UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2016 | विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न-पत्र |
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. लोक सभा में लम्बित कोई विधेयक उसके सत्रावसान पर व्यपगत (लैप्स) हो जाता है।
2. राज्य सभा में लम्बित कोई विधेयक, जिसे लोक सभा ने पारित नहीं किया है, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
विधायिका की कार्यप्रणाली में यह महत्वपूर्ण है कि सदन के सत्रावसान के बाद क्या स्थिति होती है, खासकर लंबित विधेयकों के संदर्भ में। लोकसभा में यदि कोई विधेयक सत्र के अंत तक पारित नहीं हो पाता है तो उसे व्यपगत (लैप्स) माना जाता है। इसका मतलब है कि सत्रावसान के साथ ही वह विधेयक समाप्त हो जाता है और उसे अगले सत्र में पुनः प्रस्तुत करना पड़ता है। यह नियम संसद की कार्यवाही को व्यवस्थित और नया दृष्टिकोण देने के लिए है, जिससे पुराने और अप्रासंगिक विधेयकों को समाप्त किया जा सके।
राज्यसभा की स्थिति इससे भिन्न है। राज्यसभा में लम्बित विधेयक, जिन्हें लोकसभा ने पारित नहीं किया, लोकसभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होते। इसका कारण यह है कि राज्यसभा अपनी कार्यवाही में स्वतंत्र होती है और वहां लम्बित विधेयक अगले सत्र में पुनः प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यह प्रावधान राज्यसभा को अधिक स्थायित्व और निरंतरता प्रदान करता है, जिससे वह अपनी कार्यवाही को बिना किसी विघटन के जारी रख सकती है।
इस प्रकार, जबकि लोकसभा में सत्रावसान के साथ लम्बित विधेयक समाप्त हो जाते हैं, राज्यसभा में ऐसा नहीं होता। राज्यसभा में लम्बित विधेयक समयानुसार फिर से बहस के लिए प्रस्तुत किए जा सकते हैं, भले ही लोकसभा का सत्र समाप्त हो गया हो। यह विभिन्न सदनों की कार्यप्रणाली में अंतर को स्पष्ट करता है और संविधान की विशेषताओं के अनुरूप कार्य करने में मदद करता है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है?
1. अल्प-पोषण
2. शिशु वृद्धिरोधन
3. शिशु मृत्यु-दर
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 1 और 3
Ans. C
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) एक व्यापक और बहुआयामी सूचकांक है जो विभिन्न देशों में भुखमरी की स्थिति का मूल्यांकन करता है। IFPRI द्वारा तैयार इस सूचकांक में तीन प्रमुख सूचक होते हैं: अल्प-पोषण, शिशु वृद्धिरोधन और शिशु मृत्यु-दर। इन सूचकों का उद्देश्य देशों में पोषण की स्थिति, कुपोषण और बच्चों की मृत्यु दर को मापना है। अल्प-पोषण सूचक यह दर्शाता है कि एक देश की कितनी जनसंख्या पर्याप्त पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है। यह देश की खाद्य सुरक्षा, आय के वितरण और असमानता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
दूसरा सूचक, शिशु वृद्धिरोधन, बच्चों में विकास की कमी को मापता है। यह सूचक पोषण की स्थिति को दिखाता है, क्योंकि बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पोषण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि बच्चों को सही पोषण नहीं मिलता, तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है, जो लंबे समय में उनके स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। इस सूचकांक का उच्च होना एक गंभीर चिन्ता का कारण बनता है।
तीसरा सूचक, शिशु मृत्यु-दर, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को मापता है। यह सूचक किसी देश की स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छता और पोषण की स्थिति को दर्शाता है। उच्च शिशु मृत्यु दर एक देश के स्वास्थ्य ढांचे की खामियों को उजागर करती है। इन तीनों सूचकों के संयोजन से GHI देश की भुखमरी की गंभीरता का मूल्यांकन करता है, जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा और विकास नीति की दिशा को प्रभावित करता है।
प्रश्न 3. साल-दर-साल लगातार घाटे का बजट रहा है। घाटे को कम करने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सी कार्रवाई/कार्रवाइयाँ की जा सकती है/हैं?
1. राजस्व व्यय को घटाना
2. नवीन कल्याणकारी योजनाओं को प्रारम्भ करना
3. सहायिकी (सब्सिडी) को युक्तिसंगत बनाना
4. आयात शुल्क को कम करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
Ans. C
घाटे को कम करने के लिए सरकार को राजस्व व्यय में कटौती पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राजस्व व्यय में अत्यधिक खर्च, जैसे कि पेंशन, वेतन और बिना लक्षित सब्सिडी, सरकार के खजाने पर बोझ डालते हैं। इन व्ययों में कटौती करने से सरकार की वित्तीय स्थिति मजबूत हो सकती है। विशेषकर, गैर-आवश्यक प्रशासनिक खर्चों को घटाने से वित्तीय घाटे को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए संवेदनशीलता से नीति निर्माण की आवश्यकता होगी, ताकि सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता पर असर न पड़े।
इसके अतिरिक्त, सहायिकी (सब्सिडी) को युक्तिसंगत बनाना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकारी सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों तक पहुँचता है जो इसके हकदार नहीं होते। यदि सब्सिडी को सही तरीके से लक्षित किया जाए, तो यह अधिक प्रभावी हो सकता है और सरकार के खजाने पर कम दबाव डालेगा। यह कदम वित्तीय संतुलन को सुधारने के लिए अहम साबित हो सकता है।
इसके विपरीत, नई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत और आयात शुल्क में कमी घाटे को कम करने में मदद नहीं करेगी। नए कार्यक्रमों का आरंभ सरकारी खर्चों में वृद्धि करता है, जिससे घाटा और बढ़ सकता है। आयात शुल्क में कमी से सरकार के राजस्व में गिरावट आएगी, जो वित्तीय घाटे को बढ़ा सकती है। इन दोनों उपायों से घाटे की स्थिति और खराब हो सकती है, इसलिए इनसे बचना चाहिए।
प्रश्न 4. भारत में वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से ‘भुगतान बैंकों (पेमेंट बैंक्स)’ की स्थापना की जा रही है। इस दृष्टि से निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. जिन मोबाइल टेलीफोन कंपनियों और सुपर-बाज़ार श्रृंखलाओं का स्वामित्व एवं नियंत्रण भारतीय व्यक्तियों के पास है, वे भुगतान बैंकों के प्रवर्तक होने के योग्य है।
2. भुगतान बैंक क्रेडिट कार्ड एवं डेबिट कार्ड दोनों जारी कर सकते हैं।
3. भुगतान बैंक ऋण देने के कार्यकलाप नहीं कर सकते हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केंवल 2
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए ‘भुगतान बैंकों’ की स्थापना एक प्रमुख पहल है। भुगतान बैंकों का उद्देश्य उन व्यक्तियों और समुदायों तक बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ाना है, जो पारंपरिक बैंकों से वंचित हैं। इनमें प्रमुख रूप से मोबाइल टेलीफोन कंपनियां और सुपरमार्केट चेन शामिल हैं, जिनका स्वामित्व और नियंत्रण भारतीय व्यक्तियों के पास होता है। यह सुनिश्चित करता है कि इन बैंकों की शुरुआत में भारतीय नागरिकों की सक्रिय भूमिका है, जिससे बैंकिंग सेवाओं का विस्तार और समावेशी विकास सुनिश्चित होता है।
भुगतान बैंकों को क्रेडिट कार्ड या अन्य प्रकार के लोन उत्पादों की पेशकश करने का अधिकार नहीं होता है। हालांकि, वे केवल डेबिट कार्ड जारी कर सकते हैं, जिसका उपयोग ग्राहकों द्वारा जमा किए गए पैसे से किया जा सकता है। यह बैंकों को एक निश्चित दायरे में रखता है, जिससे वे अधिक जोखिमपूर्ण वित्तीय गतिविधियों से बचते हैं। साथ ही, वे केवल सीमित वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे कि धन स्थानांतरण और भुगतान सेवाएं।
इसके अलावा, भुगतान बैंकों के पास ऋण देने का अधिकार नहीं होता है। उनका उद्देश्य केवल ग्राहकों से धन एकत्र करना और उन्हें बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना है। यह कदम भारतीय वित्तीय प्रणाली को स्थिर बनाए रखने में सहायक है, क्योंकि ये बैंकों की क्षमता को जोखिमपूर्ण व्यापारिक गतिविधियों से बचाए रखते हैं। इस प्रकार, भुगतान बैंकों की भूमिका विशेष रूप से भारत के ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में सहायक है।
प्रश्न 5. हाल ही में, समाचारों में आने वाले ‘LiFi’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह उच्च गति डेटा संचरण के लिए प्रकाश को माध्यम के रूप में प्रयुक्त करता है।
2. यह एक बेतार प्रौद्योगिकी है और ‘WiFi’ से कई गुना तीव्रतर है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
LiFi (Light Fidelity) एक अत्याधुनिक तकनीक है जो डेटा संचरण के लिए प्रकाश को माध्यम के रूप में इस्तेमाल करती है। यह तकनीक रेडियो तरंगों के बजाय प्रकाश की तरंगों का उपयोग करती है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी में अधिक गति और सुरक्षा मिलती है। LiFi का प्रमुख सिद्धांत यह है कि LED लाइट्स के माध्यम से डेटा को बेहद उच्च गति से ट्रांसफर किया जा सकता है। प्रकाश के इस पैटर्न को एक रिसीवर समझता है और उसे डिजिटल डेटा में बदलता है। इसके जरिए इंटरनेट की गति WiFi से कई गुना अधिक हो सकती है और यह खासकर उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहां तेज़ इंटरनेट की आवश्यकता होती है।
LiFi एक बेतार (Wireless) तकनीक है, जिसका उपयोग खासकर उन स्थानों पर किया जा सकता है जहाँ रेडियो तरंगों का उपयोग नहीं किया जा सकता। इस तकनीक के द्वारा, डेटा ट्रांसफर करने के लिए प्रकाश की केवल दृश्य सीमा तक ही डेटा भेजा जा सकता है। इसका मतलब है कि LiFi की कार्यक्षमता उस स्थान तक सीमित होती है, जहाँ प्रकाश का प्रसार होता है। यह तकनीक पूरी दुनिया में वायरलेस इंटरनेट के भविष्य का रूप ले सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ नेटवर्क में भीड़-भाड़ कम करनी हो और डेटा की तेज़ गति की आवश्यकता हो।
LiFi की तकनीकी विशेषता यह है कि यह अत्यधिक सुरक्षित है, क्योंकि प्रकाश की लहरें दीवारों के पार नहीं जातीं। इसका मतलब यह है कि डेटा केवल उसी क्षेत्र में सुरक्षित रहता है, जहाँ लाइट की उपलब्धता होती है। यह WiFi की तुलना में अधिक सुरक्षित है, क्योंकि रेडियो तरंगें दीवारों से गुजर सकती हैं, जिससे हैकिंग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, LiFi को बेहतर नेटवर्क कनेक्टिविटी और उच्च स्पीड इंटरनेट की जरूरत वाले क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि स्मार्ट सिटी, अस्पताल और उच्च सुरक्षा वाले स्थल।
प्रश्न 6. ‘अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions) पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है?
(a) युद्ध-प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए यूरोपीय देशों द्वारा दिए गए वचन
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया गया पूँजी योगदान
(d) धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना
Ans. B
अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions – INDCs) जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए देशों द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम हैं। यह एक वैश्विक प्रयास है, जिसमें प्रत्येक देश अपनी क्षमता के अनुसार जलवायु शमन और अनुकूलन के लक्ष्य निर्धारित करता है। INDCs का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना, ऊर्जा दक्षता बढ़ाना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तैयारियां करना है। पेरिस जलवायु समझौते में इस पहल को स्वीकार किया गया, जहां देशों को अपने राष्ट्रीय लक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है और फिर उन पर कार्रवाई करनी होती है।
हर देश के INDCs में उसके द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों की विस्तृत जानकारी होती है, जो उनकी स्थानीय परिस्थितियों, संसाधनों और क्षमताओं के अनुरूप होती है। उदाहरण के लिए, कुछ देश नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास को प्राथमिकता देते हैं, जबकि अन्य देशों का ध्यान ऊर्जा उपयोग को दक्षता से सुधारने पर होता है। यह प्रयास जलवायु संकट से निपटने के लिए वैश्विक साझेदारी को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि हर देश अपनी भूमिका निभा सके।
INDCs देशों की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाते हैं, क्योंकि प्रत्येक देश को अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होता है और समय-समय पर उनकी प्रगति की समीक्षा करनी होती है। इस प्रक्रिया के माध्यम से वैश्विक समुदाय यह सुनिश्चित करता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सके। INDCs से यह भी स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर एक समान जिम्मेदारी होनी चाहिए, जो सभी देशों के योगदान से संभव हो सके।
प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सा, सरकार की योजना ‘UDAY’ का एक प्रयोजन है?
(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में नव-प्रयासी (स्टार्ट-अप) उद्यमियों को तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना
(b) 2018 तक देश में हर घर में बिजली उपलब्ध कराना
(c) एक समयावधि के अंदर कोयला-आधारित शक्ति संयंत्रों के स्थान पर प्राकृतिक गैस, नाभिकीय, सौर, वायु एवं ज्वारीय शक्ति संयंत्र स्थापित करना
(d) विद्युत् वितरण कंपनियों के वित्तीय कायापलट और पुनरुत्थान का प्रबंध करना
Ans. D
‘UDAY’ (Ujwal DISCOM Assurance Yojana) योजना का उद्देश्य भारत में विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) की वित्तीय स्थिति को सुधारना है। इस योजना के तहत, सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर विद्युत वितरण कंपनियों के भारी वित्तीय घाटे और कर्जों का समाधान करती है। इसका उद्देश्य DISCOMs को वित्तीय सुदृढ़ता प्रदान करना, जिससे वे अपनी कार्यक्षमता में सुधार कर सकें और ऊर्जा वितरण सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि कर सकें। यह योजना राज्य सरकारों को DISCOMs के कर्ज़ के पुनर्गठन की अनुमति देती है, जिससे उनका वित्तीय बोझ हलका होता है।
इस योजना के अंतर्गत, राज्य सरकारें अपने DISCOMs के लिए कर्ज माफी की प्रक्रिया को लागू करती हैं और साथ ही उन्हें बिजली वितरण प्रणाली में सुधार करने के लिए प्रेरित करती हैं। यह सुधार वितरण नेटवर्क की क्षमता बढ़ाने, बिजली चोरी रोकने और बकाया राशि वसूलने से संबंधित होते हैं। इसके अलावा, DISCOMs को ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहन भी दिया जाता है।
‘UDAY’ योजना का उद्देश्य केवल वित्तीय पुनरुद्धार ही नहीं, बल्कि DISCOMs की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना भी है। इसके तहत, बिजली वितरण कंपनियों को बेहतर तकनीकी प्रबंधन, कस्टमर सर्विस और बेहतर नेटवर्क डिजाइन की दिशा में सुधार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह योजना सरकार की ओर से ऊर्जा क्षेत्र को अधिक कुशल, पारदर्शी और उपभोक्ता के अनुकूल बनाने की एक महत्वपूर्ण पहल है, जो भारत में ऊर्जा क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करती है।
प्रश्न 8. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले ‘आइ. एफ. सी. मसाला बॉन्ड (IFC Masala Bonds)’ के संदर्भमें निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंटरनैशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन), जो इन बॉन्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
2. ये रुपया अंकित मूल्य वाले बॉन्ड (Rupee-Denominated Bonds) हैं और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
‘आइ. एफ. सी. मसाला बॉन्ड’ (IFC Masala Bonds) रुपये-प्रत्यायित बॉन्ड होते हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा प्रस्तावित किया जाता है। IFC, जो विश्व बैंक समूह की एक शाखा है, विकासशील देशों में निवेश और वित्तीय सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। मसाला बॉन्ड्स का मुख्य उद्देश्य विदेशी निवेशकों से भारतीय मुद्रा (रुपये) में पूंजी जुटाना है। इन बॉन्ड्स को भारतीय बुनियादी ढांचे और अन्य विकासशील परियोजनाओं के लिए पूंजी स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिससे भारत में विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रवाह को बढ़ावा मिलता है।
इन बॉन्ड्स के माध्यम से, विदेशी निवेशक भारतीय रुपये में निवेश करने का अवसर प्राप्त करते हैं, जिससे भारत की वित्तीय प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है। यह विशेषत: विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ बुनियादी ढांचे के लिए पूंजी की भारी आवश्यकता होती है। IFC मसाला बॉन्ड्स को भारतीय सरकार द्वारा भी एक उपयुक्त वित्तीय उपकरण माना जाता है, जो विदेशी पूंजी को आकर्षित करने में सहायक है।
मसाला बॉन्ड्स के माध्यम से, भारत को विदेशी निवेशकों से सस्ते और स्थिर वित्तीय संसाधन मिलते हैं, जो भारतीय कंपनियों और सरकारी परियोजनाओं के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकते हैं। साथ ही, ये बॉन्ड भारतीय रुपये के मूल्य और विश्वसनीयता को भी बढ़ाते हैं, क्योंकि इनका मूल्य भारतीय मुद्रा में होता है। इससे भारत की वैश्विक निवेश प्रतिष्ठा को मजबूती मिलती है।
प्रश्न 9. विजयनगर के शासक कृष्णदेव की कराधान व्यवस्था से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भूमि की गुणवत्ता के आधार पर भू-राजस्व की दर नियत होती थी।
2. कारखानों के निजी स्वामी एक औद्योगिक कर देते थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
विजयनगर साम्राज्य के शासक कृष्णदेव राय की कराधान व्यवस्था में प्रमुख तत्वों में भूमि राजस्व की व्यवस्था थी, जो भूमि की गुणवत्ता के आधार पर निर्धारित की जाती थी। यह व्यवस्था कृषि उत्पादकता और भूमि के उर्वरता को ध्यान में रखते हुए थी, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली भूमि पर अधिक कर लिया जाता था। यह प्रणाली कृषकों को प्रोत्साहित करती थी और साम्राज्य के राजस्व में वृद्धि करने का एक प्रभावी तरीका थी। भूमि राजस्व के अलावा अन्य करों की दरों में भी स्थानीय और उत्पादन आधारित भिन्नताएँ थीं, जिससे शासन का वित्तीय ढांचा स्थिर बना रहा।
विजयनगर साम्राज्य में औद्योगिक कर भी एक महत्वपूर्ण घटक था। कारखानों के निजी स्वामी, जो विभिन्न उत्पादों का निर्माण करते थे, एक औद्योगिक कर चुकाते थे। यह कर उद्योगों को नियमित करता था और साम्राज्य के राजकोष में योगदान करता था। विशेष रूप से, बुनाई और धातु के उद्योगों पर यह कर लगाया जाता था, जिससे प्रशासन को इन उद्योगों के मुनाफे पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती थी।
इन दोनों कर प्रणालियों का उद्देश्य साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता और सैन्य तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना था। कृष्णदेव राय की यह कर व्यवस्था न केवल कृषि और उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाली थी, बल्कि यह समग्र रूप से समाज के विभिन्न वर्गों पर साम्राज्य का नियंत्रण स्थापित करती थी। इस तरह, इन कर व्यवस्थाओं के माध्यम से विजयनगर साम्राज्य अपने वित्तीय उद्देश्यों को साकार करने में सक्षम था।
प्रश्न 10. प्राचीन भारत की निम्नलिखित पुस्तकों में से किस एक में शुंग राजवंश के संस्थापक के पुत्र की प्रेम कहानी है?
(a) स्वप्नवासवदत्ता
(b) मालविकाग्निमित्र
(c) मेघदूत
(d) रत्नावली
Ans. B
“मालविकाग्निमित्र” कालिदास का एक अत्यधिक प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जो शुंग राजवंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र और एक नर्तकी मालविका के बीच के प्रेम संबंधों पर आधारित है। इस नाटक में प्रेम की जटिलता और उसकी सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों से टकराहट को दर्शाया गया है। अग्निमित्र का प्रेम केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह उसके कर्तव्यों और राजकाज के दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संघर्ष है।
नाटक में मालविका का चरित्र भी महत्वपूर्ण है, जो न केवल एक साधारण नर्तकी है, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदर्भ में समाज की गहरी समझ रखती है। इस प्रेम कथा में कालिदास ने राजनैतिक और व्यक्तिगत जीवन के बीच के अंतरंग द्वंद्व को भली-भांति चित्रित किया है, जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छाओं और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।
“मालविकाग्निमित्र” एक सामाजिक और मानसिक संघर्ष को उजागर करता है, जिसमें प्रेम, राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं का संगम होता है। कालिदास ने इस नाटक के माध्यम से न केवल प्रेम के भावनात्मक पक्ष को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि प्रेम और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाए रखना किसी भी व्यक्ति के लिए अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस प्रकार, यह नाटक साहित्यिक दृष्टिकोण से भी एक अत्यधिक महत्वपूर्ण कृति बन गई है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कभी-कभी समाचारों में ‘ऐम्बर बॉक्स, ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स’ शब्द देखने को मिलते हैं?
(a) WTO मामला
(b) SAARC मामला
(c) UNFCCC मामला
(d) FTA पर भारत-EU वार्ता
Ans. A
WTO के संदर्भ में ‘ऐम्बर बॉक्स’, ‘ब्लू बॉक्स’ और ‘ग्रीन बॉक्स’ शब्द कृषि सब्सिडी के वर्गीकरण से संबंधित हैं, जो सदस्य देशों के कृषि समर्थन उपायों की पारदर्शिता और व्यापार पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन करते हैं। ये वर्गीकरण WTO के कृषि समझौते के तहत निर्धारित किए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देशों के कृषि समर्थन उपाय वैश्विक व्यापार में अनुशासन बनाए रखें। यह प्रणाली यह निर्धारित करती है कि कौन से प्रकार के कृषि समर्थन अनुमोदित हैं और कौन से व्यापार को विकृत करने वाले हैं।
‘ग्रीन बॉक्स’ में उन सभी सरकारी उपायों को रखा गया है जो WTO के नियमों के तहत व्यापार को विकृत नहीं करते। इसमें पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण विकास और कृषि नवाचार जैसे कार्यक्रम शामिल हैं, जिन्हें सब्सिडी दी जा सकती है। इन उपायों का उद्देश्य किसानों को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाना और वैश्विक व्यापार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना है। ‘ब्लू बॉक्स’ में भी वही उद्देश्य है, लेकिन इसमें उन उपायों को भी शामिल किया जाता है, जो उत्पादन की सीमा को नियंत्रित करने के लिए होते हैं और थोड़े अधिक सीमित होते हैं।
‘ऐम्बर बॉक्स’ वह श्रेणी है, जिसमें वह सब्सिडी आती है जो व्यापार को विकृत करती हैं, जैसे अत्यधिक निर्यात सब्सिडी या अन्य प्रकार के समर्थन, जो बाजार में असंतुलन उत्पन्न कर सकते हैं। WTO की शर्तों के तहत, इस प्रकार की सहायता को सीमित करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकती है। ‘ऐम्बर बॉक्स’ का उद्देश्य देशों को अपनी कृषि नीतियों में सुधार की दिशा में प्रेरित करना है ताकि वे वैश्विक बाजार में निष्पक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकें।
प्रश्न 12. निम्नलिखित में से किसको/किनको भारत सरकार के पूँजी बजट में शामिल किया जाता है?
1. सड़कों, इमारतों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय
2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण
3. राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों को अनुदत्त ऋण और अग्रिम
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
भारत सरकार के पूंजी बजट में उन व्ययों को शामिल किया जाता है, जो देश के दीर्घकालिक बुनियादी ढांचे और संपत्तियों के निर्माण के लिए होते हैं। इसमें सड़कों, इमारतों, मशीनरी और अन्य स्थायी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर होने वाले खर्च शामिल हैं। इस प्रकार के व्यय देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं और भविष्य में आर्थिक विकास को सहारा देते हैं। पूंजी व्यय के माध्यम से सरकार का उद्देश्य राष्ट्रीय विकास में योगदान देना और रोजगार के अवसर उत्पन्न करना होता है, जो राष्ट्र की समृद्धि में सहायक होते हैं।
इसके अलावा, विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण भी पूंजी बजट का एक हिस्सा होते हैं। ये ऋण देश को विकासात्मक परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन प्रदान करते हैं। इन ऋणों का उपयोग आमतौर पर बुनियादी ढांचे, परिवहन, ऊर्जा और शहरी विकास जैसे दीर्घकालिक उद्देश्यों में किया जाता है, जो राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक हैं। विदेशी ऋण से प्राप्त पूंजी का कुशल उपयोग देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है।
राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों को दिए गए ऋण और अग्रिम भी पूंजी बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। यह केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का एक तरीका है, ताकि वे अपने विकासात्मक कार्यों को सुचारू रूप से चला सकें। इन ऋणों का उपयोग राज्य सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य आवश्यक सेवाओं के सुधार में किया जाता है, जो स्थानीय विकास को गति प्रदान करते हैं। इस प्रकार, पूंजी बजट न केवल राष्ट्रीय, बल्कि राज्य स्तर पर भी विकास को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक वित्तीय उपकरण है।
प्रश्न 13. ‘मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)’ का/के क्या महत्त्व है/हैं?
1. इसका उद्देश्य नवप्रवर्तनकारी राष्ट्रीय कार्यक्रमों एवं समर्थक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियों के माध्यम से प्रभावकारी कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है।
2. यह विशेष/विशिष्ट रूप से दक्षिणी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों पर केंद्रित होता है तथा इसका सचिवालय इन क्षेत्रों को वित्तीय संसाधनों के बड़े हिस्से का नियतन सुलभ कराता है।
3. यह मरुस्थलीकरण को रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु ऊर्ध्वगामी उपागम (बॉटम-अप अप्रोच) के लिए प्रतिबद्ध है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c), केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCCD) का उद्देश्य मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए प्रभावी राष्ट्रीय कार्यक्रमों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है। यह अभिसमय वैश्विक स्तर पर सदस्य देशों को भूमि पुनर्स्थापना और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उचित उपायों के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से, राष्ट्रीय योजनाएं और कार्यक्रम तैयार करने के लिए नवप्रवर्तनकारी दृष्टिकोणों को अपनाया जाता है, जो लंबे समय तक पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। यह कार्यक्रम देशों को भूमि संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के संरक्षण हेतु प्रोत्साहित करता है, जिससे मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाते हैं।
UNCCD का सचिवालय विशेष रूप से दक्षिणी एशिया और उत्तरी अफ्रीका जैसे मरुस्थलीकरण प्रभावित क्षेत्रों में वित्तीय और तकनीकी संसाधन उपलब्ध कराता है। हालांकि, इसका उद्देश्य केवल इन क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भूमि पुनर्स्थापना के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है। इन क्षेत्रों को मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए आवश्यक तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वे प्रभावी भूमि प्रबंधन और संरक्षण कार्यों को लागू कर सकें।
यह अभिसमय बॉटम-अप उपागम पर जोर देता है, जिसमें स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है। इस दृष्टिकोण से, भूमि प्रबंधन की योजनाएं स्थानीय जरूरतों और स्थितियों के अनुसार बनाई जाती हैं, जिससे स्थिर और दीर्घकालिक समाधान मिलते हैं। स्थानीय स्तर पर इस तरह की भागीदारी से न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी सकारात्मक बदलाव लाता है।
प्रश्न 14. हाल ही में, IMF के SDR बास्केट में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया है?
