UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2015 | विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न-पत्र |
प्रश्न 1. ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ निम्नलिखित में से किसके लिए प्रारंभ की गई है?
(a) गरीब लोगों को अपेक्षाकृत कम ब्याज दर पर आवास ऋण प्रदान करने के लिए
(b) पिछड़े क्षेत्रों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए
(c) देश में वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इंक्लूज़न) को प्रोत्साहित करने के लिए
(d) उपांतिक (मार्जिनलाइज़्ड) समुदायों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए
उत्तर: (c)
प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY), जो 28 अगस्त 2014 को लॉन्च की गई थी, भारत सरकार की एक क्रांतिकारी पहल है जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करना है। यह योजना समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों, विशेष रूप से गरीब, ग्रामीण और अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए डिजाइन की गई है। इस योजना के तहत बिना किसी न्यूनतम बैलेंस के बैंक खाता खोलने की सुविधा दी जाती है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग भी वित्तीय सेवाओं का लाभ उठा सके।
इस योजना के प्रमुख लाभों में रुपे डेबिट कार्ड, ओवरड्राफ्ट सुविधा (₹10,000 तक) और अप्रत्याशित दुर्घटना बीमा कवर (₹2,00,000 तक) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, लाभार्थियों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ भी मिलता है, जो वित्तीय सुरक्षा जाल को मजबूत करती है।
PMJDY ने डिजिटल इंडिया और वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह योजना सरकारी सब्सिडी के सीधे लाभ हस्तांतरण (DBT) को सक्षम बनाती है, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आती है और पारदर्शिता बढ़ती है। इसके माध्यम से आर्थिक समावेशन, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए मजबूत आधार तैयार किया गया है, जो देश के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 2. चौदहवें वित्त आयोग के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. इसने केन्द्रीय विभाज्य पूल में राज्यों को मिलने वाला हिस्सा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया है।
2. इसने विशेष तौर पर सेक्टरों से जुड़े (सेक्टर-स्पेसिफिक) अनुदानों से संबंधित सिफ़ारिशें की हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)
चौदहवें वित्त आयोग (2015-20) ने भारत के संघीय वित्तीय ढांचे को नया दिशा देने में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। इसका सबसे महत्वपूर्ण निर्णय था कि केन्द्रीय विभाज्य पूल में राज्यों को मिलने वाला हिस्सा 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया गया। यह निर्णय वित्तीय संघवाद को मजबूत करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था, जिसका उद्देश्य राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता देना और उन्हें अपने विकासात्मक कार्यों के लिए आवश्यक संसाधनों से सशक्त बनाना था।
इस बदलाव के पीछे की नीति थी कि राज्यों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार शासन और विकास की योजना बनाने की स्वतंत्रता दी जाए। इससे केंद्रीय सरकार पर वित्तीय निर्भरता कम हुई और राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में अपने खर्च को प्राथमिकता देने का अवसर मिला। यह कदम भारत के संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण था।
इसके अलावा, इस आयोग ने स्थानीय निकायों को भी वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिए सिफारिशें कीं, जिससे ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को स्वायत्तता और सशक्तिकरण मिला। इससे न केवल विकासात्मक कार्यों में पारदर्शिता बढ़ी बल्कि शासन के विकेंद्रीकरण को भी प्रोत्साहन मिला। चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशें भारत के सतत विकास और संघीय वित्तीय नीतियों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बनीं।
प्रश्न 3. हाल ही में, समाचारों में आई ‘फोर्टालेज़ा उद्घोषणा (फोर्टालेज़ा डिक्लरेशन)’ निम्नलिखित में से किसके मामलों से संबंधित है?
(a) ASEAN
(b) BRICS
(c) OECD
(d) WTO
उत्तर: (b)
फोर्टालेज़ा उद्घोषणा (Fortaleza Declaration) जुलाई 2014 में ब्राजील के फोर्टालेज़ा शहर में आयोजित छठे BRICS शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाई गई थी। यह उद्घोषणा BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के वैश्विक शासन ढांचे को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी, जिसमें विकासशील देशों के हितों को प्राथमिकता दी गई।
इस उद्घोषणा का मुख्य केंद्र वैश्विक आर्थिक असमानताओं को कम करना और बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार के लिए संयुक्त प्रयास करना था। इसमें नए विकास बैंक (NDB) की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय समर्थन प्रदान करना है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसे IMF और विश्व बैंक में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया।
फोर्टालेज़ा उद्घोषणा ने BRICS देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को भी सुदृढ़ किया। इसमें सार्वभौमिक सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी उपाय और वैश्विक शासन में सुधार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे BRICS का वैश्विक मंच पर प्रभाव बढ़ा और यह संगठन वैश्विक बहुपक्षीयता के लिए एक शक्तिशाली मंच बन गया।
प्रश्न 4. किसी देश की, कर से GDP के अनुपात में कमी क्या सूचित करती है?
1. आर्थिक वृद्धि दर धीमी होना
2. राष्ट्रीय आय का कम साम्यिक (एक्विटेबल) वितरण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)
कर से GDP के अनुपात (Tax-to-GDP Ratio) में गिरावट किसी देश की आर्थिक संरचना और नीति ढांचे के महत्वपूर्ण संकेतक के रूप में देखी जाती है। यह गिरावट अक्सर आर्थिक वृद्धि दर के धीमे होने का स्पष्ट संकेत होती है, क्योंकि जब आर्थिक गतिविधियाँ मंद पड़ती हैं, तो उत्पादन, आय, उपभोग और निवेश में गिरावट आती है, जिससे कर आधार संकुचित होता है।
इसके अतिरिक्त, कर से GDP अनुपात में गिरावट कर प्रशासन में कमजोरियों को भी उजागर कर सकती है, जैसे कि कर चोरी, कर आधार का संकुचन और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का विस्तार। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सरकार कर संग्रहण में प्रभावी नहीं होती या कर नीतियां आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं होती हैं।
अंततः, इस गिरावट का प्रभाव सरकार की राजकोषीय क्षमता पर पड़ता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित होती है। यह नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि उन्हें कर नीति सुधार, कर प्रशासन दक्षता और आर्थिक विकास रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
प्रश्न 5. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसका क्या कारण है?
(a) समुद्री पृष्ठों के ताप निम्न होते हैं।
(b) अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन) बिरले ही होता है।
(c) कोरिऑलिस बल अत्यंत दुर्बल होता है।
(d) उन क्षेत्रों में भूमि मौजूद नहीं होती है।
उत्तर: (b)
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण के लिए मुख्य रूप से अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (ITCZ) की सक्रियता आवश्यक होती है, जो भूमध्य रेखा के निकट स्थित एक निम्न दबाव क्षेत्र है। यहां व्यापारिक पवनें उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध से मिलती हैं, जिससे गर्म और नम वायु का ऊपर उठना होता है। यह प्रक्रिया चक्रवातों के निर्माण के लिए आवश्यक वायुमंडलीय अस्थिरता और ऊर्जा स्रोत प्रदान करती है।
हालांकि, दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में ITCZ की उपस्थिति कमजोर या बिरली होती है। इन क्षेत्रों में समुद्री सतह के तापमान, वायुमंडलीय आर्द्रता और पवन पैटर्न चक्रवात निर्माण के लिए अनुकूल नहीं होते। इसके अलावा, ITCZ की अस्थिरता और उसकी मौसमी बदलाव भी इन क्षेत्रों में चक्रवात निर्माण को बाधित करते हैं।
इसलिए, इन क्षेत्रों में चक्रवातों के निर्माण की संभावना बहुत कम होती है। ITCZ के कमजोर अभिसरण के कारण आवश्यक गतिशीलता और ऊर्जा प्रवाह नहीं बन पाता, जिससे चक्रवातों का विकास नहीं हो पाता। यह वैश्विक जलवायु प्रणाली की जटिलताओं को भी उजागर करता है।
प्रश्न 6. भारत के राज्यों का निम्नलिखित में से कौन-सा एक युग्म, सबसे पूर्वी और सबसे पश्चिमी राज्य को इंगित करता है?
(a) असम और राजस्थान
(b) अरुणाचल प्रदेश और राजस्थान
(c) असम और गुजरात
(d) अरुणाचल प्रदेश और गुजरात
उत्तर: (d)
भारत का भौगोलिक विस्तार अत्यंत विविधतापूर्ण है, जिसमें इसकी सबसे पूर्वी और सबसे पश्चिमी सीमाएँ रणनीतिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अरुणाचल प्रदेश, भारत का सबसे पूर्वी राज्य, पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित है और इसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ चीन, म्यांमार और भूटान से मिलती हैं। भारत के सबसे पूर्वी बिंदु को मेमलेम (Melem) कहा जाता है, जो अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र के निकट स्थित है। यह राज्य पूर्वी हिमालय के समीप है और इसकी स्थिति चीन के साथ सीमा विवादों के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दूसरी ओर, भारत का सबसे पश्चिमी राज्य गुजरात है, जो अरब सागर के किनारे फैला हुआ है और इसकी सीमाएँ पाकिस्तान से भी मिलती हैं। गुजरात का कच्छ का रण (Rann of Kutch) भारत का सबसे पश्चिमी बिंदु है, जो एक विशाल लवणीय दलदल के रूप में प्रसिद्ध है और इसका रणनीतिक महत्व भी बहुत अधिक है। गुजरात के समुद्री तट पर स्थित कांठा क्षेत्र और सिरकाजी द्वीप भारत के पश्चिमी समुद्री सीमा का प्रमुख हिस्सा हैं।
इस प्रकार, अरुणाचल प्रदेश और गुजरात भारत के सबसे पूर्वी और सबसे पश्चिमी राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो न केवल भूगोलिक बल्कि राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 7. राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. ये तत्त्व देश के सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की व्याख्या करते हैं।
2. इन तत्वों में अंतविष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (एनफोर्सेबल) नहीं हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
राज्य नीति के निदेशक तत्व संविधान के भाग IV में वर्णित मूलभूत सिद्धांत हैं, जो राज्य को सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये तत्व भारत के संविधान की दृष्टि को प्रतिबिंबित करते हैं, जिसमें सभी नागरिकों के लिए समान अवसर, सामाजिक न्याय और आर्थिक कल्याण की परिकल्पना की गई है। इसके अंतर्गत शिक्षा का अधिकार, श्रमिकों के कल्याण, स्वास्थ्य सेवाएं, पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण जैसे व्यापक विषय शामिल हैं।
इन तत्वों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, अर्थात् इन्हें कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 37 के अनुसार, इन तत्वों का प्रवर्तन न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, लेकिन ये नीति निर्माण में एक नैतिक और राजनीतिक बाध्यता के रूप में कार्य करते हैं। राज्य को इन्हें लागू करने के लिए प्रेरित किया जाता है, भले ही वे न्यायिक रूप से प्रवर्तनीय न हों।
निदेशक तत्वों का महत्व इसलिए है क्योंकि वे शासन के लिए एक मूल्य-आधारित ढांचा प्रदान करते हैं, जो राज्य के विकासात्मक निर्णयों और नीतियों की दिशा तय करता है। वे केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, आर्थिक समावेशन और लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शक हैं। ये तत्व भारत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 8. आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)’ में, निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है?
(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन
उत्तर: (b)
आठ मूल उद्योगों के सूचकांक में विद्युत उत्पादन को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है क्योंकि यह देश के औद्योगिक और आर्थिक विकास की नींव है। यह सूचकांक आठ प्रमुख क्षेत्रों, जैसे- कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम उत्पाद, सीमेंट, इस्पात, उर्वरक और विद्युत उत्पादन के समग्र प्रदर्शन को मापता है। इन सभी क्षेत्रों में ऊर्जा का प्रमुख योगदान होता है, लेकिन विद्युत उत्पादन इसकी व्यापक उपयोगिता और आर्थिक प्रभाव के कारण सबसे अधिक महत्व रखता है।
विद्युत उत्पादन का महत्व इसलिए है क्योंकि यह सभी क्षेत्रों की कार्यक्षमता के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है, चाहे वह औद्योगिक क्षेत्र हो, परिवहन, कृषि या डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर। उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता, उत्पादन लागत और तकनीकी नवाचार सीधे तौर पर ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता पर निर्भर करते हैं। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र देश की ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसके अलावा, विद्युत उत्पादन का प्रभाव औद्योगिक उत्पादन के अलावा देश के बुनियादी ढांचे, जीवन स्तर और पर्यावरणीय सततता पर भी पड़ता है। यह आर्थिक विकास का एक प्रमुख संकेतक है क्योंकि इसकी वृद्धि से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि और आर्थिक समावेशन में सुधार होता है। इसलिए, आठ मूल उद्योगों के सूचकांक में विद्युत उत्पादन को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सा एक नेशनल पार्क इसलिए अनूठा है कि वह एक प्लवमान (फ्लोटिंग) वनस्पति से युक्त अनूप (स्वैप) होने के कारण समृद्ध जैव-विविधता को बढ़ावा देता है?
(a) भीतरकणिका नेशनल पार्क
(b) केडबुल लाम्जाओ नेशनल पार्क
(c) केवलादेव घाना नेशनल पार्क
(d) सुल्तानपुर नेशनल पार्क
उत्तर: (b)
केडबुल लाम्जाओ नेशनल पार्क, मणिपुर में स्थित, भारत का एकमात्र प्लवमान वनस्पति (फ्लोटिंग वेजिटेशन) से युक्त अनूप (स्वैप) के रूप में प्रसिद्ध है। यह पार्क “फुमदी” नामक तैरती हुई वनस्पति परतों से ढका हुआ है, जो जल पर तैरती रहती हैं और एक अनूठा पारिस्थितिक तंत्र बनाती हैं। फुमदी की यह विशेषता इसे विश्व स्तर पर अद्वितीय बनाती है, क्योंकि यहां की जैव विविधता इस तैरती हुई वनस्पति के आधार पर विकसित होती है।
इस पार्क का सबसे महत्वपूर्ण वन्यजीव संगाई हिरण (Sangai Deer) है, जो विश्व में केवल इसी पार्क में पाया जाता है। संगाई हिरण की यह विशेषता है कि वह पानी पर तैरती घास के मैदानों पर चरता है, जिससे यह उसके व्यवहारिक अनुकूलन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसके अलावा, पार्क में विभिन्न प्रकार के जलीय पक्षी, उभयचर और जलीय जीव पाए जाते हैं, जो इसकी जैव विविधता को और भी समृद्ध बनाते हैं।
केडबुल लाम्जाओ का पारिस्थितिक तंत्र न केवल वन्यजीवों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के जीवनयापन और पर्यावरणीय स्थिरता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी अद्वितीय फुमदी प्रणाली जल विज्ञान, जलवायु अनुकूलन और पारिस्थितिक संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देती है, जो इसे भारत के प्रमुख संरक्षण स्थलों में से एक बनाती है।
प्रश्न 10. राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया) (NIF) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
1. NIF, केंद्रीय सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
2. NIF, अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मजबूत करने की एक पहल है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-भारत (National Innovation Foundation-India, NIF) एक स्वायत्त संस्था है जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करती है। इसकी स्थापना 2000 में हुई थी, जिसका उद्देश्य देशभर में पारंपरिक ज्ञान, स्वदेशी नवाचार और ग्रामीण स्तर पर विकसित तकनीकों को पहचानना, प्रोत्साहित करना और उन्हें संरक्षित करना है। NIF का मुख्य लक्ष्य नवाचार को एक समावेशी प्रक्रिया बनाना है, जो सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए स्थायी समाधान प्रदान करे।
यह संस्था विशेष रूप से ग्रामीण और स्थानीय नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करती है, जो विज्ञान और तकनीक के अनुप्रयोग के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के समाधान में मदद करते हैं। NIF पेटेंट संरक्षण, तकनीकी हस्तांतरण और उद्यमिता के लिए समर्थन प्रदान करती है, जिससे इन नवाचारों को व्यावसायिक रूप से सफल बनाया जा सके। इसके अलावा, यह संस्था स्वदेशी तकनीकों के प्रचार और प्रसार के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती है।
NIF के प्रयासों से भारत के विभिन्न हिस्सों में उत्पन्न नवाचारों को वैश्विक मंच पर पहचान मिलती है, जिससे न केवल स्थानीय समुदायों को लाभ होता है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलता है। यह संस्था नवाचार के लोकतंत्रीकरण के सिद्धांत पर कार्य करती है, जिससे हर नागरिक को वैज्ञानिक विकास में योगदान देने का अवसर मिलता है।
प्रश्न 11. कृषि में नाइट्रोजनी उर्वरकों के अत्यधिक/अनुपयुक्त उपयोग का क्या प्रभाव हो सकता है?
1. नाइट्रोजन यौगिकीकरण सूक्ष्मजीवों (नाइट्रोजन-फिक्सिंग माइक्रोऑर्गनिज़्म्स) का मिट्टी में प्रचुरोद्भवन (प्रोलिफरेशन) हो सकता है।
2. मिट्टी की अम्लता में बढ़ोतरी हो सकती है।
3. भौम जल (ग्राउंडवॉटर) में नाइट्रेट का निक्षालन (लीचिंग) हो सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
कृषि में नाइट्रोजनी उर्वरकों का अत्यधिक या अनुपयुक्त उपयोग पर्यावरण और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर कई प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी की अम्लता में वृद्धि का कारण बनता है, जिससे मिट्टी की संरचना और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अम्लीय मिट्टी में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी हो सकती है, जिससे फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है।
इसके अतिरिक्त, नाइट्रेट का अत्यधिक लीचिंग भूजल में नाइट्रेट की सांद्रता बढ़ा देता है, जिससे जल स्रोतों का प्रदूषण होता है। भूजल में उच्च नाइट्रेट स्तर से नाइट्रेट प्रदूषण होता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पेयजल में उच्च नाइट्रेट स्तर से मेथेमोग्लोबिनेमिया (ब्लू बेबी सिंड्रोम) जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो विशेष रूप से शिशुओं के लिए खतरनाक हैं।
इन समस्याओं से निपटने के लिए, उर्वरकों का संतुलित और वैज्ञानिक उपयोग आवश्यक है। समेकित पोषक तत्व प्रबंधन (INM) पद्धतियों को अपनाना, जैसे जैविक और अजैविक स्रोतों का संयुक्त उपयोग, नाइट्रोजन उर्वरकों का विभाजित आवेदन और नीम-लेपित यूरिया का प्रयोग, मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और प्रदूषण को कम करने में सहायक हो सकते हैं। इसके अलावा, नियमित मिट्टी परीक्षण और किसानों में जागरूकता बढ़ाने से उर्वरकों के उचित उपयोग को सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सके।
प्रश्न 12. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (इंटरनैशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर ऐंड नेचुरल रिसोर्सेज) (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन कन्वेंशन (कन्वेंशन ऑन इंटरनैशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ ऑफ वाइल्ड फॉना ऐंड फ्लोरा) (CITES) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. IUCN संयुक्त राष्ट्र (UN) का एक अंग है तथा CITES सरकारों के बीच अंतर्राष्ट्रीय क़रार है।
2. IUCN, प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर प्रबंधन के लिए, विश्व भर में हजारों क्षेत्र परियोजनाएं चलाता है।
3. CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं, लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) एक स्वतंत्र संगठन है, जो सरकारों और नागरिक समाज संगठनों दोनों से मिलकर बना है। यह वैश्विक स्तर पर जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देने हेतु ज्ञान, सलाह और समर्थन प्रदान करता है। इसके विपरीत, वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करना है। CITES में शामिल देशों के लिए यह कानूनी रूप से बाध्यकारी है, लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता।
IUCN विश्वभर में प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर प्रबंधन के लिए हजारों क्षेत्रीय परियोजनाएँ चलाता है, जो जैव विविधता संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और सतत संसाधन उपयोग पर केंद्रित हैं। इन परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, जिससे संरक्षण प्रयासों की प्रभावशीलता बढ़ती है। दूसरी ओर, CITES का दायरा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर केंद्रित है, जो लगभग 35,000 प्रजातियों के उत्पादों को विनियमित करता है, ताकि उनका व्यापार वैध, धारणीय और अनुमार्गी हो।
CITES में शामिल देशों के लिए यह कानूनी रूप से बाध्यकारी है, जिससे वे सुनिश्चित करते हैं कि उनके क्षेत्र में CITES के प्रावधानों का पालन हो। हालांकि, यह कन्वेंशन राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता; प्रत्येक देश को अपने घरेलू कानूनों में CITES के प्रावधानों को समाहित करना होता है। यह राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीव संरक्षण और व्यापार नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 13. गन्ने की उचित एवं लाभप्रद क़ीमत (FRP) को निम्नलिखित में से कौन अनुमोदित करता/करती है?
(a) आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति
(b) कृषि लागत और क़ीमत आयोग
(c) कृषि मंत्रालय का विपणन और निरीक्षण निदेशालय
(d) कृषि उत्पाद विपणन समिति
उत्तर: (a)
गन्ने की उचित एवं लाभप्रद कीमत (FRP) एक न्यूनतम मूल्य है जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है ताकि किसानों को उनके उत्पादन लागत के साथ एक उचित लाभ प्राप्त हो सके। इसका उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना है, जिससे वे अपनी फसल की बिक्री से आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। FRP नीति कृषि क्षेत्र में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के साथ-साथ चीनी उद्योग की आर्थिक सेहत को भी समर्थन देती है।
FRP को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जो भारत सरकार का एक उच्चस्तरीय नीति-निर्धारण निकाय है। यह समिति कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण, सब्सिडी और अन्य आर्थिक नीतियों पर निर्णय लेती है। CCEA के निर्णय किसानों, उद्योगों और उपभोक्ताओं के हितों को संतुलित करने में सहायक होते हैं।
FRP निर्धारित करते समय उत्पादन लागत, श्रम लागत, ऊर्जा खपत और अंतर्राष्ट्रीय बाजार की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखा जाता है। इसके अलावा, सरकार किसानों की आय बढ़ाने और चीनी उद्योग के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कारकों का मूल्यांकन करती है। यह नीति किसानों को आर्थिक रूप से स्थिर रखने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र के सतत विकास में योगदान देती है।
प्रश्न 14. विषुवतीय प्रतिधाराओं (इक्वेटोरियल काउंटर करेंट) के पूर्वाभिमुख प्रवाह की व्याख्या किससे होती है?
