।
विकल्प (b) गलत है: मंत्रिमंडल प्रणाली का उद्देश्य सरकार के कामकाज में तेजी लाना नहीं है, बल्कि यह अधिक जवाबदेही, पारदर्शिता और सामूहिक निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करना है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि मंत्रिमंडल के सदस्य एक साथ काम करें और किसी भी निर्णय का सामूहिक उत्तरदायित्व लिया जाए। कार्यों में तेजी लाने की बजाय, इसका मुख्य लक्ष्य शासन के प्रति जिम्मेदारी और संतुलन बनाए रखना है, ताकि सरकार को जनहित में कार्य करने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके।
विकल्प (c) सही है: यह कथन मंत्रिमंडल प्रणाली के मूल सिद्धांत का सटीक रूप से प्रतिनिधित्व करता है। यह सिद्धांत संसद में सामूहिक जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व की भावना को दर्शाता है। मंत्रिमंडल के सभी सदस्य मिलकर निर्णय लेते हैं और सामूहिक रूप से संसद के सामने उत्तरदायी होते हैं। यह प्रणाली पारदर्शिता और कार्यों में जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जिससे सरकार के कार्यों में लोकतांत्रिक नियंत्रण बना रहता है।
विकल्प (d) गलत है: यह कथन मंत्रिमंडल प्रणाली की भूमिका को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। मंत्रिमंडल प्रणाली का उद्देश्य सरकार के निर्णयों में सामूहिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करना है, न कि शासनाध्यक्ष के हाथों को मजबूत करना। यह प्रणाली सभी मंत्रियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में समान रूप से शामिल करती है, जिससे कोई भी व्यक्ति या पद केंद्रीय शक्ति का प्रतिनिधित्व नहीं करता। यह प्रणाली शक्ति का विकेंद्रीकरण और जवाबदेही सुनिश्चित करती है, ताकि किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत रूप से शक्ति का दुरुपयोग करने का अवसर न मिले।
प्रश्न 100. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं है?
(a) भारत में स्वतन्त्र न्यायपालिका है।
(b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c) संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।
उत्तर: (d)
विकल्प (a) सही है: भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था संविधान के तहत स्थापित की गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 के तहत न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र रखा गया है, ताकि यह बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी भूमिका निभा सके। यह संविधान की प्राथमिकता है कि न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और शासन के अन्य अंगों के किसी भी गलत निर्णय की जांच करे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता, जैसे कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा पारित निर्णयों का पालन, लोकतंत्र के लिए एक अहम स्तंभ है। इसका उद्देश्य सरकार के किसी भी अत्याचार से नागरिकों को बचाना है। इस प्रकार, यह व्यवस्था संविधान में उल्लिखित नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करती है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों में से एक है।
विकल्प (b) सही है: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन भारतीय संघराज्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। संविधान में केंद्र और राज्यों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि दोनों के पास अपनी-अपनी शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ हों। सातवीं अनुसूची के अंतर्गत केंद्र, राज्यों और संघशासी क्षेत्रों के अधिकारों की सूची बनाई गई है। यह व्यवस्था एक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है, ताकि केंद्र की शक्ति अत्यधिक केंद्रीकरण से बची रहे और राज्यों को भी अपनी विशिष्ट समस्याओं को सुलझाने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता मिले। यह विभाजन भारतीय संघराज्य की सहमति और सामूहिक जिम्मेदारी का परिणाम है, जिससे दोनों स्तरों पर जिम्मेदारी और अधिकार संतुलित रहते हैं।
विकल्प (c) सही है: भारत में राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्व की व्यवस्था भारतीय संघराज्य की विशेषता है। भारतीय संविधान ने राज्यसभा में राज्यों को उनके आकार और जनसंख्या के अनुपात में नहीं, बल्कि उनके सामरिक और राजनीतिक महत्व के आधार पर प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। यह प्रणाली छोटे राज्यों को अधिक प्रतिनिधित्व देती है, ताकि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी आवाज उठा सकें। राज्यसभा में प्रत्येक राज्य को समान महत्व और शक्ति प्रदान करने का उद्देश्य संघराज्य के विभिन्न घटकों के बीच समानता और न्याय सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से संविधान यह सुनिश्चित करता है कि छोटे और बड़े राज्यों के बीच शक्ति का असमान वितरण न हो और सभी राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
विकल्प (d) गलत है: भारत का संघराज्य पद्धति सहमति के आधार पर नहीं, बल्कि एक विचारशील और समग्र योजना के तहत स्थापित की गई थी। भारत की विविधता, सांस्कृतिक भिन्नताएँ और विभिन्न भाषाई समूहों के बीच एकजुटता बनाए रखने के लिए संविधान निर्माताओं ने एक संघीय ढांचे को अपनाया। यह संघबद्धता किसी सहमति के परिणाम के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता के तहत उत्पन्न हुई थी। इसका उद्देश्य एक मजबूत केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को अपनी विशिष्टता बनाए रखने की स्वायत्तता प्रदान करना था। यह एक ठोस और व्यवहारिक योजना थी, जो भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी, ताकि देश के सभी हिस्सों को एकजुट किया जा सके।