(a) रूबल
(b) रेंड
(c) भारतीय रुपया
(d) रेनमिनबी
Ans. D
हाल ही में, IMF ने अपनी विशेष आहरण अधिकार (SDR) बास्केट में रेनमिनबी (CNY) को शामिल करने का प्रस्ताव दिया। यह निर्णय वैश्विक वित्तीय प्रणाली में चीन की बढ़ती भूमिका और रेनमिनबी की अंतर्राष्ट्रीय उपयोगिता को मान्यता देने का कदम है। 2016 में रेनमिनबी को SDR बास्केट में शामिल किया गया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि IMF वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेन-देन में चीन की मुद्रा को अधिक प्रभावी बनाना चाहता है। रेनमिनबी के SDR में समावेश से वैश्विक वित्तीय बाजारों में इसका प्रभाव बढ़ेगा और यह अन्य प्रमुख मुद्राओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में होगा।
रेनमिनबी का SDR बास्केट में समावेश, चीन के वैश्विक आर्थिक प्रभाव का प्रतीक है। यह कदम चीन की आर्थिक नीति और उसके मौद्रिक प्रबंधन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देता है। SDR के अंतर्गत रेनमिनबी की समावेशन से, यह मुद्रा वैश्विक निवेशकों और देशों के बीच विश्वास उत्पन्न करती है और इसके प्रयोग को बढ़ावा मिलता है। इस बदलाव से चीन को वैश्विक व्यापार में अधिक लचीलापन मिलता है, साथ ही इसके वित्तीय सुरक्षा उपायों में भी सुधार होता है।
SDR बास्केट में रेनमिनबी का समावेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेन-देन के लिए एक निर्णायक कदम है। इससे चीन के वित्तीय क्षेत्र की पारदर्शिता में सुधार होता है और उसे दुनिया भर में मुद्रा के रूप में बढ़ावा मिलता है। रेनमिनबी का SDR में समावेश, चीन को अपनी मुद्रा के वैश्विक स्तर पर मजबूत करने का अवसर देता है और इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा प्रणाली में एक स्थिर और विश्वसनीय मुद्रा के रूप में स्थापित करता है।
प्रश्न 15. अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति [International Monetary and Financial Committee (IMFC)] के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. IMFC विश्व अर्थव्यवस्था से सरोकार रखने वाले विषयों पर चर्चा करता है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को उसके कार्य की दिशा पर सलाह देता है।
2. IMFC की बैठकों में विश्व बैंक प्रेक्षक की भाँति भाग लेता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति (IMFC) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रमुख निर्णय-निर्माण इकाई है, जो वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह समिति दुनिया के प्रमुख वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों की बैठक से गठित होती है। इसका मुख्य उद्देश्य IMF के कार्यों की दिशा पर सलाह देना और वैश्विक वित्तीय नीतियों को प्रभावित करना है। IMFC का कार्य केवल वित्तीय संकटों से निपटना नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए रणनीतियाँ तैयार करना भी है। इसके निर्णय पूरी दुनिया की वित्तीय स्थिरता और विकास को प्रभावित करते हैं।
IMFC की बैठकों में विशेष रूप से विश्व बैंक एक प्रेक्षक के रूप में भाग लेता है। इसका उद्देश्य IMF के निर्णयों और सिफारिशों में समन्वय बनाए रखना और वैश्विक वित्तीय सुधारों के लिए एक साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। विश्व बैंक का IMFC में भाग लेना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों संस्थाएँ एक दूसरे के कार्यों को सहयोग और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। यह सहयोग वैश्विक विकास योजनाओं की प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में सहायक होता है।
IMFC के तहत होने वाली बैठकों में, केवल IMF और विश्व बैंक नहीं, बल्कि अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थाएँ भी शामिल होती हैं। इन बैठकों में वित्तीय संकटों का समाधान, आर्थिक असंतुलन को दूर करने के उपाय और समग्र वैश्विक वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए नई नीतियों का प्रस्ताव किया जाता है। IMFC का कार्य प्रणालीगत सुधारों को लागू करना और वैश्विक आर्थिक प्रणाली को बेहतर बनाना है, जिससे वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के बीच मजबूत समन्वय और सहयोग सुनिश्चित हो सके।
प्रश्न 16. एक राष्ट्रीय मुहिम ‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान’ चलाई गई है-
(a) आंवासहीन और निराश्रित लोगों के पुनर्वासन और उन्हें उपयुक्त जीविकोपार्जन के स्रोत प्रदान करने के लिए
(b) यौन-कर्मियों (सेक्स वर्कर्स) को उनके पेशे से मुक्त कराने और उन्हें जीविकोपार्जन के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने के लिए
(c) मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और मैला ढोने वाले कर्मियों के पुनर्वासन के लिए
(d) बंधुआ मजदूरों को उनके बंधन से मुक्त कराने और उनके पुनर्वासन के लिए
Ans. C
‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान’ भारत सरकार द्वारा चलाया गया एक अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना है। यह प्रथा, जो मुख्यतः जातिवाद से जुड़ी हुई है, समाज के सबसे निचले वर्ग के लोगों द्वारा की जाती है, जिन्हें अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ता है। अभियान का मुख्य उद्देश्य इन लोगों को उनके अपमानजनक कार्य से मुक्त कराना और उन्हें पुनर्वास के माध्यम से समाज की मुख्यधारा में समाहित करना है। यह पहल एक मानवीय दृष्टिकोण से अत्यधिक आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल समाज के कमजोर वर्गों को न्याय दिलाती है, बल्कि सामाजिक समानता और मानवाधिकारों की रक्षा भी करती है।
राष्ट्रीय गरिमा अभियान के अंतर्गत मैला ढोने वाले व्यक्तियों को नई कौशल प्रशिक्षण, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं, ताकि वे सम्मानजनक और स्वाभिमानी जीवन जी सकें। इसके अलावा, सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाते हैं ताकि समाज में इस घृणित प्रथा के खिलाफ एक मजबूत प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सके। इसके परिणामस्वरूप, यह अभियान न केवल उनके लिए अवसर प्रदान करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत भी करता है, जिससे समानता की दिशा में एक कदम और बढ़ाया जाता है।
अभियान के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार, नागरिक समाज संगठन और स्थानीय समुदायों का सक्रिय सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुनर्वास प्रक्रिया में मैला ढोने वाले व्यक्तियों और उनके परिवारों को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समर्थन प्रदान किया जाता है, ताकि वे एक बेहतर जीवन जी सकें। इसके तहत, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक सुरक्षा के लिए व्यापक योजनाएं बनाई जाती हैं। इस अभियान का उद्देश्य लंबे समय तक समाज में समानता, गरिमा और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस घृणित प्रथा का शिकार न हो।
प्रश्न 17. मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. तमिल क्षेत्र के सिद्ध (सित्तर) एकेश्वरवादी थे तथा मूर्तिपूजा की निंदा करते थे।
2. कन्नड़ क्षेत्र के लिंगायत पुनर्जन्म के सिद्धांत पर प्रश्न चिह्न लगाते थे तथा जाति अधिक्रम को अस्वीकार करते थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
मध्यकालीन भारत में तमिल क्षेत्र के सिद्ध (सित्तर) एकेश्वरवाद के महत्वपूर्ण समर्थक थे, जो मूर्तिपूजा और कर्मकांडों के विरोधी थे। सिद्धों का मानना था कि आत्मज्ञान और तपस्या के माध्यम से ईश्वर के साथ एकता स्थापित की जा सकती है। उनका ध्यान मुख्य रूप से बाहरी आडंबरों के बजाय आत्मा के शुद्धिकरण पर था। वे समाज में धार्मिक और सामाजिक सुधार की दिशा में अग्रसर थे, जो उनके समय में प्रचलित धार्मिक परंपराओं और जातिवाद से अलग था। सिद्धों का उद्देश्य था कि हर व्यक्ति भगवान के अस्तित्व को अपने हृदय में महसूस कर सके, न कि केवल बाहरी पूजा-पाठ द्वारा।
कन्नड़ क्षेत्र में लिंगायत समुदाय ने भी धार्मिक और सामाजिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लिंगायतों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत को खारिज कर दिया था, उनके अनुसार आत्मा का मोक्ष एकमात्र लक्ष्य था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने जाति व्यवस्था को भी पूरी तरह से नकारा और इसे समाज में भेदभाव और असमानता का कारण माना। लिंगायतों के सिद्धांत में विशेष रूप से समाज में समानता और समरसता का संदेश था।
सिद्धों और लिंगायतों के विचारों में एक समानता थी कि वे दोनों समाज में धार्मिक और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ थे। सिद्धों ने जहां एकेश्वरवाद और तात्त्विक ज्ञान की ओर प्रेरित किया, वहीं लिंगायतों ने सामाजिक समानता और जातिवाद के खिलाफ खड़ा होकर एक नया सामाजिक ढांचा प्रस्तुत किया। इन दोनों आंदोलनों ने भारतीय समाज के धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नए दृष्टिकोण से देखा और भारतीय समाज में सुधार के लिए आवाज उठाई।
प्रश्न 18. निम्नलिखित में से कौन-सा, कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले पद ‘आयात आवरण (इम्पोर्ट कवर)’ का सर्वोत्तम वर्णन करता है?
(a) यह किसी देश के आयात मूल्य एवं सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात को बताता है
(b) यह किसी देश के एक वर्ष में आयात के कुल मूल्य को बताता है
(c) यह दो देशों के बीच निर्यात एवं आयात के मूल्यों के अनुपात को बताता है
(d) यह उन महीनों की संख्या बताता है जितने महीनों के आयात का भुगतान देश के अंतर्राष्ट्रीय रिज़र्व द्वारा किया जा सकता है
Ans. D
“आयात आवरण” (Import Cover) एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार के आधार पर यह दर्शाता है कि उस देश के आयातों के भुगतान के लिए कितने महीने का रिज़र्व उपलब्ध है। यह एक प्रकार से देश की बाहरी भुगतान संतुलन क्षमता को मापने का उपकरण है और यह यह बताता है कि एक देश अपने आयात बिल को बिना किसी अतिरिक्त उधारी या वित्तीय संकट के कितने समय तक चुका सकता है।
यह संकेतक देशों के आर्थिक स्थिरता का मापदंड बनता है, क्योंकि जब किसी देश का आयात आवरण अधिक होता है, तो इसका अर्थ होता है कि उसके पास अपने आयातों के भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा रिज़र्व हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि देश अपने वित्तीय संकटों से निपटने में सक्षम है।
वहीं, जब आयात आवरण कम होता है, तो यह संकेत देता है कि देश के पास अंतर्राष्ट्रीय रिज़र्वों की कमी हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप वह वित्तीय संकट का सामना कर सकता है। इसलिए, आयात आवरण की स्थिरता और उसका पर्याप्त होना किसी भी देश की आर्थिक सेहत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से वैश्विक वित्तीय अस्थिरता के संदर्भ में।
प्रश्न 19. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[समाचारों में कभी-कभी उल्लिखित समुदाय – किसके मामले में]
1. कुर्द : बांग्लादेश
2. मधेसी : नेपाल
3. रोहिंग्या : म्यांमार
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3
Ans. C
कुर्द समुदाय, जो मुख्य रूप से तुर्की, इराक, सीरिया और ईरान में बसा हुआ है, बांग्लादेश से संबंधित नहीं है। कुर्दों की सांस्कृतिक पहचान और इतिहास इन देशों से जुड़ा हुआ है और वे इन क्षेत्रों में एक स्वायत्तता की माँग कर रहे हैं। बांग्लादेश में जहाँ एक ओर बंगाली संस्कृति और भाषा प्रमुख हैं, वहीं कुर्द समुदाय का वहाँ कोई स्थायी जनसंख्या या सांस्कृतिक प्रभाव नहीं है।
मधेसी समुदाय नेपाल के तराई क्षेत्र में निवास करता है, जो भारत से जुड़ा हुआ है। यह समुदाय नेपाल के समतल क्षेत्र में बसा हुआ है और इसमें भारतीय मूल के लोग शामिल हैं। मधेसी लोग नेपाल में लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, खासकर नागरिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व के लिए। नेपाल के संविधान में इस समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए कई बदलावों की आवश्यकता महसूस की गई है।
रोहिंग्या समुदाय म्यांमार के पश्चिमी भाग के राखीन राज्य से है। रोहिंग्याओं को म्यांमार में नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया है और उनके खिलाफ चल रहे अत्याचारों और हिंसा ने उन्हें दुनिया भर में शरणार्थी बना दिया है। म्यांमार में उनके उत्पीड़न को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने व्यापक रूप से स्वीकार किया है।
प्रश्न 20. ‘रासायनिक आयुध निषेध संगठन (Organization for the Prohibition of Chemical Weapons (OPCW)]’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह यूरोपीय संघ का एक संगठन है जिसका NATO तथा WHO से कार्यकारी संबंध है।
2. यह नए शस्त्रों के प्रादुर्भाव को रोकने के लिए रासायनिक उद्योग का अनुवीक्षण करता है।
3. यह राज्यों (पार्टियों) को रासायनिक आयुध के खतरे के विरुद्ध सहायता एवं संरक्षण प्रदान करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
रासायनिक आयुध निषेध संगठन (OPCW) का गठन 1997 में रासायनिक हथियारों की निषेध संधि (CWC) के कार्यान्वयन के लिए हुआ था। इसका उद्देश्य रासायनिक हथियारों का उत्पादन, भंडारण, उपयोग और प्रसार रोकना है। OPCW का मुख्यालय हाग, नीदरलैंड्स में स्थित है और यह संगठन वैश्विक स्तर पर रासायनिक हथियारों के खिलाफ निगरानी और नियंत्रण करता है। OPCW का कार्य केवल एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते को लागू करना नहीं है, बल्कि यह सदस्य देशों को रासायनिक हमलों से बचाने और सुरक्षा उपायों को लागू करने में भी मदद करता है। इसलिए, पहला कथन गलत है क्योंकि OPCW यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं है और न ही इसका NATO या WHO से कोई कार्यकारी संबंध है।
OPCW की एक अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रासायनिक उद्योग की निगरानी करना है, ताकि नए शस्त्रों का विकास न हो। यह संगठन रासायनिक उद्योग में निरीक्षण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी रासायनिक पदार्थ जो रासायनिक हथियारों के रूप में उपयोग हो सकता है, उसका उत्पादन या भंडारण न हो। OPCW ने एक मजबूत निरीक्षण तंत्र विकसित किया है जो देशों में रासायनिक हथियारों के नियंत्रण में मदद करता है। यह पहल रासायनिक हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। दूसरे कथन में उल्लिखित उद्देश्य के संदर्भ में, OPCW इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल है।
OPCW का तीसरा उद्देश्य सदस्य देशों को रासायनिक हमलों के खतरे से सुरक्षा प्रदान करना है। यह संगठन न केवल रासायनिक हमलों से बचाव के लिए प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करता है, बल्कि यह रासायनिक हमलों के बाद राहत और पुनर्वास का भी कार्य करता है। संगठन सदस्य देशों को रासायनिक हथियारों के प्रभावों से निपटने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करता है और आपातकालीन परिस्थितियों में त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है। इसका कार्य वैश्विक सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे यह साबित होता है कि तीसरा कथन सही है।
प्रश्न 21. ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. इस योजना के अंतर्गत कृषकों को वर्ष के किसी भी मौसम में उनके द्वारा किसी भी फसल की खेती करने पर दो प्रतिशत की एकसमान दर से बीमा किश्त का भुगतान करना होगा।
2. यह योजना, चक्रवात एवं गैर-मौसमी वर्षा से होने बाले कटाई-उपरांत घाटे को बीमाकृत करती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा किसानों को कृषि जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और अन्य कारकों से प्रभावित किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है। इस योजना के तहत किसानों को फसल बीमा प्रीमियम का भुगतान करना होता है, जो उनके द्वारा बीमा की जाने वाली फसल की प्रकृति, क्षेत्र और मौसम के आधार पर निर्धारित किया जाता है। इसलिए, यह कथन कि किसान हमेशा 2% की एकसमान दर से प्रीमियम का भुगतान करते हैं, गलत है।
इस योजना में प्रमुख रूप से चक्रवात, बेमौसम वर्षा, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कवर किया जाता है। यह विशेष रूप से फसल कटाई के बाद उत्पन्न होने वाले घाटों के लिए है, जब मौसम या अन्य अप्रत्याशित घटनाएँ फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। यह बीमा किसानों को आपातकालीन स्थिति में वित्तीय मदद प्रदान करता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहती है।
इस योजना के माध्यम से किसानों को वित्तीय सहायता के रूप में नुकसान की भरपाई की जाती है, जिससे वे कृषि में निरंतरता बनाए रख सकते हैं। यह योजना किसानों के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करती है, जो उनकी खेती के दौरान उत्पन्न होने वाली अनिश्चितताओं से उन्हें बचाती है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होती है।
प्रश्न 22. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से ‘ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल’ के अपने प्राकृतिक आवास में पाए जाने की सबसे अधिक सम्भावना कहाँ है?
(a) उत्तर-पश्चिमी भारत के रेतीले मरुस्थल
(b) जम्मू-कश्मीर के उच्चतर हिमालय क्षेत्र
(c) पश्चिमी गुजरात के लवण कच्छ क्षेत्र
(d) पश्चिमी घाट
Ans. D
ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल, भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण पक्षी, मुख्य रूप से पश्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है। यह पक्षी वनों की ऊँचाई पर घने और विविध पारिस्थितिकी तंत्र में निवास करता है। पश्चिमी घाट, जो जैव विविधता से समृद्ध है, ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल के लिए उपयुक्त आहार, प्रजनन स्थल और सुरक्षा प्रदान करता है। यह क्षेत्र घने वृक्षों, जिनमें छेद होते हैं, के लिए प्रसिद्ध है, जो हॉर्नबिल के घोंसले बनाने के लिए आदर्श होते हैं।
इसके अतिरिक्त, पश्चिमी घाट में स्थित वनों की संरचना और जलवायु इस पक्षी के जीवन चक्र के लिए उपयुक्त है। यह पक्षी फल, बीज और फूलों का सेवन करता है, जो इन वर्षा वनों में प्रचुर मात्रा में होते हैं। वनों की घनी छांव और नमी भी इसे अपने अस्तित्व को बनाए रखने में मदद करती है, क्योंकि इन जलवायु परिस्थितियों में इसकी प्रजाति का संरक्षण संभव होता है।
इसके अलावा, पश्चिमी घाट का जैविक विविधता हॉटस्पॉट के रूप में महत्व और संरक्षित वनों की उपस्थिति ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल के संरक्षण के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है। ये क्षेत्र पक्षी की प्रजनन और वितरण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहाँ का प्राकृतिक आवास इस पक्षी के अस्तित्व के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ प्रदान करता है, जिससे यह निश्चित रूप से ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल के लिए सर्वोत्तम निवास स्थल है।
प्रश्न 23. निम्नलिखित में से कौन-सी, ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण [National Ganga River Basin Authority (NGRBA)]’ की प्रमुख विशेषताएँ है?
1. नदी बेसिन, योजना एवं प्रबंधन की इकाई है।
2. यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण प्रयासों की अगुवाई करता है।
3. NGRBA का अध्यक्ष चक्रानुक्रमिक आधार पर उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक होता है, जिनसे होकर गंगा बहती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. A
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की स्थापना भारत सरकार ने गंगा नदी के जल, पारिस्थितिकी और पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए की थी। यह एक प्रमुख संगठन है जो गंगा नदी के बेसिन के प्रबंधन और विकास के लिए जिम्मेदार है। NGRBA नदी के समग्र प्रबंधन के उद्देश्य से कार्य करता है, जो जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जल गुणवत्ता, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के पहलुओं का समग्र अध्ययन करता है। यह प्राधिकरण गंगा नदी के जल और उसके पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक नजर रखता है और इसके संरक्षण के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करता है।
NGRBA राष्ट्रीय स्तर पर गंगा नदी के संरक्षण प्रयासों की अगुवाई करता है। यह नदी बेसिन के विभिन्न हिस्सों में पर्यावरणीय सुधार के लिए केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारी निकायों के साथ समन्वय करता है। इसके अंतर्गत नदी में प्रदूषण को कम करने के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएँ लागू की जाती हैं, जैसे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण और जल स्रोतों की गुणवत्ता को सुधारना। NGRBA का कार्यक्षेत्र गंगा नदी के पूरे बेसिन में फैला हुआ है और यह सुनिश्चित करता है कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार हो और नदी के पानी की गुणवत्ता में स्थिरता बनी रहे।
प्राधिकरण का अध्यक्ष केंद्रीय जल संसाधन मंत्री होता है, जो गंगा नदी के प्रबंधन और संरक्षण के लिए नीतिगत निर्णय लेने में मुख्य भूमिका निभाता है। हालांकि, यह अध्यक्ष चक्रानुक्रमिक आधार पर उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक नहीं होता, जिनसे गंगा बहती है। इसके कार्य में केंद्रीय नेतृत्व का प्रभाव होता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि गंगा की स्वच्छता और संरक्षण के लिए आवश्यक योजनाएँ प्रभावी रूप से लागू हों। इस प्रकार, NGRBA के कार्यों का नेतृत्व केंद्रीय मंत्रालय द्वारा किया जाता है, न कि राज्य सरकारों द्वारा।
प्रश्न 24. भारत सरकार कृषि में ‘नीम-आलेपित यूरिया (Neem-coated Urea)’ के उपयोग को क्यों प्रोत्साहित करती है?
(a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ता है
(b) नीम लेप, मृदा में यूरिया के घुलने की दर को धीमा कर देता है
(c) नाइट्रस ऑक्साइड, जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है, फसल वाले खेतों से वायुमंडल में बिलकुल भी विमुक्त नहीं होती है
(d) विशेष फसलों के लिए यह एक अपतृणनाशी (वीडिसाइड) और एक उर्वरक का संयोजन है
Ans. B
नीम-आलेपित यूरिया का उपयोग कृषि में बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण यह है कि यह मृदा में यूरिया के घुलने की दर को नियंत्रित करता है। सामान्य यूरिया का त्वरित घुलना नाइट्रोजन की वाष्पीकरण दर को बढ़ा सकता है, जिससे इसकी उपलब्धता कम हो जाती है। इसके विपरीत, नीम-आलेपित यूरिया में नीम का लेप इसे धीरे-धीरे घुलने की क्षमता प्रदान करता है। इससे मृदा में नाइट्रोजन की स्थिरता बनी रहती है, जो फसलों को समय पर और उचित मात्रा में पोषण प्रदान करती है। इस प्रक्रिया से न केवल उर्वरक का उचित उपयोग होता है, बल्कि इससे मृदा की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
इसके अतिरिक्त, नीम-आलेपित यूरिया के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन पर नियंत्रण पाया जाता है। नाइट्रस ऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है, जो वैश्विक तापन और पर्यावरणीय असंतुलन में योगदान करती है। सामान्य यूरिया के उपयोग से यह गैस खेतों से वायुमंडल में उत्सर्जित होती है, लेकिन नीम-आलेपित यूरिया के धीमे घुलने के कारण यह उत्सर्जन नियंत्रित होता है। इससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है, जो दीर्घकालिक कृषि विकास और पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
नीम-आलेपित यूरिया का एक अन्य लाभ यह है कि यह मृदा में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाता है। नीम के तेल में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण मृदा में कीटों और रोगजनकों के प्रभाव को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार, यह उर्वरक कीटनाशकों के उपयोग को कम करता है और मृदा की जैविक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है। नीम-आलेपित यूरिया के प्रयोग से खेती में प्राकृतिक संतुलन बना रहता है और यह पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाले बिना उत्पादन में वृद्धि करने में मदद करता है।
प्रश्न 25. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. किसी राज्य में मुख्य सचिव को उस राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
2. राज्य में मुख्य सचिव का नियत कार्यकाल होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. D
भारत में राज्य के मुख्य सचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया संविधान और अन्य प्रशासनिक नियमों के तहत तय की जाती है। मुख्य सचिव राज्य के प्रशासन का प्रमुख अधिकारी होता है और वह राज्य सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में सलाहकार की भूमिका निभाता है। हालांकि, मुख्य सचिव की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा नहीं, बल्कि राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति राज्य सरकार की प्रशासनिक आवश्यकताओं और अधिकारी की क्षमता के आधार पर की जाती है। राज्यपाल का केवल अनुमोदन आवश्यक होता है, लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया राज्य सरकार की कार्यकारी शक्ति के तहत होती है।
मुख्य सचिव का कार्यकाल निश्चित नहीं होता और यह कार्यकर्ता की कार्यक्षमता, राज्य सरकार के प्रशासनिक निर्णयों और आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। कार्यकाल को विस्तार या परिवर्तन के आधार पर किया जा सकता है, जो प्रशासनिक परिस्थिति के अनुसार होता है। राज्य सरकार में अधिकारियों के प्रदर्शन को देखकर और जरूरतों के अनुरूप कार्यकाल में बदलाव किया जा सकता है। मुख्य सचिव का कार्यकाल पूरी तरह से राज्य सरकार के अधीन होता है।
मुख्य सचिव का कार्य राज्य सरकार की योजना और नीतियों के सफल कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह राज्य के विभिन्न विभागों का समन्वय करता है और मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य करता है। सचिवालय की प्रशासनिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने, कर्मचारियों की निगरानी और राज्य सरकार के निर्णयों के निष्पादन में वह मुख्य भूमिका निभाता है। राज्य की शासन व्यवस्था में मुख्य सचिव का पद महत्वपूर्ण होता है और प्रशासन के प्रभावी संचालन में उनका योगदान अत्यधिक होता है।
मुख्य सचिव की भूमिका राज्य सरकार की निर्णय क्षमता को बढ़ाने, प्रशासनिक कार्यों के समन्वय और राज्य की नीति बनाने में मदद करने में महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 26. ‘स्टैंड अप इंडिया स्कीम (Stand Up India Scheme)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. इसका प्रयोजन SC/ST एवं महिला उद्यमियों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना है।
2. यह SIDBI के माध्यम से पुनर्वित्त का प्रावधान करता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
‘स्टैंड अप इंडिया स्कीम’ की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं के लिए उद्यमिता को बढ़ावा देना है। यह योजना विशेष रूप से उनके लिए एक अवसर प्रदान करती है, ताकि वे स्वतंत्र रूप से छोटे और मझोले उद्योग स्थापित कर सकें और आत्मनिर्भर बन सकें। इसके तहत, 10 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है, जो छोटे व्यवसाय शुरू करने में सहायक होते हैं।
यह योजना भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है। SIDBI इन ऋणों का पुनर्वित्त करता है, जिससे बैंकों के लिए ऋण वितरण की प्रक्रिया सरल और पारदर्शी हो जाती है। इसके तहत, व्यवसाय को शुरू करने के लिए कार्यशील पूंजी, भवन निर्माण, उपकरणों की खरीद आदि के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। यह सहायता सभी प्रकार के छोटे और मझोले उद्यमों के लिए उपलब्ध है, जिनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को समर्थन प्रदान करना है।
इसके अलावा, ‘स्टैंड अप इंडिया स्कीम’ के तहत उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में, लाभार्थियों को वित्तीय प्रबंधन, व्यवसाय योजना बनाने और बाजार की समझ जैसी आवश्यक चीजों का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह योजना न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक समानता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रकार, यह योजना भारत के सामाजिक और आर्थिक परिवेश में एक सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है।
प्रश्न 27. FAO, पारम्परिक कृषि प्रणालियों को ‘सार्वभौम रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली [Globally Important Agricultural Heritage System (GIAHS)]’ की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है?
1. अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए
2. पारितंत्र-अनुकूली परम्परागत कृषि पद्धतियाँ और उनसे संबंधित परिदृश्य (लैंडस्केप), कृषि जैव ‘विविधता और स्थानीय समुदायों के ज्ञानतंत्र का अभिनिर्धारण एवं संरक्षण करना
3. इस प्रकार अभिनिर्धारित GIAHS के सभी भिन्न-भिन्न कृषि उत्पादों को भौगोलिक सूचक (जिओग्राफिकल इंडिकेशन) की हैसियत प्रदान करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
FAO द्वारा प्रस्तुत Globally Important Agricultural Heritage Systems (GIAHS) पहल का उद्देश्य पारंपरिक कृषि प्रणालियों के संरक्षण और बढ़ावा देना है। इन प्रणालियों को अक्सर स्थानीय समुदायों द्वारा विकसित किया जाता है, जो पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाकर खेती करते हैं। इनका प्रभाव पारिस्थितिकीय संतुलन, जैव विविधता और पानी की बचत में देखा जाता है। GIAHS प्रणाली में खेती की पारंपरिक विधियाँ, जैसे जैविक खेती, फसल चक्रीयता, जल प्रबंधन की पारंपरिक तकनीकें शामिल हैं, जो दीर्घकालिक स्थिरता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती हैं।
यह पहल पारंपरिक पद्धतियों के संरक्षण के साथ-साथ, स्थानीय ज्ञान और संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है। GIAHS का एक उद्देश्य इन प्रणालियों को वैश्विक पहचान दिलाना है ताकि उन्हें और अधिक संरक्षण और प्रोत्साहन मिल सके। यह पहल विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए है, जहां कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। GIAHS के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र, उच्च जैव विविधता और पारिस्थितिकीय सेवा प्रदान करते हैं।
GIAHS का कार्यक्षेत्र केवल कृषि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्थानीय समुदायों के ज्ञान, परंपराओं और जीवनशैली का भी संरक्षण किया जाता है। यह पहल विभिन्न शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ प्रदान करती है और साथ ही आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होती है। GIAHS की सहायता से इन क्षेत्रों को न केवल संरक्षण मिलता है, बल्कि इसके उत्पादों को वैश्विक बाजारों में पहचान भी मिलती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 28. निम्नलिखित में से कौन-सी, ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है/नदियाँ है?
1. दिबांग
2. कर्मेग
3. लोहित
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
ब्रह्मपुत्र नदी, जो उत्तर-पूर्वी भारत से होकर बहती है, एक प्रमुख जल स्रोत है और इसके सहायक नदियाँ क्षेत्र के जलवायु और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। दिबांग नदी, जो अरुणाचल प्रदेश में उत्पन्न होती है, ब्रह्मपुत्र की एक प्रमुख सहायक नदी है। यह नदी ब्रह्मपुत्र में जल की आपूर्ति करती है और अपनी जलधारा के माध्यम से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है। दिबांग नदी का जल प्रवाह स्थानीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सिंचाई का प्रमुख स्रोत है।
कर्मेग नदी, जो पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश से बहती है, ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है। यह नदी क्षेत्रीय जलसंचय का महत्वपूर्ण हिस्सा है और नदी के जल स्तर को नियंत्रित करती है। कर्मेग नदी के जल प्रवाह से ब्रह्मपुत्र का जलमूल्य बढ़ता है, जिससे यह अधिक स्थिर और निरंतर प्रवाहित होती है।
लोहित नदी, जो अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से होकर बहती है, ब्रह्मपुत्र नदी की तीसरी प्रमुख सहायक नदी है। यह नदी भी स्थानीय कृषि और जल आपूर्ति में योगदान करती है। लोहित नदी का प्रभाव स्थानीय जलवायु और पारिस्थितिकीय संतुलन पर भी देखा जाता है। इन तीन नदियों का सम्मिलित जल प्रवाह ब्रह्मपुत्र नदी के महत्व को बढ़ाता है और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करता है।
प्रश्न 29. ‘कोर बैंकिंग समाधान (Core Banking Solutions)’ पद कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है। निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से इस पद का सही वर्णन करता है/करते हैं?
1. यह बैंक की शाखाओं का वह तंत्र है जो उपभोक्ताओं को अपने खातों का संचालन बैंक की किसी भी शाखा से कर सकने की सुविधा देता है चाहे उन्होंने अपना खाता कहीं भी खोल रखा हो।
2. यह व्यावसायिक बैंकों पर कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से RBI का नियंत्रण बढ़ाने का एक प्रयास है।
3. यह एक विस्तृत प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशाल अनर्जक (नॉन-परफॉर्मिंग) परिसम्पत्ति वाले बैंक का अधिग्रहण दूसरे बैंक द्वारा कर लिया जाता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. A
कोर बैंकिंग समाधान (CBS) एक केंद्रीयकृत प्रणाली है, जिसे बैंकिंग क्षेत्र में तकनीकी सुधार और उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए विकसित किया गया है। यह प्रणाली ग्राहकों को बैंक की किसी भी शाखा से अपने खाते का संचालन करने की अनुमति देती है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति ने दिल्ली में खाता खोला है, तो वह अपनी जमा, निकासी या अन्य ट्रांजेक्शन के लिए मुम्बई की शाखा का भी उपयोग कर सकता है। इसका प्रमुख उद्देश्य ग्राहकों के लिए अधिक सुलभ और सुविधाजनक बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना है।
इसके माध्यम से बैंकिंग संचालन में दक्षता आती है, क्योंकि सभी शाखाएं एक साझा डेटाबेस से जुड़ी होती हैं। इससे खातों, लेन-देन और सेवाओं का रिकॉर्ड भी तुरंत अपडेट होता है, जिससे ग्राहकों को समय की बचत होती है। इसके अलावा, CBS के जरिए बैंक के ऑपरेशन्स को आसानी से मॉनिटर किया जा सकता है, जिससे उसकी पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ती है।
CBS का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बैंकों के कार्यों को कंप्यूटरीकृत और केंद्रीकृत करता है, जिससे कार्यों में दक्षता और गति आती है। इसके द्वारा बैंक अपने सभी सेवाओं को एक ही प्लेटफॉर्म पर संगठित कर सकते हैं, जो बैंकिंग प्रणाली को बेहतर और अधिक लचीला बनाता है। यह किसी भी प्रकार के अधिग्रहण या नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स से संबंधित नहीं है, बल्कि यह मुख्य रूप से उपभोक्ता सेवा को बेहतर बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
प्रश्न 30. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[कभी-कभी समाचारों में देखे जाने वाले शब्द – उनका मूल स्रोत]
1. एनेक्स-1 देश : कार्याजेना प्रोटोकॉल
2. प्रमाणित उत्सर्जन कटौतियाँ (सर्टिफाइड एमिशंस रिडक्शंस) : नागोया प्रोटोकॉल
3. स्वच्छ विकास क्रियाविधि (क्लीन डेवलपमेंट मेकेनिज्म) : क्योटो प्रोटोकॉल
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
स्वच्छ विकास क्रियाविधि (Clean Development Mechanism – CDM) क्योटो प्रोटोकॉल के तहत एक प्रमुख तंत्र है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता प्रदान करना है। CDM के माध्यम से, विकसित देशों को विकासशील देशों में पर्यावरणीय परियोजनाओं में निवेश करने का अवसर मिलता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सके। इसके बदले में, विकसित देशों को ‘प्रमाणित उत्सर्जन कटौती’ (Certified Emission Reductions – CERs) मिलते हैं, जिन्हें वे अपने उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को पूरा करने में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह एक बाजार-आधारित तंत्र है, जो वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है।
एनेक्स-1 देशों की सूची क्योटो प्रोटोकॉल में तय की गई है, जिसमें उन देशों को रखा गया है जिनके लिए उत्सर्जन कटौती के स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित हैं। हालांकि, यह कार्याजेना प्रोटोकॉल से संबंधित है, जो जलवायु परिवर्तन पर समझौतों के कार्यान्वयन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है, लेकिन CDM से इसका सीधा संबंध नहीं है।
नागोया प्रोटोकॉल जैव विविधता से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो पारंपरिक ज्ञान और जैविक संसाधनों के संरक्षण एवं उचित उपयोग पर केंद्रित है। इसका सीधा संबंध CDM और क्योटो प्रोटोकॉल से नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से अधिक जैव विविधता संरक्षण है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के नियंत्रण से अलग है।
प्रश्न 31. जैव सूचना-विज्ञान (बायोइंफॉर्मेटिक्स) में घटनाक्रमों/गतिविधि के संदर्भ में समाचारों में कभी-कभी दिखने वाला पद ‘ट्रांसक्रिप्टोम (Transcriptome)’ किसे निर्दिष्ट करता है?
(a) जीनोम संपादन (जीनोम एडिटिंग) में प्रयुक्त एंजाइमों की एक श्रेणी
(b) किसी जीव द्वारा अभिव्यक्त mRNA अणुओं की पूर्ण श्रृंखला
(c) जीन अभिव्यक्ति की क्रियाविधि का वर्णन
(d) कोशिकाओं में होने वाले आनुवंशिक उत्परिवर्तनों की एक क्रियाविधि
Ans. B
ट्रांसक्रिप्टोम किसी जीव के समग्र mRNA अणुओं का समूह होता है, जो उस जीव के जीनोम में व्यक्त होते हैं। यह प्रक्रिया जीन अभिव्यक्ति का प्रमुख हिस्सा होती है, जिसमें DNA से mRNA का ट्रांसक्रिप्शन होता है। mRNA अणु कोशिकाओं में प्रोटीन निर्माण के लिए आवश्यक सूचना ले जाते हैं। जब कोई जीन सक्रिय होता है, तो वह mRNA उत्पन्न करता है, जो फिर प्रोटीन में परिवर्तित होता है। इसलिए, ट्रांसक्रिप्टोम का अध्ययन जीनोमिक और प्रोटीन संश्लेषण की समझ को विस्तारित करता है और यह किसी जीव की कार्यप्रणाली को समझने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ट्रांसक्रिप्टोम का अध्ययन एक जीव के विकास, वृद्धि और स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। यह अध्ययन यह पहचानने में मदद करता है कि कौन से जीन किसी विशेष परिस्थिति में सक्रिय होते हैं और वे किस प्रकार से रोगों और अन्य जैविक प्रक्रियाओं से संबंधित होते हैं। उदाहरण स्वरूप, कैंसर या अन्य जटिल रोगों के अध्ययन में ट्रांसक्रिप्टोम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह उन जीनों की पहचान करने में मदद करता है जो बीमारी के विकास में सहायक होते हैं।
बायोइंफॉर्मेटिक्स का उपयोग ट्रांसक्रिप्टोम डेटा को संग्रहित करने, विश्लेषण करने और इंटरप्रेट करने के लिए किया जाता है। इसके माध्यम से बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण किया जाता है, जिससे जीन अभिव्यक्ति के पैटर्न को समझा जा सकता है। यह जानकारी कृषि, जैविक अनुसंधान और चिकित्सा के क्षेत्र में नवाचार की संभावनाओं को खोलती है, जैसे कि कृषि में पौधों की उर्वरता बढ़ाने या चिकित्सा में रोगों के लिए नई दवाओं की खोज।
प्रश्न 32. भारत सरकार द्वारा चलाया गया ‘मिशन इंद्रधनुष’ किससे संबंधित है?
(a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण
(b) पूरे देश में स्मार्ट सिटि का निर्माण
(c) बाहरी अंतरिक्ष में पृथ्वी-सदृश ग्रहों के लिए भारत की स्वयं की खोज
(d) नई शिक्षा नीति
Ans. A
‘मिशन इंद्रधनुष’ एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम है, जो भारत सरकार द्वारा बच्चों और गर्भवती महिलाओं को जीवन-रक्षक टीकों से सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। यह अभियान 12 प्रमुख रोगों जैसे- पोलियो, खसरा, काली खांसी, टिटनस और डिप्थीरिया के खिलाफ टीकाकरण करने पर केंद्रित है। मिशन का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सभी आवश्यक टीके उपलब्ध कराना और टीकाकरण दर में सुधार करना है।
इस कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य उन क्षेत्रों में टीकाकरण दर को बढ़ाना है, जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित है। खासकर, यह दूरदराज और अभिगम्य क्षेत्रों में रह रहे बच्चों और महिलाओं तक टीकों की पहुंच सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। स्वास्थ्य कर्मी इन इलाकों में जाकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण करते हैं, ताकि कोई भी बच्चा टीकाकरण से वंचित न रहे।
‘मिशन इंद्रधनुष’ के अंतर्गत स्वास्थ्य कार्यकर्ता और स्वास्थ्य संस्थाएं मिलकर नियमित रूप से विभिन्न क्षेत्रों में विशेष अभियान चलाती हैं। इसके अतिरिक्त, टीकाकरण के लाभ और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाता है। यह कार्यक्रम न केवल संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए प्रभावी है, बल्कि यह भारत के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने में भी सहायक है।
प्रश्न 33. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘हरित भारत मिशन (Green India Mission)’ के उद्देश्य को सर्वोत्तम रूप से वर्णित करता है/करते हैं?
1. पर्यावरणीय लाभों एवं लागतों को केंद्र एवं राज्य के बजट में सम्मिलित करते हुए तद्द्वारा ‘हरित लेखाकरण (ग्रीन अकाउंटिंग) को अमल में लाना
2. कृषि उत्पाद के संवर्धन हेतु द्वितीय हरित क्रांति आरम्भ करना जिससे भविष्य में सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो
3. वन आच्छादन की पुनर्प्राप्ति और संवर्धन करना तथा अनुकूलन (अडैप्टेशन) एवं न्यूनीकरण (मिटिगेशन) के संयुक्त उपायों से जलवायु परिवर्तन का प्रत्युत्तर देना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
हरित भारत मिशन का उद्देश्य भारत के वन आच्छादन को बढ़ाना और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाना है। यह मिशन भारत के पर्यावरणीय ढांचे को सुधारने के लिए लागू किया गया है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके और पर्यावरणीय संतुलन बना रहे। मिशन के तहत वन क्षेत्र की वृद्धि, जैव विविधता का संरक्षण और वनीकरण गतिविधियों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अंतर्गत वनस्पति एवं पेड़-पौधों की बढ़ोतरी को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास किए जाते हैं।
इसके अलावा, अनुकूलन और न्यूनीकरण (Adaptation and Mitigation) उपायों को बढ़ावा देना भी इस मिशन का अहम हिस्सा है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए विशेष उपायों का निर्माण किया जाता है। इसमें प्रमुख रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने हेतु विभिन्न रणनीतियाँ और प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है, जैसे- अधिक जल संचयन की प्रक्रिया, सूखा सहनशील कृषि पद्धतियाँ और जलवायु में बदलाव को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाएं।
ग्रीन अकाउंटिंग (Green Accounting) को भी मिशन के अंतर्गत शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य देश के पर्यावरणीय संसाधनों का सही लेखा-जोखा रखना है। इसके माध्यम से पर्यावरणीय लागतों और लाभों को सरकारी बजट में शामिल किया जाता है, जिससे न केवल आर्थिक विकास बल्कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जाती है। इस तरह का दृष्टिकोण दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करता है और पर्यावरणीय मूल्यांकन को मुख्यधारा में लाता है।
प्रश्न 34. भारत में, पूर्व-संवेष्टित (प्रीपैकेज्ड) वस्तुओं के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के अनुसार किसी निर्माता को मुख्य लेबल पर निम्नलिखित में से कौन-सी सूचना अंकित करना अनिवार्य है?
1. संघटकों की सूची, जिसमें संयोजी शामिल हैं
2. पोषण-विषयक सूचना
3. चिकित्सा व्यवसाय द्वारा दी गई किसी एलर्जी प्रतिक्रिया की संभावना के संदर्भ में संस्तुतियाँ, यदि कोई हैं
4. शाकाहारी/मांसाहारी
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 4
(d) केवल 1 और 4
Ans. C
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के तहत, पूर्व-संवेष्टित (प्रीपैकेज्ड) खाद्य पदार्थों के लेबल पर कई महत्वपूर्ण जानकारी अंकित करना अनिवार्य है। सबसे पहले, संघटकों की सूची (ingredients list) का होना आवश्यक है, जिसमें खाद्य सामग्री के प्रत्येक घटक का उल्लेख होना चाहिए, विशेष रूप से यदि कोई उपभोक्ता को एलर्जी का खतरा हो। यह जानकारी उपभोक्ताओं को यह समझने में मदद करती है कि खाद्य पदार्थ में कौन से तत्व शामिल हैं और वे अपनी खाद्य प्राथमिकताओं के अनुसार चयन कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, पोषण-विषयक सूचना (nutritional information) का उल्लिखित होना भी अनिवार्य है। इस सूचना में उत्पाद के पोषण तत्व जैसे कि कैलोरी, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट की जानकारी प्रदान की जाती है। यह जानकारी उपभोक्ताओं को उनके आहार संबंधी निर्णयों में मार्गदर्शन करती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो वजन घटाने या स्वास्थ्य संबंधी आहार योजना पर हैं।
साथ ही, शाकाहारी या मांसाहारी के रूप में उत्पाद का वर्गीकरण करना भी अनिवार्य है। यह जानकारी उपभोक्ताओं को अपने आहार के अनुसार खाद्य पदार्थ का चयन करने में सहायता प्रदान करती है। यह विशेष रूप से उन उपभोक्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो शाकाहारी या मांसाहारी आहार का पालन करते हैं। इसके अलावा, यदि कोई खाद्य पदार्थ एलर्जी का कारण बन सकता है, तो यह जानकारी भी अंकित की जाती है, ताकि उपभोक्ताओं को किसी संभावित स्वास्थ्य जोखिम से बचाया जा सके।
प्रश्न 35. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाला ‘प्रोजेक्ट लून (Project Loon)’ संबंधित है-
(a) अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकी से
(b) बेतार-संचार प्रौद्योगिकी से
(c) सौर ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकी से
(d) जल-संरक्षण प्रौद्योगिकी से
Ans. B
‘प्रोजेक्ट लून’ गूगल द्वारा शुरू किया गया एक उन्नत बेतार-संचार प्रौद्योगिकी है, जिसका उद्देश्य दुनिया के दूर-दराज और इंटरनेट से अछूते क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करना है। यह परियोजना विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों के लिए है जहां परंपरागत संचार नेटवर्क स्थापित करना मुश्किल होता है। 2013 में इस परियोजना की शुरुआत की गई थी और तब से इसकी परीक्षण उड़ानें और उपयोगिता बढ़ी हैं। प्रोजेक्ट लून में उच्च-ऊंचाई वाले सौर ऊर्जा से संचालित गुब्बारे (हाई-एल्टीट्यूड बैलून) उपयोग किए जाते हैं, जो लगभग 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ते हैं और एक विस्तृत क्षेत्र में इंटरनेट सेवा प्रदान करते हैं।
इस तकनीक का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, जैसे भूकंप, बाढ़ या अन्य संकट के समय में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करना भी है। इसके अलावा, यह उन क्षेत्रों में इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए उपयोगी है, जो भौगोलिक या आर्थिक दृष्टि से कम विकासित हैं। ये गुब्बारे वैश्विक स्तर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी के विस्तार में सहायक होते हैं और विभिन्न उपग्रहों से जुड़े होते हुए एक मजबूत संचार नेटवर्क की स्थापना करते हैं।
प्रोजेक्ट लून की सफलता की संभावना को देखते हुए, यह भविष्य में सौर ऊर्जा आधारित इंटरनेट नेटवर्क का एक महत्वपूर्ण मॉडल बन सकता है। इसके माध्यम से, इंटरनेट की पहुंच को महंगे और सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी लाया जा सकता है, जिससे डिजिटल विभाजन को समाप्त करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, यह अन्य नेटवर्क समाधानों की तुलना में अधिक लागत-कुशल है और इसकी लचीलापन क्षमता अन्य पारंपरिक नेटवर्किंग प्रणालियों से बेहतर है।
प्रश्न 36. कभी-कभी समाचारों में ‘नेट मीटरिंग (Net Metering)’ निम्नलिखित में से किसको प्रोत्साहित करने के संदर्भ में देखा जाता है?
(a) परिवारों/उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग
(b) घरों के रसोईघरों में पाइप्ड नैचरल गैस का उपयोग
(c) मोटरगाड़ियों में CNG किट लगवाना
(d) शहरी घरों में पानी के मीटर लगवाना
Ans. A
नेट मीटरिंग एक ऐसी प्रणाली है, जो उपभोक्ताओं को उनके द्वारा उत्पादित अतिरिक्त सौर ऊर्जा को ग्रिड में वापस भेजने की अनुमति देती है। इस प्रक्रिया में, जब किसी घर या व्यवसाय में सौर पैनलों के माध्यम से उत्पन्न बिजली का उपयोग पूरा हो जाता है, तो अतिरिक्त ऊर्जा ग्रिड में भेजी जाती है। इसके बदले में उपभोक्ताओं को क्रेडिट मिलता है, जिसे भविष्य में उनकी बिजली की खपत के रूप में समायोजित किया जाता है। इससे न केवल ऊर्जा की बचत होती है, बल्कि बिजली बिलों में भी कमी आती है।
भारत में, नेट मीटरिंग का व्यापक प्रचार-प्रसार 2010 के दशक में हुआ था, जब सरकार ने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां बनाई। इस प्रणाली को लागू करने से, भारत में सौर ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि हुई है और यह स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। सरकार द्वारा इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
यह प्रणाली न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद है। इससे उपभोक्ताओं को स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा का स्रोत प्राप्त होता है, जिससे उनकी ऊर्जा लागत में कमी आती है। इसके अतिरिक्त, यह सरकार की नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में प्रयासों को भी समर्थन देता है, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा में सुधार होता है। इससे जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को भी कम करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 37. ‘व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक (Ease of Doing Business Index)’ में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है?
(a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
Ans. C
‘व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक’ (Ease of Doing Business Index) विश्व बैंक द्वारा तैयार किया जाता है, जो विभिन्न देशों में व्यापार की शुरुआत और संचालन के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं और नियामक वातावरण का मूल्यांकन करता है। इसमें विभिन्न पहलुओं का आकलन किया जाता है, जैसे कि व्यापार पंजीकरण, निर्माण के लिए अनुमति, भूमि अधिग्रहण, श्रम कानूनों का अनुपालन और कर भुगतान की प्रक्रिया। यह सूचकांक वैश्विक स्तर पर व्यापारिक वातावरण की गुणवत्ता को मापने का एक प्रमुख उपकरण है, जो निवेशकों को संभावित निवेश स्थलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
भारत ने व्यापार के माहौल में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। 2014 के बाद से, सरकार ने विभिन्न नीतिगत सुधारों को लागू किया, जिनमें श्रम सुधार, जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू करना और ऑनलाइन व्यापार पंजीकरण जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत ने 2019 में अपने रैंकिंग में काफी सुधार किया और 77वें स्थान पर पहुँच गया। यह सफलता व्यापार को सरल बनाने और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए उठाए गए कदमों का परिणाम है।
इन सुधारों के तहत, भारत ने व्यापारिक प्रक्रियाओं को डिजिटल और पारदर्शी बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। जैसे कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्वच्छ भारत मिशन’ जैसी योजनाओं ने निवेशकों को आकर्षित किया और व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया। इसके अलावा, सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया, ताकि कंपनियों को बिना किसी जटिलता के संचालन में मदद मिल सके। इन बदलावों से न केवल घरेलू व्यापार में वृद्धि हुई, बल्कि विदेशी निवेश भी आकर्षित हुआ।
प्रश्न 38. भारतीय इतिहास के मध्यकाल में बंजारे सामान्यतः कौन थे?
(a) कृषक
(b) योद्धा
(c) बुनकर
(d) व्यापारी
Ans. D
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में बंजारे एक व्यापारी समुदाय के रूप में प्रसिद्ध थे। वे मुख्य रूप से व्यापार के लिए कृषि उत्पादों, मसालों, कपड़ों और अन्य वस्त्रों का आदान-प्रदान करते थे। बंजारे मुख्य रूप से यात्रा करने वाले व्यापारी थे, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक माल पहुँचाने का कार्य करते थे। उनका काम मुख्य रूप से पैदल यात्रा या बैलगाड़ी के माध्यम से होता था। बंजारे की व्यावसायिक गतिविधियाँ भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने का कार्य करती थीं, जिससे दूर-दराज़ क्षेत्रों में माल की आपूर्ति संभव हो पाती थी।
बंजारे का व्यापार केवल स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और साम्राज्यों के बीच एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नेटवर्क की स्थापना की। इनकी गतिविधियों के कारण भारतीय व्यापार मार्गों का विस्तार हुआ। बंजारे न केवल माल का आदान-प्रदान करते थे, बल्कि वे अपनी यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक संपर्क भी स्थापित करते थे। उनके व्यापारिक नेटवर्क ने उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों को एक दूसरे से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके अलावा, बंजारे का कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था में एक कड़ी के रूप में कार्य करता था, जिससे वस्त्र उद्योग, कृषि और अन्य क्षेत्रों को लाभ होता था। वे उन क्षेत्रों तक भी माल पहुँचाते थे, जहाँ अन्य व्यापारिक नेटवर्क का पहुँच पाना कठिन था। बंजारे का व्यापार समुदाय न केवल एक आर्थिक ढांचा था, बल्कि इसने भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों के बीच आपसी समझ और संबंधों को भी बढ़ावा दिया था। उनके कार्यों के कारण भारतीय समाज में एक व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्त्वपूर्ण स्तंभ स्थापित हुआ।
प्रश्न 39. सम्राट अशोक के राजादेशों का सबसे पहले विकूटन (डिसाइफर) किसने किया था?