(a) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन
(b) दो विषुवतीय धाराओं का अभिसरण (कन्वर्जेस)
(c) जल की लवणता में अंतर
(d) विषुवत्-वृत्त के पास प्रशांतमंडल मेखला (बेल्ट ऑफ काम) का होना
उत्तर: (b)
विषुवतीय प्रतिधाराएँ महासागरों के विषुवतीय क्षेत्र में बहने वाली वे धाराएँ हैं जो मुख्य व्यापारिक पवनों के विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हैं। ये धाराएँ सामान्यतः पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य सतही धाराओं के बीच स्थित होती हैं और उनका प्रवाह पूर्व की ओर (पूर्वाभिमुख) होता है। यह प्रवाह मुख्य रूप से गर्म जल की संचयिता के कारण उत्पन्न होता है, जो महासागर के पश्चिमी भागों में संचित होता है।
विषुवतीय प्रतिधाराओं के पूर्वाभिमुख प्रवाह की मुख्य व्याख्या दो विषुवतीय धाराओं के अभिसरण (Convergence) से होती है। जब व्यापारिक पवनें महासागर के जल को पश्चिम की ओर धकेलती हैं, तो विषुवतीय क्षेत्र में पानी का संचय होता है, जिससे उस क्षेत्र में पानी का दबाव बढ़ जाता है। इस दबाव के अंतर के कारण जल पूर्व की ओर प्रवाहित होता है, जो प्रतिधाराओं के रूप में प्रकट होता है।
इन प्रतिधाराओं का वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विशेष रूप से प्रशांत महासागर में यह प्रवाह एल नीनो और ला नीना घटनाओं के दौरान महासागरीय तापमान और मौसम की स्थितियों में बदलाव लाता है। यह जलवायु असंतुलन कृषि, मछली पालन और वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है।
प्रश्न 15. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
तीर्थस्थान : अवस्थिति
1. श्रीशैलम : नल्लमल्ला पहाड़ियां
2. ओंकारेश्वर : सतमाला पहाड़ियां
3. पुष्कर : महादेव पहाड़ियां
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
श्रीशैलम, जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सीमा पर स्थित है, एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो भगवान मल्लिकार्जुन के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल नल्लमल्ला पहाड़ियों में स्थित है, जो दक्षिण भारत की महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखला है। नल्लमल्ला पहाड़ियां घने जंगलों, विविध जीव-जंतुओं और जल स्रोतों के लिए जानी जाती हैं, जो श्रीशैलम के धार्मिक और प्राकृतिक परिदृश्य को समृद्ध बनाती हैं। यह क्षेत्र न केवल धार्मिक बल्कि पारिस्थितिकीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है, जो भगवान शिव के ओंकारेश्वर स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल सतपुड़ा पहाड़ियों के निकट स्थित है, न कि सतमाला पहाड़ियों में। सतपुड़ा पहाड़ियां मध्य भारत की एक महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखला हैं, जो जलवायु और पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण हैं। ओंकारेश्वर के मंदिर की वास्तुकला और धार्मिक महत्व इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनाते हैं।
पुष्कर, जो राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित है, एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो ब्रह्मा मंदिर और पुष्कर झील के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल अरावली पहाड़ियों के पास स्थित है, न कि महादेव पहाड़ियों में। अरावली पहाड़ियां राजस्थान की प्राचीन पर्वत श्रृंखला हैं, जो क्षेत्रीय जलवायु और वनस्पति के लिए महत्वपूर्ण हैं। पुष्कर का धार्मिक महत्व इसकी झील और मंदिर परिसर के कारण विश्व स्तर पर जाना जाता है।
प्रश्न 16. रौलट सत्याग्रह के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/है?
1. रौलट अधिनियम, ‘सेडिशन कमेटी’ की सिफारिश पर आधारित था।
2. रौलट सत्याग्रह में, गांधीजी ने होम रूल लीग का उपयोग करने का प्रयास किया।
3. साइमन कमीशन के आगमन के विरुद्ध हुए प्रदर्शन रौलट सत्याग्रह के साथ-साथ हुए।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
रौलट अधिनियम, जिसे औपचारिक रूप से “अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1919” कहा जाता है, ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के दमन के उद्देश्य से लागू किया गया था। यह अधिनियम सेडिशन कमेटी की सिफारिशों पर आधारित था, जिसे 1919 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राष्ट्रवादी गतिविधियों की जांच के लिए गठित किया था। इस समिति ने भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों को सीमित करने और उन्हें दमन करने के उपाय सुझाए। इसके परिणामस्वरूप, रौलट अधिनियम ने प्रेस की स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता और राजनीतिक विरोध के अधिकारों को दबाया।
रौलट सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी ने होम रूल लीग के प्रभाव का उपयोग किया, जो पहले से ही राष्ट्रवादी जागरूकता फैलाने में सक्रिय थी। गांधीजी ने इसके माध्यम से जन जागरूकता और विरोध प्रदर्शन को संगठित करने की कोशिश की। होम रूल लीग का उद्देश्य आत्म-शासन था और इसकी मौजूदा संरचना ने रौलट सत्याग्रह को प्रभावी रूप से जनसामान्य तक पहुंचाने में सहायता की। हालांकि, गांधीजी ने इस आंदोलन को व्यापक स्तर पर फैलाने के लिए अपने स्वयं के नेटवर्क का भी उपयोग किया।
रौलट सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने ब्रिटिश दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसात्मक प्रतिरोध की शक्ति को प्रदर्शित किया। यह आंदोलन न केवल भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों के लिए एक संघर्ष था, बल्कि इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी, जिससे बाद में असहमति आंदोलन और सिविल अवज्ञा आंदोलन जैसे बड़े आंदोलन उत्पन्न हुए।
प्रश्न 17. निम्नलिखित में से किनका, इबोला विषाणु के प्रकोप के लिए हाल ही में समाचारों में बार-बार उल्लेख हुआ?
(a) सीरिया और जॉर्डन
(b) गिनी, सिएरा लिओन और लाइबेरिया
(c) फिलिपीन्स और पापुआ न्यू गिनी
(a) जमैका, हैती और सुरिनाम
उत्तर: (b)
इबोला वायरस एक अत्यधिक संक्रामक वायरस है जो इबोला हेमोरेजिक फीवर का कारण बनता है, जिसकी मृत्यु दर अत्यधिक होती है। यह वायरस पहली बार 1976 में ज़ायर (अब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो) में पहचाना गया था और इसके बाद अफ्रीका के विभिन्न देशों में प्रकोप देखे गए। यह संक्रमित व्यक्तियों के रक्त, शारीरिक तरल पदार्थ और दूषित वस्तुओं के संपर्क से फैलता है। इबोला के लक्षणों में बुखार, उल्टी, दस्त, कमजोरी और गंभीर रक्तस्राव शामिल हैं, जिससे यह एक अत्यधिक घातक रोग बन जाता है।
हाल ही में, इबोला वायरस के प्रकोप के लिए गिनी, सिएरा लिओन और लाइबेरिया का बार-बार उल्लेख हुआ। इन देशों में 2014-2016 के बीच हुए इबोला प्रकोप ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट पैदा किया था, जो अब तक का सबसे बड़ा और घातक प्रकोप था। इस संकट ने स्वास्थ्य अवसंरचना की कमजोरी और प्रभावी प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता को उजागर किया। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आइसोलेशन केंद्र, संपर्क अन्वेषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों को अपनाया गया।
इस प्रकोप ने वैश्विक समुदाय को स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया के महत्व को समझाया। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, चिकित्सा सहायता और जन जागरूकता अभियानों ने वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान में इन देशों में निगरानी प्रणाली को मजबूत किया गया है, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकोप को शीघ्रता से नियंत्रित किया जा सके और प्रभावी स्वास्थ्य नीति बनाई जा सके।
प्रश्न 18. ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग करने वाले शक्ति संयंत्रों से प्राप्त ‘फ्लाई ऐश’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
1. फ्लाई ऐश का उपयोग भवन निर्माण के लिए ईंटों के उत्पादन में किया जा सकता है।
2. फ्लाई ऐश का उपयोग कंक्रीट के कुछ पोर्टलैंड सीमेंट अंश के स्थानापन्न (रिप्लेस्मेंट) के रूप में किया जा सकता है।
3. फ्लाई ऐश केवल सिलिकॉन डाइऑक्साइड तथा कैल्सियम ऑक्साइड से बना होता है और इसमें कोई विषाक्त (टॉक्सिक) तत्त्व नहीं होते।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (a)
फ्लाई ऐश, जो कोयले के दहन से उत्पन्न होती है, भवन निर्माण में एक पर्यावरण-मित्र और लागत-प्रभावी सामग्री के रूप में उपयोग की जाती है। यह विशेष रूप से ईंटों के निर्माण में उपयोगी होती है क्योंकि इसमें उच्च पोज़ोलैनिक गुण होते हैं, जो निर्माण सामग्री की मजबूती और दीर्घायु को बढ़ाते हैं। फ्लाई ऐश ईंटें पारंपरिक मिट्टी की ईंटों की तुलना में हल्की, मजबूत और कम तापीय संवाहकता वाली होती हैं, जिससे भवनों की ऊर्जा दक्षता में भी सुधार होता है। इसके अलावा, इसका उपयोग मिट्टी के कटाव को कम करता है और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव को घटाता है।
कंक्रीट निर्माण में फ्लाई ऐश का उपयोग पोर्टलैंड सीमेंट के अंश के स्थान पर किया जाता है, जो कंक्रीट की गुणात्मक विशेषताओं को बेहतर बनाता है। फ्लाई ऐश कंक्रीट की संपीड़न शक्ति, टिकाऊपन और जल प्रतिरोध को बढ़ाती है। यह सामग्री उच्च तापमान पर कंक्रीट के ताप उत्सर्जन को भी कम करती है, जिससे बड़े निर्माण परियोजनाओं में यह अत्यधिक लाभकारी होती है। इसके अलावा, फ्लाई ऐश के उपयोग से सीमेंट उत्पादन की मांग कम होती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आती है और सतत विकास को समर्थन मिलता है।
हालांकि फ्लाई ऐश मुख्य रूप से सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO₂) और कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) से बना होता है, इसमें आर्सेनिक, पारा, सीसा जैसे विषाक्त तत्व भी हो सकते हैं, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इन विषाक्त तत्वों की उपस्थिति के कारण फ्लाई ऐश के उपयोग में उचित प्रबंधन और सुरक्षा मानकों का पालन आवश्यक होता है। इसके लिए प्रभावी निगरानी प्रणाली और परीक्षण आवश्यक हैं ताकि निर्माण कार्यों में इसका सुरक्षित और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
प्रश्न 19. भारत में पाये जाने वाले स्तनधारी ‘ड्यूगोंग’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह एक शाकाहारी समुद्री जानवर है।
2. यह भारत के पूरे समुद्र तट के साथ-साथ पाया जाता है।
3. इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के अधीन विधिक संरक्षण दिया गया है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (c)
ड्यूगोंग एक शाकाहारी समुद्री स्तनधारी है, जो मुख्य रूप से समुद्री घासों पर निर्भर रहता है। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि समुद्री घासों के चरने से पानी की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है और कई समुद्री जीवों के आवास को समर्थन मिलता है। ड्यूगोंग की शाकाहारी प्रवृत्ति इसे अन्य समुद्री स्तनधारियों जैसे डॉल्फिन और व्हेल से अलग बनाती है, जो आमतौर पर मांसाहारी होते हैं।
ड्यूगोंग भारत के पूरे समुद्र तट पर नहीं पाया जाता है। यह मुख्य रूप से गुजरात, केरल, लक्षद्वीप द्वीप समूह और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां समुद्री घास के विस्तृत क्षेत्र मौजूद होते हैं। यह प्रजाति उथले, गर्म पानी के क्षेत्रों को पसंद करती है, जिससे इसका वितरण सीमित है और यह पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अधिक संवेदनशील बनता है।
ड्यूगोंग को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत संरक्षित किया गया है, जिससे इसे उच्च स्तर का कानूनी संरक्षण प्राप्त है। यह संरक्षण इसे शिकार, व्यापार और आवास विनाश से बचाने के प्रयासों का हिस्सा है। इसके साथ ही, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और सामुदायिक आधारित संरक्षण कार्यक्रम जैसे प्रयास इसकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 20. निम्नलिखित में से कौन, भारत में उपनिवेशवाद का/के आर्थिक आलोचक था/थे?
1. दादाभाई नौरोजी
2. जी. सुब्रमण्यम अय्यर
3. आर.सी. दत्त
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
दादाभाई नौरोजी भारतीय उपनिवेशवाद के आर्थिक प्रभावों के प्रमुख आलोचक थे। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ “पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” में ब्रिटिश शासन के तहत भारत से धन के शोषण को उजागर किया। नौरोजी ने “ड्रेनेज थ्योरी” का परिचय दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत से धन की सतत निकासी हो रही थी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी और पिछड़ेपन की ओर बढ़ रही थी। उन्होंने ब्रिटिश व्यापार नीतियों की आलोचना की, जो भारत को कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं के उपभोक्ता के रूप में रखने के लिए डिज़ाइन की गई थीं।
जी. सुब्रमण्यम अय्यर ने भी उपनिवेशवाद के आर्थिक प्रभावों की आलोचना की, लेकिन उनका दृष्टिकोण मुख्य रूप से प्रशासनिक सुधारों और भारतीयों के अधिकारों पर केंद्रित था। उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर आलोचनात्मक दृष्टि डाली और भारतीयों को अधिक स्वायत्तता देने की वकालत की। उन्होंने भारतीय शिक्षा और स्थानीय शासन के सुधारों के पक्षधर रहे, जो आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण थे। अय्यर ने भारतीय ग्रामीण विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी महत्व दिया।
आर.सी. दत्त ने भारतीय आर्थिक इतिहास का व्यापक अध्ययन किया और ब्रिटिश नीतियों के आर्थिक प्रभावों पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उनके ग्रंथ “हिस्ट्री ऑफ इंडियन इकॉनमी” में उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान कृषि, उद्योग और व्यापार पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों को स्पष्ट किया। उन्होंने यह दिखाया कि कैसे ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय हस्तशिल्प को कमजोर किया और विदेशी उत्पादों के पक्ष में एक आर्थिक संरचना बनाई, जिससे भारत आर्थिक रूप से कमजोर हो गया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय उद्योगों के पतन और कृषि पर उनके प्रभाव को भी उजागर किया।
प्रश्न 21. विश्व आर्थिक संभावना (ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स)’ रिपोर्ट आवधिक रूप से निम्नलिखित में से कौन जारी करता है?
(a) एशिया विकास बैंक
(b) यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (यूटोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन ऐंड डेवलपमेंट)
(c) यू. एस. फेडरल रिज़र्व बैंक
(d) विश्व बैंक
उत्तर: (d)
Global Economic Prospects रिपोर्ट वैश्विक अर्थव्यवस्था के रुझानों का गहन विश्लेषण प्रदान करती है। यह रिपोर्ट विश्व स्तर पर आर्थिक विकास, व्यापार, वित्तीय स्थिरता, मुद्रास्फीति दर और अंतर्राष्ट्रीय निवेश प्रवृत्तियों जैसे महत्वपूर्ण संकेतकों पर केंद्रित होती है। इसका प्रमुख उद्देश्य वैश्विक आर्थिक जोखिमों और अवसरों की पहचान करना है, जिससे नीति निर्माताओं को विकासात्मक निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
यह रिपोर्ट विश्व बैंक (World Bank) द्वारा नियमित रूप से प्रकाशित की जाती है, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है और विकासशील देशों के आर्थिक विकास के लिए कार्य करता है। विश्व बैंक की भूमिका वैश्विक वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नीतियों के निर्माण में अहम होती है।
यह रिपोर्ट वैश्विक नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकारें, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और वैश्विक निवेशक इसके विश्लेषण का उपयोग अपनी आर्थिक रणनीतियों और नीतियों को प्रभावी रूप से आकार देने के लिए करते हैं। इसके निष्कर्ष आर्थिक संकटों के पूर्वानुमान, निवेश प्रवृत्तियों के निर्धारण और वैश्विक विकास लक्ष्यों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
प्रश्न 22. जब भारतीय रिज़र्व बैंक सांविधिक नक़दी अनुपात (स्टैट्यूटरी लिक्विडिटि रेशियो) को 50 आधार अंक (बेसिस पॉइंट) कम कर देता है, तो निम्नलिखित में से क्या होने की संभावना होती है?
(a) भारत की GDP विकास दर प्रबलता से बढ़ेगी
(b) विदेशी संस्थागत निवेशक हमारे देश में और अधिक पूंजी लाएंगे
(c) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने उधार देने की दर को घटा सकते हैं
(d) इससे बैंकिंग व्यवस्था की नक़दी (लिक्विडिटि) में प्रबलता से कमी आ सकती है
उत्तर: (c)
सांविधिक नक़दी अनुपात (Statutory Liquidity Ratio – SLR) वह न्यूनतम प्रतिशत है जिसे वाणिज्यिक बैंकों को अपनी शुद्ध मांग और समय जमा (NDTL) के विरुद्ध नकद, सोना, या अनुमोदित तरल संपत्तियों के रूप में बनाए रखना होता है। यह केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को नियंत्रित करने का एक प्रमुख उपकरण है, जिसका उपयोग मुद्रास्फीति, ब्याज दरों और वित्तीय स्थिरता को संतुलित करने के लिए किया जाता है।
जब SLR को 50 आधार अंकों से कम किया जाता है, तो बैंकों के पास अधिक धनराशि उपलब्ध हो जाती है, जो पहले अनिवार्य रूप से आरक्षित रखी जाती थी। इससे बैंकों की उधार देने की क्षमता में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप, वे अपने उधार देने की दरों को घटा सकते हैं, जिससे ऋण की लागत कम होती है और क्रेडिट प्रवाह को प्रोत्साहन मिलता है।
कम ब्याज दरें निवेश, उपभोक्ता खर्च और व्यवसायिक विस्तार को बढ़ावा देती हैं। इससे आर्थिक विकास में तेजी आती है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रश्न 23. स्वास्थ्य क्षेत्र में नैनोटेक्नोलॉजी के उपयोग के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. नैनोटेक्नोलॉजी के द्वारा लक्ष्ययुक्त औषधि प्रदान करना (टार्गेटेड ड्रग डिलिवरि) संभव कर दिया गया है।
2. नैनोटेक्नोलॉजी जीन उपचार (जीन थेरैपी) में एक बड़ा योगदान दे सकती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
नैनोटेक्नोलॉजी ने दवा वितरण के तरीके को नया आयाम दिया है, जिससे लक्ष्ययुक्त औषधि प्रदान करना संभव हुआ है। नैनोपार्टिकल्स का आकार अत्यंत सूक्ष्म होता है, जिससे वे शरीर के विशिष्ट ऊतकों, जैसे कैंसर कोशिकाओं, तक सटीक रूप से पहुँच सकते हैं। यह तकनीक दवा की प्रभावशीलता को बढ़ाती है और दुष्प्रभावों को कम करती है, क्योंकि दवा केवल लक्षित कोशिकाओं पर कार्य करती है। उदाहरण के लिए, कैंसर उपचार में नैनोपार्टिकल्स ट्यूमर कोशिकाओं को सीधे प्रभावित कर स्वस्थ ऊतकों को सुरक्षित रखते हैं।
नैनोटेक्नोलॉजी जीन थेरैपी के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। नैनोपार्टिकल्स डीएनए और आरएनए अणुओं के लिए प्रभावी वाहक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे आनुवंशिक दोषों को सुधारना आसान होता है। यह तकनीक जीन संपादन को अधिक सटीक बनाती है और अनावश्यक जीन परिवर्तनों से बचाती है। इसके अलावा, यह कोशिकाओं के भीतर जीन डिलीवरी की दक्षता को भी बढ़ाती है।
नैनोटेक्नोलॉजी का प्रभाव निदान और पुनर्योजी चिकित्सा पर भी गहरा है। नैनो-आधारित बायोसेंसर रोगों के प्रारंभिक चरण में पहचान कर शीघ्र हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करते हैं। साथ ही, यह तकनीक व्यक्तिगत चिकित्सा (Personalized Medicine) के विकास में सहायक है, जिससे उपचार विधियाँ रोगी की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित की जा सकती हैं।
प्रश्न 24. भारत में कृषि उत्पादों के बाज़ार को किसके अधीन विनियमित किया जाता है?
(a) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
(b) राज्यों द्वारा अधिनियमित कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम
(c) कृषि उत्पाद (श्रेणीकरण एवं चिहनांकन) अधिनियम, 1937
(d) खाद्य उत्पाद आदेश, 1956 एवं मांस तथा खाद्य उत्पाद आदेश, 1973
उत्तर: (b)
भारत में कृषि उत्पादों के बाजार को विनियमित करने के लिए कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) अधिनियम सबसे प्रमुख कानूनी ढांचा है, जो प्रत्येक राज्य द्वारा स्वतंत्र रूप से अधिनियमित किया गया है। यह अधिनियम कृषि उत्पादों के विपणन के लिए एक संगठित ढांचा प्रदान करता है, जिससे किसानों को पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इसका उद्देश्य किसानों के शोषण को रोकना और उन्हें उचित मूल्य दिलाना है।
APMC बाजारों में कृषि उत्पादों की नीलामी प्रणाली लागू की जाती है, जहां व्यापारी और किसान दोनों मिलकर मूल्य निर्धारण में भाग लेते हैं। इन बाजारों में गुणवत्ता नियंत्रण, भंडारण सुविधाएं और उचित मूल्य निर्धारण जैसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाती हैं। इससे मध्यस्थों की भूमिका सीमित होती है और किसानों को सीधे बाजार तक पहुंच मिलती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
हाल के वर्षों में कृषि विपणन सुधारों के तहत ई-कृषि बाजार, ई-नाम जैसी प्लेटफार्मों को बढ़ावा दिया गया है, जिससे किसानों को डिजिटल माध्यम से अपने उत्पाद बेचने के अधिक अवसर मिलते हैं। इसके अलावा, कृषि उत्पादों के लिए स्वतंत्र व्यापार मार्गों की अनुमति देने और राज्यों के बीच व्यापार को सरल बनाने की दिशा में नीतिगत प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे बाजार की दक्षता बढ़े।
प्रश्न 25. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणी है?
(a) खारे पानी का मगर
(b) ऑलिव रिड्ले टर्टल (कूर्म)
(c) गंगा की डॉलफिन
(d) घड़ियाल
उत्तर: (c)
गंगा की डॉलफिन (Platanista Gangetica) को 2009 में भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणी घोषित किया गया, जो देश की नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण संकेतक है। यह मीठे पानी की डॉलफिन मुख्य रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनके सहायक नदियों में पाई जाती है और इसकी विशेषता है इसका लंबा थूथन, पतला और लचीला शरीर और प्रमुख रूप से दृष्टिहीनता। इसके अनुकूलन की वजह से यह धूमिल पानी में भी उत्कृष्ट रूप से नेविगेट कर सकती है, जहां अन्य जलीय प्रजातियाँ कठिनाई का सामना करती हैं।
गंगा की डॉलफिन की संरक्षण स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा “संकटग्रस्त” श्रेणी में सूचीबद्ध है। इसके प्रमुख खतरों में नदी प्रदूषण, बांध निर्माण, मछली पकड़ने के जाल में फंसना और मानव गतिविधियों के कारण जल प्रवाह में परिवर्तन शामिल हैं। इसकी उपस्थिति नदियों के जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इस प्रजाति का संरक्षण न केवल इसकी स्वयं की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि यह गंगा प्रणाली के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने का संकेत भी है। गंगा की डॉलफिन के संरक्षण के लिए व्यापक नीतियाँ, सतत जल प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी अनिवार्य हैं। इस प्रजाति का संरक्षण जल की गुणवत्ता, जैव विविधता और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की मांग करता है।
प्रश्न 26. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. इसने ब्रिटिश माल के बहिष्कार और करों के अपवंचन (इवेज़न) की वकालत की।
2. यह सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करना चाहती थी।
3. इसने अल्पसंख्यकों तथा दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की वकालत की।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं
उत्तर: (d)
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) का गठन 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर एक समाजवादी प्रवृत्ति के रूप में हुआ, जिसका उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम को सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता की दिशा में आगे बढ़ाना था। CSP के विचारकों ने समाजवादी आदर्शों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में अनुकूलित किया, जिसमें लोकतांत्रिक ढांचे के तहत समाजवाद को लागू करने पर बल दिया गया। यह पार्टी पूंजीवाद और सामंतवाद के खिलाफ थी और इसकी विचारधारा ने किसान-श्रमिक वर्ग के अधिकारों को केंद्रीय स्थान दिया।
CSP ने लोकतांत्रिक समाजवाद के सिद्धांतों को अपनाया, जिसमें “सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व” की अवधारणा को अस्वीकार किया गया। इसके संस्थापक नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया ने यह स्पष्ट किया कि समाजवादी क्रांति लोकतांत्रिक तरीके से होनी चाहिए, न कि बल प्रयोग या क्रांतिकारी अधिनायकत्व के माध्यम से। यह दृष्टिकोण समाज के सभी वर्गों के बीच समानता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए था।
अल्पसंख्यकों और दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की वकालत CSP ने नहीं की, क्योंकि इसका उद्देश्य जातीय और धार्मिक विभाजनों के बिना एकजुट और समावेशी भारत का निर्माण करना था। इसके बजाय, यह पार्टी जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन के विरुद्ध थी और समान अधिकारों के सिद्धांत का समर्थन करती थी। इस प्रकार, CSP का दृष्टिकोण सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित था।
प्रश्न 27. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. राज्य सभा में धन विधेयक को या तो अस्वीकार करने या संशोधित करने की कोई शक्ति निहित नहीं है।
2. राज्य सभा अनुदानों की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती है।
3. राज्य सभा में वार्षिक वित्तीय विवरण पर चर्चा नहीं हो सकती।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केबल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
राज्य सभा के पास धन विधेयक (Money Bill) को अस्वीकार करने या उसमें संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार, धन विधेयक केवल लोक सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है और राज्य सभा की भूमिका इसमें सीमित है। यदि राज्य सभा इसे अस्वीकार करती है या संशोधन करने का प्रयास करती है, तो भी लोक सभा इसे पुनः पारित कर सकती है। यह प्रावधान वित्तीय मामलों में लोक सभा के प्रमुख स्थान को स्पष्ट करता है, क्योंकि सरकार के राजस्व और व्यय की स्वीकृति लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के आधार पर लोक सभा द्वारा दी जाती है।
राज्य सभा अनुदानों की मांगों (Demands for Grants) पर मतदान नहीं कर सकती है। यह विशेषाधिकार केवल लोक सभा के पास है, क्योंकि सरकार के व्यय की स्वीकृति लोक सभा के वित्तीय अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है। राज्य सभा इन पर चर्चा कर सकती है, जिससे विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश होता है, लेकिन अंतिम निर्णय लोक सभा के पास रहता है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि वित्तीय जवाबदेही लोकतांत्रिक रूप से प्रतिनिधित्वकारी ढांचे में बनी रहे।
हालांकि, राज्य सभा वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) पर चर्चा कर सकती है, जो सरकार की वित्तीय नीतियों और बजट प्रस्तावों का सार प्रस्तुत करता है। यह चर्चा नीति निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इससे संसद के सदस्यों को सरकार के आर्थिक निर्णयों पर विचार-विमर्श करने का अवसर मिलता है। भले ही राज्य सभा इस पर संशोधन नहीं कर सकती, लेकिन इसकी चर्चा सरकार के वित्तीय प्रबंधन और नीति दिशा की जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
प्रश्न 28. भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने निम्नलिखित में से किसको स्पष्ट रूप से परिभाषित किया?
(a) न्यायपालिका एवं विधायिका (लेजिस्लेचर) के बीच शक्ति का पृथक्करण
(b) केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों की अधिकारिता
(c) भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एवं वाइसरॉय की शक्तियां
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (b)
भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने भारत के संघीय ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए, विशेष रूप से केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच अधिकारिता के विभाजन को स्पष्ट किया। इस अधिनियम ने द्विसदनीय प्रणाली (Bicameral System) को अपनाया और प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy) की अवधारणा को प्रस्तुत किया, जिससे प्रांतों को अपने मामलों के प्रशासन में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह विभाजन भारत के शासन ढांचे में विकेंद्रीकरण के प्रति एक महत्वपूर्ण कदम था।
इस अधिनियम के तहत ‘योजना प्रणाली’ (Dyarchy) की शुरुआत की गई, जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच विषयों का विभाजन किया गया। रक्षा, विदेश नीति और संचार जैसे महत्वपूर्ण विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में रहे, जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और सार्वजनिक सुरक्षा जैसे विषय प्रांतों को सौंपे गए। इस व्यवस्था ने प्रांतों को अपनी नीतियों और प्रशासन को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की क्षमता दी, हालांकि यह स्वायत्तता सीमित थी और केंद्र के नियंत्रण में भी थी।
इसके अतिरिक्त, इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के गठन को भी स्वीकार किया, जिससे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिला। इस प्रक्रिया ने शासन के विभिन्न स्तरों पर जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित किया। भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने भारतीय संविधान के संघीय ढांचे की नींव रखी, जो बाद में 1935 के भारत सरकार अधिनियम में और अधिक विकसित हुआ।
प्रश्न 29. निम्नलिखित में से कौन ‘औद्योगिक कर्मकारों के लिए उपभोक्ता क़ीमत सूचकांक (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स नंबर फॉर इंडस्ट्रियल वर्कर्स)’ निकालता है?
(a) भारतीय रिज़र्व बैंक
(b) आर्थिक कार्य विभाग
(c) श्रम ब्यूरो
(d) कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
उत्तर: (c)
औद्योगिक कर्मकारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जिसका उद्देश्य श्रमिकों के जीवन यापन की लागत और मुद्रास्फीति के प्रभाव को मापना है। यह सूचकांक उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों के परिवर्तन को दर्शाता है, जो श्रमिक वर्ग के दैनिक जीवन के लिए आवश्यक होती हैं, जैसे कि खाद्य पदार्थ, वस्त्र, आवास और परिवहन। CPI-IW वेतन समायोजन, सामाजिक सुरक्षा लाभों के निर्धारण और आर्थिक नीतियों के मूल्यांकन में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
इस सूचकांक के निर्माण और प्रकाशन की जिम्मेदारी श्रम ब्यूरो (Labour Bureau) के पास है, जो भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय के अधीन कार्यरत है। श्रम ब्यूरो देश के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों से मूल्य डेटा एकत्र करता है, जिसमें श्रमिकों के परिवारों के उपभोग पैटर्न को ध्यान में रखा जाता है। इसके बाद, इस डेटा का विश्लेषण करके सूचकांक तैयार किया जाता है, जो मुद्रास्फीति और जीवन यापन की लागत में बदलाव का प्रतिबिंब होता है।
CPI-IW न केवल वेतन नीति निर्माण में सहायक होता है, बल्कि यह मुद्रास्फीति दर, जीवन स्तर और सामाजिक-आर्थिक विकास के आकलन का एक प्रभावी उपकरण भी है। यह सरकार को श्रमिकों के आर्थिक कल्याण की निगरानी करने, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन करने और नीति सुधार के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करता है, जिससे देश के आर्थिक विकास की दिशा को स्थिर और सशक्त बनाया जा सकता है।
प्रश्न 30. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के सन्दर्भ में, हाल ही में समाचारों में आये दक्षिणी ध्रुव पर स्थित एक कण संसूचक (पार्टिकल डिटेक्टर) ‘आइसक्यूब (IceCube)’ के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. यह विश्व का सबसे बड़ा, बर्फ में एक घन किलोमीटर घेरे वाला, न्यूट्रिनो संसूचक (न्यूट्रिनो डिटेक्टर) है।
2. यह डार्क मैटर (Dark Matter) की खोज के लिए बनी शक्तिशाली दूरबीन है।
3. यह बर्फ में गहराई में दबा हुआ है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
आइसक्यूब (IceCube) विश्व का सबसे बड़ा न्यूट्रिनो डिटेक्टर है, जो अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। यह एक घन किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और बर्फ की गहराइयों में दबा हुआ है, जिससे बाहरी विकिरण और तापमान के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा मिलती है। इस विशाल संरचना में 5,000 से अधिक ऑप्टिकल डिटेक्टर सेंसर लगाए गए हैं, जो न्यूट्रिनो कणों के इंटरैक्शन के संकेतों को पकड़ने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
न्यूट्रिनो ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमय कणों में से एक हैं, जिनकी खोज से वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के प्रारंभिक घटनाओं और उच्च-ऊर्जा खगोल भौतिकीय प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी मिलती है। आइसक्यूब का उपयोग न केवल न्यूट्रिनो के अध्ययन के लिए किया जाता है, बल्कि यह डार्क मैटर (dark matter) की खोज में भी सहायक है, क्योंकि डार्क मैटर के गुणों को समझने के लिए कणों के सूक्ष्म व्यवहार का विश्लेषण आवश्यक होता है।
इस डिटेक्टर के माध्यम से वैज्ञानिक ब्लैक होल, सुपरनोवा और गामा-किरण विस्फोटों जैसे खगोलीय घटनाओं के संकेतों का भी अध्ययन करते हैं। आइसक्यूब ने ब्रह्मांड विज्ञान, खगोल भौतिकी और कण भौतिकी के क्षेत्रों में क्रांतिकारी योगदान दिया है, जिससे हमारे ब्रह्मांड के समझने के तरीके में परिवर्तन आया है और ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।
प्रश्न 31. ऐग्रीमेंट ऑन ऐग्रीकल्चर (Agreement on Agriculture)’, ‘ऐग्रीमेंट ऑन दि ऐप्लीकेशन ऑफ सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी मेजर्स (Agreement on the Application of Sanitary and Phytosanitary Measures)’ और ‘पीस क्लॉज़ (Peace Clause)’ शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं?
(a) खाद्य और कृषि संगठन
(b) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का रुपरेखा सम्मेलन
(c) विश्व व्यापार संगठन
(d) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
उत्तर: (c)
विश्व व्यापार संगठन (WTO) वैश्विक व्यापार के नियमों को विनियमित करने वाला प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है, जो सदस्य देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में पारदर्शिता, निष्पक्षता और उदारीकरण को बढ़ावा देता है। WTO के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण समझौते हैं, जिनमें Agreement on Agriculture (AoA), Agreement on the Application of Sanitary and Phytosanitary Measures (SPS Agreement) और Peace Clause अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वार्ताओं और विवादों के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Agreement on Agriculture (AoA) का उद्देश्य वैश्विक कृषि व्यापार को उदार बनाना है। यह सब्सिडी, बाजार पहुंच और घरेलू समर्थन जैसे मुद्दों पर नियम निर्धारित करता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उत्पादों के व्यापार में समान अवसर सुनिश्चित किए जा सकें। इस समझौते का प्रभाव विशेष रूप से विकासशील देशों पर पड़ता है, जो कृषि पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।
SPS Agreement खाद्य सुरक्षा और पौधों के स्वास्थ्य के अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यापारिक बाधाएं वैज्ञानिक आधार पर हों, जिससे खाद्य सुरक्षा के खतरे से बचा जा सके। साथ ही, Peace Clause विकासशील देशों को अस्थायी सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वे कृषि सब्सिडी का उपयोग कर सकें बिना WTO के नियमों का उल्लंघन किए। इन समझौतों ने वैश्विक कृषि और खाद्य व्यापार के स्वरूप को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रश्न 32. ‘निकट क्षेत्र संचार (नियर फील्ड कम्युनिकेशन) (NFC) प्रौद्योगिकी’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
1. यह एक संपर्करहित संचार प्रौद्योगिकी है, जो विद्युत् चुंबकीय रेडियो क्षेत्रों का उपयोग करती है।
2. NFC उन युक्तियों (डिवाइसेज़) द्वारा उपयोग के लिए अभिकल्पित किया गया है, जो एक-दूसरे से एक मीटर की दूरी पर भी स्थित हो सकते हैं।
3. संवेदनशील सूचना भेजते समय NFC कोडीकरण (एन्क्रिप्शन) का उपयोग कर सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
निकट क्षेत्र संचार (NFC) एक उन्नत संपर्करहित संचार तकनीक है, जो विद्युत् चुंबकीय रेडियो क्षेत्रों का उपयोग करके अत्यंत कम दूरी पर डेटा स्थानांतरित करने में सक्षम बनाती है। यह तकनीक आमतौर पर 4 सेंटीमीटर तक की दूरी पर कार्य करती है, जिससे सुरक्षा और डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित होती है। NFC को मोबाइल उपकरणों, स्मार्ट कार्ड्स और अन्य पोर्टेबल गैजेट्स में व्यापक रूप से लागू किया गया है, खासकर मोबाइल भुगतान, डिजिटल एक्सेस कंट्रोल और सूचना आदान-प्रदान के लिए।
NFC का एक प्रमुख लाभ इसकी त्वरित कनेक्शन क्षमता है। उपयोगकर्ता को बस दो उपकरणों को एक-दूसरे के निकट लाना होता है और संचार तुरंत स्थापित हो जाता है। यह विशेष रूप से उन परिदृश्यों में उपयोगी है जहां तेज़ और सुरक्षित डेटा आदान-प्रदान की आवश्यकता होती है, जैसे सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में स्मार्ट कार्ड भुगतान और सुरक्षा प्रणालियों में डिजिटल लॉक्स।
सुरक्षा के मामले में, NFC संवेदनशील जानकारी के स्थानांतरण के दौरान मजबूत एन्क्रिप्शन तकनीकों का उपयोग करता है, जिससे डेटा इंटरसेप्शन और साइबर खतरों से बचाव होता है। यह एन्क्रिप्शन सुनिश्चित करता है कि डेटा सुरक्षित रहता है, भले ही वह सार्वजनिक नेटवर्क के माध्यम से स्थानांतरित किया जाए। इस प्रकार, NFC प्रौद्योगिकी न केवल त्वरित, बल्कि अत्यधिक सुरक्षित संपर्करहित संचार के लिए एक प्रभावी समाधान है।
प्रश्न 33. ‘गोलन हाइट्स’ के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र निम्नलिखित में से किससे संबंधित घटनाओं के सन्दर्भमें यदा-कदा समाचारों में आता है?
(a) मध्य एशिया
(b) मध्य पूर्व (मिडिल ईस्ट)
(c) दक्षिण-पूर्व एशिया
(d) मध्य अफ्रीका
उत्तर: (b)
गोलन हाइट्स एक महत्वपूर्ण उच्चभूमि है, जो सीरिया और इज़राइल के बीच स्थित है और भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र लगभग 1,200 वर्ग किलोमीटर में फैला है और समुद्र तल से लगभग 1,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसकी रणनीतिक स्थिति इसे सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है क्योंकि यह आसपास के क्षेत्रों का स्पष्ट अवलोकन प्रदान करता है, जिससे दोनों देशों के लिए सैन्य निगरानी और रक्षा रणनीतियाँ निर्धारित करना आसान होता है।
1967 के छ: दिवसीय युद्ध के दौरान इज़राइल ने गोलन हाइट्स पर कब्जा किया और 1981 में इसे अपने अधीन कर लिया, हालांकि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। यह क्षेत्र जल संसाधनों से भरपूर है, विशेष रूप से जॉर्डन नदी के स्रोतों के निकट होने के कारण, जो इज़राइल और सीरिया दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह जल संकट मध्य पूर्व के जल संघर्षों में एक प्रमुख कारक बनता है।
आज भी गोलन हाइट्स इज़राइल और सीरिया के बीच तनाव का केंद्र बना हुआ है। अमेरिका द्वारा इज़राइल के अधिकार को मान्यता देना और संयुक्त राष्ट्र में इस विषय पर बहस जैसे हालिया घटनाक्रम इस क्षेत्र के वैश्विक कूटनीतिक महत्व को दर्शाते हैं। यह क्षेत्र मध्य पूर्व की सुरक्षा और स्थिरता के लिए एक प्रमुख बिंदु है।
प्रश्न 34. रुपये की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है?
(a) रुपये के नोटों के बदले सोना प्राप्त कर सकना
(b) रुपये के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपये को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपये में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुजा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिए अन्तरष्ट्रिीय बाज़ार विकसित करना
उत्तर: (c)
रुपये की परिवर्तनीयता का तात्पर्य है कि भारतीय मुद्रा को अन्य विदेशी मुद्राओं में और विदेशी मुद्राओं को रुपये में स्वतंत्र रूप से परिवर्तित किया जा सकता है। यह विशेषता वैश्विक आर्थिक एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निवेश और वित्तीय लेन-देन को सहज बनाती है। परिवर्तनीयता से भारतीय कंपनियाँ और व्यक्ति वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जिससे आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
भारत में रुपये की परिवर्तनीयता को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है: वर्तमान खाता परिवर्तनीयता और पूंजी खाता परिवर्तनीयता। वर्तमान खाता परिवर्तनीयता के तहत व्यापार, सेवाओं और आय के लेन-देन के लिए मुद्रा का स्वतंत्र आदान-प्रदान संभव है। वहीं, पूंजी खाता परिवर्तनीयता के तहत विदेशी निवेश, पूंजी प्रवाह और वित्तीय लेन-देन पर कुछ नियामक नियंत्रण लागू किए जाते हैं, ताकि आर्थिक जोखिमों का प्रभावी प्रबंधन किया जा सके।
पूर्ण परिवर्तनीयता के साथ, विदेशी निवेश में वृद्धि, वैश्विक वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग और मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति बढ़ती है। हालांकि, यह मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव और वित्तीय अस्थिरता के जोखिम भी लाता है, जिसके लिए मजबूत मौद्रिक नीतियाँ और वित्तीय नियामक ढांचे की आवश्यकता होती है। आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखना इस प्रक्रिया की कुंजी है।
प्रश्न 35. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए :
मध्यकालीन : भारतीय राज्य वर्तमान क्षेत्र
1. चम्पक : मध्य भारत
2. दुर्गर : जम्मू
3. कुलूत : मालाबार
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (b)
चम्पक, जिसे आधुनिक चम्बा के रूप में जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, जो मध्य भारत के मैदानी इलाकों से भिन्न है। यह क्षेत्र हिमालय के उत्तर-पश्चिमी भाग में है, जहाँ प्राचीन व्यापार मार्ग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुए थे। मध्य भारत का क्षेत्र मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और आसपास के मैदानी इलाकों को शामिल करता है, जो चम्बा के भौगोलिक विशेषताओं से मेल नहीं खाता। इसलिए, यह युग्म गलत है।
दुर्गर राज्य आधुनिक जम्मू के क्षेत्र से संबंधित है। जम्मू क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व प्राचीन काल से रहा है और यहाँ दुर्गर राज्य के प्रशासनिक और सांस्कृतिक अवशेष पाए जाते हैं। जम्मू क्षेत्र के प्राचीन अभिलेख और पुरातात्विक साक्ष्य इस युग्म को ऐतिहासिक रूप से सही साबित करते हैं।
कुलूत राज्य आधुनिक कुल्लू के रूप में जाना जाता है, जो हिमाचल प्रदेश का एक पहाड़ी क्षेत्र है। मालाबार क्षेत्र केरल के तटीय इलाकों में स्थित है, जो कुलूत के भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ से मेल नहीं खाता। इसलिए, यह युग्म भी गलत है।
प्रश्न 36. निम्नलिखित नदियों पर विचार कीजिए:
1. वंशधारा
2. इंद्रावती
3. प्रणहिता
4. पेन्नार
उपर्युक्त में से कौन-सी गोदावरी की सहायक नदियां हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 4
(d) केवल 2 और 3
उत्तर: (d)
वंशधारा नदी गोदावरी की सहायक नदी नहीं है। यह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में बहती है और गोदावरी के जलग्रहण क्षेत्र से बाहर स्थित है। यह नदी अपने मार्ग में अन्य नदियों से मिलती है, लेकिन गोदावरी में नहीं जुड़ती है, जिससे यह गोदावरी की सहायक नदी के रूप में अयोग्य है।
इंद्रावती नदी गोदावरी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है। यह छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों से होकर बहती है। इंद्रावती का जल प्रवाह गोदावरी के जलग्रहण क्षेत्र में योगदान देता है और यह नदी गोदावरी के प्रमुख सहायक नदियों में से एक मानी जाती है।
प्रणहिता नदी गोदावरी की एक प्रमुख सहायक नदी है। यह महाराष्ट्र और तेलंगाना से होकर बहती है और गोदावरी में विलीन होती है। प्रणहिता का जल प्रवाह गोदावरी के जल स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है और यह नदी गोदावरी के प्रमुख स्रोतों में से एक है।
पेन्नार नदी गोदावरी की सहायक नदी नहीं है। यह कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है और क्रिस्ना नदी के जलग्रहण क्षेत्र से संबंधित है। पेन्नार नदी का जल प्रवाह गोदावरी में नहीं मिलता है, इसलिए इसे गोदावरी की सहायक नदी के रूप में नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 37. जब संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में कोई विधेयक निर्दिष्ट (रेफर) किया जाता है, तो इसे किसके द्वारा पारित किया जाना होता है?