(a) जॉर्ज बुहर
(b) जेम्स प्रिंसेप
(c) मैक्स मुलर
(d) विलियम जोन्स
Ans. B
सम्राट अशोक के राजादेशों का विकूटन (डिसाइफर) सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप द्वारा किया गया था, जिनका योगदान भारतीय इतिहास और पुरातत्त्वशास्त्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जेम्स प्रिंसेप, एक ब्रिटिश पुरातत्त्वज्ञ और भाषाशास्त्री, ने 1837 में अशोक के शिलालेखों को पढ़ने की कोशिश की। उन्होंने ब्राह्मी लिपि को समझने में सफलता प्राप्त की, जिसके परिणामस्वरूप अशोक के शिलालेखों की सही व्याख्या संभव हो पाई। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जो भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए मील का पत्थर साबित हुई।
प्रिंसेप द्वारा किए गए विकूटन ने यह सिद्ध किया कि अशोक का शासन न केवल राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसके धार्मिक और सामाजिक पहलू भी उतने ही प्रभावशाली थे। शिलालेखों में अशोक के द्वारा धर्म के प्रचार, अहिंसा और सामाजिक कल्याण के लिए किए गए कार्यों का वर्णन था, जो सम्राट के व्यक्तिगत और राज्यशास्त्र के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
प्रिंसेप के विकूटन ने भारतीय इतिहास को नई दिशा दी, जिससे शोधकर्ताओं और इतिहासकारों को सम्राट अशोक के शासनकाल के बारे में एक व्यापक समझ प्राप्त हुई। उनके योगदान ने न केवल भारतीय पुरातत्त्वशास्त्र को समृद्ध किया, बल्कि सम्राट अशोक के शासन के मानवतावादी दृष्टिकोण को भी उजागर किया। यह अध्ययन भारतीय इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
प्रश्न 40. ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. इस अधिनियम के अनुसार ग्राम न्यायालय केवल सिविल मामलों की सुनवाई कर सकता है, आपराधिक मामलों की नहीं।
2. यह अधिनियम स्थानीय सामाजिक सक्रियतावादियों को मध्यस्थ/सुलहकर्ता के रूप में स्वीकार करता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008, भारतीय न्याय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण सुधार है जिसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में न्याय की पहुंच को सरल और सुलभ बनाना है। इस अधिनियम के अनुसार, ग्राम न्यायालय केवल सिविल मामलों की सुनवाई कर सकता है, जबकि आपराधिक मामलों की सुनवाई इन न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। यह व्यवस्था स्थानीय विवादों को सरल और त्वरित तरीके से सुलझाने के लिए बनाई गई है, जिससे न्याय प्रणाली पर दबाव कम हो और अधिक लोगों को न्याय मिल सके। इस प्रकार, यह अधिनियम उन नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है जो लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरने में असमर्थ होते हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता ग्राम न्यायालय अधिनियम की यह है कि यह स्थानीय सामाजिक सक्रियतावादियों को मध्यस्थ/सुलहकर्ता के रूप में स्वीकार करता है। इस पहल से यह सुनिश्चित किया जाता है कि विवादों का समाधान त्वरित और प्रभावी तरीके से किया जाए। स्थानीय सक्रियतावादी समुदाय के भीतर एक विश्वसनीय भूमिका निभाते हैं और वे मध्यस्थ के रूप में कार्य करके पक्षों को समझौते पर लाने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया में न्याय की न केवल त्वरित प्राप्ति होती है, बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने को भी सशक्त करता है।
ग्राम न्यायालयों का यह प्रणाली सिविल मामलों में निर्णय लेने के लिए एक प्रभावी और स्थानीय समाधान प्रस्तुत करती है। यह कानून स्थानीय जनता की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को समझते हुए उनकी समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय की राह सरल और सस्ती हो जाती है, जिससे न्यायालयों पर भार भी कम होता है। यह प्रणाली पारंपरिक न्याय व्यवस्था से एक सकारात्मक बदलाव के रूप में सामने आई है, जो अधिक सुलभ और प्रभावी है।
प्रश्न 41. ‘ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (Trans-Pacific Partnership)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. यह चीन और रूस को छोड़कर प्रशांत महासागर तटीय सभी देशों के मध्य एक समझौता है।
2. यह केवल तटवर्ती सुरक्षा के प्रयोजन से किया गया सामरिक गठबंधन है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. D
ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौता है जिसे 2016 में 12 देशों के बीच प्रारंभ किया गया था। इस समझौते का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार को बढ़ावा देना और आर्थिक संबंधों को मजबूती प्रदान करना था। इसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, मैक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य देशों का समावेश था। हालांकि, चीन और रूस को इस समझौते से बाहर रखा गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसका उद्देश्य मुख्य रूप से क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना था, न कि सामरिक या सुरक्षा संबंधी गठबंधन स्थापित करना।
इस समझौते में व्यापार अवरोधों को हटाना, निवेश की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और विभिन्न व्यापारिक मानकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित करने का प्रयास किया गया था। इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार करने और सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया था। यह व्यापारिक विकास के साथ-साथ श्रमिक अधिकार, पर्यावरण सुरक्षा और बौद्धिक संपदा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता था।
ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप को सामरिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आर्थिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से परिभाषित किया जा सकता है। यह किसी प्रकार का सैन्य गठबंधन नहीं था, बल्कि एक व्यापारिक मंच था जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना था। 2017 में, अमेरिका के इस समझौते से बाहर निकलने के बाद, इसे फिर से नवीनीकरण की दिशा में देखा गया, लेकिन इसके सदस्य देशों ने इस समझौते के लाभों को बनाए रखने के लिए “कॉम्प्रिहेन्सिव एंड प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप” (CPTPP) के रूप में इसे आगे बढ़ाया।
प्रश्न 42. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन (इंडिया अफ्रीका सम्मिट)-
1. जो 2015 में हुआ, तीसरा सम्मेलन था।
2. की शुरुआत वास्तव में 1951 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. A
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक मंच है, जिसे भारत और अफ्रीकी देशों के बीच आपसी सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए 2008 में स्थापित किया गया था। यह सम्मेलन अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार, निवेश, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विकास परियोजनाओं में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है। सम्मेलन का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच व्यापक रिश्तों को मजबूत करना है, जिसमें विकास, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। 2015 में आयोजित सम्मेलन वास्तव में तीसरा सम्मेलन था, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंधों को और गहरा करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण समझौते किए।
भारत और अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों की शुरुआत कई दशक पहले हो चुकी थी, लेकिन शिखर सम्मेलन की शुरुआत 2008 में हुई थी। यह पहली बार था जब भारत ने अफ्रीकी देशों के नेताओं को एक मंच पर एकत्रित किया था। पहले सम्मेलन से यह सुनिश्चित हुआ कि भारत अफ्रीका के विकास में सक्रिय रूप से शामिल रहेगा और अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करेगा। इसका उद्देश्य दोनों क्षेत्रों के बीच स्थिर और दीर्घकालिक साझेदारी विकसित करना था, जो आपसी लाभ पर आधारित हो।
2015 में भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का तीसरा संस्करण था, जिसमें भारत ने अफ्रीका में विकास परियोजनाओं के लिए एक नई पहल की शुरुआत की। इस सम्मेलन में भारत ने अफ्रीकी देशों के लिए 10 बिलियन डॉलर की नई ऋण सहायता और 600 मिलियन डॉलर की अनुदान सहायता देने की घोषणा की। इसके अलावा, विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी। इस सम्मेलन ने भारतीय विदेश नीति के तहत अफ्रीका को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में स्थापित किया।
प्रश्न 43. RBI द्वारा घोषित ‘कोषों की सीमांत लागत पर आधारित उधारी दर [Marginal Cost of Funds based Lending Rate (MCLR)]’ का/के उद्देश्य क्या है/हैं?
1. ये दिशानिर्देश उधारों की ब्याज दरें निर्धारित करने हेतु बैंकों द्वारा अपनाई गई विधि में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद करते हैं।
2. ये दिशानिर्देश बैंक साख की उपलब्धता ऐसी ब्याज दरों पर सुनिश्चित करने में मदद करते हैं जो ऋण लेने वाले एवं बैंक दोनों के लिए न्यायसंगत हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. C
कोषों की सीमांत लागत पर आधारित उधारी दर (MCLR) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा लागू की गई एक प्रमुख वित्तीय प्रणाली है, जो बैंकों के उधारी दरों को निर्धारित करने में पारदर्शिता और न्यायसंगतता को सुनिश्चित करती है। MCLR का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उधारी दरें बैंकों की वास्तविक कोष लागत पर आधारित हों, ताकि ब्याज दरों का निर्धारण अधिक स्पष्ट और प्रतिस्पर्धी हो। 2016 में यह प्रणाली लागू की गई थी और इसका प्रभाव बैंकों के उधारी दरों पर सीधा पड़ा है, जिससे ग्राहक को सस्ती दरों पर ऋण प्राप्त करने में सुविधा मिली है।
MCLR का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य बैंक और ग्राहक दोनों के लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत ब्याज दरें निर्धारित करना है। यह प्रणाली बैंकों को यह सुविधा देती है कि वे अपने कोष की लागत में बदलाव के आधार पर अपनी उधारी दरों को समायोजित कर सकें। उदाहरण के लिए, जब केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों के माध्यम से रेपो दर में बदलाव करता है, तो MCLR प्रणाली के अंतर्गत बैंक इन परिवर्तनों को अपनी उधारी दरों में शीघ्रता से दर्शा सकते हैं। इससे ग्राहक को तत्काल लाभ मिलता है और बैंकों को भी उनके व्यावसायिक निर्णयों में लचीलापन मिलता है।
इसके अलावा, MCLR प्रणाली बैंकों को अपनी उधारी दरों को अधिक सुसंगत और पारदर्शी रूप से निर्धारित करने की स्वतंत्रता देती है। बैंक अब उधारी दरों का निर्धारण एक निश्चित ढांचे के अंतर्गत करते हैं, जिसमें कोष की लागत, जोखिम का मूल्यांकन और बाजार की स्थिति के सभी पहलुओं का विचार किया जाता है। इससे न केवल बैंकों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होती है, बल्कि उधारकर्ताओं के लिए भी यह सुनिश्चित होता है कि ब्याज दरें उनके लिए उचित और वित्तीय दृष्टि से अनुकूल हों।
प्रश्न 44. भारत में पाई जाने वाली नस्ल, ‘खाराई ऊँट’ के बारे में अनूठा क्या है/है?
1. यह समुद्र-जल में तीन किलोमीटर तक तैरने में सक्षम है।
2. यह मैन्ग्रोव (mangroves) की चराई पर जीता है।
3. यह जंगली होता है और पालतू नहीं बनाया जा सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. A
खाराई ऊँट, जो मुख्य रूप से कच्छ के रण में पाया जाता है, एक अद्वितीय और जलवायु के अनुकूल प्रजाति है। इसका सबसे खास गुण यह है कि यह समुद्र के खारे पानी में तैरने की क्षमता रखता है और यह लगभग तीन किलोमीटर तक समुद्र-जल में तैर सकता है। यह विशेषता इसे अन्य ऊँट नस्लों से अलग करती है। यह समुद्र तट से लेकर मैन्ग्रोव क्षेत्रों तक का जीवनयापन करता है, जहां पानी की खारापन और पर्यावरणीय बदलावों के बावजूद यह अपनी अस्तित्व क्षमता बनाए रखता है। इस तरह के वातावरण में जीवन यापन करने की इसकी क्षमता इसे विशेष बनाती है, खासकर उन इलाकों में जहां अन्य ऊँटों का अस्तित्व मुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा, खाराई ऊँट मैन्ग्रोव की भूमि पर अपना आहार प्राप्त करता है। यह समुद्र के किनारे, जहां ताजे पानी और समुद्री जल का मिश्रण होता है, अपनी जीविका का पालन करता है। मैन्ग्रोव के पेड़ और पौधे इसके आहार का मुख्य स्रोत होते हैं। समुद्र के खारे पानी में यह अपने आंतरिक संतुलन को बनाए रखता है, जो इसे आदर्श रूप से इस तरह के स्थानों में जीवनयापन करने की क्षमता प्रदान करता है। इन क्षेत्रों में इसकी चराई पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। यह विशेष रूप से प्रदूषण-मुक्त क्षेत्रों में पाई जाती है, जहां प्राकृतिक संसाधनों का अच्छा प्रबंधन किया जाता है।
हालांकि, खाराई ऊँट को पालतू नहीं बनाया जा सकता। यह जंगली प्रवृत्तियों वाला जानवर है और अपनी प्राकृतिक स्थिति में ही सबसे बेहतर तरीके से जीवित रहता है। इसकी जंगली प्रवृत्तियों के कारण, पालतू बनाने की कोशिश करने से इसके स्वाभाविक व्यवहार में बदलाव हो सकता है, जो इसके अस्तित्व के लिए हानिकारक हो सकता है। खाराई ऊँट के साथ अधिक हस्तक्षेप करने से यह अपने प्राकृतिक प्रवृत्तियों से हट सकता है, जिससे इसका जीवन संकट में पड़ सकता है। इस नस्ल को उसकी प्राकृतिक स्थितियों में ही संरक्षित किया जाता है, ताकि इसकी प्रजाति को बनाए रखा जा सके।
प्रश्न 45. हाल ही में, हमारे वैज्ञानिकों ने केले के पौधे की एक नई और भिन्न जाति की खोज की है जिसकी ऊँचाई लगभग 11 मीटर तक जाती है और उसके फल का गूदा नारंगी रंग का है। यह भारत के किस भाग में खोजी गई है?
(a) अंदमान द्वीप
(b) अन्नामलई वन
(c) मैकल पहाड़ियाँ
(d) पूर्वोत्तर उष्णकटिबंधीय वर्षावन
Ans. A
हाल ही में वैज्ञानिकों ने भारत के अंदमान द्वीप समूह में केले की एक नई जाति की खोज की है, जिसकी ऊँचाई 11 मीटर तक जा सकती है और उसके फल का गूदा नारंगी रंग का होता है। यह खोज प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है, क्योंकि यह नई जाति अपनी आकार और रंग में पूरी तरह से भिन्न है। अंदमान द्वीप समूह की जैविक विविधता पहले से ही प्रख्यात रही है और अब इस नई प्रजाति के जुड़ने से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी की और गहरी समझ हासिल हो सकती है। इस खोज के द्वारा, वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र के पर्यावरणीय और जैविक संसाधनों की नई जानकारी प्राप्त की है।
यह विशेष जाति अपनी संरचना और विकास में अन्य सामान्य केले की जातियों से भिन्न है। इसकी ऊँचाई और फल की विशिष्टता, जैसे कि नारंगी रंग का गूदा, इसे अन्य प्रजातियों से अलग करता है। नारंगी रंग के गूदे में विटामिन ए और सी की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अत्यधिक लाभकारी हैं। यह खोज कृषि में भी एक नए अवसर का निर्माण करती है, क्योंकि ऐसे फल का उपयोग विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्माण में किया जा सकता है। इसके अलावा, इसके पोषण संबंधी गुण इसे बाजार में लोकप्रिय बना सकते हैं।
इस नई जाति का महत्व सिर्फ इसके पोषण और कृषि संभावनाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जैव विविधता संरक्षण के लिहाज से भी अहम है। अंदमान द्वीप समूह में पाई जाने वाली विविध प्रजातियाँ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इस नई जाति की खोज से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जैव विविधता के साथ-साथ, इन संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सके। इसके अतिरिक्त, यह खोज पर्यावरणीय संरक्षण और जैव विविधता के लिए गहरी समझ पैदा करती है, जो भविष्य में इसके संरक्षण की दिशा में मददगार साबित हो सकती है।
प्रश्न 46. ‘INS अस्त्रधारिणी’ का, जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ था, निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वोत्तम वर्णन है?
(a) उभयचर युद्धपोत
(b) नाभिकीय शक्ति-चालित पनडुब्बी
(c) टॉरपीडो प्रमोचन और पुनर्प्राप्ति (recovery) जलयान
(d) नाभिकीय शक्ति-चालित विमान-वाहक
Ans. C
INS अस्त्रधारिणी भारतीय नौसेना का एक महत्वपूर्ण जलयान है, जिसे टॉरपीडो प्रमोचन और पुनर्प्राप्ति (recovery) के कार्य के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। यह जलयान भारतीय नौसेना की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि यह समुद्र में टॉरपीडो के परीक्षण और उनकी सुरक्षित पुनर्प्राप्ति की प्रक्रिया को आसान और प्रभावी बनाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी प्रकार की समुद्री परिस्थिति में टॉरपीडो के संचालन को जोखिम मुक्त और सटीक बनाता है, जिससे युद्धपोतों और पनडुब्बियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
इस जलयान का मुख्य कार्य टॉरपीडो परीक्षण में होने वाली कठिनाइयों को दूर करना है। जब टॉरपीडो को समुद्र में छोड़ा जाता है, तब यह जलयान उन्हें सुरक्षा के साथ पुनर्प्राप्त करने में सक्षम होता है। इसके द्वारा परीक्षण किए गए टॉरपीडो का पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करना नौसेना के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि वे दुश्मन से सुरक्षित दूरी पर रहें और उन्नत स्थिति में उनका पुनः उपयोग किया जा सके।
INS अस्त्रधारिणी की सफलता ने भारतीय नौसेना को समुद्र में अपने रणनीतिक संचालन में और अधिक दक्षता और प्रभावशीलता प्राप्त करने में मदद की है। टॉरपीडो का परीक्षण और उनका पुनर्प्राप्ति प्रणाली के रूप में इस जलयान ने समुद्री रक्षा क्षमताओं में नई वृद्धि की है। भारतीय नौसेना के इस अत्याधुनिक उपकरण ने सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे वह अपने दुश्मनों से सामरिक दृष्टिकोण से बेहतर स्थिति में रहती है।
प्रश्न 47. ‘ग्रीज्ड लाइनिंग-10 (GL-10)’, जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ, क्या है?
(a) NASA द्वारा परीक्षित विद्युत् विमान
(b) जापान द्वारा डिजाइन किया गया सौर शक्ति से चलने वाला दो सीटों वाला विमान
(c) चीन द्वारा लांच की गई अंतरिक्ष वेधशाला
(d) ISRO द्वारा डिजाइन किया गया पुनरोपयोगी रॉकेट
Ans. A
‘ग्रीज्ड लाइनिंग-10’ (GL-10) एक अत्याधुनिक विद्युत विमान है, जिसे NASA द्वारा विकसित किया गया है। यह विमान विशेष रूप से ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। GL-10 विमान में 10 छोटे इलेक्ट्रिक मोटर्स होते हैं, जो उसे उर्ध्वाधर और क्षैतिज उड़ान भरने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह विमान विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है जहाँ पारंपरिक विमानन तकनीक की आवश्यकता नहीं होती, जैसे शहरी परिवहन या छोटे दूरी की उड़ानें।
GL-10 का डिज़ाइन पूरी तरह से भविष्य की विमानन तकनीक को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यह विमान इलेक्ट्रिक ऊर्जा पर निर्भर करता है, जिससे इसमें प्रदूषण का स्तर काफी कम होता है। इसके छोटे आकार और दक्षता के कारण, इसे ऊर्जा बचत के लिहाज से बहुत प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा, इसकी क्षमता लंबी दूरी की उड़ान भरने और विभिन्न प्रकार की आपातकालीन सेवाओं में उपयोग होने की है।
NASA ने GL-10 की पहली सफल परीक्षण उड़ान 2021 में की थी, जिसमें इसकी प्रदर्शन क्षमता का मूल्यांकन किया गया। इस विमान के विकास से विद्युत विमानन की दिशा में एक नया कदम बढ़ाया गया है और भविष्य में इसे कम प्रदूषण वाले परिवहन के रूप में विस्तारित किया जा सकता है। यह भविष्य में विमानन उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति साबित हो सकता है, जिससे शहरी क्षेत्र में सस्ती और प्रदूषण मुक्त यात्रा संभव हो सकेगी।
प्रश्न 48. ‘गहन कदन्न संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millets Promotion)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. इस पहल का उद्देश्य उन्नत उत्पादन और कटाई-उपरांत प्रौद्योगिकियों को निदर्शित करना है, एवं समूह उपागम (क्लस्टर अप्रोच) के साथ एकीकृत रीति से मूल्य वर्धन तकनीकों को निदर्शित करना है।
2. इस योजना में निर्धन, लघु, सीमांत एवं जनजातीय किसानों की बड़ी हितधारिता (स्टेक) है।
3. इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों को, पोषकों के अत्यावश्यक निवेशों के और लघु सिंचाई उपकरणों के निःशुल्क किट प्रदान कर, कंदन्न की खेती की ओर प्रोत्साहित करना है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
‘गहन कदन्न संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल’ (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millets Promotion) का उद्देश्य कदन्न फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना और इन फसलों के पोषण गुणों को बढ़ावा देना है। यह पहल विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती है, जहां कदन्न फसलें जैसे रागी, बाजरा और ज्वार पहले से उगाई जाती हैं। इस पहल में, उन्नत उत्पादन और कटाई-उपरांत प्रौद्योगिकियों को लागू करने पर जोर दिया जाता है, जिससे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली फसलें मिल सकें। इसके साथ ही, क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण को अपनाया जाता है, जिसमें किसानों को एकसाथ जोड़कर उन्हें बेहतर तकनीकी और संसाधन सहायता प्रदान की जाती है।
इस योजना में निर्धन, लघु, सीमांत और जनजातीय किसानों की बड़ी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। ये किसान पहले से कृषि क्षेत्र में कमजोर स्थिति में होते हैं और उन्हें नई तकनीकों और बेहतर कृषि विधियों से लाभ नहीं मिल पाता। इस पहल का उद्देश्य इन किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों से परिचित कराना है, ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और अपनी आय में वृद्धि कर सकें। किसानों को नए बीज, उर्वरक और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ पोषण संबंधी जानकारी भी प्रदान की जाती है।
इसके अतिरिक्त, योजना का एक प्रमुख उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों को कदन्न की खेती की ओर प्रोत्साहित करना है। इसके लिए किसानों को सिंचाई उपकरण और पोषक तत्वों के निःशुल्क किट प्रदान किए जाते हैं। यह पहल उन्हें कदन्न की खेती में निवेश करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला कर सकते हैं। यह योजना जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर किसानों को अधिक पर्यावरणीय रूप से स्थिर और पोषणयुक्त फसलों की खेती करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो सकता है।
प्रश्न 49. ‘स्वदेशी’ और ‘बहिष्कार’ पहली बार किस घटना के दौरान संघर्ष की विधि के रूप में अपनाए गए थे?