(a) उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत
(b) उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों का तीन-चौथाई बहुमत
(c) सदनों का दो-तिहाई बहुमत
(d) सदनों का पूर्ण बहुमत
उत्तरः (a)
संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में किसी विधेयक को पारित करने के लिए उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत आवश्यक होता है। यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 108 के अंतर्गत निर्धारित है, जो संयुक्त बैठक के संचालन और विधेयक पारित करने के लिए आवश्यक शर्तों को स्पष्ट करता है। साधारण बहुमत का अर्थ है कि बैठक में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों में से आधे से अधिक सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।
संयुक्त बैठक तब बुलाई जाती है जब कोई विधेयक या प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों में अलग-अलग रूपों में स्वीकृत नहीं होता है। इस बैठक की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि द्वारा की जाती है, जिसमें दोनों सदनों के सदस्य भाग लेते हैं। यह बैठक एक निष्पक्ष और संतुलित मंच प्रदान करती है जहां दोनों सदनों के विचारों का समन्वय किया जाता है।
साधारण बहुमत की आवश्यकता लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक होती है। यह सुनिश्चित करता है कि विधायी निर्णय जनता के प्रतिनिधियों के सामूहिक विचारों पर आधारित हों, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और वैधता बनी रहती है।
प्रश्न 38. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में, मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है?
(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
उत्तर: (d)
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की वनस्पति अद्वितीय है क्योंकि यह मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों के संयोजन से युक्त है। मैंग्रोव वन मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ खारे पानी और ज्वारीय प्रभाव के कारण विशेष प्रकार के पौधे जैसे सन, गेविया और ब्रुगिएरा पनपते हैं। ये वन समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर रखते हैं और तटीय कटाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सदापर्णी वन द्वीपसमूह के आंतरिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जहाँ की निरंतर वर्षा और उच्च आर्द्रता के कारण हरित परिदृश्य बना रहता है। इन वनों में टीक, सागौन और अन्य उष्णकटिबंधीय वृक्ष प्रजातियाँ पाई जाती हैं। वहीं पर्णपाती वन सूखे के मौसम में पत्ते झड़ने की विशेषता रखते हैं, जो जल संरक्षण में सहायक होते हैं और इन क्षेत्रों में जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
इन वनों का संयोजन न केवल द्वीपसमूह के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और समुद्री तथा स्थलीय जीवन के लिए आदर्श आवास प्रदान करने में भी सहायक है। यह अद्वितीय वनस्पति संयोजन वैश्विक पारिस्थितिकीय स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल है।
प्रश्न 39. निम्नलिखित राज्यों में से किनका संबंध बुद्ध के जीवन से था?
1. अवंती
2. गांधार
3. कोसल
4. मगध
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4
उत्तरः (d)
गौतम बुद्ध का जीवन प्राचीन भारत के प्रमुख राज्यों के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिदृश्यों से गहराई से जुड़ा था। इनमें कोसल और मगध विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। कोसल का केंद्र अयोध्या था, जो बुद्ध के प्रारंभिक जीवन के लिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। सिद्धार्थ गौतम का जन्म लुंबिनी में हुआ था, जो कोसल के प्रभाव क्षेत्र के निकट स्थित है। बाद में उन्होंने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया और सारनाथ में पहला उपदेश दिया। कोसल के राजा प्रसेनजित ने बुद्ध के उपदेशों को स्वीकार किया और बौद्ध धर्म को राज्य स्तर पर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोसल के सामाजिक और धार्मिक वातावरण ने बुद्ध के विचारों को व्यापक रूप से फैलाने में सहायता की।
मगध बुद्ध के जीवन का एक केंद्रीय क्षेत्र था, विशेष रूप से उनके परिनिर्वाण के समय। यह राज्य पाटलिपुत्र और राजगीर जैसी प्रमुख नगरों का केंद्र था। पाटलिपुत्र, मगध की राजधानी, बौद्ध धर्म के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल रहा। यहाँ बुद्ध ने संघ की स्थापना की और अपने अंतिम वर्षों में धार्मिक शिक्षाएं दीं। मगध के राजा बिम्बिसार और अजातशत्रु बुद्ध के प्रमुख अनुयायी थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में सहयोग किया। बुद्ध का अंतिम परिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ, जो मगध के प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस प्रकार, मगध ने बुद्ध के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को साक्षी बना, जिससे यह बौद्ध धर्म के लिए एक प्रमुख स्थल बन गया।
अवंती और गांधार क्षेत्रों का बुद्ध के जीवन से सीधा संबंध नहीं था, क्योंकि वे प्रमुख रूप से व्यापार और सांस्कृतिक केंद्र थे। अवंती, जिसका केंद्र उज्जैन था, व्यापारिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, लेकिन यह बुद्ध के धार्मिक उपदेशों का केंद्र नहीं बना। इसी प्रकार, गांधार, जो वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान में स्थित है, बौद्ध कला और संस्कृति का केंद्र था, लेकिन यहाँ बुद्ध के जीवन से संबंधित कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं घटी। हालांकि, गांधार क्षेत्र ने बौद्ध कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से बौद्ध मूर्तिकला और स्तूपों के निर्माण में।।
प्रश्न 40. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण करने और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग बाह्य करने (फेज़िंग आउट) के मुद्दे से सम्बद्ध है?
(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नगोया प्रोटोकॉल
उत्तर: (b)
मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे 1987 में कनाडा के मॉन्ट्रियाल में आयोजित सम्मेलन के दौरान अपनाया गया था। इसका उद्देश्य ओज़ोन परत के अवक्षय के लिए जिम्मेदार रसायनों के उत्पादन और उपभोग को नियंत्रित करना है। ओज़ोन परत पृथ्वी के वातावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पराबैंगनी (UV) विकिरण को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीवन को नुकसानदायक प्रभावों से बचाती है। इस परत के क्षय के कारण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और पारिस्थितिकीय असंतुलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। प्रोटोकॉल ने उन रसायनों की पहचान की है जो ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं, जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हैलोन और कार्बन टेट्राक्लोराइड और इन पदार्थों के उपयोग को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता सुनिश्चित की है।
मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल की सफलता का एक बड़ा कारण इसकी वैश्विक स्वीकृति और प्रभावी क्रियान्वयन है। 197 देशों ने इस प्रोटोकॉल को अपनाया है, जिससे यह इतिहास के सबसे सफल अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौतों में से एक बन गया है। प्रोटोकॉल के तहत देशों को ओज़ोन-नष्टकारी पदार्थों के उत्पादन और उपभोग को कम करने के लिए कानूनी ढांचे स्थापित करने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, विकसित देशों ने विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की है ताकि वे पर्यावरण अनुकूल विकल्पों की ओर बढ़ सकें। इस सहयोग ने वैश्विक स्तर पर ओज़ोन परत के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
इसके परिणामस्वरूप, ओज़ोन परत के पुनःस्थापन के संकेत मिले हैं। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने देखा है कि अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन छिद्र में कमी आ रही है, जो प्रोटोकॉल के प्रभावी क्रियान्वयन का प्रमाण है। अनुमान है कि यदि प्रोटोकॉल के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता रहा, तो 21वीं सदी के मध्य तक ओज़ोन परत पूरी तरह से पुनःस्थापित हो जाएगी। यह सफलता वैश्विक पर्यावरणीय सहयोग और सतत विकास के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है।है।
प्रश्न 41. निम्नलिखित पर विचार कीजिए:
बाबर के भारत में आने के फलस्वरूप-
1. उपमहाद्वीप में बारुद के उपयोग की शुरुआत हुई
2. इस क्षेत्र की स्थापत्यकला में मेहराब और गुंबद बनने की शुरुआत हुई
3. इस क्षेत्र में तैमूटी (तिमूरिद) राजवंश स्थापित हुआ
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (b)
बाबर के भारत में आगमन ने न केवल एक नए साम्राज्य की स्थापना की बल्कि उपमहाद्वीप के सैन्य, सांस्कृतिक और स्थापत्य परिदृश्य को भी परिवर्तित किया। 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर मुघल साम्राज्य की नींव रखी गई, जो तैमूरी (तिमूरिद) वंश का प्रतिनिधित्व करता था। यह विजय एक नए प्रशासनिक ढांचे और सांस्कृतिक मिश्रण की शुरुआत थी, जिसने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
बाबर के सैन्य नवाचारों में बारूद के प्रयोग ने युद्ध रणनीतियों को पुनर्परिभाषित किया। वह मध्य एशिया से उन्नत सैन्य तकनीकों के साथ भारत आए, जिसमें तोपों और बारूदी हथियारों का प्रयोग प्रमुख था। इससे न केवल मुघल साम्राज्य का विस्तार हुआ बल्कि भारतीय युद्ध परंपराओं में भी बदलाव आया। इस तकनीक ने भविष्य के मुघल सम्राटों को शक्तिशाली सेनाएं स्थापित करने में सहायता दी।
स्थापत्य कला में बाबर ने तैमूरी शैली के महत्वपूर्ण तत्वों को प्रस्तुत किया, जैसे- मेहराब, गुंबद और जटिल आंगन। यह प्रभाव भारतीय स्थापत्य पर गहराई से पड़ा और मुघल स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरणों जैसे ताजमहल और फतेहपुर सीकरी में परिलक्षित हुआ। बाबर के योगदान ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को विविध और समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 42. भारत सरकार ने नीति (NITI) आयोग की स्थापना निम्नलिखित में से किसका स्थान लेने के लिए की है?
(a) मानव अधिकार आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) विधि आयोग
(d) योजना आयोग
उत्तर: (d)
नीति आयोग, जिसे 1 जनवरी 2015 को स्थापित किया गया, ने योजना आयोग का स्थान लिया। योजना आयोग की प्रमुख भूमिका आर्थिक योजना तैयार करना और संसाधनों के आवंटन में केंद्रीकरण करना था, जिससे राज्यों की स्वायत्तता सीमित हो गई थी। नीति आयोग की स्थापना के साथ ही एक नए संघीय दृष्टिकोण को अपनाया गया, जिसमें राज्यों को नीति निर्माण प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाया गया है। इसका उद्देश्य विकासात्मक नीतियों को अधिक समावेशी, लचीला और पारदर्शी बनाना है।
नीति आयोग का प्रमुख कार्य नीति निर्माण के लिए अभिनव विचार प्रदान करना और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए रणनीतियाँ तैयार करना है। यह आयोग आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय स्थिरता पर केंद्रित नीतियों का विश्लेषण करता है। इसके अलावा, यह राज्य सरकारों के साथ समन्वय करता है ताकि विभिन्न योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
यह आयोग योजना निर्माण के लिए डेटा-आधारित दृष्टिकोण को अपनाता है और ‘एक्शन एजेंडा’ के माध्यम से विकासशील नीतियों को लागू करता है। इसकी भूमिका केवल नीति सुझाव देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्यों को विकासात्मक परियोजनाओं के क्रियान्वयन में भी सहयोग प्रदान करता है। इस प्रकार, नीति आयोग भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करने और लोकतांत्रिक विकास को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 43. आम तौर पर समाचारों में आने वाला रियो+20 (Rio+20) सम्मेलन क्या है?
(a) यह धारणीय विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन है
(b) यह विश्व व्यापार संगठन की मंत्रीवर्गीय (मिनिस्टीरियल) बैठक है
(c) यह जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) का सम्मेलन है
(d) यह जैव विविधता पर कन्वेंशन के सदस्य देशों का सम्मेलन है
उत्तरः (a)
रियो+20 सम्मेलन, जिसे आधिकारिक रूप से “संयुक्त राष्ट्र धारणीय विकास सम्मेलन” के नाम से जाना जाता है, का आयोजन 2012 में रियो डि जनेरियो, ब्राजील में हुआ। यह सम्मेलन 1992 में आयोजित रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ पर हुआ था, जिसमें सतत विकास के लिए वैश्विक एजेंडे की रूपरेखा तैयार की गई थी। रियो+20 का उद्देश्य था, वैश्विक विकास में पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक समानता और आर्थिक समृद्धि के बीच संतुलन स्थापित करना। इस सम्मेलन ने पर्यावरणीय संकटों के समाधान हेतु वैश्विक स्तर पर साझा दृष्टिकोण और कार्यनीतियों को आगे बढ़ाने की दिशा में अहम कदम उठाया।
रियो+20 सम्मेलन का केंद्रीय विषय था “हरित अर्थव्यवस्था” और “धारणीय विकास के लिए संस्थागत ढांचा।” इसमें यह विचार प्रस्तुत किया गया कि विकास केवल आर्थिक मापदंडों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सामाजिक समृद्धि और पर्यावरणीय संरक्षण के समन्वय से परिभाषित किया जाना चाहिए। सम्मेलन में यह स्पष्ट किया गया कि पर्यावरणीय असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए केवल आर्थिक उपाय पर्याप्त नहीं हो सकते। इसके लिए नीति-निर्माण और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता होगी, ताकि टिकाऊ विकास सुनिश्चित किया जा सके।
रियो+20 सम्मेलन ने सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रस्तावना भी की, जो बाद में 2030 तक की वैश्विक विकास रणनीति का आधार बने। यह सम्मेलन यह स्पष्ट करने में सफल रहा कि 21वीं सदी के विकास मॉडल को केवल आर्थिक वृद्धि से परे जाकर, सामाजिक और पर्यावरणीय समृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। रियो+20 ने यह भी दिखाया कि वैश्विक स्तर पर सहयोग और साझेदारी के बिना पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं का समाधान असंभव है। इसके परिणामस्वरूप, यह सम्मेलन भविष्य की वैश्विक नीतियों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसमें विकास के समग्र और टिकाऊ दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी गई।
प्रश्न 44. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति प्रधानमंत्री में निहित है।
2. प्रधानमंत्री, सिविल सेवा बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 53 में स्पष्ट रूप से कहा गया है। संविधान के तहत, राष्ट्रपति भारतीय संघ के संवैधानिक प्रमुख होते हैं और कार्यपालिका की सर्वोच्च शक्ति उनके पास होती है। हालांकि, यह शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के माध्यम से कार्यान्वित होती है। प्रधानमंत्री, जो कि कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद के सदस्य राष्ट्रपति की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं, लेकिन उनके निर्णयों की वैधता राष्ट्रपति के अनुमोदन पर निर्भर करती है। यह सुनिश्चित करता है कि कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति के अधिकारों के तहत रहती है, जबकि प्रधानमंत्री प्रशासन के संचालन में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
सिविल सेवा बोर्ड का अध्यक्ष प्रधानमंत्री नहीं होता है। भारतीय प्रशासनिक ढांचे में, सिविल सेवा बोर्ड का अध्यक्ष कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय का मंत्री होता है, जो सिविल सेवा प्रशासन के सभी मामलों को देखता है। यह बोर्ड भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य सिविल सेवाओं के संबंध में नियमों और नीतियों का निर्धारण करता है। बोर्ड का कार्य सिविल सेवकों के प्रोफेशनल डेवेलपमेंट, उनके करियर प्रबंधन और प्रशासनिक सुधारों को लागू करना है। इस बोर्ड का गठन प्रशासनिक सुधार और दक्षता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया है और इसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार मंत्री करते हैं। यह संरचना प्रशासनिक मामलों में समन्वय और स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 45. ‘गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone)’ शब्द निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में अक्सर समाचारों में देखा जाता है?
(a) भूपृष्ठ के ऊपर वासयोग्य मण्डल की सीमाएं
(b) पृथ्वी के अंदर का वह क्षेत्र, जिसमें शेल गैस उपलब्ध है
(c) बाह्य अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज
(d) मूल्यवान धातुओं से युक्त उल्कापिंडों (मीटिओराइट्स) की खोज
उत्तर: (c)
गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone), जिसे हैबिटेबल ज़ोन भी कहा जाता है, एक खगोलशास्त्रीय अवधारणा है, जो किसी तारे के चारों ओर स्थित उस क्षेत्र को दर्शाती है, जहां ग्रहों पर तापमान न तो अत्यधिक गर्म होता है और न ही अत्यधिक ठंडा होता है, बल्कि जीवन के लिए उपयुक्त होता है। इस क्षेत्र में ग्रहों की सतह पर पानी तरल रूप में मौजूद हो सकता है, जो जीवन के लिए आवश्यक तत्व है। यह क्षेत्र न केवल जीवन की संभावना का आकलन करने में सहायक है, बल्कि यह अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक महत्वपूर्ण बेंचमार्क बन चुका है।
गोल्डीलॉक्स ज़ोन का अध्ययन बाह्य ग्रहों की जीवन-सम्भावना के संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में स्थित ग्रहों पर पानी के तरल रूप में मौजूद होने की संभावना अधिक होती है, जो जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। इस कारण, अंतरिक्ष एजेंसियां जैसे नासा और ईएसए, गोल्डीलॉक्स ज़ोन में स्थित ग्रहों की पहचान और अध्ययन कर रही हैं। ये ग्रह पृथ्वी जैसे जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान कर सकते हैं।
गोल्डीलॉक्स ज़ोन का महत्व पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकटों के संदर्भ में भी बढ़ गया है। जब हम बाह्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं का अध्ययन करते हैं, तो यह पृथ्वी के पारिस्थितिकीय तंत्र और जलवायु को समझने में भी सहायक होता है। यह वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करता है कि जीवन के लिए क्या शर्तें आवश्यक हैं और पृथ्वी पर इन शर्तों को बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। इस तरह, गोल्डीलॉक्स ज़ोन जीवन के अस्तित्व के अध्ययन और पृथ्वी के पर्यावरणीय संरक्षण दोनों के लिए महत्वपूर्ण बन चुका है।
प्रश्न 46. इनमें से किसने अप्रैल 1930 में नमक कानून तोड़ने के लिए तंजौर तट पर एक अभियान संगठित किया था?
(a) वी. ओ. चिंदबरम पिल्लै
(b) सी. राजगोपालाचारी
(c) के. कामराज
(a) ऐनी बेसेंट
उत्तरः (b)
सी. राजगोपालाचारी ने अप्रैल 1930 में तंजौर तट पर नमक कानून तोड़ने के लिए अभियान का आयोजन किया था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में उभरकर सामने आया। यह आंदोलन नमक सत्याग्रह का हिस्सा था, जिसे महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन राजगोपालाचारी ने इसे तमिलनाडु में विस्तार दिया। ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर ने भारतीय जनता को परेशान किया था और यह अभियान उसी कर के खिलाफ था। राजगोपालाचारी का यह कदम जनता के बीच राष्ट्रवादी भावना को और मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था।
तंजौर तट पर यह अभियान सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ प्रतिरोध को संरचित करने का प्रयास था। इस आंदोलन में स्थानीय जनता ने भी सक्रिय भागीदारी की। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किया गया यह प्रतिरोध केवल नमक कानून तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था, जिसने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासकों के खिलाफ एकजुट किया।
राजगोपालाचारी का यह कदम न केवल नमक कानून के खिलाफ विरोध का प्रतीक बनकर उभरा, बल्कि इसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्यों को भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया। उनका यह आंदोलन देशभर में प्रभावी हुआ और भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक संगठित प्रतिरोध को जन्म दिया। इस प्रकार, उनका यह संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान का कारण बना और भारतीयों के भीतर आत्मनिर्भरता और स्वराज के लिए जागरूकता बढ़ाई।
प्रश्न 47. निम्नलिखित परिच्छेद पर विचार कीजिए:
इनमें से किसने कृष्णा नदी की सहायक नदी के दक्षिणी तट पर एक नए नगर की स्थापना की और उस देवता के प्रतिनिधि के रूप में अपने इस नए राज्य पर शासन करने का दायित्व लिया जिसके बारे में माना जाता था कि कृष्णा नदी से दक्षिण की समस्त भूमि उस देवता की है?