(a) बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन
(b) होम रूल आंदोलन
(c) असहयोग आंदोलन
(d) साइमन कमीशन की भारत यात्रा
Ans. A
‘स्वदेशी’ और ‘बहिष्कार’ की रणनीतियाँ पहली बार 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अपनाई गई थीं। जब ब्रिटिश साम्राज्य ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, तो इसका उद्देश्य भारतीय समाज में धार्मिक और सांप्रदायिक दरारें डालना था। विभाजन का यह प्रयास भारतीयों के बीच गहरी असहमति और संघर्ष को जन्म देने वाला था, जिससे ब्रिटिश शासन को लाभ होता। इस समय, भारतीयों ने अपने स्वत्व और एकता को बनाए रखने के लिए ‘स्वदेशी’ और ‘बहिष्कार’ की विधियों का प्रयोग किया।
स्वदेशी आंदोलन के तहत भारतीयों ने ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्त्रों और उत्पादों का प्रयोग बढ़ाया। इससे भारतीय उद्योग को प्रोत्साहन मिला और अंग्रेजों पर आर्थिक दबाव बना। भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए यह रणनीति एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके अलावा, बहिष्कार की विधि ने ब्रिटिश शासन और उसके संस्थानों को निशाना बनाया और भारतीयों को एकजुट किया।
बहिष्कार के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में एक नई चेतना और विरोध की भावना पैदा हुई। यह आंदोलन केवल राजनीतिक विरोध तक सीमित नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन का भी हिस्सा था। 1905 के बाद भारतीय समाज ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता और संघर्ष को तेज किया, जो अंततः 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति में परिणत हुआ।
प्रश्न 50. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. बोधिसत्त्व, बौद्धमत के हीनयान सम्प्रदाय की केंद्रीय संकल्पना है।
2. बोधिसत्त्व अपने प्रबोध के मार्ग पर बढ़ता हुआ करुणामय है।
3. बोधिसत्त्व समस्त सचेतन प्राणियों को उनके प्रबोध के मार्ग पर चलने में सहायता करने के लिए स्वयं की निर्वाण प्राप्ति विलम्बित करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
बोधिसत्त्व का विचार बौद्ध धर्म में विशेष रूप से महायान परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बोधिसत्त्व वह व्यक्ति है, जो निर्वाण की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है, लेकिन अपनी पूर्ण मुक्ति के लिए प्रतीक्षा करता है ताकि वह अन्य प्राणियों की मुक्ति में सहायता कर सके। यह विचार बौद्ध धर्म के करुणा और सहानुभूति के सिद्धांतों के साथ मेल खाता है। बोधिसत्त्व का मार्ग आत्म-कल्याण से अधिक, सभी जीवों के कल्याण को प्राथमिकता देने का मार्ग है। इसलिए, बोधिसत्त्व महायान बौद्ध धर्म का केंद्रीय आदर्श बनता है।
बोधिसत्त्व की अवधारणा विशेष रूप से हीनयान बौद्ध धर्म से भिन्न है, क्योंकि हीनयान में व्यक्तिगत मुक्ति पर अधिक ध्यान दिया जाता है। महायान बौद्ध धर्म में बोधिसत्त्व की अवधारणा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जहां वह न केवल अपने आत्म-निर्वाण के लिए कार्य करता है, बल्कि सभी प्राणियों को भी दुखों से मुक्त करने की कामना करता है। बोधिसत्त्व का यह कार्य केवल स्वयं को नहीं, बल्कि संपूर्ण संसार को कल्याण की दिशा में मार्गदर्शन करने का है।
बोधिसत्त्व के इस मार्ग में, वह अपनी बोधि प्राप्ति को विलंबित करता है ताकि वह दूसरों की मदद कर सके। वह स्वयं निर्वाण को प्राप्त करने के बाद भी अन्य प्राणियों को उनके प्रबोधन के मार्ग पर चलने में सहायता करता है। इस प्रकार, बोधिसत्त्व का जीवन एक आदर्श है, जिसमें करुणा, दया और अनुकम्पा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सिद्धांत महायान बौद्ध धर्म के बुनियादी मान्यताओं को स्पष्ट रूप से उजागर करता है, जो संसार के कल्याण और मुक्ति के लिए कार्यरत हैं।
प्रश्न 51. Doctors Without Borders (Medecins Sans Frontieres)’, जो प्रायः समाचारों में आया है, है-
(a) विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक प्रभाग
(b) एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन
(c) यूरोपीय संघ द्वारा प्रायोजित एक अंतःसरकारी एजेंसी
(d) संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी
Ans. B
Doctors Without Borders (Médecins Sans Frontières – MSF) एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठन है, जिसकी स्थापना 1971 में फ्रांस में हुई थी। इसका उद्देश्य युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और अन्य मानवीय संकटों के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करना है। MSF स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जिसका मतलब है कि यह किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सांस्कृतिक दबाव से मुक्त होकर अपना कार्य करता है। यह संगठन विशेष रूप से उन क्षेत्रों में काम करता है जहाँ चिकित्सा सेवाओं का संकट है, जैसे संघर्षग्रस्त क्षेत्र, शरणार्थी शिविर, या संक्रामक बीमारियों से प्रभावित इलाके।
MSF अपने कार्यों में प्राथमिक चिकित्सा, सर्जिकल उपचार, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और पोषण सहायता प्रदान करता है। यह संगठन महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तात्कालिक और उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराता है। MSF का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है “नीति और सिद्धांतों से ऊपर उठकर मानवीय कार्य करना”, जिससे यह संगठन बडी मुसीबतों में फंसे हुए व्यक्तियों के लिए विश्वास का प्रतीक बन चुका है।
इसकी वैश्विक पहचान और प्रभाव को 1999 में नोबेल शांति पुरस्कार मिलने से सशक्त किया गया था, जो संगठन के असाधारण योगदान और समर्पण को सम्मानित करता है। MSF ने हमेशा संघर्षों, महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तात्कालिक चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता को प्राथमिकता दी। इसने इबोला महामारी, COVID-19 और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में अपनी भूमिका के माध्यम से वैश्विक समुदाय के सामने मानवीय मदद का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। MSF का योगदान असाधारण रूप से महत्वपूर्ण रहा है, जिससे यह दुनिया भर में मानवीय सहायता का एक प्रमुख स्तंभ बन गया है।
प्रश्न 52. ‘पारितंत्र एवं जैव विविधता का अर्थतंत्र [The Economics of Ecosystems and Biodiversity (TEEB)]’ नामक पहल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
1. यह एक पहल है, जिसकी मेजबानी UNEP, IMF एवं विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) करते हैं।
2. यह एक विश्वव्यापी पहल है, जो जैव विविधता के आर्थिक लाभों के प्रति ध्यान आकर्षित करने पर केंद्रित है।
3. यह ऐसा उपागम प्रस्तुत करता है, जो पारितंत्रों और जैव विविधता के मूल्य की पहचान, निदर्शन और अभिग्रहण में निर्णयकर्ताओं की सहायता कर सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
‘पारितंत्र एवं जैव विविधता का अर्थतंत्र’ (The Economics of Ecosystems and Biodiversity – TEEB) एक वैश्विक पहल है, जो 2007 में शुरू हुई थी और इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्रों और जैव विविधता के आर्थिक मूल्य को पहचानना और उसका मूल्यांकन करना है। यह पहल विशेष रूप से यह दर्शाने के लिए कार्य करती है कि पारितंत्र सेवाओं, जैसे- जलवायु नियमन, जल शुद्धिकरण और कृषि उत्पादकता, का जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान है। TEEB का उद्देश्य यह है कि ये प्राकृतिक सेवाएं भी किसी अन्य संसाधन की तरह मूल्यवान हैं और उनके संरक्षण को आर्थिक दृष्टिकोण से प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह पहल सरकारों, व्यवसायों और निर्णय निर्माताओं को पारितंत्रों के महत्व को समझने और उन पर आधारित निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है, ताकि भविष्य में जैव विविधता और पारितंत्र सेवाओं का संरक्षण संभव हो सके।
TEEB का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह पारितंत्रों के मूल्य को सही तरीके से दर्शाने के लिए आर्थिक उपकरण और मापदंड प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के योगदान का आकलन करता है, जो मानव समाज को जल, भोजन, हवा और जीवन रक्षक सेवाएं प्रदान करते हैं। इसके माध्यम से यह समझा जा सकता है कि प्राकृतिक संसाधनों के बिना विकास असंभव है और आर्थिक समृद्धि तब तक संभव नहीं जब तक पारितंत्रों का संरक्षण नहीं किया जाता। TEEB द्वारा प्रस्तुत किए गए मॉडल नीति निर्धारण में पारिस्थितिकी तंत्रों के मूल्य को प्राथमिकता देने में सहायक होते हैं, ताकि विकास और संरक्षण एक साथ चल सकें।
इसके अतिरिक्त, TEEB यह भी सुनिश्चित करता है कि पारितंत्रों के मूल्य को केवल सांस्कृतिक या पर्यावरणीय दृष्टिकोण से न देखकर, उन्हें एक सशक्त आर्थिक तत्व के रूप में देखा जाए। उदाहरण के तौर पर, यह पहल यह बताती है कि अगर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सतत प्रबंधन न किया जाए, तो आर्थिक नुकसान बहुत अधिक हो सकता है। जैव विविधता के नुकसान से कृषि, मछली पालन और अन्य उद्योगों में असंतुलन पैदा हो सकता है, जो अंततः समाज की समृद्धि को प्रभावित करेगा। इस प्रकार, TEEB न केवल जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता को समझाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि इसके बिना कोई भी राष्ट्र आर्थिक रूप से स्थिर नहीं रह सकता।
प्रश्न 53. समाचारों में कभी-कभी दिखाई देने वाले रेड सैंडर्स (Red Sanders)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह दक्षिण भारत के एक भाग में पाई जाने वाली एक वृक्ष जाति है।
2. यह दक्षिण भारत के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों के अति महत्त्वपूर्ण वृक्षों में से एक है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. A
रेड सैंडर्स एक दुर्लभ वृक्ष जाति है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है। यह वृक्ष मुख्य रूप से पश्चिमी घाट और कुछ अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में उगता है, जहां जलवायु शुष्क और उपोष्णकटिबंधीय होती है। रेड सैंडर्स का वैज्ञानिक नाम ‘Pterocarpus Santalinus’ है और यह अपनी गहरी लाल रंग की लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है, जिसका उपयोग कला, शिल्प और चिकित्सा में किया जाता है। हालांकि यह वृक्ष उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में नहीं पाया जाता, इसका आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। रेड सैंडर्स के मूल्यवान लकड़ी के कारण यह प्रजाति अवैध शिकार और वनों की अंधाधुंध कटाई का शिकार बन चुकी है, जिससे इसकी संख्या में भारी गिरावट आई है।
रेड सैंडर्स की लकड़ी का प्रमुख उपयोग हस्तशिल्प, लकड़ी की कलाकृतियों और आयुर्वेदिक चिकित्सा में होता है। इसके अलावा, इसका उपयोग पारंपरिक शास्त्रीय संगीत वाद्ययंत्रों के निर्माण में भी किया जाता है, क्योंकि इसकी लकड़ी उच्च गुणवत्ता वाली और दृढ़ होती है। इसका रंग और बनावट विशेष रूप से आकर्षक होते हैं, जिससे यह शिल्पकला में अत्यधिक मूल्यवान बनता है। इन कारणों से, रेड सैंडर्स की अवैध कटाई और व्यापार एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन गई है। इसके संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे विशेष वन सुरक्षा कार्यक्रम और जागरूकता अभियान।
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत रेड सैंडर्स को संरक्षित प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह वन्यजीवों की अवैध कटाई और व्यापार को रोकने के लिए कड़े कानूनी उपायों के तहत आता है। हालांकि, इसके अवैध शिकार को रोकने में कई चुनौतियां हैं, क्योंकि रेड सैंडर्स की लकड़ी की मांग अत्यधिक है। राज्य सरकारों द्वारा विशेष वन्यजीव अभयारण्यों का निर्माण और कड़ी निगरानी स्थापित की गई है, लेकिन फिर भी अवैध शिकारियों के सक्रिय होने से संरक्षण प्रयासों को चुनौती मिलती है। इसके संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी और सख्त कानूनी उपायों का महत्वपूर्ण योगदान है, ताकि भविष्य में इस दुर्लभ वृक्ष की विलुप्ति से बचाया जा सके।
प्रश्न 54. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
UN-REDD+ प्रोग्राम की समुचित अभिकल्पना और प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं-
1. जैव-विविधता का संरक्षण करने में
2. वन्य पारिस्थितिकी की समुत्थानशीलता में
3. गरीबी कम करने में
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
UN-REDD+ (संयुक्त राष्ट्र-रेडड प्लस) कार्यक्रम एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव डालने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए वनों की कटाई और जंगलों के भूमि उपयोग में सुधार करना है। यह विशेष रूप से विकासशील देशों में लागू किया जाता है, जहाँ वनों की कटाई, भूमि उपयोग परिवर्तन और पर्यावरणीय दबाव जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के तहत, वनों की रक्षा, पुनर्वनीकरण और स्थायी वन प्रबंधन के उपायों को लागू किया जाता है, जिससे जैव विविधता का संरक्षण संभव होता है। जैव विविधता के संरक्षण के लिए REDD+ के समुचित कार्यान्वयन से वनों में रहने वाली विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण सुनिश्चित होता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और समृद्धि के लिए आवश्यक हैं। यह कार्यक्रम पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और जैविक विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
REDD+ कार्यक्रम वन्य पारिस्थितिकी की समुत्थानशीलता में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। जब वन स्वस्थ और संरक्षित रहते हैं, तो वे प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय संकटों का सामना करने की अधिक क्षमता रखते हैं। वनों की रक्षा और पुनर्वनीकरण से पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत किया जाता है, जिससे यह प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़, सूखा और जंगल की आग, के प्रभावों को अधिक प्रभावी ढंग से निपट सकता है। साथ ही, इससे जलवायु परिवर्तन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं और वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र की समुत्थानशीलता और स्थिरता बढ़ती है, जो समग्र पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
REDD+ कार्यक्रम गरीबी उन्मूलन में भी योगदान करता है। वनों से जुड़ी गतिविधियाँ कई गरीब समुदायों की आजीविका का स्रोत होती हैं, जैसे लकड़ी, फल और अन्य वन उत्पादों की कटाई और व्यापार। REDD+ कार्यक्रम के तहत, जब इन समुदायों को स्थायी वन प्रबंधन और संरक्षण प्रयासों में शामिल किया जाता है, तो यह उनकी आय में वृद्धि करने के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता भी सुनिश्चित करता है। इस कार्यक्रम से स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं, जैसे पर्यावरण संरक्षण, पारिस्थितिकी पर्यटन और स्थायी कृषि। इसके परिणामस्वरूप, यह कार्यक्रम गरीब समुदायों को अपने जीवन स्तर में सुधार करने और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है। REDD+ कार्यक्रम के माध्यम से गरीबी में कमी लाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जाता है, जो समग्र सामाजिक और आर्थिक विकास में सहायक है।
प्रश्न 55. ‘ग्रीनहाउस गैस प्रोटोकॉल (Greenhouse Gas Protocol)’ क्या है?
(a) यह सरकार एवं व्यवसाय को नेतृत्व देने वाले व्यक्तियों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को समझने, परिमाण निर्धारित करने एवं प्रबंधन हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय लेखाकरण साधन है
(b) यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और पारितंत्र-अनुकूली प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु विकासशील देशों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने की संयुक्त राष्ट्र की एक पहल है
(c) यह वर्ष 2022 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को एक विनिर्दिष्ट स्तर तक कम करने हेतु संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा अनुसमर्थित एक अंतःसरकारी समझौता है
(d) यह विश्व बैंक द्वारा पोषित बहुपक्षीय REDD+ पहलों में से एक है
Ans. A
ग्रीनहाउस गैस प्रोटोकॉल (GHG Protocol) एक वैश्विक मानक है जो संगठनों को उनके ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की पहचान करने, मापने और रिपोर्ट करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है। इसे वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) और वर्ल्ड बिजनेस काउंसिल फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (WBCSD) ने 2001 में विकसित किया था। यह प्रोटोकॉल संगठनों को उनके उत्सर्जन का विश्लेषण करने का अवसर देता है, ताकि वे अपनी पर्यावरणीय जिम्मेदारी को समझ सकें और उसे कम करने के उपाय अपना सकें। यह तीन प्रमुख श्रेणियों में उत्सर्जन को वर्गीकृत करता है: सीधे उत्सर्जन (Scope 1), उत्पादन से संबंधित ऊर्जा उपयोग (Scope 2) और अप्रत्यक्ष उत्सर्जन (Scope 3), जिससे संगठन अपने सभी उत्सर्जन स्रोतों की पहचान कर सकते हैं।
GHG प्रोटोकॉल संगठनों को पारदर्शिता के साथ उनके उत्सर्जन को रिपोर्ट करने की सुविधा प्रदान करता है। यह रिपोर्टिंग प्रक्रिया कंपनियों को अपनी पर्यावरणीय रणनीतियों को पुनः परिभाषित करने और उन्हें बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है। यह प्रोटोकॉल व्यवसायों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कदम उठाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसके द्वारा, संगठनों को अपने कार्बन फुटप्रिंट की पहचान करने और उसे कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो अंततः जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के प्रयासों में योगदान करता है।
GHG प्रोटोकॉल न केवल व्यवसायों के लिए, बल्कि सरकारों के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह देशों को जलवायु नीति बनाने और अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाने के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करता है। इसके आधार पर कई देशों ने अपने उत्सर्जन की रिपोर्टिंग के लिए कानूनी दायित्व लागू किए हैं। यह प्रोटोकॉल नीति निर्माण में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है और सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच बेहतर समन्वय की अनुमति देता है। इस प्रकार, GHG प्रोटोकॉल का पालन करने से संगठन और सरकारें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठा सकते हैं।
प्रश्न 56. ‘वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद् (Financial Stability and Development Council)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह नीति (NITI) आयोग का एक अंग है।
2. संघ का वित्त मंत्री इसका प्रमुख होता है।
3. यह अर्थव्यवस्था के समष्टि सविवेक (मैक्रो-प्रूडेंशियल) पर्यवेक्षण का अनुवीक्षण (मॉनिटरिंग) करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद् (FSDC) का गठन भारत सरकार ने 2010 में किया था। यह एक अंतर-मंत्रालयी समिति है, जिसका उद्देश्य देश की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना और विभिन्न वित्तीय क्षेत्रों के विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है। FSDC वित्तीय जोखिमों की निगरानी करता है और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नियामक संस्थाओं के साथ समन्वय करता है। इसकी भूमिका विशेष रूप से वित्तीय संकटों के प्रबंधन और भविष्य में ऐसे संकटों से बचने के उपायों की योजना बनाने में अहम है।
यह परिषद् वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है, जो इसके प्रमुख होते हैं। इसके अन्य सदस्य में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर, वित्तीय सेवाओं विभाग के सचिव और अन्य वित्तीय संस्थाओं के प्रमुख होते हैं। यह परिषद् विभिन्न वित्तीय और आर्थिक मुद्दों पर परामर्श करती है और नीतिगत निर्णय लेने में मदद करती है। FSDC का उद्देश्य एक स्थिर और प्रगति की ओर अग्रसर वित्तीय प्रणाली का निर्माण करना है।
समष्टि सविवेक (मैक्रो-प्रूडेंशियल) पर्यवेक्षण के संदर्भ में, FSDC की जिम्मेदारी है कि वह समग्र वित्तीय स्वास्थ्य की निगरानी करे, जिससे वित्तीय संकट के संभावित प्रभावों को कम किया जा सके। यह परिषद् विभिन्न वित्तीय संस्थाओं और बाजारों के बीच समन्वय स्थापित करती है, ताकि एक संकटपूर्ण स्थिति में समग्र वित्तीय प्रणाली का स्थायित्व बनाए रखा जा सके। इसके द्वारा सुझाए गए उपाय वित्तीय बाजारों की लचीलापन बढ़ाते हैं और विकास के मार्ग में आने वाली अवरोधों को दूर करने में मदद करते हैं।
प्रश्न 57. समाचारों में कभी-कभी दिखने वाले ‘एजेंडा 21 (Agenda 21)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह धारणीय विकास के लिए एक वैश्विक कार्य-योजना है।
2. वर्ष 2002 में जोहानसबर्ग में हुए धारणीय विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन (World Summit on Sustainable Development) में इसकी उत्पत्ति हुई।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. A
एजेंडा 21 एक महत्वपूर्ण वैश्विक कार्य-योजना है, जिसे 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और विकास पर सम्मेलन (UNCED) के दौरान अपनाया गया था। यह योजना धारणीय विकास के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है, जिसमें पर्यावरण, समाज और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखने के उपाय सुझाए गए हैं। एजेंडा 21 में 21वीं सदी के लिए पर्यावरणीय सुधार, संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण और विकासशील देशों के लिए विकास को बढ़ावा देने के उपायों की रूपरेखा तय की गई है।
एजेंडा 21 के विभिन्न घटकों में प्रमुखता से जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का संरक्षण, जल प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी देशों को मिलकर साझा जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि प्राकृतिक संसाधनों का असंतुलित उपयोग और पर्यावरणीय संकट कम किया जा सके। यह कार्य-योजना सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज के सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
2002 में जोहानसबर्ग में हुए विश्व शिखर सम्मेलन (World Summit on Sustainable Development) में एजेंडा 21 के कार्यान्वयन की समीक्षा की गई थी और इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए नए लक्ष्य तय किए गए थे। यह सम्मेलन एजेंडा 21 के उद्देश्यों की पुनरावलोकन और देशों के प्रयासों की प्रगति पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण मंच था। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि वैश्विक धारणीय विकास लक्ष्य की दिशा में कदम और तेज किए जाएं।
प्रश्न 58. सत्य शोधक समाज ने संगठित किया-
(a) बिहार में आदिवासियों के उन्नयन का एक आंदोलन
(b) गुजरात में मंदिर प्रवेश का एक आंदोलन
(c) महाराष्ट्र में एक जाति-विरोधी आंदोलन
(d) पंजाब में एक किसान आंदोलन
Ans. C
सत्य शोधक समाज की स्थापना 1873 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने की थी। यह समाज समाज में व्याप्त जातिवाद, अंधविश्वास और सामाजिक असमानता के खिलाफ एक सक्रिय आंदोलन था। फुले का उद्देश्य था कि समाज के निचले वर्गों, विशेषकर शूद्रों और दलितों को समान अधिकार मिलें। इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या लिंग से संबंधित हो। सत्य शोधक समाज ने जातिवाद के खिलाफ एक आवाज उठाई और समाज में समानता के सिद्धांत को स्थापित करने का प्रयास किया।
फुले ने सत्य शोधक समाज के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों पर भी जोर दिया। उन्होंने महसूस किया कि महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए और वे समाज में समान रूप से भागीदार बन सकती हैं। इसके अलावा, समाज में प्रचलित धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ भी उन्होंने संघर्ष किया। सत्य शोधक समाज ने न केवल शूद्रों और दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, बल्कि पूरे समाज को जागरूक करने का कार्य किया।
सत्य शोधक समाज ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसके सदस्य हर वर्ग और समुदाय को समान अधिकार दिलाने के लिए संगठित हुए। इस समाज ने विशेष रूप से महाराष्ट्र में जातिवाद के खिलाफ एक मजबूत विचारधारा को स्थापित किया और समाज के कमजोर वर्गों के लिए एक आवाज बनाई। इस आंदोलन ने भारतीय समाज में सुधार की दिशा में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद की।
प्रश्न 59. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
विषाणु संक्रमित कर सकते हैं-
1. जीवाणुओं को
2. कवकों को
3. पादपों को
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
विषाणु (viruses) जीवों की एक विशिष्ट श्रेणी होते हैं, जो अन्य जीवों के कोशिकाओं में प्रवेश कर उनका शोषण करते हैं। विषाणु केवल जटिल जीवों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों को भी संक्रमित कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, बैक्टीरिया को संक्रमित करने वाले विषाणु को बैक्टीरीफेज (bacteriophages) कहा जाता है। बैक्टीरीफेज के द्वारा बैक्टीरिया की कोशिकाओं में घुसकर वह अपनी नकल की प्रक्रिया शुरू कर देता है, जिससे बैक्टीरिया का जीवन चक्र बाधित हो जाता है। बैक्टीरीफेज, विशेषकर कृषि और बायोटेक्नोलॉजी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे बैक्टीरिया के इलाज के लिए संभावित विकल्प प्रदान करते हैं।
कवक (fungi) भी विषाणु संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। कुछ विषाणु कवकों की कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं और वहां अपनी संतान उत्पन्न करते हैं, जिससे कवक की प्रजनन प्रक्रिया में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, वायरस जैसे कि “वायरल फंगल इंफेक्शन” से कवक में उत्परिवर्तन हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप यह उनके विकास में रुकावट उत्पन्न कर सकता है। इस तरह के संक्रमण कृषि उत्पादों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे फसल उत्पादन में कमी आ सकती है। इस तरह के संक्रमण से कवक के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर पड़ सकता है।
विषाणु पादपों को भी संक्रमित कर सकते हैं, जो कृषि उत्पादों पर गंभीर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए, तंबाकू मोज़ेक वायरस (TMV) पादपों में फैलता है और उनकी कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों पर धब्बे, सक्षमता में कमी और उपज में गिरावट होती है। पादप विषाणुओं का संक्रमण कई प्रकार के रोगों का कारण बनता है, जैसे कि पत्तियों का मुरझाना या फल का टूटना। यह न केवल फसल उत्पादन में हानि पहुँचाता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। पादपों में वायरस संक्रमण के कारण कृषि क्षेत्र को विशेष चुनौतियाँ का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 60. समाचारों में कभी-कभी देखे जाने वाले ‘आधार क्षय एवं लाभ स्थानान्तरण (Base Erosion and Profit Shifting)’ पद का क्या संदर्भ है?
(a) संसाधन-सम्पन्न किन्तु पिछड़े क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा खनन कार्य
(b) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए जाने वाले कर-अपवंचन पर प्रतिबंध लगाना
(c) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किसी राष्ट्र के आनुवंशिक संसाधनों का दोहन
(d) विकास परियोजनाओं की योजना एवं कार्यान्वयन में पर्यावरणीय लागतों के विचारों का अभाव
Ans. B
आधार क्षय एवं लाभ स्थानान्तरण (Base Erosion and Profit Shifting – BEPS) एक आर्थिक और कर संबंधी समस्या है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने लाभ को उन देशों में स्थानांतरित कर देती हैं, जहां कर दरें बहुत कम होती हैं या कोई कर नहीं होता है। यह प्रक्रिया मुख्यतः उन देशों के लिए समस्याग्रस्त होती है जिनकी उच्च कर दरें होती हैं। BEPS के द्वारा कंपनियां अपने कर दायित्वों से बचने के लिए कई प्रकार के लेन-देन और अनुबंधों का उपयोग करती हैं, जिनसे उनकी टैक्स देनदारी कम हो जाती है। इससे न केवल सरकारों की कर व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि यह कर व्यवस्था के लिए दीर्घकालिक नुकसान भी पैदा करता है।
इससे निपटने के लिए, 2013 में OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) ने BEPS पर एक विस्तृत योजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए जा रहे कर अपवंचन को नियंत्रित करना था। इस परियोजना में 15 प्रमुख कदम उठाए गए थे, जिनमें पारदर्शिता को बढ़ाना, वैश्विक कर नीति के सुधार के लिए दिशा-निर्देश तय करना और कर स्वर्गों (Tax Havens) के खिलाफ ठोस कदम उठाना शामिल था। OECD ने यह सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण उपाय किए हैं।
BEPS योजना के अंतर्गत 15 कदमों के क्रियान्वयन से वैश्विक कर प्रणाली में सुधार हुआ है। विशेष रूप से देशों के बीच सूचना का आदान-प्रदान बढ़ाने और कर बचत के उपायों को पारदर्शी बनाने के प्रयास किए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, अब कंपनियों के लिए कर-अपवंचन की रणनीतियों को लागू करना कठिन हो गया है और वे अधिक पारदर्शिता के साथ अपनी कर संबंधी गतिविधियों को संचालित कर रही हैं। इस प्रक्रिया का प्रभावी ढंग से पालन करने से देशों को अपने कर राजस्व में वृद्धि करने में सहायता मिलती है, जिससे वैश्विक आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
प्रश्न 61. हाल ही में, भारत में प्रथम ‘राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (National Investment and Manufacturing Zone)’ का गढ़न कहाँ किए जाने के लिए प्रस्ताव दिया गया था?
(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) महाराष्ट्र
(d) उत्तर प्रदेश
Ans. A
राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (National Investment and Manufacturing Zones – NIMZ) एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे भारतीय सरकार ने 2015 में शुरू किया था। इसका उद्देश्य भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में सुधार लाना और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है। इन क्षेत्रों के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) के मॉडल पर आधारित औद्योगिक क्लस्टर तैयार किए जाएंगे, जहां बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिकी और उद्योगों के लिए अनुकूल नीतियां प्रदान की जाएंगी। आंध्र प्रदेश को इस योजना के पहले NIMZ के रूप में चुना गया था, जहां औद्योगिक और वाणिज्यिक विकास को बढ़ावा देने के लिए निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य है।
NIMZ में एकीकृत औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की जाएगी, जहां उच्चतम गुणवत्ता वाली इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं होंगी, जैसे कि बिजली, जल आपूर्ति, परिवहन और अन्य बुनियादी सेवाएं। यह परियोजना न केवल क्षेत्रीय विकास में मदद करेगी, बल्कि यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगी। इसके अलावा, यह पर्यावरणीय और सामाजिक पहलुओं को भी ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाएगा।
आंध्र प्रदेश में पहले NIMZ की स्थापना के माध्यम से राज्य में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे और उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी। इससे न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी, बल्कि भारत के औद्योगिक मानचित्र पर आंध्र प्रदेश की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाएगी। यह परियोजना राज्य में निवेश की नई धाराओं को खोलने में मदद करेगी और देश के अन्य हिस्सों के लिए एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत करेगी।
प्रश्न 62. भारत में ‘जिला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)’ का/के उद्देश्य क्या है/हैं?
1. खनिज-सम्पन्न जिलों में खनिज-खोज संबंधी क्रियाकलापों को प्रोत्साहित करना
2. खनिज-कार्य से प्रभावित लोगों के हितों की रक्षा करना
3. राज्य सरकारों को खनिज-खोज के लिए लाइसेंस निर्गत करने के लिए अधिकृत करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
जिला खनिज प्रतिष्ठान (DMF) 2015 में खनिज (खनिज संपन्न) क्षेत्रों में खनन से उत्पन्न होने वाले धन का सही उपयोग करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य उन जिलों में खनिज-आधारित उद्योगों द्वारा उत्पन्न होने वाली आय का हिस्सा स्थानीय सामाजिक और आर्थिक विकास में उपयोग करना है। यह उन क्षेत्रों में खनिज-सम्पन्न जिलों के निवासियों को लाभ पहुंचाने हेतु स्थापित किया गया है, जो खनन गतिविधियों के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।
DMF के माध्यम से खनिज-सम्पन्न जिलों में विकासात्मक कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, सड़क निर्माण, आदि। इसके अलावा, यह स्थानीय समुदायों को उनके जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। इसके अंतर्गत, खनन क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली आय का उपयोग स्थानीय लोगों के कल्याण के लिए किया जाता है, ताकि खनन गतिविधियों से उत्पन्न सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों का समाधान हो सके।
इसके अंतर्गत, खनिज-खनन से प्रभावित समुदायों के कल्याण के लिए कई परियोजनाएं चलती हैं, जैसे कि स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, सड़कों का निर्माण, तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं का विस्तार। DMF का उद्देश्य सिर्फ खनिजों से आय अर्जित करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि खनन गतिविधियों के चलते स्थानीय समाज को भी लाभ मिले।
प्रश्न 63. भारत सरकार की एक पहल ‘SWAYAM’ का लक्ष्य क्या है?
(a) ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करना
(b) युवा नव-प्रयासी (स्टार्ट-अप) उद्यमियों को वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराना
(c) किशोरियों की शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य का संवर्धन करना
(d) नागरिकों को वहन करने योग्य एवं गुणवत्ता वाली शिक्षा निःशुल्क उपलब्ध कराना
Ans. D
SWAYAM (Study Webs of Active-learning for Young Aspiring Minds) भारत सरकार द्वारा 2017 में शुरू किया गया एक ऑनलाइन शिक्षा मंच है, जिसका उद्देश्य समग्र और सुलभ शिक्षा प्रदान करना है। यह प्लेटफ़ॉर्म छात्रों, पेशेवरों और सामान्य नागरिकों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। SWAYAM का प्रमुख उद्देश्य यह है कि किसी भी भारतीय नागरिक को उनके स्थान या वित्तीय स्थिति के आधार पर शिक्षा से वंचित न रखा जाए। यह शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम और प्रमाणपत्रों को निःशुल्क और डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराती है।
SWAYAM पर विभिन्न पाठ्यक्रमों की पेशकश की जाती है, जो स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर तक फैले होते हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों जैसे विज्ञान, गणित, मानविकी, कला, प्रबंधन और तकनीकी शिक्षा के कोर्स शामिल हैं। ये कोर्स भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों जैसे IITs, NITs और AICTE से संबंधित होते हैं, जिससे छात्रों को विश्वसनीय और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त होती है।
यह पहल विशेष रूप से उन छात्रों के लिए लाभकारी है जो ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं और जिन्हें शिक्षा के पारंपरिक तरीकों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। SWAYAM के माध्यम से, वे कहीं से भी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और यह एक सकारात्मक कदम है शिक्षा के समावेशी और समग्र विकास की दिशा में। यह पहल भारत सरकार की डिजिटल इंडिया पहल से जुड़ी हुई है और इससे डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा सुधार हुआ है।
प्रश्न 64. मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड प्रस्ताव किससे संबंधित थे?