(a) अमोघवर्ष प्रथम
(b) बल्लाल द्वितीय
(c) हरिहर प्रथम
(d) प्रतापरुद्र द्वितीय
उत्तरः (c)
हरिहर प्रथम ने कृष्णा नदी की सहायक नदी के दक्षिणी तट पर एक नया नगर स्थापित किया और उस देवता के प्रतिनिधि के रूप में शासन करने का दायित्व लिया, जिसके बारे में माना जाता था कि कृष्णा नदी से दक्षिण की समस्त भूमि उस देवता की है। हरिहर प्रथम और उनके भाई बल्लाल द्वितीय ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी थी, जो बाद में दक्षिण भारत के एक प्रमुख शक्ति केंद्र के रूप में उभरा। हरिहर ने धार्मिक आस्थाओं के आधार पर इस भूमि पर शासन करने का दावा किया और इसे शिव के अनुयायी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे उनके शासन को वैधता मिली। इस धार्मिक दृष्टिकोण के कारण उनके शासन में धर्म और राजनीति का गहरा संबंध था, जो साम्राज्य की स्थिरता और विस्तार के लिए महत्वपूर्ण था।
इस नए नगर की स्थापना से विजयनगर साम्राज्य का राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचा मजबूत हुआ। हंपी, जो बाद में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी बना, इस नगर का केंद्र था। यह क्षेत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि यहां सांस्कृतिक, व्यापारिक और सैन्य गतिविधियाँ भी समृद्ध थीं। हरिहर प्रथम के शासन में, उन्होंने दक्षिण भारत में शैव धर्म के प्रचार और प्रसार को प्राथमिकता दी और यह उनके राज्य के सांस्कृतिक दृष्टिकोण को उजागर करता है। उनके द्वारा स्थापित नगर में वाणिज्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ समृद्ध हुईं, जिससे विजयनगर साम्राज्य को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में पहचान मिली।
राजनीतिक दृष्टि से, हरिहर प्रथम का शासन विजयनगर साम्राज्य के विकास में महत्वपूर्ण था। उन्होंने राज्य की प्रशासनिक प्रणाली को सुधारने के लिए कई कदम उठाए और सम्राटों के अधिकार को मजबूत किया। उनका यह कदम स्थानीय शासकों और साम्राज्य के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक था। उनके शासन ने राज्य में सैन्य और प्रशासनिक शक्ति को बढ़ाया, जिससे विजयनगर साम्राज्य का आकार और शक्ति दोनों ही बढ़े। यह नगर न केवल उनके शासन के लिए, बल्कि समृद्ध और शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य के निर्माण के लिए भी एक स्थायी नींव साबित हुआ।
प्रश्न 48. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू थीं।
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बदरुद्दीन तय्यब जी थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
बदरुद्दीन तय्यब जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले मुस्लिम अध्यक्ष थे, जिनका कार्यकाल 1887 में हुआ था। उन्होंने अलीगढ़ कांग्रेस सत्र की अध्यक्षता की, जो उस समय भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना थी। तय्यब जी के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी को एक नया आकार मिला और यह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सांप्रदायिक एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने मुस्लिमों को अपने राजनीतिक मंच पर स्थान दिया, जिससे राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ। उनका कार्यकाल इस दृष्टिकोण से उल्लेखनीय था कि उन्होंने धार्मिक और सामाजिक एकता को प्रोत्साहित किया और भारतीय राजनीति में मुस्लिम समुदाय की भूमिका को स्थापित किया।
सरोजिनी नायडू, हालांकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रमुख नेता थीं, लेकिन वह कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष नहीं थीं। 1917 में एनी बेसेंट को यह सम्मान प्राप्त हुआ था। सरोजिनी नायडू का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया और समाज में समानता की दिशा में कई कदम उठाए। उनकी नेतृत्व क्षमता और समाज सुधारक दृष्टिकोण ने भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाया। वह भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय एकता की प्रवक्ता के रूप में भी जानी जाती हैं।
सरोजिनी नायडू का कार्य स्वतंत्रता संग्राम में खास तौर पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर था। उन्होंने भारतीय महिलाओं को समानता और अवसरों की दिशा में प्रेरित किया। वहीं, एनी बेसेंट ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला और उनका नेतृत्व कांग्रेस की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। सरोजिनी नायडू के योगदान को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाने के रूप में देखा जाता है।।
प्रश्न 49. ‘हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फंड)’ के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/है?
1. यह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने हेतु अनुकूलन और न्यूनीकरण पद्धतियों में सहायता देने के आशय से बनी है।
2. इसे UNEP, OECD, एशिया विकास बैंक और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में स्थापित किया गया है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तरः (a)
हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फंड) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए एक प्रमुख वैश्विक पहल है। इसे यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के तहत स्थापित किया गया है और इसका मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता प्रदान करना है। यह निधि उन देशों को मदद करती है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। इसके माध्यम से इन देशों में जलवायु अनुकूलन और न्यूनीकरण के उपायों को लागू करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं। ग्रीन क्लाइमेट फंड जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के रूप में कार्य करता है और इसे जलवायु संकट के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
ग्रीन क्लाइमेट फंड का प्रशासन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (ADB) के सहयोग से किया जाता है। ये संगठन ग्रीन क्लाइमेट फंड की दिशा और कार्यक्षेत्र का निर्धारण करने में सहायक हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि निधि के संसाधन सही तरीके से उपयोग हों। ग्रीन क्लाइमेट फंड का उद्देश्य ना केवल जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे नुकसान को कम करना है, बल्कि इसका लक्ष्य देशों के बीच दीर्घकालिक जलवायु सहयोग को भी बढ़ावा देना है। यह निधि जलवायु परिवर्तन से संबंधित रणनीतियों के कार्यान्वयन में सहायक होती है, ताकि विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।
ग्रीन क्लाइमेट फंड ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए विश्व स्तर पर एक पारदर्शी और प्रभावी तंत्र स्थापित किया है। यह निधि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित देशों को अनुकूलन, न्यूनीकरण और पर्यावरणीय प्रभावों के मूल्यांकन में सहायता प्रदान करती है। ग्रीन क्लाइमेट फंड के माध्यम से न केवल जलवायु वित्तीय नीतियों को सशक्त किया गया है, बल्कि यह नीति निर्माण में वैश्विक सहयोग की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इसकी सहायता से विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी संसाधन मिलते हैं, जिससे वे भविष्य में जलवायु संकट का मुकाबला करने में सक्षम हो सकें।
प्रश्न 50. वर्ष 2014 के लिए इंदिरा गाँधी शान्ति, निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार निम्नलिखित में से किस एक को दिया गया था?
(a) भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र
(b) भारतीय विज्ञान संस्थान
(c) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
(d) टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान
उत्तर: (c)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को वर्ष 2014 में इंदिरा गांधी शान्ति, निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार दिया गया था। यह पुरस्कार ISRO द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में किए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया, विशेष रूप से शांति और विकास को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका के लिए। ISRO ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में योगदान किया, जिसमें विकसित देशों के उपग्रहों को प्रक्षिप्त करना और पर्यावरणीय निगरानी मिशन शामिल थे। इन कार्यों के माध्यम से, ISRO ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग को बढ़ावा दिया है, साथ ही वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी तकनीकी साधन उपलब्ध कराए।
ISRO का मंगलयान मिशन और चंद्रयान मिशन अंतरिक्ष में भारत की प्रमुख उपलब्धियों में से हैं, जो न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता को दर्शाते हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर विकसित देशों के समकक्ष भारत की तकनीकी क्षमता को भी स्थापित करते हैं। इन अभियानों के माध्यम से, ISRO ने दुनिया भर में भारत को एक शक्तिशाली वैज्ञानिक राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया। यह पुरस्कार ISRO की सफलता और इसके योगदान को मान्यता देने के रूप में आया, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है।
इसके अतिरिक्त, ISRO ने विकसित देशों के साथ मिलकर कई अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं में सहयोग किया, जिससे वैश्विक शांति और सुरक्षा में योगदान मिला। यह पुरस्कार ISRO की अंतरिक्ष तकनीकी प्रगति और विकासशील देशों के लिए इसके योगदान को भी प्रकट करता है। ISRO द्वारा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के सही उपयोग से भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है। इसके प्रयासों से, विकासशील देशों के लिए भी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग संभव हो पाया है, जिससे ये देश अपने सामाजिक और आर्थिक विकास में इसका लाभ उठा सकते हैं।
प्रश्न 51. कैबिनेट मिशन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
1. इसने एक संघीय सरकार के लिए सिफ़ारिश की।
2. इसने भारतीय न्यायालयों की शक्तियों का विस्तार किया।
3. इसने ।CS में और अधिक भारतीयों के लिए उपबंध किया।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) कोई नहीं
उत्तरः (a)
कैबिनेट मिशन 1946 एक महत्वपूर्ण ब्रिटिश पहल थी, जिसका उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय संविधान की संरचना को आकार देना था। इस मिशन ने भारत को एक संघीय राज्य के रूप में बनाने की सिफारिश की। संघीय ढांचे के तहत, यह प्रस्ताव था कि केंद्रीय सरकार के पास सीमित और विशेष शक्तियाँ होंगी, जबकि राज्यों को अपनी स्वायत्तता मिलेगी। यह सिफारिश भारतीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह ब्रिटिश साम्राज्य के एकात्मक दृष्टिकोण से हटकर भारतीय प्रदेशों की सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधता को मान्यता देती थी।
हालाँकि, कैबिनेट मिशन ने भारतीय न्यायपालिका की शक्तियों में किसी भी प्रकार के विस्तार की सिफारिश नहीं की थी। इसके बजाय, इसका मुख्य ध्यान संविधान की संरचना और केंद्र-राज्य संबंधों को निर्धारित करने पर था। यह मिशन भारतीय नागरिक सेवाओं में अधिक भारतीयों की नियुक्ति से संबंधित सिफारिश भी नहीं करता था, बल्कि इसके उद्देश्यों में केवल संविधान निर्माण प्रक्रिया की दिशा और स्वरूप तय करना था।
कैबिनेट मिशन ने भारत में ब्रिटिश शासन के बाद के संक्रमणकालीन क्षण को सही दिशा देने की कोशिश की। इसने भारतीय संघ की संरचना को संघीय रूप में परिभाषित किया, जो भारत की विविधता और विविध राजनीतिक तथा सामाजिक समूहों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक था। इस मिशन के परिणामस्वरूप भारतीय संघ की स्थापनी में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनका प्रभाव भारतीय राजनीति और संविधान निर्माण में आज भी देखा जाता है।
प्रश्न 52. निम्नलिखित नैशनल पार्कों में से किस एक की जलवायु उष्णकटिबंधीय से उपोष्ण, शीतोष्ण और आर्कटिक तक परिवर्तित होती है?
(a) कंचनजंघा नैशनल पार्क
(b) नंदादेवी नैशनल पार्क
(c) नेवरा वैलि नैशनल पार्क
(d) नामदफा नैशनल पार्क
उत्तरः (d)
नामदफा राष्ट्रीय उद्यान, अरुणाचल प्रदेश में स्थित, एक जैविक विविधता से भरपूर क्षेत्र है जो अद्वितीय जलवायु परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। इस उद्यान का जलवायु क्षेत्र उष्णकटिबंधीय से लेकर उपोष्ण, शीतोष्ण और आर्कटिक तक फैला हुआ है। यह विविधता, जो उच्चतम से निम्नतम ऊँचाईयों तक मौजूद है, इस उद्यान को जैविक दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध और अद्वितीय बनाती है। विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में वनस्पति और जीव-जन्तु अलग-अलग होते हैं, जिससे यह क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र की अध्ययन के लिए अनुकूल बनता है।
नामदफा के निचले हिस्से में उष्णकटिबंधीय जलवायु का प्रभुत्व है, जो उच्च वनस्पति और विविध जीवों का घर है। जैसे-जैसे हम उच्चतर क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं, जलवायु में शीतोष्ण और आर्कटिक बदलाव होते हैं। यह जलवायु परिवर्तन भौगोलिक भिन्नताओं और मौसम के बदलावों के कारण उत्पन्न होता है। उच्च इलाकों में पाए जाने वाले शीतोष्ण और आर्कटिक जलवायु से क्षेत्र की जैविक विविधता में अनुकूलन की प्रक्रियाएँ स्पष्ट होती हैं।
नामदफा राष्ट्रीय उद्यान की जलवायु विविधता इसे वैश्विक जैव विविधता संरक्षण के दृष्टिकोण से एक आदर्श स्थल बनाती है। यहाँ की भिन्न-भिन्न जलवायु परिस्थितियाँ इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी तंत्र की जटिलता और समृद्धि को दर्शाती हैं। यह उद्यान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने, पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में शोध करने और जैविक संरक्षण के उपायों को लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह जलवायु और जैव विविधता अध्ययन में अनमोल योगदान करता है।
प्रश्न 53. ऐम्नेस्टी इंटरनैशनल क्या है?
(a) गृहयुद्धों के शरणार्थियों की मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र का एक अभिकरण
(b) विश्वव्यापी मानव अधिकार आंदोलन
(c) अति निर्धन लोगों की मदद के लिए एक गैर-सरकारी स्वैच्छिक संगठन
(d) युद्ध से विनष्ट हुए क्षेत्रों में चिकित्सा आकस्मिकताओं को पूरा करने के लिए एक अंतर-सरकारी अभिकरण
उत्तर: (b)
ऐम्नेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) एक वैश्विक मानवाधिकार संगठन है, जिसे 1961 में स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा करना है, विशेष रूप से उन व्यक्तियों और समूहों के लिए जो उत्पीड़न, भेदभाव और अन्य अधिकारों के उल्लंघन का सामना कर रहे होते हैं। यह संगठन सभी प्रकार के उत्पीड़न और अत्याचार के खिलाफ काम करता है, चाहे वह शारीरिक, मानसिक या सांस्कृतिक उत्पीड़न हो। ऐम्नेस्टी इंटरनेशनल का मुख्य कार्य उत्पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना और सरकारों पर दबाव डालकर उनकी स्थिति में सुधार लाना है।
ऐम्नेस्टी इंटरनेशनल का कार्य वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है और यह मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को उजागर करने के लिए शोध और दस्तावेज़ीकरण पर जोर देता है। संगठन देशों में हो रहे राजनीतिक उत्पीड़न, दमन, जेल में बंद राजनीतिक कैदियों, धर्म, लिंग या जाति के आधार पर भेदभाव और युद्ध अपराधों के खिलाफ संघर्ष करता है। इसके अभियानों में सार्वजनिक जन जागरूकता बढ़ाने के लिए पत्र-लेखन अभियान, विरोध प्रदर्शन और शांति के लिए वकालत की जाती है।
संगठन की ताकत उसकी वैश्विक सदस्यता और नेटवर्क में निहित है। यह सदस्य दुनिया भर के विभिन्न देशों में सक्रिय रूप से कार्य करते हैं, जो स्थानीय स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों को उजागर करने और सुधारात्मक उपायों के लिए संघर्ष करते हैं। ऐम्नेस्टी इंटरनेशनल का प्रमुख उद्देश्य मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानून का पालन कराना और दोषी व्यक्तियों को न्याय दिलाना है। इसके द्वारा किए गए अभियानों का प्रभाव कई देशों में देखा गया है, जहां मानवाधिकार की स्थिति में सुधार हुआ है।
प्रश्न 54. भारत के कला और पुरातात्त्विक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस एक का सबसे पहले निर्माण किया गया था?
(a) भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर
(b) धौली स्थित शैलकृत हाथी
(c) महाबलिपुरम स्थित शैलकृत स्मारक
(d) उदयगिरि स्थित वराह मूर्ति
उत्तरः (b)
धौली स्थित शैलकृत हाथी, जो उड़ीसा के भुवनेश्वर के निकट स्थित है, भारतीय कला और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह शिल्पकला मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल की एक विशिष्ट कृति है, जो उनके बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण और अहिंसा के सिद्धांत को प्रदर्शित करता है। इसे विशेष रूप से शांति और धर्म के प्रचार के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह शैलकृत हाथी सम्राट अशोक के धर्म नीति की पुष्टि करता है, जिसके तहत उन्होंने अपने साम्राज्य में अहिंसा और समता को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
शैलकृत हाथी की संरचना न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह मौर्य कला के विशेषताओं का भी परिचायक है। यह शिल्प, सम्राट अशोक के शाही अभिलेखों के साथ-साथ उनके प्रशासनिक दृष्टिकोण और उनकी नीति को दर्शाता है। धौली में स्थित इस शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि अशोक ने अपने शांति-संवर्धन प्रयासों में कला और स्थापत्य का महत्वपूर्ण उपयोग किया। शैलकृत हाथी का निर्माण उनके शासन के आंतरिक और बाहरी दोनों पहलुओं को प्रदर्शित करता है।
अशोक द्वारा निर्मित यह शैलकृत हाथी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह मौर्य साम्राज्य के सशक्तीकरण का प्रतीक है और भारतीय कला में धार्मिक और सांस्कृतिक तत्वों का संगम है। इस कृति के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि मौर्य काल में कला का उद्देश्य सिर्फ सुंदरता या सजावट तक सीमित नहीं था, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक प्रभावी माध्यम था। यही कारण है कि धौली शैलकृत हाथी भारतीय पुरातत्त्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
प्रश्न 55. भारतीय इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से सामंती व्यवस्था का/के अनिवार्य तत्त्व है/हैं?
1. अत्यंत सशक्त केंद्रीय राजनीतिक सत्ता और अत्यंत दुर्बल प्रांतीय अथवा स्थानीय राजनीतिक सत्ता
2. भूमि के नियंत्रण तथा स्वामित्व पर आधारित प्रशासनिक संरचना का उदय
3. सामंत तथा उसके अधिपति के बीच स्वामी-दास संबंध का बनना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (b)
सामंती व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण तत्त्व था अत्यधिक सशक्त केंद्रीय सत्ता के साथ अत्यंत दुर्बल प्रांतीय या स्थानीय राजनीतिक सत्ता। इस व्यवस्था में राज्य के केंद्रीय शासक की शक्ति बहुत सशक्त होती थी, जबकि स्थानीय स्तर पर सत्ता का अधिकांश भाग सामंतों और जमींदारों के हाथों में होता था। यह व्यवस्था भूमि के स्वामित्व और शोषण पर आधारित होती थी, जहां सामंत स्थानीय प्रशासन के सभी मामलों को नियंत्रित करते थे, जैसे कि कर वसूली और न्यायिक कार्य। इससे सामंतों को अपनी शक्ति बनाए रखने में मदद मिलती थी, जबकि केंद्रीय सरकार का नियंत्रण केवल सीमित क्षेत्रों तक ही होता था।
भूमि के स्वामित्व पर आधारित प्रशासनिक संरचना इस व्यवस्था का दूसरा महत्वपूर्ण तत्त्व था। सामंती व्यवस्था में, भूमि पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति या सामंतों को राज्य द्वारा राजस्व वसूलने का अधिकार होता था। इन सामंतों को अक्सर अपने अधीनस्थों से कर वसूलने के बदले में भूमि दी जाती थी। यह प्रणाली सामाजिक संरचना और सत्ता की शक्ति को स्थापित करने का एक प्रभावी तरीका था, जिसमें किसान और श्रमिक वर्ग शोषित होते थे।
तीसरे तत्त्व के रूप में सामंत और उनके अधिपतियों के बीच स्वामी-दास संबंध का निर्माण हुआ। सामंत अपनी भूमि और संसाधनों पर नियंत्रण रखने के कारण स्थानीय लोगों पर अत्यधिक शोषण करते थे। इस शोषणकारी संबंधों का उद्देश्य न केवल भूमि का नियंत्रण बनाए रखना था, बल्कि सामंतों के अधीन काम करने वाले लोगों को मानसिक और भौतिक रूप से दबाना था। इन संबंधों की स्थिरता ने सामंती व्यवस्था को एक प्रभावी और लंबे समय तक चलने वाली सामाजिक और राजनीतिक प्रणाली में परिवर्तित किया।
प्रश्न 56. ‘बायोकार्बन फंड इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल फॉरेस्ट लैंडस्केप्स (BioCarbon Fund Initiative for Sustainable Forest Landscapes) का प्रबंधन निम्नलिखित में से कौन करता है?
(a) एशिया विकास बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
(d) विश्व बैंक
उत्तरः (d)
बायोकार्बन फंड इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल फॉरेस्ट लैंडस्केप्स का प्रबंधन विश्व बैंक द्वारा किया जाता है। यह फंड विशेष रूप से विकासशील देशों में वनों के संरक्षण और पुनर्स्थापन को प्रोत्साहित करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है। इसका उद्देश्य वन संसाधनों के सतत प्रबंधन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है।
यह पहल कार्बन क्रेडिट बाजार के माध्यम से वित्तीय समर्थन प्रदान करती है, जिससे देश वनों के संरक्षण के लिए आर्थिक रूप से प्रोत्साहित होते हैं। इसमें पुनर्वनीकरण, वन्यजीव संरक्षण और भूमि उपयोग में स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा दिया जाता है। विश्व बैंक इन परियोजनाओं के लिए तकनीकी सहायता, नीति निर्माण और निगरानी प्रदान करता है।
विश्व बैंक के नेतृत्व में यह पहल वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह फंड पर्यावरणीय लाभ के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार और आर्थिक विकास के अवसर भी प्रदान करता है, जिससे सतत विकास को समर्थन मिलता है।
प्रश्न 57. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है?
1. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एशिया पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन)
2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स)
3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) भारत इनमें से किसी का सदस्य नहीं है
उत्तर: (b)
भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) का सदस्य है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक मंच है। यह सम्मेलन सुरक्षा, आर्थिक विकास और सतत विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करता है। भारत की भागीदारी से क्षेत्रीय स्थिरता और कूटनीतिक प्रभाव में वृद्धि हुई है। भारत ने इस मंच पर आतंकवाद विरोधी उपायों, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (ASEAN) का सदस्य न होते हुए भी भारत इस संगठन के साथ विशेष संवाद साझेदारी रखता है। ASEAN के साथ भारत के व्यापारिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा संबंध गहरे हैं, विशेष रूप से “ASEAN-भारत रणनीतिक साझेदारी” के तहत। भारत के साथ व्यापार और निवेश के अवसर ASEAN देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, भारत ASEAN क्षेत्र में सतत विकास और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए भी सक्रिय है।
भारत एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) का सदस्य नहीं है। APEC मुख्य रूप से व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने वाला आर्थिक मंच है, जिसमें भारत की भागीदारी सीमित है। हालांकि, भारत अन्य क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग मंचों जैसे BIMSTEC और RCEP में सक्रिय रूप से शामिल है। ये मंच भारत के आर्थिक विकास और क्षेत्रीय कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 58. भारत में इस्पात उत्पादन उद्योग को निम्नलिखित में से किसके आयात की अपेक्षा होती है?
(a) शोरा
(b) शैल फ़ॉस्फेट (रॉक फ़ॉस्फेट)
(c) कोककारी (कोकिंग) कोयला
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तरः (c)
भारत में इस्पात उत्पादन के लिए आवश्यक प्रमुख कच्चे माल में कोकिंग कोयला एक अनिवार्य घटक है। यह विशेष प्रकार का कोयला है, जिसमें उच्च कार्बन सामग्री और कम सल्फर एवं राख होती है, जो इसे ब्लास्ट फर्नेस में उपयोग के लिए आदर्श बनाती है। कोकिंग कोयले का उपयोग लौह अयस्क को पिघलाने और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात के निर्माण में किया जाता है। इसका ऊर्जा दक्षता और उच्च तापमान सहनशीलता इस्पात उद्योग की उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में कोकिंग कोयले का घरेलू उत्पादन औद्योगिक मांग के अनुरूप नहीं है, विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोयले के लिए। इस कारण से भारत ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस और अन्य देशों से बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। ये देश उच्च गुणवत्ता वाला कोयला प्रदान करते हैं, जो ब्लास्ट फर्नेस में स्थिर और कुशल उत्पादन सुनिश्चित करता है। इस आयात पर निर्भरता से उत्पादन लागत पर प्रभाव पड़ता है, जिससे इस्पात उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।
इस पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत में घरेलू कोकिंग कोयले के उत्पादन को बढ़ाने और तकनीकी नवाचार पर जोर दिया जा रहा है। खनन तकनीकों में सुधार और संसाधन अन्वेषण के लिए रणनीतिक कदम उठाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वैकल्पिक कच्चे माल और इस्पात उत्पादन तकनीकों के अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे इस्पात उद्योग की आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
प्रश्न 59. भारत के संविधान में पांचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के उपबंध निम्नलिखित में से किसलिए किए गए हैं?
(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के लिए
(b) राज्यों के बीच सीमाओं के निर्धारण के लिए
(c) पंचायतों की शक्तियों, प्राधिकारों और उत्तरदायित्वों के निर्धारण के लिए
(d) सभी सीमावतीं राज्यों के हितों के संरक्षण के लिए
उत्तरः (a)
पाँचवीं अनुसूची भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों के हितों की सुरक्षा और उनके क्षेत्रों के प्रभावी प्रशासन के लिए तैयार की गई है। यह अनुसूची उन क्षेत्रों के प्रशासनिक ढांचे को परिभाषित करती है, जहां अनुसूचित जनजातियों की बड़ी आबादी निवास करती है। इसके तहत, राष्ट्रपति को इन क्षेत्रों के प्रशासन और विकास के लिए विशिष्ट प्रावधान बनाने का अधिकार दिया गया है। इन क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष योजनाएँ और नीतियाँ लागू की जाती हैं, जिससे जनजातीय समुदायों के जीवन स्तर में सुधार हो सके।
छठी अनुसूची का उद्देश्य विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में जनजातीय समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करना है। यह अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त प्रशासनिक परिषदों के अधीन रखती है, जिनके पास भूमि, संसाधन प्रबंधन, कानून व्यवस्था और विकासात्मक गतिविधियों पर महत्वपूर्ण अधिकार होते हैं। इन परिषदों को अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक पहचान के अनुरूप निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गई है, जिससे वे अपने समुदाय के हितों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकें।
इन दोनों अनुसूचियों के माध्यम से भारतीय संविधान ने अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त ढांचा तैयार किया है। यह व्यवस्था जनजातीय क्षेत्रों के समावेशी विकास, उनकी परंपराओं के संरक्षण और उनके अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इन प्रावधानों के तहत जनजातीय समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और शासन में समान अवसर प्रदान किए जाते हैं, जिससे वे राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सकें।
प्रश्न 60. संघ की सरकार (यूनियन गवर्नमेंट) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. राजस्व विभाग, संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले केंद्रीय बजट को तैयार करने के लिए उत्तरदायी है।
2. भारत की संसद के प्राधिकरण (ऑथराइज़ेशन) के बिना कोई धन भारत की संचित निधि से निकाला नहीं जा सकता।
3. लोक लेखा से किए जाने वाले सभी संवितरणों (डिस्बर्समेंट्स) के लिए भी भारत की संसद के प्राधिकरण की आवश्यकता होती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (c)
केंद्रीय बजट की तैयारी वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राजस्व विभाग के अधीन होती है, जो सरकार की वित्तीय नीतियों, कराधान नीतियों और आर्थिक रणनीतियों के अनुरूप बजट का मसौदा तैयार करता है। यह प्रक्रिया आर्थिक डेटा, राजस्व पूर्वानुमान, व्यय प्राथमिकताओं और विकासात्मक लक्ष्यों के विश्लेषण पर आधारित होती है। बजट की तैयारी में सरकार के विविध विभागों से परामर्श किया जाता है ताकि समग्र आर्थिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित किया जा सके।
भारत की संचित निधि से कोई भी धनराशि निकालने के लिए संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है। यह निधि देश के सभी राजस्व संग्रहण और सरकारी खर्च का केंद्रीय भंडार है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत संरक्षित किया गया है। संसद के अनुमोदन के बिना इस निधि से कोई व्यय नहीं किया जा सकता, जो वित्तीय अनुशासन और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करता है। यह प्रक्रिया सरकारी धन के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाती है।
लोक लेखा से किए जाने वाले सभी संवितरणों के लिए भी संसद का प्राधिकरण अनिवार्य होता है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि सरकार के व्यय सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन के सिद्धांतों के अनुरूप हों। संवितरण अनुमोदन प्रक्रिया से संसदीय निगरानी मजबूत होती है, जिससे वित्तीय नीति के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और कुशलता बनी रहती है। यह लोकतांत्रिक शासन में वित्तीय जवाबदेही का एक महत्वपूर्ण तत्व है।
प्रश्न 61. निम्नलिखित में से कौन भारत के संविधान का अभिरक्षक (कस्टोडियन) है?
(a) भारत का राष्ट्रपति
(b) भारत का प्रधानमंत्री
(c) लोक सभा सचिवालय
(d) भारत का उच्चतम न्यायालय
उत्तरः (d)
भारत का उच्चतम न्यायालय संविधान का अभिरक्षक है, जो देश के सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के रूप में संविधान की व्याख्या और संरक्षण के लिए उत्तरदायी है। इसकी प्राथमिक भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सभी कानून, नीतियां और प्रशासनिक कार्य संविधान के अनुरूप हों। इसके द्वारा की जाने वाली न्यायिक समीक्षा प्रक्रिया संविधान के सर्वोच्च स्थान को बनाए रखती है और किसी भी प्रकार के संवैधानिक उल्लंघन को रोकती है।
उच्चतम न्यायालय के पास संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की सुनवाई करने और उन्हें निरस्त करने का अधिकार है। यह अधिकार लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह न्यायिक समीक्षा के माध्यम से प्रशासनिक शक्ति पर नियंत्रण रखता है और सुनिश्चित करता है कि सरकार के कार्य संविधान के ढांचे के भीतर ही रहें।
इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय कानूनी मिसालें स्थापित करता है, जो भविष्य में समान मामलों के निर्णय के लिए आधार बनती हैं। इसके निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बाध्यकारी होते हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी डालते हैं, जिससे भारत में संवैधानिक शासन और न्याय का संरक्षण सुनिश्चित होता है।
प्रश्न 62. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. त्वरित सिचाई लाभ कार्यक्रम 1996-97 में गरीब किसानों को ऋण सहायता उपलब्ध कराने के लिए आरंभ किया गया था।
2. कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1974-75 में जल-उपयोग दक्षता के विकास के लिए शुरु किया गया था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तरः (b)
कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम (CADA) 1974-75 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य जल-उपयोग दक्षता में सुधार करना था। यह कार्यक्रम उन क्षेत्रों में लागू किया गया था जहां सिंचाई प्रणालियों का निर्माण और सुधार जरूरी था। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से सिंचाई नहरों की मरम्मत, जल वितरण प्रणालियों का सुधार और सिंचित क्षेत्रों की जल-प्रबंधन क्षमता में वृद्धि करना था। इस कार्यक्रम ने जल के कुशल उपयोग और कृषि उत्पादकता में वृद्धि को प्राथमिकता दी, ताकि किसानों को अधिक लाभ मिल सके।
CADA का उद्देश्य सिंचाई के प्रभावी उपयोग के माध्यम से कृषि उत्पादन में सुधार करना था। इसका प्रमुख ध्यान सिंचाई परियोजनाओं के तहत जल के वितरण को समान और समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित करना था, जिससे किसानों को जल का अधिकतम लाभ मिल सके। साथ ही, किसानों को जल संरक्षण और सिंचाई तकनीकों के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया।
यह कार्यक्रम जल-प्रबंधन, जल वितरण की प्रणाली और सिंचाई जल के अधिक कुशल उपयोग पर केंद्रित था, जिससे कृषि क्षेत्र में टिकाऊ विकास को बढ़ावा मिला। इसके तहत जल की उपलब्धता को बढ़ाने के साथ-साथ जल का उपयोग अनुकूलित करने के लिए स्थानीय स्तर पर विशेष उपाय किए गए। CADA ने जल-उपयोग में सुधार और कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया, जिससे किसानों को स्थायी रूप से लाभ हुआ।
प्रश्न 63. जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति का गठन निम्नलिखित में से किसके अधीन किया गया है?
(a) खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006
(b) माल के भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम [जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन ऐंड प्रोटेक्शन) ऐक्ट], 1999
(c) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
(d) वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
उत्तरः (c)
जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति (GEAC) का गठन भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत किया गया है। इस समिति का मुख्य उद्देश्य आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उनकी उत्पन्न सामग्री के पर्यावरणीय और जैविक सुरक्षा आकलन को सुनिश्चित करना है। GEAC का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग से संबंधित कोई भी तकनीकी पहलू पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले। यह समिति सुनिश्चित करती है कि सभी प्रयोग और उत्पादन जैव विविधता के संरक्षण के साथ-साथ समाज में सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए किए जाएं।
GEAC के तहत, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों, पौधों, जानवरों और अन्य जीवों के व्यावसायिक उपयोग के लिए अनुमोदन प्रक्रिया स्थापित की गई है। यह समिति इन उत्पादों के वितरण से पहले उनके पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। GEAC की भूमिका व्यापक रूप से पर्यावरणीय नीतियों और अनुप्रयोगों में शामिल होती है, जिनमें आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की कृषि में लाना भी शामिल है।
समिति ने कई मामलों में सुरक्षा उपायों और दिशा-निर्देशों के साथ-साथ जोखिम मूल्यांकन की प्रक्रिया भी विकसित की है। यह सुनिश्चित करती है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित उत्पादों के व्यावसायिक उपयोग से पहले उन पर व्यापक अध्ययन और नियंत्रण किया गया हो। GEAC के द्वारा प्रस्तावित दिशा-निर्देशों को लागू करके, भारत में जैव सुरक्षा मानकों को उच्च स्तर पर बनाए रखा जाता है, जिससे जैविक खतरे और पर्यावरणीय क्षति से बचाव सुनिश्चित होता है।
प्रश्न 64. मेकाँग-गंगा सहयोग में, जो छः देशों की पहल है, निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं?
1. बांग्लादेश
2. कम्बोडिया
3. चीन
4. म्यांमार
5. थाईलैंड
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) 2, 3 और 4
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 5
उत्तर: (c)
मेकांग-गंगा सहयोग (MGC) एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय पहल है जो मेकांग और गंगा नदी बेसिन से जुड़े देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देती है। इस पहल में छह देशों के बीच संवाद और सहयोग पर बल दिया जाता है, जिनमें भारत, बांग्लादेश, कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार और थाईलैंड शामिल हैं। यह सहयोग मुख्य रूप से व्यापार, पर्यटन, शिक्षा और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में आपसी लाभ के लिए कार्य करता है।
इस पहल के तहत बांग्लादेश और कम्बोडिया जैसे देश सक्रिय रूप से शामिल हैं, क्योंकि ये देश मेकांग-गंगा क्षेत्र के भूगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन देशों की भागीदारी क्षेत्रीय एकीकरण, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है। विशेष रूप से, बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति इसे गंगा के साथ जोड़ती है, जबकि कम्बोडिया मेकांग नदी के प्रवाह क्षेत्र में स्थित है।
चीन इस पहल का सदस्य नहीं है क्योंकि इसका मेकांग नदी पर प्रभाव मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे और आर्थिक परियोजनाओं के माध्यम से है, न कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए बहुपक्षीय मंच के रूप में। मेकांग-गंगा सहयोग का उद्देश्य उन देशों के बीच सहयोग को मजबूत करना है जो भूगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से मेकांग और गंगा से जुड़े हुए हैं। इस प्रकार, भारत और उसके साझेदार देशों के बीच यह सहयोग क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 65. समाचारों में प्रायः आने वाला ‘बासल III (Basel III) समझौता’ या सरल शब्दों में ‘बासल III’-
(a) जैव विविधता के संरक्षण और धारणीय (सस्टेनेबल) उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्यनीतियां विकसित करने का प्रयास करता है
(b) बैंकिंग क्षेत्रों के, वित्तीय और आर्थिक दबावों का सामना करने के सामर्थ्य को उन्नत करने तथा जोखिम प्रबंधन को उन्नत करने का प्रयास करता है
(c) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करता है किंतु विकसित देशों पर अपेक्षाकृत भारी बोझ रखता है
(a) विकसित देशों से निर्धन देशों को प्रौद्योगिकी के अंतरण का प्रयास करता है ताकि वे प्रशीतन में प्रयुक्त होने वाले क्लोरोफ्लुओरोकार्बन के स्थान पर हानिरहित रसायनों का प्रयोग कर सकें
उत्तर: (b)
बासल III समझौता एक वैश्विक नियामक ढांचा है जिसे बेसल बैंकिंग पर्यवेक्षण समिति द्वारा विकसित किया गया है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और मजबूती को बढ़ाना है। यह समझौता विशेष रूप से बैंकों के पूंजी पर्याप्तता मानकों को मजबूत करने पर केंद्रित है, जिससे वे आर्थिक संकटों का सामना कर सकें। इसका लक्ष्य बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली पूंजी बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि वित्तीय अस्थिरता के समय उनकी साख और संचालन प्रभावित न हों।
इसके अंतर्गत, बैंकों को न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं के साथ-साथ तरलता मानकों का पालन करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि तरलता कवरेज अनुपात (LCR) और नेट स्थिर वित्तपोषण अनुपात (NSFR)। ये मानक यह सुनिश्चित करते हैं कि बैंकों के पास पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियां हों ताकि वे किसी भी वित्तीय संकट के समय अपनी वित्तीय बाध्यताओं को पूरा कर सकें। इसके अलावा, यह ढांचा बैंकों को अधिक सशक्त जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए भी प्रेरित करता है।
बासल III की दिशा में किए गए सुधारों ने वैश्विक बैंकिंग क्षेत्र को अधिक लचीला और पारदर्शी बनाया है। यह ढांचा वित्तीय संकटों के प्रभाव को कम करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में सहायक रहा है। इसके कठोर मानकों ने बैंकों के पूंजी प्रबंधन, जोखिम मूल्यांकन और तरलता प्रबंधन के तरीकों को बेहतर बनाया है, जिससे वैश्विक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को मजबूत किया गया है।
प्रश्न 66. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. पूरे वर्ष 30° N और 60° S अक्षांशों के बीच बहने वाली हवाएं पछुआ हवाएं (वेस्टरलीज़) कहलाती हैं।
2. भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में शीतकालीन वर्षा लाने वाली आर्द्र वायु संहतियां (मॉइस्ट एयर मासेज़) पछुआ हवाओं के भाग हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
पच्छुआ हवाएं (वेस्टरलीज़) वे प्रमुख पवन प्रवाह हैं जो 30° उत्तर और 60° दक्षिण अक्षांशों के बीच पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहती हैं। ये हवाएं पृथ्वी के घूर्णन और तापीय अंतर के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं और वैश्विक पवन प्रणाली का महत्वपूर्ण घटक बनती हैं। समशीतोष्ण क्षेत्रों में इन हवाओं का प्रभाव विशेष रूप से अधिक होता है, जहां वे मौसम प्रणालियों के निर्माण में योगदान देती हैं।
भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में शीतकालीन वर्षा लाने वाली आर्द्र वायु संहतियां पच्छुआ हवाओं का ही हिस्सा हैं। ये हवाएं पश्चिमी विक्षोभ के रूप में पहचानी जाती हैं, जो मध्य एशिया से उत्पन्न होकर भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंचती हैं। इन हवाओं के प्रभाव से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में शीतकालीन वर्षा होती है, जो कृषि और जल संसाधन प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 67. ‘क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिन्द महासागर रिम संघ [इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC)]’ के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. इसकी स्थापना अत्यन्त हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
हिंद महासागर रिम संघ (IOR-ARC) की स्थापना 1997 में की गई थी, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना है। यह संगठन किसी विशेष चुनौती जैसे समुद्री डकैती या तेल रिसाव के प्रतिक्रिया स्वरूप नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए एक बहुपक्षीय मंच के रूप में गठित किया गया था। इसका उद्देश्य व्यापक है, जिसमें आर्थिक विकास, व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरणीय सहयोग शामिल हैं।
इस संगठन के अंतर्गत सदस्य देशों के बीच संवाद और सहयोग के क्षेत्र विविध हैं। समुद्री सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन IOR-ARC का कार्यक्षेत्र इससे कहीं अधिक है। यह आपदा प्रबंधन, मानव संसाधन विकास, ऊर्जा सुरक्षा, पर्यटन और नवाचार जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए एक साझा दृष्टिकोण और नीति निर्माण में सहायक है।
इस प्रकार, संगठन की स्थापना और उद्देश्यों का दायरा समुद्री सुरक्षा तक सीमित नहीं है। यह क्षेत्रीय विकास और सहयोग के लिए एक रणनीतिक मंच के रूप में कार्य करता है, जिसमें आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को भी शामिल किया गया है।
प्रश्न 68. निम्नलिखित में से किस आंदोलन के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विभाजन हुआ जिसके परिणामस्वरुप ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’ का उद्भव हुआ?
(a) स्वदेशी आंदोलन
(b) भारत छोड़ो आंदोलन
(c) असहयोग आंदोलन
(d) सविनय अवज्ञा आंदोलन
उत्तरः (a)
स्वदेशी आंदोलन (1905-1911) के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर विचारधारात्मक विभाजन हुआ, जिससे ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’ का उद्भव हुआ। नरम दल, जिसमें सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपाळ कृष्ण गोखले जैसे नेता शामिल थे, ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने संवैधानिक सुधारों, याचिकाओं और शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से भारतीय अधिकारों की मांग की। उनका मानना था कि क्रमिक और शांतिपूर्ण तरीकों से भारतीय समाज को जागरूक किया जा सकता है और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है।
इसके विपरीत, गरम दल के नेता जैसे- बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर टिळक ने अधिक आक्रामक और प्रत्यक्ष आंदोलन की आवश्यकता पर जोर दिया। वे मानते थे कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। गरम दल ने बहिष्कार, स्वदेशी आंदोलन और जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से जनता को सक्रिय रूप से संगठित किया। उनका उद्देश्य था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अधिक साहसी कदम उठाए जाएं।
यह विभाजन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे विचारधाराओं की विविधता और रणनीतिक बहुलता को बल मिला। नरम दल की संवैधानिक रणनीति और गरम दल की क्रांतिकारी भावना ने मिलकर भारतीय समाज को स्वतंत्रता के संघर्ष में संलग्न किया। इस विभाजन ने दिखाया कि विभिन्न दृष्टिकोणों से भी एक ही उद्देश्य—भारतीय स्वतंत्रता—की प्राप्ति संभव है।
प्रश्न 69. भारत के एक विशेष क्षेत्र में, स्थानीय लोग जीवित वृक्षों की जड़ों का अनुवर्धन कर इन्हें जलधारा के आर-पार सुदृढ़ पुलों में रूपांतरित कर देते हैं। जैसे-जैसे समय गुजरता है, ये पुल और अधिक मजबूत होते जाते हैं। ये अनोखे ‘जीवित जड़ पुल’ कहां पाये जाते हैं?
(a) मेघालय
(b) हिमाचल प्रदेश
(c) झारखंड
(d) तमिलनाडु
उत्तर: (a)
जीवित जड़ पुल, मेघालय के चेरापूंजी और मौसिनराम क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जो अपनी भारी वर्षा के लिए प्रसिद्ध हैं। इन पुलों का निर्माण रबर के पेड़ों (Ficus Elastica) और अन्य वृक्षों की जड़ों से किया जाता है, जिन्हें नदियों और नालों के ऊपर बढ़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह प्रक्रिया एक अद्वितीय पारिस्थितिकीय इंजीनियरिंग का उदाहरण है, जिसमें मानव हस्तक्षेप और प्रकृति के बीच सामंजस्य प्रदर्शित होता है। स्थानीय समुदाय इस प्रक्रिया को पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाता आ रहा है।
इन पुलों की विशेषता यह है कि वे समय के साथ अधिक मजबूत और टिकाऊ बनते हैं। जड़ों के परिपक्व होने के साथ, पुल की संरचना अधिक सुदृढ़ हो जाती है, जिससे भारी वर्षा और बाढ़ के दौरान भी पुल सुरक्षित रहता है। यह अनूठी विशेषता इन पुलों को पारंपरिक निर्माण विधियों के मुकाबले अधिक टिकाऊ बनाती है। इसके अतिरिक्त, उनकी लचीलापन उन्हें भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी प्रतिरोधी बनाता है।
स्थानीय समुदाय के लिए, ये पुल न केवल यातायात के साधन हैं बल्कि सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत के प्रतीक भी हैं। इन पुलों के निर्माण में पर्यावरण के प्रति गहरी समझ और सतत जीवन के सिद्धांत पर जोर दिया जाता है। वे जैव विविधता के संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन के महत्वपूर्ण घटक हैं, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की मानवीय क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 70. महासागरों और समुद्रों में ज्वार-भाटाएं किसके/किनके कारण होता/होते हैं?
1. सूर्य का गुरुत्वीय बल
2. चंद्रमा का गुरुत्वीय बल
3. पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
ज्वार-भाटा की घटना मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्वीय बल के कारण होती है। चंद्रमा का गुरुत्वीय खिंचाव पृथ्वी पर जल की सतह पर आकर्षण उत्पन्न करता है, जिससे चंद्रमा की ओर जल का उभार बनता है। इसके अतिरिक्त, चंद्रमा के विपरीत दिशा में भी एक अन्य उभार बनता है क्योंकि पृथ्वी के घूर्णन के दौरान उत्पन्न अपकेंद्रीय बल जल को बाहर की ओर धकेलता है। इस घटना को “ज्वारीय उभार” कहा जाता है, जो उच्च और निम्न ज्वार के रूप में परिलक्षित होता है।
सूर्य का गुरुत्वीय बल भी ज्वार-भाटा पर प्रभाव डालता है, हालांकि इसका प्रभाव चंद्रमा की तुलना में कम होता है। जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं, तो उनके गुरुत्वीय बल मिलकर उच्च ज्वार (स्प्रिंग टाइड) उत्पन्न करते हैं। जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के सापेक्ष समकोण पर होते हैं, तो ज्वार-भाटा की तीव्रता कम हो जाती है, जिसे नीप टाइड कहा जाता है।
पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल भी ज्वार-भाटा की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न अपकेंद्रीय बल जल को बाहर की ओर खींचता है, जिससे चंद्रमा के विपरीत दिशा में भी एक ज्वारीय उभार बनता है। इस प्रकार, ज्वार-भाटा की जटिल प्रक्रिया चंद्रमा के गुरुत्वीय बल, सूर्य के गुरुत्वीय बल और पृथ्वी के अपकेंद्रीय बल के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होती है।
प्रश्न 71. निम्नलिखित में से किन कार्यकलापों में भारतीय दूर संवेदन (IRS) उपग्रहों का प्रयोग किया जाता है?
1. फसल की उपज का आकलन
2. भौम जल (ग्राउंडवाटर) संसाधनों का स्थान-निर्धारण
3. खनिज का अन्वेषण
4. दूरसंचार
5. यातायात अध्ययन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 4 और 5
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (a)
भारतीय दूर संवेदन (IRS) उपग्रहों का प्रमुख उपयोग फसल की उपज के आकलन में होता है, जो कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपकरण है। उपग्रहों से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी के माध्यम से फसल की वृद्धि, स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता का सटीक मूल्यांकन किया जाता है। यह डेटा फसल चक्र, जलवायु प्रभाव और कृषि क्षेत्र की उत्पादकता का विश्लेषण करने में मदद करता है। इसके अलावा, उपग्रह चित्रों से कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है, जिससे नीति निर्माण प्रक्रिया अधिक वैज्ञानिक बनती है।
इसके साथ ही, IRS उपग्रहों का उपयोग भौम जल संसाधनों के स्थान-निर्धारण में भी प्रभावी रूप से किया जाता है। उपग्रह चित्रों से भूजल स्तर, जल निकायों का विस्तार और पुनर्भरण क्षेत्रों का आकलन किया जाता है। यह तकनीक जल संकट के जोखिम का आकलन करने, जल संसाधनों के सतत प्रबंधन और कृषि सिंचाई के लिए जल आपूर्ति की योजना बनाने में सहायक होती है। इसके अलावा, उपग्रहों के माध्यम से जल गुणवत्ता और प्रदूषण के स्तर की निगरानी भी संभव है।
साथ ही, IRS उपग्रहों का खनिज अन्वेषण में भी महत्वपूर्ण योगदान है। उपग्रहों से प्राप्त भूवैज्ञानिक डेटा खनिज संसाधनों के वितरण, संभावित खनन क्षेत्रों और खनिज संपदा के आकलन में सहायक होता है। यह तकनीक भू-आकृतिक परिवर्तनों, स्थलाकृतिक मानचित्रण और खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने में मदद करती है। इससे खनिज अन्वेषण की दक्षता बढ़ती है और संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित किया जाता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 72. निम्नलिखित राज्यों पर विचार कीजिए:
1. अरुणाचल प्रदेश
2. हिमाचल प्रदेश
3. मिजोरम
उपर्युक्त राज्यों में से किसमें/किनमें ‘उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वन’ होते हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (c)
अरुणाचल प्रदेश में उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वन की उपस्थिति प्रमुख रूप से पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में है, जहाँ पर्वतीय इलाके और ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी मिलकर एक आदर्श पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। यहाँ की जलवायु अत्यधिक आर्द्र और गर्म होती है, जिससे सदाबहार वृक्षों की प्रजातियाँ जैसे कि सागौन, साल और बांस का विकास होता है। इन वनों में जैव विविधता अत्यधिक होती है, जिसमें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ, पक्षी, कीट और अन्य जीव-जंतु रहते हैं। यह क्षेत्र भारत के वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से भी अत्यधिक महत्व रखता है।
मिजोरम में भी उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वन पाए जाते हैं, जहाँ की जलवायु, उष्णकटिबंधीय मानसून के प्रभाव में होती है। यह राज्य पर्वतीय श्रृंखलाओं और उपत्यकाओं से घिरा हुआ है, जहाँ वर्षा की अधिकता और गर्मी का प्रभाव वनस्पति विकास के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। यहाँ के वनों में प्रचुर मात्रा में सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के फूल, लताएँ और वनस्पति शामिल हैं। इन वनों की पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक विविधता का संरक्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण है और यह राज्य पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है।
हिमाचल प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक संरचना के कारण यहाँ उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वन का अस्तित्व संभव नहीं है। हिमाचल प्रदेश में अधिकतर शीतोष्ण वनों का वर्चस्व है, जिनमें देवदार, चीड़ और ओक जैसे वृक्ष प्रमुख हैं। इस क्षेत्र की ठंडी जलवायु और उच्च पर्वतीय स्थिति उष्णकटिबंधीय वनों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसके बजाय, यहाँ की वनस्पति शीतोष्ण वनों के अनुरूप है, जहाँ सर्दियों में पत्तियाँ गिर जाती हैं और शरदकाल में यह वृक्ष अपनी ऊर्जा संरक्षण की प्रक्रिया में रहते हैं। इस प्रकार, हिमाचल प्रदेश में उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदापर्णी वन नहीं होते।
प्रश्न 73. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला शब्द ‘इन्डआर्क (IndARC)’ किसका नाम है?
(a) देशज रूप से विकसित, भारतीय रक्षा (डिफेन्स) में अधिष्ठापित रेडार सिस्टम
(b) हिन्द महासागर रिम के देशों को सेवा प्रदान करने हेतु भारत का उपग्रह
(c) भारत द्वारा अन्टार्कटिक क्षेत्र में स्थापित एक वैज्ञानिक प्रतिष्ठान
(d) आर्कटिक क्षेत्र के वैज्ञानिक अध्ययन हेतु भारत की अन्तर्जलीय वेधशाला (अंडरवॉटर ऑब्ज़र्वेटरी)
उत्तर: (d)
इन्डआर्क (IndARC) भारत द्वारा आर्कटिक क्षेत्र में स्थापित एक अत्याधुनिक अंतर्जलीय वेधशाला है, जिसे समुद्र विज्ञान और महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के गहन अध्ययन हेतु डिजाइन किया गया है। इस वेधशाला का उद्देश्य आर्कटिक महासागर के नीचे के पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में विस्तृत डेटा इकट्ठा करना है, जिससे जलवायु परिवर्तन, समुद्र स्तर वृद्धि और आर्कटिक क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभावों का बेहतर अध्ययन किया जा सके। इसमें स्थापित सेंसर और अन्य उपकरण समुद्र की गहराई, तापमान, जलवायु में बदलाव और समुद्र के भीतर जैविक विविधता पर लगातार निगरानी रखते हैं।
इन्डआर्क की स्थापना भारतीय राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) द्वारा की गई है, जो भारतीय महासागर विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी है। यहाँ के डेटा का उपयोग न केवल आर्कटिक क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के अध्ययन के लिए किया जाता है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी में भी अत्यंत सहायक साबित हो रहा है। इस वेधशाला द्वारा प्राप्त किए गए परिणाम जलवायु परिवर्तन, समुद्र स्तर वृद्धि और महासागरीय जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं।
इस वेधशाला का महत्व केवल समुद्र विज्ञान में नहीं, बल्कि वैश्विक पर्यावरणीय नीति और जलवायु परिवर्तन के प्रति रणनीतियों में भी निहित है। इन्डआर्क के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिकों को आर्कटिक क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे परिवर्तनों को समझने का अवसर मिलता है। इसके परिणामों से यह भी स्पष्ट होता है कि आर्कटिक क्षेत्र पर होनेवाले जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभाव अत्यधिक दूरगामी हो सकते हैं। इस प्रकार, इन्डआर्क भारत के समुद्र विज्ञान के अनुसंधान प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो रहा है।
प्रश्न 74. ‘वन कार्बन भागीदारी सुविधा (फॉरेस्ट कार्बन पार्टनरशिप फैसिलिटी)’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
1. यह सरकारों, व्यवसायों, नागरिक समाज और देशी जनों (इंडिजिनस पीपल्स) की एक वैश्विक भागीदारी है।
2. यह धारणीय (सस्टेनेबल) वन प्रबंधन हेतु पर्यावरण-अनुकूली (ईको-फ्रेंडली) और जलवायु अनुकूलन (क्लाइमेट एडेप्टेशन) प्रौद्योगिकियों (टेक्नोलॉजीज) के विकास के लिए वैज्ञानिक वानिकी अनुसंधान में लगे विश्वविद्यालयों, विशेष (इंडिविजुअल) वैज्ञानिकों तथा संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
3. यह देशों की, उनके ‘वनोन्मूलन और वन-निम्नीकरण उत्सर्जन कम करने (रिड्यूसिंग एमिसन्स फ्रॉम डिफॉरेस्टेशन एंड फॉरेस्ट डिग्रेडेशन+) (REDD+)]’ प्रयासों में वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान कर, मदद करती है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
वन कार्बन भागीदारी सुविधा (Forest Carbon Partnership Facility – FCPF) एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है, जो विश्वभर में वनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयासों में सहायता प्रदान करती है। FCPF का उद्देश्य विभिन्न देशों की सरकारों, व्यवसायों, नागरिक समाज और देशी जनों के बीच एक मजबूत साझेदारी स्थापित करना है, जिससे वनों के क्षय और अपद्रव्यन (deforestation and forest degradation) को रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सके। यह पहल विशेष रूप से REDD+ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation) कार्यक्रम के माध्यम से देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है, ताकि वे अपने राष्ट्रीय प्रयासों को अधिक प्रभावी बना सकें और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई कर सकें।
FCPF के तहत देशों को विशेष रूप से उन प्रौद्योगिकियों और विधियों के लिए मदद मिलती है जो वन प्रबंधन को धारणीय (sustainable) बनाने में सहायक हैं। इसके द्वारा वित्तीय सहायता का मुख्य उद्देश्य न केवल वनों की रक्षा करना है, बल्कि इन क्षेत्रों में जलवायु अनुकूलन और पर्यावरणीय प्रौद्योगिकियों को भी बढ़ावा देना है। हालांकि, FCPF विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिकों को सीधे वित्तीय मदद नहीं प्रदान करती, बल्कि इसका ध्यान देशों को सहायता देने पर केंद्रित होता है, ताकि वे अपनी नीतियों और योजनाओं को कारगर तरीके से लागू कर सकें।
FCPF के द्वारा वित्तीय और तकनीकी सहायता देशों के REDD+ प्रयासों में एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह सहायता देशों को उन रणनीतियों को लागू करने में मदद करती है, जिनसे वनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटा जा सके। इसके अंतर्गत आने वाली प्रक्रियाएँ वनों की सुरक्षा के लिए नए दृष्टिकोण, योजनाओं और प्रौद्योगिकियों को शामिल करती हैं, जो स्थानीय समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करती हैं। FCPF की यह पहल वैश्विक जलवायु संकट से निपटने में प्रभावी भूमिका निभाती है, जिससे न केवल देशों का पर्यावरणीय संरक्षण मजबूत होता है, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सहायता मिलती है।
प्रश्न 75. वर्ष 2014 में, निम्नलिखित में से किस एक भाषा को शास्त्रीय भाषा (क्लासिकल लैंग्वेज) का दर्जा (स्टेटस) दिया गया है?
(a) उड़िया
(b) कोंकणी
(c) भोजपुरी
(d) असमिया
उत्तरः (a)
उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा 2014 में प्राप्त हुआ, जो इसके प्राचीनता, समृद्ध साहित्यिक परंपरा और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है। उड़िया की साहित्यिक परंपरा 5वीं सदी से जुड़ी हुई है और इसकी लेखन शैली में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विषयों की गहरी अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उड़िया भाषा में प्राचीन ग्रंथों का समृद्ध संग्रह है, जिसमें ‘उड़िया महाभारत’ जैसे ग्रंथ शामिल हैं। यह मान्यता उड़िया की शास्त्रीयता को प्रमाणित करती है, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान को दर्शाता है।
उड़िया को शास्त्रीय दर्जा मिलने से ओडिशा राज्य के सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक पहचान मिली है। इस दर्जे के माध्यम से उड़िया साहित्य का संरक्षण और प्रसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा। इसके साथ ही उड़िया के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान को नई ऊंचाई मिलेगी, जिससे इसकी सांस्कृतिक विविधता को विश्वभर में मान्यता प्राप्त होगी। यह कदम उड़िया को एक विशिष्ट स्थान दिलाने में सहायक होगा।
इस मान्यता से उड़िया भाषा के शोध, संरक्षण और विकास के लिए नई पहलें शुरू की जा सकेंगी। शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से उड़िया साहित्य के अध्ययन और संरक्षण के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को समर्थन मिलेगा, जिससे इसके समृद्ध साहित्य का प्रचार-प्रसार संभव हो सकेगा। यह कदम उड़िया भाषा के महत्व को और बढ़ाता है और भविष्य में इसके समृद्धि के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
प्रश्न 76. ‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल (BirdLife International)’ नामक संगठन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
1. यह संरक्षण संगठनों की विश्वव्यापी भागीदारी है।
2 ‘जैव विविधता हॉटस्पॉट’ की संकल्पना इस संगठन से शुरु हुई।
3. यह ‘महत्त्वपूर्ण पक्षी एवं जैव विविधता क्षेत्र’ (इम्पोर्टेन्ट बर्ड एंड बॉयोडाइवर्सिटि एरियाज़)’ के रूप में ज्ञात/निर्दिष्ट स्थलों की पहचान करता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (c)
‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ एक वैश्विक संगठन है, जो पक्षियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में कार्यरत है। यह संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी है, जिसमें 100 से अधिक देशों के सदस्य शामिल हैं। इसका उद्देश्य पक्षियों की प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग करना है। यह संगठन पक्षियों के संरक्षण हेतु संरक्षण रणनीतियों का निर्धारण करता है और पक्षी प्रजातियों की निगरानी करता है, जिससे उनकी सुरक्षा के उपाय किए जा सकें।
‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ ने ‘महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र’ (IBA) की पहचान की प्रक्रिया को स्थापित किया है। IBA ऐसे क्षेत्र होते हैं, जो पक्षियों की प्रजनन, प्रवास या अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। IBA की पहचान से उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है, जिनका संरक्षण पक्षियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक है। इसके द्वारा पक्षी संरक्षण के प्रयासों को एक संरचित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलता है।
‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ जैव विविधता हॉटस्पॉट की संकल्पना में योगदान करने वाले प्रमुख संगठनों में से एक है। जैव विविधता हॉटस्पॉट्स वे क्षेत्र होते हैं जिनमें जैव विविधता का उच्चतम स्तर होता है, लेकिन वे क्षेत्र गंभीर खतरे में होते हैं। BirdLife ने इन हॉटस्पॉट्स में स्थित क्षेत्रों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके द्वारा संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता की रक्षा और पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं।
प्रश्न 77. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है?
(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इजराइल
उत्तर: (b)
जॉर्डन एक भूमि-लाक्ड देश है, जिसका कोई तटीय क्षेत्र नहीं है और यह भूमध्यसागर तक नहीं फैला है। जॉर्डन का भूगोल मुख्य रूप से रेगिस्तानी है, जिसमें वादी रम और वादी अरबा जैसी महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ शामिल हैं। जॉर्डन का जलनिकासी मुख्यतः झील मृत (Dead Sea) द्वारा होता है, जो एक खारे पानी का झील है और यह भूमध्यसागर से कहीं अधिक नीचे स्थित है। इसके अतिरिक्त, जॉर्डन का प्रमुख नदी जॉर्डन नदी है, जो इसे इज़राइल और सीरिया से जोड़ती है, परंतु यह समुद्र से कोई संपर्क नहीं रखती है।
भूमध्यसागर से न जुड़ने के बावजूद, जॉर्डन का रणनीतिक और कूटनीतिक महत्व उच्च है। इसका स्थान इज़राइल और सऊदी अरब जैसे महत्वपूर्ण देशों के निकट होने के कारण जॉर्डन मध्य-पूर्व क्षेत्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जॉर्डन ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समिटों और कूटनीतिक प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई है, लेकिन यह किसी समुद्री व्यापार मार्ग से जुड़ा नहीं है।
इसके अलावा, जॉर्डन की सीमाएं इराक, सीरिया और इज़राइल से मिलती हैं, जिससे यह देश मध्य-पूर्व के घटनाक्रमों में महत्वपूर्ण कूटनीतिक स्थान रखता है। इसके बावजूद, समुद्र तक पहुंच के अभाव ने इसकी वाणिज्यिक और सैन्य रणनीतियों को कुछ हद तक प्रभावित किया है। तथापि, जॉर्डन का स्थिर और प्रगतिशील राजनीतिक माहौल इसे क्षेत्रीय सहयोग और कूटनीतिक संवाद में एक प्रमुख अभिनेता बनाता है।
प्रश्न 78. भारत में, निम्नलिखित में से किस एक वन-प्रारूप में, सागौन (टीक) एक प्रभावी वृक्ष स्पीशीज़ है?
(a) उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन
(b) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
(c) उष्णकटिबंधीय कंटीली झाड़ी वन
(d) घासस्थलयुक्त शीतोष्ण वन
उत्तरः (a)
सागौन (टीक) एक प्रमुख वृक्ष है जो भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनों में विशेष रूप से प्रभावी रूप से उगता है। इन वनों में सागौन की वृद्धि के लिए आदर्श परिस्थितियाँ होती हैं, जैसे कि उच्च आर्द्रता, पर्याप्त वर्षा और गर्म तापमान। इन वनों की मिट्टी भी पोषक तत्वों से समृद्ध होती है, जो सागौन के मजबूत और स्वस्थ वृक्ष बनने में सहायक होती है। इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन क्षेत्र में जैव विविधता भी अधिक होती है, जिससे सागौन का पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान बढ़ता है।
सागौन का प्रमुख उपयोग लकड़ी के रूप में होता है, जो उच्च गुणवत्ता की होती है और औद्योगिक दृष्टिकोण से अत्यधिक मूल्यवान है। यह लकड़ी निर्माण कार्य, फर्नीचर निर्माण और अन्य उद्योगों में इस्तेमाल होती है। उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन में सागौन की उपस्थिति इन क्षेत्रों की आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सागौन की लकड़ी लंबे समय तक चलने वाली और मजबूत होती है, जिससे यह एक वाणिज्यिक दृष्टि से अत्यधिक मूल्यवान बनती है।
इन वनों में सागौन के वृक्षों का संरक्षण और प्रबंधन आवश्यक है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे और वृक्षों के व्यावसायिक उपयोग से पारिस्थितिकी तंत्र को कोई नुकसान न पहुंचे। सागौन के वृक्षों का वृक्षारोपण भारत में विभिन्न योजनाओं के तहत किया जाता है, ताकि वनस्पति की वाणिज्यिक और पर्यावरणीय महत्व को बनाए रखा जा सके। इस प्रकार, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन में सागौन का स्थान न केवल जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 79. प्रायः समाचारों में देखी जाने वाली ‘बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच (बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन)’ निम्नलिखित में से क्या है?