(a) सामाजिक सुधार
(b) शैक्षिक सुधार
(c) पुलिस प्रशासन में सुधार
(d) सांविधानिक सुधार
Ans. D
मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड प्रस्ताव, जिसे 1917 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किया गया था, भारतीय प्रशासन में महत्वपूर्ण सांविधानिक सुधारों का हिस्सा था। इसका उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश शासन में अधिक प्रतिनिधित्व देना और स्वशासन की दिशा में एक कदम आगे बढ़ना था। यह प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य भारतीय नेताओं द्वारा दी गई मांगों का कुछ हद तक उत्तर था। इसमें केंद्रीय और प्रांतीय स्तरों पर शासन का बंटवारा करने का प्रस्ताव था, जिसमें कुछ प्रांतीय मामलों में भारतीयों को अधिक स्वायत्तता दी गई थी।
इसके तहत, केंद्रीय सरकार में भारतीयों को सीमित प्रतिनिधित्व दिया गया था, जबकि प्रांतीय सरकारों को भी कुछ अधिकार प्रदान किए गए थे। यह योजना ड्यूल गवर्नमेंट या दोहरी शासन व्यवस्था पर आधारित थी, जिसमें केंद्रीय मामलों को ब्रिटिश सरकार नियंत्रित करती थी, जबकि प्रांतीय मामलों में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाई गई। हालांकि, इस प्रस्ताव में भारतीयों को पूरी स्वायत्तता प्राप्त नहीं हुई थी, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बदलाव था।
मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड प्रस्ताव ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी और ब्रिटिश शासन में सुधार की संभावनाओं को खुला किया। इस प्रस्ताव के बाद, भारतीयों को कुछ राजनीतिक अधिकार मिले और उनके प्रतिनिधित्व का दायरा बढ़ा, लेकिन यह पूरी तरह से भारतीयों के स्वशासन की इच्छाओं को पूरा करने में असफल रहा। इसके बावजूद, यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और स्वतंत्रता संग्राम के अगले चरण के लिए आधार तैयार करने में मददगार साबित हुआ।
प्रश्न 65. अजंता और महाबलीपुरम के रूप में ज्ञात दो ऐतिहासिक स्थानों में कौन-सी बात/बातें समान है/हैं?
1. दोनों एक ही समयकाल में निर्मित हुए थे।
2. दोनों का एक ही धार्मिक सम्प्रदाय से संबंध है।
3. दोनों में शिलाकृत स्मारक हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) उपर्युक्त कथनों में से कोई भी सही नहीं है
Ans. B
अजंता और महाबलीपुरम दोनों स्थल भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिनकी शिलाकृत संरचनाओं का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र में स्थित हैं और बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। इन गुफाओं में चित्रकला और मूर्तिकला की अद्वितीय कृतियाँ पाई जाती हैं, जो प्राचीन बौद्ध परंपराओं को दर्शाती हैं। इन गुफाओं में चित्रित दीवारों पर बौद्ध जटिलताओं, बुद्ध की जीवनकथा और विभिन्न बौद्ध कथाएँ दर्शायी गई हैं। यह स्थल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर छठी शताब्दी तक प्रमुख था और 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त की गई।
महाबलीपुरम, जो तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र में स्थित है, पल्लव वंश के समय की शिलाकृत संरचनाओं का महत्वपूर्ण केन्द्र था। यहां पर हिंदू धर्म से संबंधित शिलालेख, मंदिर और रथों की अद्वितीय वास्तुकला पाई जाती है। महाबलीपुरम का सबसे प्रसिद्ध स्मारक ‘शोर मंदिर’ है, जो सातवीं शताब्दी के पल्लव शासकों द्वारा बनवाया गया था। यहां के रथ मंदिर और गुफाएं भी भारतीय वास्तुकला के शिखर माने जाते हैं। इस स्थान की विशेषता यह है कि यह हिन्दू धर्म और कला के अद्भुत संगम को प्रस्तुत करता है। यह स्थल 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया।
अजंता और महाबलीपुरम के बीच एक महत्वपूर्ण समानता है कि दोनों स्थलों में शिलाकृत स्मारक पाए जाते हैं, जिनमें बौद्ध और हिंदू धर्म से संबंधित चित्रण और वास्तुकला का अद्वितीय संगम दिखता है। हालांकि इन दोनों स्थलों का धार्मिक परिप्रेक्ष्य और स्थापत्य कला भिन्न है, फिर भी ये दोनों भारतीय ऐतिहासिक धरोहर के महत्वपूर्ण केन्द्र माने जाते हैं। इन स्मारकों की स्थापत्य कला, धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक प्रासंगिकता आज भी विद्यमान हैं और भारत की कला एवं इतिहास को उजागर करते हैं।
प्रश्न 66. कभी-कभी समाचारों में आने वाले ‘बिटकॉइन्स (Bitcoins)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. बिटकॉइन्स की खोज खबर देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी जाती है।
2. बिटकॉइन के पते वाला कोई भी व्यक्ति, बिटकॉइन के पते वाले किसी अन्य व्यक्ति को बिटकॉइन्स भेज सकता है या उससे प्राप्त कर सकता है।
3. ऑनलाइन अदायगी, दोनों तरफ में से किसी भी तरफ की पहचान जाने बिना, की जा सकती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
बिटकॉइन एक विकेंद्रीकृत डिजिटल मुद्रा है, जिसे किसी केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता। इसकी विशेषता यह है कि इसमें किसी केंद्रीय प्राधिकरण का हस्तक्षेप नहीं होता और यह पूरी तरह से क्रिप्टोग्राफिक सुरक्षा पर आधारित होता है। इसे एक नेटवर्क द्वारा सुरक्षित किया जाता है, जिसे ब्लॉकचेन कहा जाता है। बिटकॉइन की इस प्रणाली में केंद्रीय बैंक का कोई रोल नहीं होता और इसकी खोज और विनियमन पर सरकारी नियंत्रण नहीं होता। इसलिए, पहला कथन गलत है कि बिटकॉइन की खोज खबर देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी जाती है।
बिटकॉइन का उपयोग बिना किसी मध्यस्थ के, सीधे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को किया जा सकता है। इसके लिए केवल बिटकॉइन पते की आवश्यकता होती है और दोनों पक्षों के बीच लेन-देन डिजिटल रूप में होता है। यह प्रक्रिया सुरक्षित और पारदर्शी होती है, क्योंकि सभी लेन-देन ब्लॉकचेन पर दर्ज होते हैं। इससे किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से बिटकॉइन भेजने या प्राप्त करने में कोई रुकावट नहीं होती।
बिटकॉइन लेन-देन की प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि दोनों पक्षों की पहचान की कोई आवश्यकता नहीं होती। यह पूरी प्रक्रिया गुमनाम होती है और केवल डिजिटल पते का उपयोग करके भुगतान किया जाता है। इसलिए, इस प्रणाली में दोनों पक्षों की व्यक्तिगत जानकारी का पता नहीं चलता, जिससे ऑनलाइन लेन-देन को एक सुरक्षित और गोपनीय विकल्प मिलता है। इस कारण से, बिटकॉइन उपयोगकर्ताओं के बीच पहचान गुमनाम रहती है, जो इसकी एक प्रमुख विशेषता है।
प्रश्न 67. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना ए. पी. ई. सी. (APEC) द्वारा की गई है।
2. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) का गठन 2014 में हुआ था, जब ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने इसकी स्थापना की थी। इसका उद्देश्य इन देशों के बीच बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं और विकास कार्यों के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करना है। NDB का फोकस मुख्य रूप से विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और शहरी विकास जैसी आवश्यक परियोजनाओं में निवेश करना है। इसकी स्थापना से पहले, यह माना जाता था कि पश्चिमी वित्तीय संस्थान जैसे कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर से विकासशील देशों को अक्सर सीमित सहायता मिलती थी, इसलिये एक वैकल्पिक बैंक की आवश्यकता महसूस की गई थी।
न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई, चीन में स्थित है। शंघाई का चयन इस बैंक के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था क्योंकि यह चीन का एक प्रमुख वित्तीय केंद्र है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दृष्टिकोण से एक गतिशील स्थान माना जाता है। शंघाई की स्थानिक स्थिति इसे वैश्विक वित्तीय नेटवर्क के साथ जोड़ने के लिए अनुकूल बनाती है। शंघाई में मुख्यालय स्थापित करने से NDB को एशियाई और वैश्विक वित्तीय संस्थानों के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ बनाने में मदद मिलती है। यह बैंक वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में अपनी पहचान बना रहा है और शंघाई इसका केन्द्र बनकर विकासशील देशों के वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता को पूरा करने में सहायक बनता है।
NDB की प्रमुख प्राथमिकता विकासशील देशों में वित्तीय सहायता पहुंचाना है, खासकर उन देशों में जहां पारंपरिक अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग तंत्र द्वारा सहायता मिलना कठिन होता है। ब्रिक्स देशों ने NDB के माध्यम से विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने की योजना बनाई है। इसके द्वारा दी जाने वाली सहायता परियोजनाओं को उन देशों में लागू किया जाता है, जिनमें जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, परिवहन और शहरी ढांचे की सुदृढ़ता के लिए निवेश की आवश्यकता है। NDB के माध्यम से, विकासशील देशों को अधिक आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है, ताकि वे अपनी आर्थिक वृद्धि को स्थिर और सतत बना सकें।
प्रश्न 68. कभी-कभी समाचारों में आने वाली ‘गाडगिल समिति रिपोर्ट’ और ‘कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट’ संबंधित हैं
(a) सांविधानिक सुधारों से
(b) गंगा कार्य-योजना (गंगा ऐक्शन प्लान) से
(c) नदियों को जोड़ने से
(d) पश्चिमी घाटों के संरक्षण से
Ans. D
गाडगिल समिति और कस्तूरीरंगन समिति दोनों रिपोर्टें पश्चिमी घाट के संरक्षण से संबंधित हैं और इनका उद्देश्य इस जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र को संरक्षित करना था। गाडगिल समिति, जिसे 2010 में गठित किया गया, ने पश्चिमी घाट को “संवेदनशील पारिस्थितिकी क्षेत्र” के रूप में मान्यता दी। इस समिति की सिफारिशों में पश्चिमी घाट के 39% क्षेत्र को ‘इको-सेंसिटिव जोन’ के रूप में पहचानने की बात कही गई, जिससे वहां पर विकास कार्यों पर कड़ी निगरानी रखी जा सके। इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकीय तंत्र का संरक्षण था, ताकि इस क्षेत्र की जैव विविधता को बचाया जा सके।
कस्तूरीरंगन समिति, जिसे 2013 में गठित किया गया था, ने गाडगिल समिति की सिफारिशों को संशोधित किया। समिति ने पश्चिमी घाट को विशेष जैव विविधता वाले क्षेत्रों के रूप में चिन्हित करने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा, इसने विकासात्मक गतिविधियों पर रोक लगाने का सुझाव दिया, साथ ही कुछ क्षेत्रों में विकास के लिए सहमति देने की शर्तें भी निर्धारित कीं। इस समिति ने पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए अधिक कार्य योजनाएँ प्रस्तुत कीं।
इन दोनों समितियों की सिफारिशों के प्रभाव से पश्चिमी घाट के जैविक और पारिस्थितिकीय संसाधनों की सुरक्षा को लेकर एक नई दिशा मिली है। भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकारों ने इन रिपोर्टों के आधार पर संरक्षण और विकास के लिए नई नीतियाँ बनाई हैं। इन समितियों के सुझावों का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रबंधन करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना था, जिससे इस क्षेत्र का दीर्घकालिक संरक्षण संभव हो सके।
प्रश्न 69. निम्नलिखित पर विचार कीजिए:
1. कलकत्ता यूनिटेरियन कमिटी (Calcutta Unitarian Committee)
2. टेबरनेकल ऑफ़ न्यू डिस्पेंसेशन (Tabernacle of New Dispensation)
3. इंडियन रिफॉर्म असोसिएशन (Indian Reform Association)
केशब चन्द्र सेन का संबंध उपर्युक्त में से किसकी /किनकी स्थापना से है?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
केशब चंद्र सेन ने 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने “टेबरनेकल ऑफ न्यू डिस्पेंसेशन” (1867) की स्थापना की, जो एक धार्मिक आंदोलन था। इसका उद्देश्य भारतीय समाज में धार्मिक विचारधाराओं को आधुनिक दृष्टिकोण से समझाना था। इस आंदोलन के तहत, उन्होंने हिन्दू धर्म के रुढ़िवादी पहलुओं को चुनौती दी और एक नई धार्मिक चेतना का प्रचार किया। यह आंदोलन मुख्य रूप से सामाजिक सुधारों, जैसे महिलाओं के अधिकारों और समाज में व्याप्त अंधविश्वास के खिलाफ था। केशब चंद्र सेन ने इस मंच का उपयोग करते हुए समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।
इसके अलावा, केशब चंद्र सेन ने “इंडियन रिफॉर्म असोसिएशन” की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों, जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद और अंधविश्वास को समाप्त करना था। यह संस्था 1870 में स्थापित की गई थी और इसका प्रभाव बहुत गहरा था। इसने भारतीय समाज के भीतर सामाजिक न्याय और समानता के विचारों को बढ़ावा दिया।
“कलकत्ता यूनिटेरियन कमिटी” के साथ केशब चंद्र सेन का कोई सीधा संबंध नहीं था। हालांकि यूनिटेरियन विचारधारा ने भारत में कुछ प्रभाव छोड़ा था, लेकिन केशब चंद्र सेन का मुख्य फोकस हिन्दू धर्म में सुधार करने पर था। उनका दृष्टिकोण न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक सुधारों को लेकर भी था, जो उन्होंने अपनी संस्थाओं के माध्यम से प्रचारित किया।
प्रश्न 70. निम्नलिखित में से कौन ‘खाड़ी सहयोग परिषद् (गल्फ कोऑपरेशन काउन्सिल)’ का सदस्य नहीं है?
(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवैत
Ans. A
खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council – GCC) की स्थापना 25 मई 1981 को की गई थी। इसका उद्देश्य खाड़ी क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना था। इसके सदस्य देशों में सऊदी अरब, ओमान, कुवैत, कतर, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) शामिल हैं। इन देशों का मुख्य ध्यान एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने पर है। यह संगठन सदस्य देशों के बीच सामूहिक आर्थिक समृद्धि को प्रोत्साहित करने, ऊर्जा संसाधनों का साझा उपयोग करने और क्षेत्रीय संकटों पर संयुक्त रूप से प्रतिक्रिया देने के लिए कार्य करता है।
इसके विपरीत, ईरान खाड़ी सहयोग परिषद का सदस्य नहीं है। इसका कारण यह है कि ईरान का राजनीतिक दृष्टिकोण और क्षेत्रीय रणनीतियाँ GCC देशों से भिन्न हैं। GCC के सदस्य देशों ने अक्सर ईरान के आंतरिक मामलों और उसकी विदेश नीति पर आपत्ति जताई है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम और उसके द्वारा क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के प्रयास, GCC देशों के लिए चिंता का कारण रहे हैं। इस प्रकार, ईरान की सुरक्षा और कूटनीतिक प्राथमिकताएँ GCC के अन्य सदस्य देशों से मेल नहीं खाती हैं।
GCC का एक प्रमुख उद्देश्य इस क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा और शांति बनाए रखना है। इसका गठन एक ऐसे समय में हुआ था, जब खाड़ी देशों को अपनी सीमाओं और ऊर्जा संसाधनों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चुनौतियाँ थीं। इसके गठन के बाद, इसने राजनीतिक और आर्थिक एकता को बढ़ावा दिया और क्षेत्रीय संकटों में सामूहिक प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित किया। ईरान के साथ जारी तनाव और मतभेद, विशेष रूप से उसके परमाणु कार्यक्रम और विदेश नीति के कारण, GCC की सामूहिक सुरक्षा नीति के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुए हैं। इसलिए, ईरान को इस संगठन में सदस्य के रूप में शामिल नहीं किया गया।
प्रश्न 71. सरकार की ‘सम्प्रभु स्वर्ण बॉन्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)’ एवं ‘स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme)’ का/के उद्देश्य क्या है/हैं?
1. भारतीय गृहस्थों के पास निष्क्रिय पड़े स्वर्ण को अर्थव्यवस्था में लाना
2. स्वर्ण एवं आभूषण के क्षेत्र में एफ. डी. आइ. (FDI) को प्रोत्साहित करना
3. स्वर्ण-आयात पर भारत की निर्भरता में कमी लाना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
सम्प्रभु स्वर्ण बॉन्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme) और स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme) भारत सरकार द्वारा 2015 में स्वर्ण के भंडारण को वित्तीय संसाधन में परिवर्तित करने और स्वर्ण के आयात पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई थीं। इन योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य भारतीय गृहस्थों द्वारा रखे गए स्वर्ण को वित्तीय रूप से उपयोगी बनाना है। स्वर्ण बॉन्ड योजना के अंतर्गत, नागरिक स्वर्ण की कीमत पर आधारित बांड खरीद सकते हैं और उस पर ब्याज प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना से स्वर्ण को निवेश के रूप में प्रयोग करने की सुविधा मिलती है और यह स्वर्ण के अप्रयुक्त भंडारण को सक्रिय करता है।
स्वर्ण मुद्रीकरण योजना का उद्देश्य भारतीय नागरिकों को उनके स्वर्ण आभूषणों को बैंकों में जमा करने के लिए प्रेरित करना है, जिससे वे उसे ब्याज के रूप में मुद्रीकरण कर सकते हैं। इसके जरिए घरेलू स्वर्ण भंडार का उपयोग वित्तीय निवेश में किया जाता है, जिससे स्वर्ण के भंडारण को निवेश में बदलने के अवसर मिलते हैं। इस योजना का भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह लाभ है कि इससे स्वर्ण को मुद्रा के रूप में लाया जाता है और इससे आर्थिक संसाधनों का संचार बढ़ता है।
इन योजनाओं का दूसरा उद्देश्य स्वर्ण आयात पर भारत की निर्भरता को कम करना है। भारत स्वर्ण का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है और इन योजनाओं के माध्यम से घरेलू स्वर्ण का उपयोग बढ़ाकर स्वर्ण आयात में कमी लाने का प्रयास किया गया है। इससे भारतीय विदेशी मुद्रा का संरक्षण कर सकते हैं और यह देश के व्यापार घाटे में कमी ला सकता है। इसके अलावा, यह योजना घरेलू निवेशकों के लिए भी एक सुरक्षित और लाभकारी विकल्प प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 72. कभी-कभी समाचारों में आने वाला ‘बेल्ट ऐन्ड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative)’ किसके मामलों के संदर्भ में आता है?
(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन
Ans. D
‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) चीन द्वारा 2013 में प्रस्तावित एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाले व्यापारिक, परिवहन और ऊर्जा कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करना है। इस योजना के तहत, चीन ने विभिन्न देशों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निर्माण की शुरुआत की है, जैसे कि रेल, सड़क, बंदरगाह और ऊर्जा परियोजनाएं। इस पहल को “न्यू सिल्क रूट” भी कहा जाता है, क्योंकि यह पुराने सिल्क रूट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है, जो ऐतिहासिक रूप से एशिया और यूरोप के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग था। BRI का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना और वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका को मजबूत करना है। इसके तहत अब तक चीन ने कई देशों के साथ साझेदारी की है और उनका आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए पूंजी निवेश किया है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना और व्यापारिक कनेक्टिविटी में सुधार करना है। BRI के तहत कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं चल रही हैं, जैसे कि उच्च गति की रेलवे, जलमार्ग, सड़कें, एयरपोर्ट और अन्य बुनियादी ढांचे। इसका उद्देश्य एशियाई, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना है। चीन ने इन परियोजनाओं के लिए अपने वित्तीय संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया है। इसके परिणामस्वरूप, इन देशों के विकास में तेजी आई है और स्थानीय रोजगार के अवसर भी उत्पन्न हुए हैं। BRI को चीन के ‘वेस्टर्न डेवेलपमेंट’ और ‘चाइना ड्रीम’ जैसे बड़े लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाता है, जिससे यह चीन की वैश्विक आर्थिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
हालांकि, बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव को लेकर कुछ विवाद भी उत्पन्न हुए हैं। आलोचक यह मानते हैं कि इस योजना के माध्यम से चीन कुछ देशों को भारी कर्ज के जाल में फंसा सकता है, जो बाद में उन देशों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, BRI परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी और पर्यावरणीय चिंताएं भी उठाई गई हैं। कई परियोजनाओं के तहत प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो सकता है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसके अलावा, कुछ देशों ने यह भी चिंता जताई है कि BRI के तहत चीन का रणनीतिक प्रभाव बढ़ सकता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन की स्थिति और मजबूत हो सकती है।
प्रश्न 73. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?
(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिए ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन देना
(d) कौशल विकास एवं रोजगार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधीयन (फंडिंग) करना
Ans. A
प्रधानमंत्री MUDRA योजना का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटे एवं सूक्ष्म उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। यह योजना 2015 में शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य भारतीय समाज के सबसे निचले स्तर तक ऋण की पहुंच को आसान बनाना है। MUDRA (Micro Units Development and Refinance Agency) योजना मुख्य रूप से छोटे व्यापारियों, कारीगरों और सेवा प्रदाताओं को लक्षित करती है, जो सामान्यतः बैंकों से ऋण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। इसके तहत शिशु, किशोर और तरुण जैसे तीन श्रेणियाँ बनाई गई हैं, जो छोटे से लेकर अपेक्षाकृत बड़े उधारी की आवश्यकता को पूरा करती हैं।
MUDRA योजना के तहत, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को उद्यमियों को बिना किसी गारंटी के ऋण प्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह योजना उन छोटे व्यवसायों के लिए है, जो कम पूंजी में काम करते हैं और जिन्हें अपनी कार्यशील पूंजी बढ़ाने के लिए ऋण की आवश्यकता होती है। यह योजना विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, निर्माण, खुदरा, परिवहन और सेवा उद्योग को ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। इसके माध्यम से उद्यमियों को व्यवसाय बढ़ाने के लिए आवश्यक संसाधन प्राप्त होते हैं।
इस योजना का उद्देश्य भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को सशक्त बनाना है, ताकि रोजगार सृजन को बढ़ावा मिले और स्वावलंबन की भावना जागृत हो। MUDRA योजना के माध्यम से, छोटे उद्यमियों को जो वित्तीय सहायता मिलती है, वह उनके लिए व्यापार विस्तार, तकनीकी सुधार और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में मददगार साबित होती है। इसके साथ ही, यह योजना देश के समग्र आर्थिक विकास में भी योगदान करती है, क्योंकि यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से रोजगार और आर्थिक अवसर उत्पन्न करती है।
प्रश्न 74. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किसमें/ किनमें शेल गैस के संसाधन पाए जाते हैं?
1. कैम्बे बेसिन
2. कावेरी बेसिन
3. कृष्णा-गोदावरी बेसिन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
भारत में शेल गैस के संसाधन प्रमुख तेल और गैस बेसिनों में पाए गए हैं, जिनमें कैम्बे बेसिन, कावेरी बेसिन और कृष्णा-गोदावरी बेसिन शामिल हैं। ये क्षेत्र प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए प्रमुख स्रोत रहे हैं और अब शेल गैस के संसाधन इन्हीं क्षेत्रों में खोजे गए हैं। शेल गैस एक अप्रत्याशित प्राकृतिक गैस स्रोत है, जो शेल रॉक के अंदर पाया जाता है। इस प्रकार के गैस भंडार भारत के ऊर्जा खपत को नए दिशा में बढ़ा सकते हैं। कैम्बे बेसिन में शेल गैस के पाई जाने की संभावना का अध्ययन किया जा रहा है और यह पश्चिमी भारत के ऊर्जा क्षेत्र में नई संभावना का संकेत देता है।
कावेरी बेसिन और कृष्णा-गोदावरी बेसिन में शेल गैस के बड़े भंडार संभावित हैं। इन क्षेत्रों में शेल गैस की वाणिज्यिक निष्कर्षण की संभावनाएँ भी जांची जा रही हैं। कावेरी बेसिन में शेल गैस की उपलब्धता से दक्षिण भारत में ऊर्जा आपूर्ति में वृद्धि हो सकती है। कृष्णा-गोदावरी बेसिन, जो कि तटीय आंध्र प्रदेश में स्थित है, में शेल गैस उत्पादन के व्यापक अवसर हो सकते हैं। यहाँ के भंडारों का उपयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा में सहायक हो सकता है और गैस आयात में कमी ला सकता है।
भारत में शेल गैस का उत्पादन कई तकनीकी और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करता है। शेल गैस की निष्कर्षण प्रक्रिया के दौरान जलवायु और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके अलावा, उच्च लागत और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकल्प भी शेल गैस उत्पादन के समक्ष चुनौती पेश करते हैं। यदि इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक समाधान किया जाता है, तो शेल गैस भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
प्रश्न 75. ‘वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Global Financial Stability Report)’ किसके द्वारा तैयार की जाती है?
(a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक
(d) आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development)
Ans. B
वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Global Financial Stability Report) हर छह महीने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा तैयार की जाती है। यह रिपोर्ट वित्तीय स्थिरता के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करती है, जिसमें वैश्विक और क्षेत्रीय आर्थिक स्थिति, वित्तीय संस्थाओं की स्थिति और वित्तीय बाजारों में आने वाले जोखिमों का आकलन किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि वित्तीय संकटों की पूर्व चेतावनी दी जाए और वैश्विक अर्थव्यवस्था में वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रभावी नीतियों का सुझाव दिया जाए। रिपोर्ट में प्रमुख आर्थिक और वित्तीय घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है, जिससे नीति-निर्माताओं को अपनी रणनीतियों को पुनः जांचने का अवसर मिलता है।
इस रिपोर्ट में बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और अन्य वित्तीय क्षेत्रों की स्थिरता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। साथ ही, इसमें मुद्रा दरों के उतार-चढ़ाव, ब्याज दरों के प्रभाव और वैश्विक आर्थिक संकटों के कारण होने वाली वित्तीय अस्थिरता का विस्तृत मूल्यांकन किया जाता है। रिपोर्ट में वैश्विक वित्तीय बाजारों के बदलते हालात और नए जोखिमों को समझने के लिए गहन शोध किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप नीति-निर्माताओं को वैश्विक वित्तीय वातावरण में स्थिरता बनाए रखने के लिए ठोस दिशा-निर्देश मिलते हैं।
रिपोर्ट का प्रभाव वैश्विक वित्तीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह निवेशकों, सरकारी संस्थाओं और केंद्रीय बैंकों को भविष्य के वित्तीय जोखिमों से बचने के लिए प्रासंगिक जानकारी प्रदान करती है। IMF इस रिपोर्ट के माध्यम से वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर वित्तीय संकटों की स्थिति का आकलन करता है और उन देशों को चेतावनी देता है, जिनकी वित्तीय स्थिति कमजोर हो सकती है। रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी से सरकारें और वित्तीय संस्थाएं अपने नीति निर्णयों को बेहतर बना सकती हैं और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता से बचने के उपायों पर विचार कर सकती हैं।
प्रश्न 76. ‘अटल पेंशन योजना’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह एक न्यूनतम गारंटित पेंशन योजना है, जो मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लक्ष्य बनाती है।
2. परिवार का केवल एक ही व्यक्ति इस योजना में शामिल हो सकता है।
3. अभिदाता (सब्स्क्राइबर) की मृत्यु के पश्चात् जीवनसाथी को आजीवन पेंशन की समान राशि गारंटित रहती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
अटल पेंशन योजना (APY), 2015 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा योजना है, जिसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को 60 वर्ष की आयु के बाद न्यूनतम पेंशन प्रदान करना है। यह योजना विशेष रूप से उन व्यक्तियों को ध्यान में रखकर बनाई गई है जो नियमित पेंशन योजनाओं से बाहर हैं। इसमें श्रमिक अपनी मासिक आय के अनुसार योगदान करते हैं और 60 वर्ष के बाद उन्हें 1,000 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक की मासिक पेंशन मिलती है, जो उनके योगदान और उम्र पर निर्भर करती है। यह योजना असंगठित श्रमिकों के लिए जीवन सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस योजना के तहत पेंशनधारक की मृत्यु के बाद, उनके जीवनसाथी को भी समान पेंशन राशि की गारंटी मिलती है। इस प्रावधान से परिवार की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होती है, खासकर उन परिवारों के लिए जिनके पास कोई अन्य स्थिर आय का स्रोत नहीं होता। इसका उद्देश्य यह है कि पेंशनधारक के निधन के बाद भी परिवार की जीवनशैली पर कोई असर न पड़े और उन्हें आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
हालांकि इस योजना में केवल एक परिवार का सदस्य ही पेंशन योजना का लाभ उठा सकता है, लेकिन इसका दायरा काफी विस्तृत है। इससे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सेवानिवृत्ति के बाद एक निश्चित आय मिलती है, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार होता है। यह योजना भारतीय सरकार के सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क को मजबूत करती है और उन व्यक्तियों की मदद करती है जो अक्सर वित्तीय संकटों का सामना करते हैं।
प्रश्न 77. ‘रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)’ पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है?
(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC
Ans. B
रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) एक महत्वपूर्ण व्यापारिक समझौता है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया। यह समझौता ASEAN (Association of Southeast Asian Nations) और इसके छ: मुक्त व्यापार भागीदारों — चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत — के बीच हुआ। 2012 में इसके विचार विमर्श की शुरुआत हुई थी और 2020 में यह परिपक्व हुआ। RCEP के माध्यम से, क्षेत्रीय व्यापार में बाधाएं कम करने, निवेश बढ़ाने और व्यापारिक नीतियों में एकरूपता लाने का लक्ष्य था।
इस समझौते के तहत, सदस्य देशों के बीच व्यापारिक प्रतिबंधों को कम किया गया और साझा बाजार के निर्माण पर जोर दिया गया। RCEP के तहत, बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा, सार्वजनिक खरीद के नियमों और निवेश प्रोत्साहन जैसे मुद्दों पर गहरी चर्चा हुई। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य एशियाई देशों के बीच व्यावसायिक समन्वय को बढ़ावा देना था, जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति मिल सके।
हालांकि, भारत ने 2019 में इस समझौते से बाहर रहने का निर्णय लिया। भारत की चिंता यह थी कि RCEP में शामिल होने से घरेलू उद्योगों, विशेष रूप से कृषि और छोटे व्यवसायों, को नुकसान हो सकता है। भारत ने यह तर्क दिया कि RCEP के तहत चीन के जैसे देशों के लिए बाजार में अधिक स्थान मिल सकता है, जिससे भारत के उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
प्रश्न 78. निम्नलिखित में से किसमें आप ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) का स्टार लेबल पाते हैं?
1. छत के (सीलिंग) पंखे
2. विद्युत् गीजर
3. नलिकारूप प्रतिदीप्ति (ट्यूबुलर फ्लूओरेसेंट) लैंप
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. D
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency, BEE) ने विभिन्न उत्पादों की ऊर्जा दक्षता को मान्यता देने के लिए स्टार रेटिंग प्रणाली शुरू की। इस प्रणाली के अंतर्गत छत के पंखों, विद्युत् गीजरों और ट्यूबुलर फ्लूरेसेंट लैंप जैसे उत्पादों को शामिल किया गया है। इन उत्पादों पर स्टार रेटिंग यह दर्शाती है कि इनकी ऊर्जा खपत कितनी कम है और इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पादों का चयन करने के लिए प्रेरित करना है जो कम ऊर्जा का उपयोग करें, जिससे बिजली की खपत कम हो और पर्यावरणीय प्रभाव भी घटे। यह पहल 2006 में शुरू की गई थी और इसके बाद से विभिन्न उत्पादों पर यह रेटिंग लागू की गई है, जिससे उपभोक्ताओं को ऊर्जा की बचत के लिए बेहतर विकल्प मिलते हैं।
छत के पंखों के लिए स्टार रेटिंग प्रणाली 2007 में लागू की गई थी। इसके माध्यम से उपभोक्ता उन पंखों को प्राथमिकता देते हैं, जो ऊर्जा की खपत कम करते हैं और अधिक दक्षता प्रदान करते हैं। इस रेटिंग के द्वारा, पंखों की कार्यक्षमता और बिजली की खपत के बीच संतुलन स्थापित किया जाता है, जिससे उपभोक्ता लागत कम कर सकते हैं। विद्युत् गीजरों पर भी यही रेटिंग प्रणाली लागू होती है, जो उपभोक्ताओं को ऊर्जा बचत वाले गीजर का चुनाव करने में मदद करती है। इस प्रणाली से न केवल बिजली बिल कम होता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
ट्यूबुलर फ्लूरेसेंट लैंप पर स्टार रेटिंग लागू करने का उद्देश्य इन लैंप्स की कार्यक्षमता को बढ़ाना है। फ्लूरेसेंट लाइट्स की ऊर्जा खपत पर नजर रखते हुए, यह रेटिंग उपभोक्ताओं को बेहतर और अधिक ऊर्जा बचाने वाले विकल्प चुनने के लिए मार्गदर्शन करती है। यह उपभोक्ताओं को पंक्तिबद्ध करता है कि वे ऊर्जा की खपत को कम करने के साथ-साथ अपनी बिजली बिल को भी घटा सकें। इन रेटिंग्स के द्वारा, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने एक कदम और बढ़ाया है ताकि ऊर्जा की बचत के साथ साथ देश की ऊर्जा नीति को सुदृढ़ किया जा सके।
इस पहल से उपभोक्ताओं को एक स्पष्ट मार्गदर्शन मिलता है, जिससे वे ऊर्जा की अधिक बचत कर सकते हैं और साथ ही अपने उत्पादों की कार्यक्षमता में वृद्धि देख सकते हैं। ऊर्जा दक्षता की दिशा में यह पहल न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण के संरक्षण में भी योगदान करती है।
प्रश्न 79. भारत ‘अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor)’ का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है। यदि यह प्रयोग सफल हो जाता है, तो भारत का तात्कालिक लाभ क्या है?
(a) यह विद्युत् उत्पादन के लिए यूरेनियम की जगह थोरियम प्रयुक्त कर सकता है
(b) यह उपग्रह मार्गनिर्देशन (सैटेलाइट नैविगेशन) में एक वैश्विक भूमिका प्राप्त कर सकता है
(c) यह विद्युत् उत्पादन में अपने विखंडन (फिशन) रिएक्टरों की दक्षता में तेजी से सुधार ला सकता है
(d) यह विद्युत् उत्पादन के लिए संलयन (फ्यूजन) रिएक्टरों का निर्माण कर सकता है
Ans. D
अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर (ITER) एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य संलयन (फ्यूजन) तकनीक से ऊर्जा उत्पादन की संभावनाओं को साबित करना है। संलयन रिएक्टरों में हाइड्रोजन के आइसोटोप जैसे ड्यूटेरियम और ट्रिटियम का उपयोग किया जाता है, जो पृथ्वी पर व्यापक रूप से उपलब्ध हैं। ITER की सफलता से न केवल संलयन ऊर्जा का उत्पादन संभव होगा, बल्कि यह एक स्थिर, स्वच्छ और सस्ते ऊर्जा स्रोत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। भारत की ITER परियोजना में सक्रिय भागीदारी इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है, क्योंकि इससे देश को न केवल ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हो सकती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।
यदि ITER परियोजना सफल होती है, तो भारत को संलयन रिएक्टरों का निर्माण करने की क्षमता मिल सकती है। संलयन रिएक्टरों की विशेषता यह है कि इनमें किसी भी प्रकार का हानिकारक अपशिष्ट (न्यूक्लियर वेस्ट) नहीं उत्पन्न होता, जो पारंपरिक विखंडन (फिशन) रिएक्टरों में उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे भारत को ऊर्जा संकट से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक समाधान मिल सकता है। इसके अतिरिक्त, यह पर्यावरण के अनुकूल भी है, क्योंकि इसमें कार्बन उत्सर्जन नहीं होता, जिससे भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी सहायता मिलेगी।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ITER का सफल होना अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा। इससे न केवल भारत को स्वच्छ ऊर्जा के नए स्रोत मिलेंगे, बल्कि यह ऊर्जा संकट की गंभीर समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करेगा। संलयन रिएक्टरों का निर्माण और संचालन भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक नया युग स्थापित करेगा। यह कदम ऊर्जा क्षेत्र के भीतर भारत की सशक्त स्थिति को और मजबूत करेगा और वैश्विक ऊर्जा समुदाय में भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा।
प्रश्न 80. भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[शब्द – विवरण]
1. एरिपत्ति : भूमि, जिससे मिलने वाला राजस्व अलग से ग्राम जलाशय के रख-रखाव के लिए निर्धारित कर दिया जाता था
2. तनियूर : एक अकेले ब्राह्मण अथवा एक ब्राह्मण-समूह को दान में दिए गए ग्राम
3. घटिका : प्रायः मंदिरों के साथ संबद्ध विद्यालय
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 2 और 3
(d) 1 और 3
Ans. D
एरिपत्ति एक प्रकार की भूमि प्रथा थी, जो विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित थी। इसके तहत, भूमि का एक भाग ग्राम जलाशय के रख-रखाव के लिए निर्धारित किया जाता था। इस व्यवस्था का उद्देश्य जल स्रोतों का संरक्षण करना था, ताकि पानी की आपूर्ति स्थिर रहे और कृषि गतिविधियाँ निर्बाध रूप से चल सकें। एरिपत्ति का महत्व उस समय के समाज में जल प्रबंधन के सिद्धांतों को दर्शाता है, जिसमें कृषि के साथ-साथ जलाशय की देखरेख और उसे बनाए रखना आवश्यक था। यह व्यवस्था न केवल जल संरक्षण की दृष्टि से बल्कि समाज की पारंपरिक जल प्रबंधन व्यवस्था की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण थी।
तनियूर, एक प्रकार का भूमि दान था जो विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित था। इस व्यवस्था में एक ब्राह्मण या ब्राह्मणों के समूह को दान में एक सम्पूर्ण ग्राम दिया जाता था। इस दान से प्राप्त होने वाले राजस्व का उपयोग ब्राह्मणों की आजीविका और धार्मिक कार्यों में किया जाता था। तनियूर प्रणाली धार्मिक और सामाजिक दान की संस्कृति को पुष्ट करती थी, जिसमें समाज के धार्मिक कार्यों के लिए भूमि दान की जाती थी। यह व्यवस्था शिक्षा, धर्म और संस्कृति के प्रचार में सहायक थी। इसके अतिरिक्त, यह ब्राह्मणों को समाज में एक विशिष्ट स्थान और सुरक्षा प्रदान करती थी।
घटिका, प्राचीन भारत में एक प्रकार का विद्यालय था जो प्रायः मंदिरों के साथ जुड़ा हुआ होता था। इसमें वेद, शास्त्र और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन होता था। घटिका की प्रमुख विशेषता यह थी कि यह न केवल शिक्षा का केन्द्र था, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। घटिकाओं में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन जीने के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की भी शिक्षा दी जाती थी। यह विद्यालय ब्राह्मणों द्वारा संचालित होते थे और समाज को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ समाज सेवा और संस्कारों का ज्ञान भी प्रदान करते थे। इनका संबंध मंदिरों से था, जो कि इन संस्थाओं के संचालन के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों का योगदान देते थे।
प्रश्न 81. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारम्भ किया गया था।
2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. A
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance – ISA) की स्थापना 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) के दौरान हुई थी। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से उन देशों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना है, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकृत क्षेत्रों में स्थित हैं। यह गठबंधन फ्रांस और भारत द्वारा मिलकर प्रस्तावित किया गया था और इसके तहत मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए गए हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की विकास, साझा ज्ञान और तकनीकी सहायता प्रदान करना है ताकि विकासशील देशों को स्वच्छ और किफायती ऊर्जा स्रोतों का लाभ मिल सके।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के सदस्य देशों में विविधता है, लेकिन यह संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों का हिस्सा नहीं है। इसका मुख्य ध्यान उन देशों पर केंद्रित है जो सौर ऊर्जा के बड़े उपभोक्ता हो सकते हैं, लेकिन उन्हें इस क्षेत्र में सहयोग और वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है। इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा से संबंधित प्रौद्योगिकियों की अनुसंधान, निवेश और निर्यात को बढ़ावा देना है, साथ ही सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न करना है।
ISA का प्रभाव वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह संकल्पना और दिशा सौर ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिए व्यापक स्तर पर सहायक सिद्ध हो रही है। इसके माध्यम से, भारत जैसे देशों को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने का अवसर मिलता है। यह प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरणीय मुद्दों को भी संबोधित करता है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, जो वैश्विक स्तर पर गंभीर चुनौतियाँ हैं।
प्रश्न 82. समाचारों में कभी-कभी देखे जाने वाला ‘यूरोपीय स्थिरता तंत्र (European Stability Mechanism)’ क्या है?
(a) मध्य-पूर्व से लाखों शरणार्थियों के आने के प्रभाव से निपटने के लिए EU द्वारा बनाई गई एक एजेंसी
(b) EU की एक एजेंसी, जो यूरोक्षेत्र (यूरोजोन) के देशों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है
(c) सभी द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को सुलझाने के लिए EU की एक एजेंसी
(d) सदस्य राष्ट्रों के बीच मतभेद सुलझाने के लिए EU की एक एजेंसी
Ans. B
यूरोपीय स्थिरता तंत्र (European Stability Mechanism – ESM) यूरोक्षेत्र के देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली एक अंतरसरकारी संस्था है, जिसे 2012 में स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य यूरोक्षेत्र के देशों में वित्तीय संकट के समय वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना और आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है। ESM मुख्य रूप से उन देशों को वित्तीय पैकेज प्रदान करता है जो यूरो मुद्रा का प्रयोग करते हुए गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे होते हैं, जैसे ग्रीस, पुर्तगाल और आयरलैंड। यह संस्थान इन देशों को कर्ज देने के साथ-साथ उनके वित्तीय पुनर्निर्माण और आर्थिक सुधार योजनाओं को लागू करने में मदद करता है।
ESM के अंतर्गत वित्तीय सहायता पैकेज के साथ कुछ कठोर शर्तें भी होती हैं, जिनमें सार्वजनिक खर्चों में कटौती, संरचनात्मक सुधार और दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता की दिशा में कदम उठाना शामिल होता है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के सहयोग से ESM यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय सहायता का सही उपयोग किया जाए और संकटग्रस्त देशों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया जा सके। इसके माध्यम से यूरोपीय क्षेत्र में वित्तीय और मौद्रिक स्थिरता को बढ़ावा दिया जाता है।
यह तंत्र आर्थिक संकट के समय यूरोक्षेत्र के देशों के लिए एक महत्वपूर्ण सहायता प्रणाली के रूप में कार्य करता है। इसके द्वारा प्रदान किए गए वित्तीय पैकेज उन देशों को कर्ज चुकाने में मदद करते हैं, जो अपने बजट घाटे को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं। 2012 के बाद, कई देशों ने ESM से वित्तीय सहायता प्राप्त की है, जिनमें सबसे प्रमुख उदाहरण ग्रीस का है, जिसे 2010 से 2018 तक कई वित्तीय पैकेज प्राप्त हुए। इन पैकेजों के जरिए ग्रीस की अर्थव्यवस्था को सुधारने के प्रयास किए गए और उसे यूरो क्षेत्र में बनी रहने में सहायता मिली। ESM के जरिए यूरो क्षेत्र में संकटों का सामना करने और आर्थिक असंतुलन को कम करने के लिए एक प्रणाली तैयार की गई है।
प्रश्न 83. निम्नलिखित में से कौन-सा/से द्रप्स (ड्रिप) सिचाई पद्धति के प्रयोग का/के लाभ है/हैं?
1. खर-पतवार में कमी
2. मृदा लवणता में कमी
3. मृदा अपरदन में कमी
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई भी ड्रिप सिंचाई पद्धति का लाभ नहीं है
Ans. C
ड्रिप सिचाई पद्धति, जिसे बूँद-बूँद सिंचाई पद्धति भी कहा जाता है, आधुनिक कृषि में जल के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक अत्याधुनिक तकनीक है। इस पद्धति में, जल को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है, जिससे पानी का अत्यधिक व्यय कम हो जाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे खर-पतवार की वृद्धि कम होती है। जब जल सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचता है, तो आसपास की मिट्टी में पानी का अत्यधिक फैलाव नहीं होता, जिससे खर-पतवार को बढ़ने का अवसर नहीं मिलता। इससे किसानों को कम श्रम और रसायनों का उपयोग करना पड़ता है, जो आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी है।
दूसरे, ड्रिप सिचाई पद्धति मृदा लवणता को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पारंपरिक सिंचाई विधियों में, जहां पानी का अत्यधिक प्रवाह होता है, वहाँ जल का अत्यधिक संचयन मृदा में लवणता को बढ़ा सकता है। ड्रिप सिचाई में जल सीधे पौधों की जड़ों तक जाता है, जिससे लवणता के संचयन का खतरा कम हो जाता है। इस पद्धति से जल की आपूर्ति संतुलित रहती है और भूमि की संरचना भी बनी रहती है, जिससे मृदा की गुणवत्ता और उपजाऊ क्षमता बनी रहती है।
अंततः, ड्रिप सिचाई पद्धति मृदा अपरदन को कम करने में भी मदद करती है। पारंपरिक सिंचाई में पानी का अत्यधिक प्रवाह मृदा के कटाव को बढ़ा सकता है, जबकि ड्रिप सिचाई में पानी धीरे-धीरे और नियंत्रित तरीके से मृदा में जाता है, जिससे मृदा अपरदन की संभावना घटती है। इस प्रकार, यह पद्धति भूमि संरक्षण में सहायक है और मृदा के कटाव को रोकने के लिए एक प्रभावी उपाय है। यह तकनीक दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता के लिए अत्यंत लाभकारी साबित होती है।
प्रश्न 84. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले ‘डिजिलॉकर (DigiLocker)’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के अंतर्गत सरकार द्वारा दिया जाने वाला एक डिजिटल लॉकर सिस्टम है।
2. यह आपके ई-दस्तावेजों तक आपकी पहुँच को संभव बनाता है, चाहे भौतिक रूप से आपकी उपस्थिति कहीं भी हो।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न हीं 2
Ans. C
डिजिलॉकर (DigiLocker) भारत सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया एक प्रमुख पहल है, जो डिजिटल इंडिया मिशन का हिस्सा है। इसका उद्देश्य नागरिकों को डिजिटल रूप से उनके सरकारी दस्तावेजों तक पहुंच प्रदान करना है, ताकि कागज पर निर्भरता कम हो सके। यह एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है जो उपयोगकर्ताओं को सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित तरीके से संग्रहीत और साझा करने का अवसर देता है। डिजिलॉकर का उपयोग करते हुए नागरिकों को अपने दस्तावेज़ों को कहीं से भी और कभी भी एक्सेस करने की सुविधा प्राप्त होती है, जिससे सरकारी प्रक्रियाओं में तेजी और पारदर्शिता आती है।
डिजिलॉकर की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह उपयोगकर्ताओं को उनके दस्तावेजों की भौतिक कॉपी को साथ रखने की आवश्यकता से मुक्त करता है। उदाहरण के लिए, जन्म प्रमाणपत्र, शैक्षिक प्रमाणपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड जैसी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को डिजिलॉकर में स्टोर किया जा सकता है और इन्हें डिजिटल रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह सेवा नागरिकों को उनके दस्तावेज़ों के लिए ऑनलाइन सुरक्षित जगह प्रदान करती है, जो कभी भी और कहीं भी उपलब्ध हो सकती है।
इसके अतिरिक्त, डिजिलॉकर में दस्तावेज़ों की सुरक्षा के लिए मजबूत एन्क्रिप्शन और डिजिटल सिग्नेचर की प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है, जो इन्हें अधिक सुरक्षित बनाता है। यह नागरिकों को दस्तावेज़ों के प्रमाणन और सत्यापन की प्रक्रिया को सरल बनाता है, जिससे सरकारी और निजी क्षेत्र में डिजिटल दस्तावेज़ों का आदान-प्रदान बढ़ता है। डिजिलॉकर द्वारा पेश किए गए इस डिजिटल समाधान से कागजी दस्तावेजों के लिए अनावश्यक भंडारण की आवश्यकता कम होती है और सरकारी सेवाओं का उपयोग अधिक कुशल तरीके से किया जा सकता है।
प्रश्न 85. हाल ही में, निम्नलिखित नदियों में से किनको जोड़ने का कार्य किया गया था?
(a) कावेरी और तुंगभद्रा
(b) गोदावरी और कृष्णा
(c) महानदी और सोन
(d) नर्मदा और ताप्ती
Ans. B
गोदावरी और कृष्णा नदियों को जोड़ने का कार्य भारत सरकार द्वारा जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग और जल संकट के समाधान के उद्देश्य से शुरू किया गया है। यह परियोजना दक्षिण भारत के दो प्रमुख नदियों को जोड़ने के लिए योजना बनाई गई है, ताकि कृषि, जल आपूर्ति और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जल का समुचित वितरण सुनिश्चित किया जा सके। यह परियोजना गोदावरी और कृष्णा नदियों के जल प्रवाह को जोड़कर, जलवायु परिवर्तन और जल संकट के मुद्दों का समाधान करने का एक प्रभावी कदम है।
इस परियोजना के तहत दोनों नदियों को जोड़ने के लिए नहरों, सुरंगों और अन्य जल परिवहन संरचनाओं का निर्माण किया गया है। इसका उद्देश्य जल के वितरण में संतुलन बनाए रखना है, ताकि दक्षिण भारत के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति की जा सके। इससे न केवल कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली असमय बारिश, बाढ़ और सूखा जैसी समस्याओं पर भी काबू पाया जा सकेगा।
गोदावरी और कृष्णा नदियों को जोड़ने का कार्य 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरुआत की गई राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना का हिस्सा है। यह योजना जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन और देशभर में जल वितरण के समान संतुलन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगा, बल्कि कृषि उत्पादन में वृद्धि और जलवायु संकट के खिलाफ एक ठोस उपाय साबित होगा।
प्रश्न 86. हमारे देश के शहरों में वायु गुणता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है?
1. कार्बन डाइऑक्साइड
2. कार्बन मोनोक्साइड
3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
4. सल्फर डाइऑक्साइड
5. मेथेन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
Ans. B
वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index – AQI) एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मानक है, जिसका उपयोग हवा में प्रदूषण के स्तर का आकलन करने के लिए किया जाता है। AQI को मापने के लिए प्रमुख प्रदूषक गैसों का स्तर देखा जाता है, जिनमें कार्बन मोनोक्साइड (CO), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) शामिल हैं। यह गैसें वायुमंडलीय प्रदूषण का कारण बनती हैं और मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। AQI इन प्रदूषकों के स्तर को मापकर हमें बताता है कि हवा कितनी स्वच्छ या प्रदूषित है, जिससे नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी मिलती है।
कार्बन मोनोक्साइड (CO) एक रंगहीन, गंधहीन और विषैला गैस है, जो मुख्यतः वाहनों से निकलती है। यह गैस रक्त में ऑक्सीजन के स्थान पर जुड़ जाती है, जिससे श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) औद्योगिक गतिविधियों और परिवहन से उत्सर्जित होता है और यह श्वसन तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) भी वायुमंडलीय प्रदूषण में योगदान देता है, जो फेफड़ों के रोगों को उत्पन्न कर सकता है। इन सभी प्रदूषकों को AQI की गणना में शामिल किया जाता है, क्योंकि इनका स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
इसके अलावा, मेथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे गैसों का मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन से संबंध है। हालांकि, ये दोनों गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव का कारण बनती हैं, लेकिन वायु गुणवत्ता सूचकांक में इनका माप नहीं किया जाता है। मेथेन वायुमंडलीय तापमान को बढ़ाने का कारण बनता है, लेकिन यह वायु की स्वच्छता से अधिक संबंधित नहीं है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है, लेकिन इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक पर सीधा प्रभाव नहीं होता है। इसलिए, AQI में इन गैसों को मापने का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता।
प्रश्न 87. भारत द्वारा प्रमोचित खगोलीय वेधशाला, ‘ऐस्ट्रोसैट (Astrosat)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. USA और रूस के अलावा केवल भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने अंतरिक्ष में उसी प्रकार की वेधशाला प्रमोचित की है।
2. ऐस्ट्रोसैट 2000 किलोग्राम का एक उपग्रह है, जो पृथ्वी की सतह के ऊपर 1650 किलोमीटर पर एक कक्षा में स्थापित है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. D
‘ऐस्ट्रोसैट’ भारत का पहला अंतरिक्ष आधारित खगोलशास्त्रीय वेधशाला उपग्रह है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा 28 सितंबर 2015 को लॉन्च किया गया था। यह उपग्रह भारतीय विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। ऐस्ट्रोसैट के माध्यम से खगोलशास्त्र और अंतरिक्ष विज्ञान में नई जानकारी प्राप्त करने का लक्ष्य था, खासकर उन विकिरणों का अध्ययन करना जो सूर्य, अन्य तारे, आकाशगंगाएं और अन्य खगोलशास्त्रीय घटनाएं उत्पन्न करती हैं। यह उपग्रह पृथ्वी के वातावरण से बाहर विभिन्न प्रकार के विकिरणों का अध्ययन करता है और वैज्ञानिकों को आकाशगंगाओं के निर्माण, तारे के जीवनकाल और अन्य खगोलशास्त्रीय घटनाओं की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है।
ऐस्ट्रोसैट का वजन लगभग 1530 किलोग्राम था और इसे 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया था, न कि 2000 किलोग्राम और 1650 किलोमीटर की कक्षा में जैसा कि पहले उल्लेख किया गया था। यह उपग्रह खगोलशास्त्र, एक्स-रे, यूवी (अल्ट्रावायलेट) और इन्फ्रारेड के माध्यम से डेटा इकट्ठा करता है। ऐस्ट्रोसैट द्वारा प्राप्त डेटा वैज्ञानिकों को नए खगोलीय घटनाओं को समझने और सूर्य से बाहर अन्य तारों की कार्यप्रणाली का विश्लेषण करने में सक्षम बनाता है। इस उपग्रह ने भारतीय वैज्ञानिकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खगोलशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान करने का अवसर प्रदान किया है।
ऐस्ट्रोसैट से प्राप्त होने वाली जानकारी ने खगोलशास्त्र के अध्ययन में भारत को वैश्विक मंच पर प्रमुख स्थान दिलाया। ऐस्ट्रोसैट को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है, जो न केवल देश की तकनीकी क्षमता को साबित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान में सशक्त तरीके से योगदान कर रहा है। ऐस्ट्रोसैट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत की है और भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई पहचान दिलाई है।
यह उपग्रह वैज्ञानिक समुदाय के लिए कई नई संभावनाएं लेकर आया है, जैसे खगोलशास्त्र, अंतरिक्ष भौतिकी और यहां तक कि अंतरिक्ष में विकिरणों के प्रभाव का अध्ययन। इस प्रकार, ऐस्ट्रोसैट के अध्ययन से न केवल भारत को बल्कि सम्पूर्ण मानवता को खगोलशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं।
प्रश्न 88. मध्यकालीन भारत के आर्थिकं इतिहास के संदर्भ में शब्द ‘अरघट्टा (Araghatta)’ किसे निरूपित करता है?
(a) बंधुआ मजदूर
(b) सैन्य अधिकारियों को दिए गए भूमि अनुदान
(c) भूमि की सिंचाई के लिए प्रयुक्त जलचक्र (वाटर-व्हील)
(d) कृषि भूमि में बदली गई बंजर भूमि
Ans. C
‘अरघट्टा’ शब्द मध्यकालीन भारत में एक जलचक्र उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता था, जिसका मुख्य उद्देश्य भूमि की सिंचाई करना था। यह एक यांत्रिक जल खींचने वाला उपकरण था, जो आमतौर पर नदियों, झीलों या अन्य जल स्रोतों से पानी खींचने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस उपकरण का इस्तेमाल विशेष रूप से उन क्षेत्रों में किया जाता था जहाँ वर्षा कम होती थी और सिंचाई के अन्य साधन सीमित थे। यह जलचक्र कृषि को प्रभावी बनाते हुए खेतों तक पानी पहुँचाने के लिए महत्वपूर्ण था। विशेषकर, अरघट्टा का प्रयोग उन स्थानों पर किया जाता था जहाँ जलस्रोत उच्च स्थानों पर होते थे और इसे मानव श्रम के बजाय एक यांत्रिक प्रणाली के रूप में कार्यान्वित किया जाता था।
अरघट्टा आमतौर पर एक बड़े पहिए के रूप में होता था, जो जलाशयों या नदियों से पानी खींचकर भूमि तक पहुँचाने के काम आता था। इस यांत्रिक उपकरण का डिजाइन इस तरह से किया गया था कि यह पानी को उपयुक्त स्थानों तक पहुँचाने के लिए मानवीय शक्ति के स्थान पर एक सरल यांत्रिक कार्य प्रणाली का प्रयोग करता था। अरघट्टा की मदद से किसान अपनी भूमि को सिंचित कर पाते थे, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती थी। मध्यकालीन भारतीय समाज में, जहां अन्य सिंचाई तकनीकें सीमित थीं, अरघट्टा के प्रयोग से कृषि में न केवल सुधार हुआ, बल्कि यह एक स्थिर और निरंतर जल आपूर्ति सुनिश्चित करने में भी सहायक था।
मध्यकालीन भारत में कृषि कार्यों के लिए सिंचाई का महत्व अत्यधिक था, क्योंकि बहुत से क्षेत्र सूखा या कम वर्षा वाले होते थे। ऐसे में अरघट्टा जैसे जलचक्र उपकरण ने खेतों तक पानी पहुँचाने के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय माध्यम प्रदान किया। इससे किसानों को सशक्त किया गया और उनका उत्पादन बढ़ा। इन उपकरणों का उपयोग केवल सिंचाई तक सीमित नहीं था, बल्कि ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी एक मजबूत आधार बने थे। इसलिए, अरघट्टा का प्रयोग मध्यकालीन भारतीय समाज में कृषि के लिए अनिवार्य था, जिससे ना केवल खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा बल्कि कृषि विकास भी सुनिश्चित हुआ।
प्रश्न 89. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में इतिवृत्तों, राजवंशीय इतिहासों तथा वीरगाथाओं को कंठस्थ करना निम्नलिखित में से किसका व्यवसाय था?
(a) श्रमण
(b) परिव्राजक
(c) अग्रहारिक
(d) मागध
Ans. D
मागध, प्राचीन भारत के एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक वर्ग के रूप में पहचाना जाता है, जिनका कार्य प्रमुख रूप से काव्य रचनाओं और वीरगाथाओं को कंठस्थ करना था। वे भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं और महान नायकों की गाथाओं को सहेजते थे। इन काव्य रचनाओं में राजा-रानी, युद्ध, विजय और पराजय की कथाएं होती थीं, जिन्हें वे पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप में प्रसारित करते थे। यह कार्य समाज में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चेतना को बनाए रखने के लिए आवश्यक था, क्योंकि उस समय लिखित साहित्य का प्रचलन कम था।
मागधों का कार्य केवल वीरगाथाओं तक सीमित नहीं था। वे धार्मिक कथाओं, नैतिक शिक्षा और सामाजिक आदर्शों को भी काव्य के रूप में प्रस्तुत करते थे। इसके माध्यम से समाज में सही और गलत के बीच अंतर स्थापित किया जाता था और प्राचीन धर्मों व नैतिकताओं को लोगों तक पहुंचाया जाता था। इसके अलावा, मागधों ने शासकों के गौरव को बढ़ाने के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों को अपने गीतों और कथाओं से प्रेरित किया।
यह वर्ग भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था क्योंकि वे उस समय की घटनाओं, विचारधाराओं और संस्कृति को जनमानस तक पहुंचाते थे। वे एक तरह से इतिहासकार थे, जो मौखिक परंपरा के माध्यम से घटनाओं और विचारों को जीवित रखते थे। मागधों का यह कार्य प्राचीन भारतीय समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे समाज के लोगों में सांस्कृतिक पहचान, राष्ट्रीय गौरव और सामाजिक जागरूकता का निर्माण हुआ।
प्रश्न 90. हाल ही में, हमारे देश में पहली बार, निम्नलिखित राज्यों में से किसने एक विशेष तितली को ‘राज्य तितली’ के रूप में घोषित किया है?
(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) हिमाचल प्रदेश
(c) कर्नाटक
(d) महाराष्ट्र
Ans. D
हाल ही में, महाराष्ट्र राज्य ने ‘Papilio Garamas’ नामक तितली को राज्य तितली के रूप में घोषित किया। यह तितली पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाई जाती है और इसकी सुंदरता, विशेष रूप से इसके सुनहरे रंग और आकर्षक आकार के कारण, इसे राज्य का प्रतीक बनने के योग्य माना गया। यह तितली महाराष्ट्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है। राज्य तितली के रूप में इसका चयन प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण और पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया है।
तितलियाँ पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण घटक होती हैं, क्योंकि वे परागण में मदद करती हैं, जो कृषि उत्पादकता और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ‘Papilio Garamas’ की उपस्थिति से यह संदेश जाता है कि राज्य में जैव विविधता को संरक्षित करने की आवश्यकता है। यह तितली न केवल अपनी सौंदर्य से आकर्षित करती है, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन को सही करने के प्रयासों को भी प्रेरित करती है। इसके साथ ही यह राज्य के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता का प्रतीक बन गई है।
महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय एक ऐसे समय में लिया गया है जब पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। इस कदम से न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि यह राज्य में पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता के प्रयासों को भी प्रोत्साहित करेगा। Papilio Garamas के राज्य तितली के रूप में चयन ने पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक और प्रेरणादायक कदम उठाया है, जो अन्य राज्यों के लिए भी उदाहरण बन सकता है।
प्रश्न 91. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
ISRO द्वारा प्रमोचित मंगलयान-
1. को मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है
2. ने भारत को, USA के बाद, मंगल के चारों ओर अंतरिक्ष यान को चक्रमण कराने वाला दूसरा देश बना दिया है
3. ने भारत को एकमात्र ऐसा देश बना दिया है, जिसने अपने अंतरिक्ष यान को मंगल के चारों ओर चक्रमण कराने में पहली बार में ही सफलता प्राप्त कर ली
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. C
मंगलयान, जिसे मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा 5 नवंबर 2013 को लॉन्च किया गया। यह मिशन भारत का पहला इंटरप्लानेटरी मिशन था, जिसका उद्देश्य मंगल ग्रह के बारे में वैज्ञानिक जानकारी एकत्रित करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य मंगल ग्रह के वायुमंडल, उसकी भूविज्ञानिक संरचना और उससे जुड़े अन्य खगोलशास्त्रीय तत्वों का अध्ययन करना था। इसने मंगल की कक्षा में सफलता पूर्वक प्रवेश किया और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई हासिल की। इस मिशन ने न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को साबित किया, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में उसकी क्षमता को भी वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाई।
मंगलयान मिशन ने भारत को एक ऐसी असाधारण उपलब्धि दिलाई, जिसके तहत भारत पहला एशियाई देश बना जिसने मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था। भारत ने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह के चारों ओर कक्षीय चक्कर लगाते हुए सफलता प्राप्त की, जिससे इसे “पहली बार में सफलता” का दर्जा मिला। इससे पहले केवल तीन देश– अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ही मंगल के चारों ओर अपने यान भेजने में सफल हो पाए थे।
यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वाकांक्षाओं और कार्यकुशलता को भी साबित करता है। ISRO ने इस मिशन को बेहद कम बजट में पूरा किया, जो कि वैश्विक दृष्टिकोण से एक अद्वितीय उदाहरण था। मंगलयान की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के रूप में वैश्विक मानचित्र पर एक मजबूत स्थान दिलाया और यह संदेश दिया कि सीमित संसाधनों के बावजूद भारत उच्चतम तकनीकी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। यह भारत के लिए न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि थी, बल्कि इसे राष्ट्रीय गौरव और अंतरिक्ष अनुसंधान में अपनी विशेष पहचान बनाने का अवसर भी मिला।
प्रश्न 92. वर्ष 1907 में सूरत में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के विभाजन का मुख्य कारण क्या था?
(a) लॉर्ड मिन्टो द्वारा भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का प्रवेश कराना
(b) अंग्रेजी सरकार के साथ नरमपंथियों की वार्ता करने की क्षमता के बारे में चरमपंथियों में विश्वास का अभाव
(c) मुस्लिम लीग की स्थापना
(d) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित हो सकने में अरविंद घोष की असमर्थता
Ans. B
1907 में सूरत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विभाजन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी। इसका मुख्य कारण था नरमपंथियों और चरमपंथियों के बीच गहरे वैचारिक मतभेद। नरमपंथी नेता ब्रिटिश साम्राज्य के साथ समझौतावादी दृष्टिकोण रखते हुए संवैधानिक सुधारों और भारतीयों के लिए स्वायत्तता की बात कर रहे थे। वहीं, चरमपंथी नेता जैसे बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय, अधिक सशक्त और आक्रामक संघर्ष के पक्षधर थे। इन मतभेदों ने कांग्रेस को दो धड़ों में विभाजित कर दिया।
सूरत सम्मेलन में, नरमपंथियों ने कांग्रेस के प्रमुख पदों पर अपना वर्चस्व स्थापित किया और चरमपंथियों को संगठन से बाहर कर दिया। चरमपंथी नेताओं का आरोप था कि नरमपंथी ब्रिटिश साम्राज्य के सामने समर्पण कर रहे थे और भारतीय समाज की वास्तविक समस्याओं से मुंह मोड़ रहे थे। परिणामस्वरूप, यह विभाजन कांग्रेस को गंभीर रूप से कमजोर कर गया, क्योंकि यह पार्टी के भीतर एकता को तोड़ने का कारण बना।
हालांकि, विभाजन के बावजूद, बाद में 1916 में फिर से कांग्रेस का एकीकरण हुआ, लेकिन सूरत का विभाजन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के भीतर संघर्ष और विचारधारा की विविधता थी, जो समय-समय पर नेतृत्व और रणनीति को प्रभावित करती रही। विभाजन ने भारतीय राजनीति में संघर्ष की नए तरीके से परिभाषा दी।
प्रश्न 93. सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स की योजना में यह परिकल्पना थी कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(a) भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए
(b) स्वतंत्रता प्रदान करने के पहले भारत को दो भागों में विभाजित कर देना चाहिए
(c) भारत को इस शर्त के साथ गणतंत्र बना देना चाहिए कि वह राष्ट्रमंडल में शामिल होगा
(d) भारत को डोमिनियन स्टेटस दे देना चाहिए
Ans. D
सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स की योजना, जिसे 1942 में प्रस्तुत किया गया था, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राजनीतिक स्थिति को हल करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश की गई थी। इस योजना का उद्देश्य भारतीयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना था, लेकिन इसे ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकार के भीतर बनाए रखना था। क्रिप्स योजना में भारत को एक डोमिनियन स्टेटस देने की परिकल्पना थी, जिससे भारत को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल रहते हुए कुछ स्वतंत्रता मिलती। इसके तहत, भारतीय संविधान सभा का गठन और भारतीयों को संविधान तैयार करने की प्रक्रिया में भागीदारी देने का प्रस्ताव था।
क्रिप्स योजना में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं को डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की थी, जिसका मतलब था कि भारत को पूर्ण स्वायत्तता मिलती, लेकिन राष्ट्रमंडल का सदस्य बना रहता। यह प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के लिए अस्वीकार्य था। कांग्रेस ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य की संप्रभुता को समाप्त करने के बजाय एक अल्पकालिक समाधान माना। मुस्लिम लीग ने भी इसका विरोध किया, क्योंकि यह उनके धार्मिक और राजनीतिक विचारों के अनुकूल नहीं था।
क्रिप्स योजना का असफल होना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। भारतीय नेताओं ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य का हस्तक्षेप मानते हुए अस्वीकार कर दिया। इसके बावजूद, इस योजना ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा देने का कार्य किया और भारतीयों के लिए अधिक स्वायत्तता की आवश्यकता को स्पष्ट किया। क्रिप्स योजना ने ब्रिटिश साम्राज्य के समक्ष भारतीयों की दृढ़ता और संघर्ष की भावना को उभारने का काम किया, जो अंततः भारत की स्वतंत्रता की ओर बढ़े।
प्रश्न 94. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
[प्रसिद्ध स्थान – क्षेत्र]
1. बोधगया : बघेलखण्ड
2. खजुराहो : बुन्देलखण्ड
3. शिरडी : विदर्भ
4. नासिक : मालवा
5. तिरुपति : रायलसीमा
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं?
(a) 1, 2 और 4
(b) 2, 3, 4 और 5
(c) केवल 2 और 5
(d) 1, 3, 4 और 5
Ans. C
बोधगया, जो बिहार राज्य में स्थित है, भारतीय इतिहास में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थल है। यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। बघेलखण्ड मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, लेकिन बोधगया का बघेलखण्ड से कोई संबंध नहीं है। बोधगया का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अलग है और इसे बघेलखण्ड से जोड़ना ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है। बघेलखण्ड का अधिकांश हिस्सा मध्य प्रदेश के शहडोल और सतना जिलों में आता है।
खजुराहो, मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित है और यह अपने भव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो के मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला और शिल्पकला के कारण विश्व धरोहर स्थल के रूप में UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। इन मंदिरों का निर्माण चंदेला राजवंश के शासनकाल में हुआ था और आज यह भारत के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। खजुराहो का ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक स्थलों की विविधता इसे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से जोड़ती है।
शिरडी, महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले में स्थित है, जबकि विदर्भ महाराष्ट्र के पूर्वी हिस्से का एक भौगोलिक क्षेत्र है। शिरडी का संबंध मराठवाड़ा क्षेत्र से है और यह प्रसिद्ध संत साई बाबा के मंदिर के लिए जाना जाता है। विदर्भ क्षेत्र नागपुर और आसपास के जिलों को कवर करता है, जबकि शिरडी विदर्भ क्षेत्र से बाहर है। इसलिए इस युग्म में भौगोलिक दृष्टिकोण से त्रुटि है।
नासिक, महाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख शहर है और यह मालवा क्षेत्र से संबंधित नहीं है। मालवा मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है, जो नर्मदा नदी के आसपास स्थित है। नासिक महाराष्ट्र के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है और यह धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। नासिक का संबंध मालवा से नहीं है और यह युग्म गलत है।
तिरुपति, आंध्र प्रदेश राज्य के रायलसीमा क्षेत्र में स्थित है और यह भगवान वेंकटेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। रायलसीमा, आंध्र प्रदेश का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है और तिरुपति यहां का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। तिरुपति का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रायलसीमा क्षेत्र से जोड़ता है और यह दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख धार्मिक केंद्रों में से एक है।
प्रश्न 95. राष्ट्र हित में भारत की संसद् राज्य सूची के किसी भी विषय पर विधिक शक्ति प्राप्त कर लेती है यदि इसके लिए एक संकल्प-
(a) लोक सभा द्वारा अपनी सम्पूर्ण सदस्यता के साधारण बहुमत से पारित कर लिया जाए
(b) लोक सभा द्वारा अपनी सम्पूर्ण सदस्य संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से पारित कर लिया जाए
(c) राज्य सभा द्वारा अपनी सम्पूर्ण सदस्यता के साधारण बहुमत से पारित कर लिया जाए
(d) राज्य सभा द्वारा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से पारित कर लिया जाए
Ans. D
भारत के संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन राज्य सूची, संघ सूची और समवर्ती सूची के रूप में किया गया है। हालांकि, जब राष्ट्रीय संकट या किसी गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ता है, तब केंद्र को राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप करने का प्रावधान है। अनुच्छेद 249 के तहत, यदि केंद्र को राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाने की आवश्यकता होती है, तो इसके लिए राज्यसभा में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव की आवश्यकता होती है। यह व्यवस्था राज्यों की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए केंद्र को शक्तियां प्रदान करती है, ताकि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा या अन्य महत्वपूर्ण मामलों में ही हस्तक्षेप किया जा सके।
यह प्रक्रिया राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र की शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखती है। यह सुनिश्चित करती है कि राज्य अपने आंतरिक मामलों में स्वतंत्र रहें, जबकि केंद्र को केवल राष्ट्रीय संकट या संकटपूर्ण परिस्थितियों में ही राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिले। उदाहरण के रूप में, केंद्र सरकार ने 1975 में आपातकाल के दौरान इस प्रावधान का इस्तेमाल किया था, जब राज्यों की स्वायत्तता को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था।
राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता रखने का उद्देश्य यह है कि केंद्र केवल उन मामलों में हस्तक्षेप कर सके, जो समग्र राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हों। इस प्रावधान से यह भी सुनिश्चित होता है कि राज्यों के मत की अनदेखी न हो और उनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाए। इस तरह से, संविधान में यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो भारतीय संघ के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है।
प्रश्न 96. हाल ही में, निम्नलिखित राज्यों में से किसने एक लम्बे नौसंचालन चैनल द्वारा समुद्र से जोड़े जाने के लिए एक कृत्रिम अंतर्देशीय बंदरगाह के निर्माण की संभावना का पता लगाया है?
(a) आंध्र प्रदेश
(b) छत्तीसगढ़
(c) कर्नाटक
(d) राजस्थान
Ans. D
राजस्थान राज्य ने हाल ही में एक महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत कृत्रिम अंतर्देशीय बंदरगाह के निर्माण की संभावना पर विचार करना शुरू किया है। यह बंदरगाह राज्य के नौसंचालन नेटवर्क को समुद्र से जोड़ने का एक प्रयास है, जिससे राजस्थान के लिए आर्थिक अवसरों के नए द्वार खुल सकते हैं। इसके लिए, राज्य सरकार ने विशेष अध्ययन और संभावनाओं का मूल्यांकन करने की योजना बनाई है, जिसमें जलमार्ग के विकास और बंदरगाह की संरचना को लेकर विस्तृत जानकारी एकत्रित की जाएगी। यह परियोजना समुद्र तक पहुंच बनाने के साथ ही व्यापार, परिवहन और राज्य की समग्र विकास प्रक्रिया में योगदान कर सकती है।
राजस्थान, जो भौगोलिक दृष्टिकोण से समुद्र से दूर है, इस परियोजना के माध्यम से अपने विकास की दिशा को बदलने की कोशिश कर रहा है। यह बंदरगाह संभावित रूप से राज्य के अंदरूनी हिस्सों से लेकर समुद्र तट तक माल परिवहन की व्यवस्था को सुव्यवस्थित कर सकता है, जिससे न केवल राजस्थान के व्यापारिक तंत्र को लाभ होगा, बल्कि समग्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी इसका योगदान हो सकता है।
इस परियोजना का उद्देश्य राज्य को समुद्र से जोड़कर एक मजबूत जलमार्ग निर्माण करना है, जो समुद्री मार्ग से व्यापार करने में मदद करेगा। राजस्थान के औद्योगिक विकास में भी यह कदम महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि राज्य में कई औद्योगिक क्षेत्रों को जलमार्ग से जोड़ने की संभावना उत्पन्न हो सकती है। यह परियोजना राज्य में नौसंचालन के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने के साथ-साथ विकास के नए अवसर प्रदान कर सकती है।
प्रश्न 97. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. इस समझौते पर UN के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किए और यह वर्ष 2017 से लागू होगा।
2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर (pre-industrial levels) से 2 °C या कोशिश करें कि 1.5 °C से भी अधिक न होने पाए।
3. विकसित देशों ने वैश्विक तापन में अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए विकासशील देशों की सहायता के लिए 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
Ans. B
2015 में पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में पेरिस समझौते पर सहमति बनी, जो जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक पूर्व स्तरों से वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C तक सीमित करना था, साथ ही प्रयास यह भी किया जाएगा कि यह वृद्धि 1.5°C तक सीमित रहे। इसके लिए देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाने के लक्ष्य तय किए गए थे और प्रत्येक देश को अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं (NDCs) प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी गई। यह समझौता इस परिकल्पना को स्थापित करता है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या वैश्विक स्तर पर है और इसके समाधान के लिए सभी देशों का योगदान अनिवार्य है।
पेरिस समझौते के अंतर्गत यह भी तय किया गया कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों की सहायता के लिए वित्तीय मदद प्रदान करनी होगी। 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई गई, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने, अपद्रव और अनुकूलन के उपायों के लिए विकासशील देशों को दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, समझौते में यह भी सुनिश्चित किया गया कि यह वित्तीय सहायता समय के साथ बढ़ती जाएगी और उसे पारदर्शी तरीके से दिया जाएगा। यह समझौता जलवायु वित्तीय समर्थन में एक बड़ी पहल साबित हुआ, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक मजबूत और न्यायपूर्ण रास्ता प्रदान करता है।
समझौते के तहत देशों को अपनी योजनाओं को समय-समय पर अपडेट करने की आवश्यकता थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने निर्धारित लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए अपनी प्रयासों को बढ़ाते रहें। पेरिस समझौते में कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करता है, जिससे देशों को अपने उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह समझौता 2016 में प्रभावी हुआ और यह एक महत्वपूर्ण संकेत था कि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सभी देशों को एकजुट होकर कार्य करना चाहिए।
प्रश्न 98. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. धारणीय विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) पहली बार 1972 में एक वैश्विक विचार मंडल (थिंक टैंक) ने, जिसे ‘क्लब ऑफ़ रोम’ कहा जाता था, प्रस्तावित किया था।
2. धारणीय विकास लक्ष्य 2030 तक प्राप्त किए जाने हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
1972 में ‘क्लब ऑफ रोम’ द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट “Limits to Growth” ने वैश्विक विकास की सीमाओं पर विचार किया था, लेकिन यह सीधे तौर पर धारणीय विकास लक्ष्य (SDGs) से संबंधित नहीं थी। क्लब ऑफ रोम ने इस रिपोर्ट में यह बताया था कि यदि विकास की गति और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित नहीं किया गया, तो पृथ्वी के संसाधन समाप्त हो सकते हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट ने पर्यावरणीय चिंताओं को उठाया था, लेकिन धारणीय विकास लक्ष्य 1992 के रियो डि जिनेरियो सम्मेलन में औपचारिक रूप से परिभाषित किए गए थे और इन्हें 2015 में संयुक्त राष्ट्र के 2030 एजेंडा के रूप में स्वीकार किया गया था। SDGs का उद्देश्य गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय नष्टता जैसे वैश्विक मुद्दों से निपटना है।
धारणीय विकास लक्ष्य (SDGs) के 17 लक्ष्य 2030 तक प्राप्त करने के लिए निर्धारित किए गए थे। इन लक्ष्यों में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों को एकीकृत करने की आवश्यकता है, ताकि सभी लोगों के लिए एक समान, न्यायपूर्ण और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित किया जा सके। प्रत्येक लक्ष्य के साथ निर्धारित किया गया है कि किन विशेष उपायों से उस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इन लक्ष्यों में प्रमुख रूप से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, जलवायु परिवर्तन से संबंधित उपाय और संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग किया जाना शामिल हैं। इसके अलावा, जलवायु संकट और वैश्विक असमानताओं को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
2030 तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सरकारी नीतियों में सुधार, व्यापारिक प्रथाओं में बदलाव और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है। वैश्विक भागीदारों, विशेष रूप से विकासशील देशों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे सतत विकास के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और उन लक्ष्यों की दिशा में समन्वित प्रयास करें। इसके लिए, संसाधनों का समुचित वितरण, समाजिक समावेशन और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना आवश्यक है। SDGs न केवल पर्यावरण बल्कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली और मानवाधिकारों से भी जुड़े हुए हैं।
प्रश्न 99. हाल ही में बना ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटि’ (The Man Who Knew Infinity) शीर्षक वाला चलचित्र किसके जीवनचरित पर आधारित है?
(a) एस. रामानुजन
(b) एस. चंद्रशेखर
(c) एस. एन. बोस
(d) सी. वी. रमन
Ans. A
फिल्म “द मैन हू न्यू इनफिनिटी” (2015) भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवासा रामानुजन के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने अपनी गणितीय क्षमताओं से दुनिया को चकित किया। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को हुआ था और वे गणित के क्षेत्र में अपनी अद्वितीय खोजों के लिए प्रसिद्ध हुए। उनकी गणितीय समीकरणों और सूत्रों ने पूरी दुनिया को एक नई दिशा दी। फिल्म में रामानुजन की संघर्षपूर्ण यात्रा को दिखाया गया है, जिसमें उनके द्वारा सिद्ध किए गए गणितीय सूत्र, जैसे कि अनंत श्रेणियाँ और संख्या सिद्धांत, प्रमुख हैं।
रामानुजन के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना 1913 में घटी, जब उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणितज्ञ जी. एच. हार्डी से संपर्क किया। हार्डी ने रामानुजन की गणितीय प्रतिभा को पहचाना और उन्हें इंग्लैंड बुलाया। वहां पर, रामानुजन और हार्डी के बीच गहरे गणितीय संवाद और कार्यों का सिलसिला शुरू हुआ। इस सहयोग ने गणित के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण खोजों का मार्ग प्रशस्त किया।
रामानुजन की यात्रा सिर्फ एक गणितज्ञ के तौर पर नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में भी प्रेरणादायक रही। उन्होंने अपनी कठिनाइयों के बावजूद अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया और समाज की अपेक्षाओं से परे जाकर अपनी पहचान बनाई। हालांकि उनका जीवन संक्षिप्त था और स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित था, फिर भी उनकी धैर्य, संघर्ष और दृष्टिकोण ने उन्हें गणितीय इतिहास के महानतम व्यक्तित्वों में से एक बना दिया। रामानुजन का योगदान आज भी गणितीय शोध और शिक्षा के क्षेत्र में गहरे प्रभाव डालता है।
प्रश्न 100. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. किसी भी व्यक्ति के लिए पंचायत का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम निर्धारित आयु 25 वर्ष है।
2. पंचायत के समयपूर्व भंग होने के पश्चात् पुनर्गठित पंचायत केवल अवशिष्ट समय के लिए ही जारी रहती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
Ans. B
पंचायत का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम निर्धारित आयु 25 वर्ष नहीं, बल्कि 21 वर्ष है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के तहत किया गया था, जो 1992 में लागू हुआ था। इस संशोधन का उद्देश्य पंचायतों को एक मजबूत और सक्रिय भूमिका देना था, ताकि स्थानीय प्रशासन में लोगों की सक्रिय भागीदारी बढ़े। यह कदम ग्राम स्तर से लेकर राज्य स्तर तक के प्रशासन को लोकतांत्रिक और उत्तरदायी बनाने के लिए उठाया गया था। इससे अधिक युवा नागरिकों को राजनीति में भाग लेने और सार्वजनिक निर्णयों में प्रभाव डालने का अवसर मिला है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त करता है।
जब पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग हो जाता है, तो पुनर्गठित पंचायत केवल शेष समय के लिए कार्य करती है। यह प्रावधान पंचायतों के कार्यों में स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है। पुनर्गठन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पंचायतें अपनी अवधि के भीतर अपने कार्यों को पूरा कर सकें, ताकि विकास कार्यों में रुकावट न आए। यह प्रणाली लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निरंतरता को सुनिश्चित करती है और प्रशासनिक कार्यों में किसी प्रकार की देरी को रोकती है।
इस व्यवस्था का लाभ यह है कि यह पंचायतों के कामकाजी समय को प्रभावित नहीं होने देती, जिससे विकास कार्यों में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता। स्थानीय प्रशासन की प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही, इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित होता है कि जब तक नई पंचायत का गठन नहीं हो जाता, तब तक प्रशासन की प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के चलती रहती है, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है।