(a) क्षेत्रीय आतंकवाद से निपटने की एक कार्यनीति (स्ट्रैटजी), शंघाई सहयोग संगठन (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन) की बैठक का एक परिणाम
(b) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में धारणीय आर्थिक संवृद्धि की एक कार्य-योजना, एशिया-प्रशांत आर्थिक मंच (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम) के विचार-विमर्श का एक परिणाम
(c) महिला सशक्तीकरण हेतु एक कार्यसूची, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित विश्व सम्मेलन का एक परिणाम
(d) वन्य जीवों के दुव्र्यापार (ट्रैफिकिंग) की रोकथाम हेतु कार्यनीति, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट) की एक उद्घोषणा
उत्तर: (c)
‘बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच’ (Beijing Declaration and Platform for Action) 1995 में आयोजित चौथे विश्व महिला सम्मेलन के दौरान अपनाया गया था, जिसका उद्देश्य महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना था। इस मंच के माध्यम से महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए 12 प्रमुख क्षेत्रों में कार्रवाई की योजना बनाई गई थी। इसमें महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और हिंसा के खिलाफ सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी गई थी। यह मंच न केवल सरकारों, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों से महिलाओं के लिए समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित करने के लिए एकजुटता की आवश्यकता पर जोर देता है।
बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में समान भागीदारी का अवसर प्रदान करना है। इसके तहत, यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है कि महिलाओं को समाज के सभी पहलुओं में उनके अधिकारों का पूरा सम्मान मिले। यह मंच लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
इस घोषणा और कार्रवाई मंच के परिणामस्वरूप, विभिन्न देशों ने अपनी नीतियों में सुधार किया और महिला सशक्तीकरण के लिए नए कार्यक्रमों और योजनाओं की शुरुआत की। इसके अलावा, यह मंच महिला अधिकारों को सुनिश्चित करने और लैंगिक असमानता को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कानूनी और संस्थागत सुधारों को प्रेरित करता है। महिला सशक्तीकरण के लिए किए गए प्रयासों को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है, जो आज भी सक्रिय रूप से लागू हैं।
प्रश्न 80. निम्नलिखित परिच्छेद पर विचार कीजिए:
“हर दिन कमोबेश एक-सा ही होता है। सुबह, समुद्री मंद पवन के साथ, साफ और उजली होती है। जैसे-जैसे सूर्य आकाश में ऊपर चढ़ता जाता है, गर्मी बढ़ती जाती है, घने बादल बनने लगते हैं और फिर बादलों की गरज और बिजली की चमक के साथ वर्षा होने लगती है। लेकिन वर्षा शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।”
उपर्युक्त उद्धरण में निम्नलिखित क्षेत्रों में से किसका वर्णन किया गया है?
(a) सवाना
(b) विषुवतीय
(c) मानसून
(d) भूमध्यसागरीय
उत्तरः (b)
विषुवतीय जलवायु, जिसे ट्रॉपिकल क्लाइमेट के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में पाई जाती है जो भूमध्य रेखा के पास स्थित होते हैं। इस जलवायु में विशेष रूप से गर्म तापमान और उच्च आर्द्रता का अनुभव होता है। दिन की शुरुआत में वातावरण शुद्ध और ठंडा रहता है, लेकिन जैसे-जैसे सूर्य की ऊंचाई बढ़ती है, तापमान भी बढ़ता है और नमी में वृद्धि होती है, जिसके कारण बादल बनने लगते हैं। यह तापमान और आर्द्रता की स्थिति वर्षा के लिए उपयुक्त होती है।
वर्षा आमतौर पर भारी और तीव्र होती है और यह घने बादलों, गरज और बिजली की चमक के साथ होती है। हालांकि, यह वर्षा अक्सर लघु समय में समाप्त हो जाती है और फिर से मौसम साफ हो जाता है। यह वातावरण की अस्थिरता को दर्शाता है, जहां बारिश तो होती है लेकिन अत्यधिक नहीं रहती।
इस प्रकार, विषुवतीय जलवायु का प्रमुख लक्षण उसका दिनचर्या की समानता, अत्यधिक वर्षा और उच्च आर्द्रता है। यह जलवायु क्षेत्र उष्णकटिबंधीय वर्षा वन के लिए आदर्श परिस्थितियां प्रदान करती है, जहां जैव विविधता अत्यधिक होती है। इसी प्रकार के मौसम में स्थित क्षेत्र कृषि और वन्य जीवन के लिए उपयुक्त होते हैं।
प्रश्न 81. भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. पिछले दशक में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि-दर लगातार बढ़ती रही है।
2. पिछले दशक में बाज़ार क़ीमतों पर (रुपयों में) सकल घरेलू उत्पाद लगातार बढ़ता रहा है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में अस्थिरता रही है। 2000 के दशक के अंत तक भारत की अर्थव्यवस्था उच्च गति से बढ़ी थी, लेकिन 2011-12 के बाद वैश्विक वित्तीय संकट, घरेलू आर्थिक असंतुलन और महामारी जैसे कारकों ने विकास दर को प्रभावित किया। इसके बावजूद, कुछ वर्षों में स्थिरता और पुनः सुधार देखा गया, जैसे 2017 के बाद GST लागू होने के बाद। हालांकि, 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण GDP में अत्यधिक गिरावट आई, जिससे वास्तविक वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव आया।
दूसरी ओर, बाज़ार क़ीमतों पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) लगातार बढ़ता रहा है। जब हम बाज़ार क़ीमतों पर GDP की गणना करते हैं, तो इसमें मुद्रास्फीति और वस्तुओं एवं सेवाओं की क़ीमतों में वृद्धि को शामिल किया जाता है। इस कारण, Nominal GDP में वृद्धि होती रही, जबकि वास्तविक GDP में उतार-चढ़ाव देखा गया।
यह स्थिति मुख्यतः भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक समस्याओं, जैसे रोजगार की कमी, बुनियादी ढांचे की समस्याएँ और मुद्रास्फीति के कारण उत्पन्न होती रही। इस प्रकार, जबकि nominal GDP में वृद्धि निरंतर रही, वास्तविक GDP में स्थिरता नहीं देखी गई। यही कारण है कि वास्तविक और नाममात्र GDP में अंतर स्पष्ट होता है और इसका असर नीति निर्धारण पर पड़ता है।
प्रश्न 82. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारत में किसी राज्य की विधान परिषद आकार में उस राज्य की विधान सभा के आधे से अधिक बड़ी हो सकती है।
2. किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य की विधान परिषद के सभापति को नामनिर्देशित करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तरः (d)
भारत के संविधान के अनुसार, किसी राज्य की विधान परिषद का आकार उस राज्य की विधान सभा के आधे से अधिक नहीं हो सकता। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 171 में उल्लिखित है, जो राज्यों की विधान परिषद के आकार और उसकी संरचना को नियंत्रित करता है। इसमें यह भी कहा गया है कि विधान परिषद के सदस्य संख्या राज्य की विधान सभा के सदस्य संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विधान परिषद और विधान सभा के बीच संतुलन बना रहे और विधायी प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बनी रहे।
दूसरी ओर, राज्यपाल का कार्य संविधान और राज्य के प्रशासनिक मामलों को सुनिश्चित करना है। राज्यपाल को राज्य की विधान परिषद के सभापति का नामनिर्देशन करने का अधिकार नहीं है। यह कार्य विधान परिषद के भीतर के आंतरिक नियमों और प्रक्रियाओं के तहत किया जाता है। राज्यपाल की भूमिका आम तौर पर संविधान और कानूनी प्रावधानों के पालन की निगरानी करने तक सीमित होती है और वे विधायी मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करते।
भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विधान परिषद के सभापति का चुनाव सदस्यों के द्वारा किया जाता है, न कि राज्यपाल द्वारा। यह सुनिश्चित करने के लिए है कि विधान परिषद का संचालन स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से हो। इसके अतिरिक्त, राज्यपाल के हस्तक्षेप से विधान परिषद की स्वायत्तता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, यह कहना कि राज्यपाल विधान परिषद के सभापति को नामनिर्देशित करते हैं, संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
प्रश्न 83. “भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।” यह उपबंध किसमें किया गया है?
(a) संविधान की उद्देशिका
(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) मूल अधिकार
(d) मूल कर्तव्य
उत्तर: (d)
“भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें” यह उपबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A के तहत मूल कर्तव्यों में शामिल है। यह नागरिकों के लिए एक नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है, जिसका उद्देश्य देश के समग्र एकता और अखंडता की सुरक्षा करना है। यह कर्तव्य भारतीय नागरिकों को समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करता है, जिससे राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के प्रयास को बल मिलता है। यह नागरिकों से अपेक्ष करता है कि वे देश की सम्प्रभुता और आंतरिक अखंडता की रक्षा में सक्रिय रूप से भाग लें और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दें।
इस कर्तव्य का व्यापक उद्देश्य एक सशक्त और संगठित राष्ट्र का निर्माण है। यह नागरिकों में राष्ट्रभक्ति और देश के प्रति सम्मान की भावना को प्रोत्साहित करता है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होते हैं, तो वे राष्ट्र की सुरक्षा और सामाजिक संरचना को सुदृढ़ बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं। यह राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह हर व्यक्ति को एकजुट होने के लिए प्रेरित करता है, जो समाज में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और सामूहिक विकास के लिए जरूरी है।
इस कर्तव्य का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह नागरिकों को उनके अधिकारों और स्वतंत्रताओं का सम्मान करने की जिम्मेदारी भी सौंपता है। जब लोग अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए अपने कर्तव्यों को समझते हैं, तो यह एक समन्वित और संगठित राष्ट्र के निर्माण की दिशा में मदद करता है। यह नागरिकों को संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझाने और उसे पालन करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे देश के भीतर न्याय, समानता और शांति का वातावरण बना रहता है।
प्रश्न 84. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ‘पारितंत्र (इकोसिस्टम)’ शब्द का सर्वोत्कृष्ट वर्णन है?
(a) एक-दूसरे से अन्योन्यक्रिया करने वाले जीवों (ऑर्गनिज़्म्स) का एक समुदाय
(b) पृथ्वी का वह भाग जो सजीव जीवों (लिविंग ऑर्गनिज़्म्स) द्वारा आवासित है
(c) जीवों (ऑर्गनिज़्म्स) का समुदाय और साथ ही वह पर्यावरण जिसमें वे रहते हैं
(a) किसी भौगोलिक क्षेत्र के वनस्पतिजात और प्राणिजात
उत्तर: (c)
पारितंत्र (इकोसिस्टम) का सर्वोत्कृष्ट वर्णन उस पारिस्थितिकी तंत्र का है, जिसमें जीवों का समुदाय और उनके चारों ओर का पर्यावरण दोनों शामिल होते हैं। यह परिभाषा पारितंत्र की जटिलता और विविधता को दर्शाती है, जहां जैविक और अजैविक घटक आपस में जुड़े होते हैं। जैविक घटक जैसे पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और अन्य जीव एक-दूसरे के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। इनकी गतिविधियाँ पारितंत्र के ऊर्जा और पोषक तत्वों के प्रवाह को नियंत्रित करती हैं, जिससे पारितंत्र का संतुलन बना रहता है। उदाहरण के रूप में, एक समुद्री पारितंत्र में जलजीव, समुद्री पौधे और जल की भौतिक विशेषताएँ जैसे तापमान, घनत्व और लवणता, एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
पर्यावरणीय कारक, जैसे जलवायु, मृदा, तापमान और आर्द्रता, पारितंत्र के जीवन के लिए आवश्यक शर्तें प्रदान करते हैं। ये तत्व जैविक घटकों के जीवन को समर्थन देते हैं और उनके अस्तित्व की रूपरेखा तय करते हैं। जैसे-जैसे इन तत्वों में परिवर्तन होता है, पारितंत्र का संतुलन भी बदल सकता है। उदाहरण के रूप में, अगर कोई पारितंत्र अत्यधिक गर्मी या सूखे का सामना करता है, तो इससे उस क्षेत्र के जीवों का जीवन संकट में पड़ सकता है। इस प्रकार, पारितंत्र के दोनों घटक – जैविक और अजैविक – एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और मिलकर पारितंत्र की स्थिरता को सुनिश्चित करते हैं।
किसी पारितंत्र के समग्र संतुलन के लिए दोनों घटकों का सह-अस्तित्व अत्यंत आवश्यक है। जब एक घटक में परिवर्तन आता है, तो यह अन्य घटकों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, मानव गतिविधियाँ जैसे वन्यजीवों का शिकार, मृदा का क्षरण या जलवायु परिवर्तन, पारितंत्र के जैविक और अजैविक घटकों में असंतुलन उत्पन्न कर सकती हैं। इसलिए, पारितंत्र के संरक्षण और संतुलन को बनाए रखना, जैव विविधता की सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र के सही कार्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 85. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है?
1. विकास में जन-भागीदारी
2. राजनीतिक जवाबदेही
3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
4. वित्तीय संग्रहण (फाइनेंशियल मोबिलाइजेशन)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
पंचायती राज व्यवस्था का उद्देश्य विकास में जन-भागीदारी को बढ़ावा देना है। यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय समुदाय अपने विकास कार्यों के निर्णयों में सक्रिय रूप से शामिल हों। पंचायतों के माध्यम से जन-भागीदारी में वृद्धि, न केवल लोगों को जिम्मेदारी का अहसास कराती है, बल्कि यह उन योजनाओं को भी बेहतर बनाती है, जो स्थानीय जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुरूप होती हैं। इससे न केवल जनता की इच्छाओं का सम्मान होता है, बल्कि उनके जीवन स्तर में भी सुधार होता है।
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण पंचायती राज व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसका मतलब है कि शक्ति का वितरण केंद्र और राज्य से स्थानीय स्तर पर किया जाता है। यह विकेंद्रीकरण नीति न केवल स्थानीय स्तर पर प्रशासन की दक्षता को बढ़ाता है, बल्कि यह स्थानीय समस्याओं को अधिक प्रभावी ढंग से हल करने में मदद करता है। विकेंद्रीकरण से क्षेत्रीय असमानताओं को भी कम किया जा सकता है।
हालांकि, राजनीतिक जवाबदेही और वित्तीय संग्रहण भी महत्वपूर्ण पहलू हैं, लेकिन ये मुख्य उद्देश्य नहीं हैं। पंचायती राज व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार को स्थानीय स्तर तक प्रभावी तरीके से पहुंचाना और स्थानीय समुदायों के विकास में भागीदारी को बढ़ाना है। इसलिए, इसका मुख्य ध्यान विकास में जन-भागीदारी और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण पर केंद्रित है।
प्रश्न 86. भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिए :
1. बैंक-दर
2. खुली बाज़ार कार्रवाई (ओपेन मार्केट ऑपरेशन)
3. लोक ऋण (पब्लिक डेब्ट)
4. लोक राजस्व (पब्लिक रेवेन्यू)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/है?
(a) केवल 1
(b) 2, 3 और 4
(c) 1 और 2
(d) 1, 3 और 4
उत्तर: (c)
मौद्रिक नीति के तहत, बैंक दर और खुली बाजार क्रियाएँ (ओपेन मार्केट ऑपरेशन) दो महत्वपूर्ण उपकरण होते हैं, जो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने के लिए उपयोग किए जाते हैं। बैंक दर वह दर है जिस पर RBI अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। जब RBI बैंक दर बढ़ाता है, तो ब्याज दरें बढ़ जाती हैं, जिससे उधारी महंगी होती है और मुद्रा आपूर्ति में कमी आती है। इससे महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके विपरीत, बैंक दर घटाने से उधारी सस्ती हो जाती है, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं और मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है।
खुली बाजार क्रियाएँ (OMO) भी मौद्रिक नीति का एक प्रभावी घटक हैं। OMO के तहत RBI सरकारी प्रतिभूतियाँ (बॉण्ड्स) खरीदता या बेचता है। जब RBI बांड्स खरीदता है, तो यह बैंकों के पास अतिरिक्त धन की आपूर्ति करता है, जिससे बाजार में तरलता बढ़ती है। बांड्स की बिक्री से मुद्रा आपूर्ति में कमी आती है और महंगाई पर नियंत्रण पाया जाता है। ये क्रियाएँ मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका प्रदान करती हैं।
लोक ऋण और लोक राजस्व, हालांकि आर्थिक नीति के घटक हैं, लेकिन ये मौद्रिक नीति के हिस्से में नहीं आते। लोक ऋण सरकार द्वारा लिया गया उधार होता है, जो सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लोक राजस्व सरकार की आय का स्रोत है, जो विभिन्न करों से प्राप्त होता है। इन दोनों का उद्देश्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन से जुड़ा है, लेकिन इनका मुद्रा आपूर्ति या ब्याज दरों पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होता है।
प्रश्न 87. भारत में मुद्रास्फीति के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?
(a) भारत में मुद्रास्फीति का नियंत्रण केवल भारत सरकार का उत्तरदायित्व है
(b) मुद्रास्फीति के नियंत्रण में भारतीय रिजर्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है
(c) घटा हुआ मुद्रा परिचलन (मनी सर्कुलेशन), मुद्रास्फीति के नियंत्रण में सहायता करता है
(d) बढ़ा हुआ मुद्रा परिचलन, मुद्रास्फीति के नियंत्रण में सहायता करता है
उत्तर: (c)
मुद्रास्फीति एक आर्थिक स्थिति है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होती है और यह समाज के सभी वर्गों पर असर डालती है। मुद्रा सर्कुलेशन का सीधा संबंध मुद्रास्फीति से है। जब मुद्रा का परिचलन बढ़ता है, तो बाजार में ज्यादा पैसे उपलब्ध होते हैं, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। यह मांग-संचालित मुद्रास्फीति को जन्म देता है, क्योंकि उत्पादक उच्च कीमतों को देखते हुए अधिक कीमतें तय करने की प्रवृत्ति रखते हैं। इस प्रकार, जब मुद्रा का परिचलन कम होता है, तो यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपाय होते हैं। RBI जब महसूस करता है कि मुद्रा आपूर्ति बहुत अधिक हो गई है और मुद्रास्फीति बढ़ रही है, तो वह विभिन्न मौद्रिक नीतियों को लागू करता है, जैसे कि बैंक दरों को बढ़ाना या ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) के माध्यम से सरकारी बॉन्ड्स की बिक्री। इससे मुद्रा सर्कुलेशन कम होता है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
अर्थव्यवस्था में मुद्रा सर्कुलेशन की मात्रा का संतुलन महत्वपूर्ण है। यदि मुद्रा आपूर्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है, तो बाजार में अधिक पैसा होने के कारण मूल्य स्थिरता बनाए रखना कठिन हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, कीमतें तेज़ी से बढ़ने लगती हैं और अंततः मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ता है। इसलिए, मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए यह आवश्यक है कि मुद्रा आपूर्ति पर प्रभावी नियंत्रण रखा जाए, ताकि आर्थिक संतुलन बनाए रखा जा सके।
प्रश्न 88. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिए:
1. चीन
2. फ्रांस
3. भारत
4. इज़राइल
5. पाकिस्तान
उपर्युक्त में से कौन-से, परमाणु शस्त्रों के अप्रसार विषयक संधि (ट्रीटी ऑन द नॉन्-प्रोलिफरेशन ऑफ न्यूक्लीयर वेपन्स) जिसे सामान्यतः परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लीयर नॉन्-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) (NPT) के नाम से जाना जाता है, की मान्यता के अनुसार, परमाणु शस्त्र-सम्पन्न राज्य (न्यूक्लीयर वेपन्स स्टेट्स) हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (a)
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) को 1968 में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य वैश्विक सुरक्षा को बढ़ावा देना और परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना था। इसके तहत, केवल पांच देशों—संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन—को परमाणु शस्त्र-सम्पन्न राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। ये राष्ट्र न केवल परमाणु हथियारों का स्वामित्व रखते हैं, बल्कि संधि में शामिल अन्य देशों को परमाणु हथियारों के प्रसार से रोकने का भी कर्तव्य निभाते हैं। इस संधि का मुख्य उद्देश्य शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, ताकि परमाणु हथियारों का उपयोग न हो।
भारत, पाकिस्तान और इज़राइल ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि इन देशों का मानना है कि परमाणु हथियार उनके राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए आवश्यक हैं। इन देशों ने अपनी रक्षा नीतियों के तहत परमाणु शस्त्रों का निर्माण किया है, जिनके पास न केवल सुरक्षा कारण हैं, बल्कि वे इन हथियारों को शक्ति संतुलन के रूप में भी देखते हैं।
यह स्पष्ट है कि भारत, पाकिस्तान और इज़राइल का परमाणु कार्यक्रम NPT के तहत परमाणु शस्त्र-सम्पन्न देशों से भिन्न है। इन देशों ने अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को चुनौती देते हुए अपनी संप्रभुता और रक्षा नीतियों के तहत परमाणु हथियारों को विकसित किया। इन देशों का यह दृष्टिकोण परमाणु अप्रसार संधि के उद्देश्यों के विपरीत है, जो वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक बाधा बन सकता है।
प्रश्न 89. भारत के संविधान में ‘कल्याणकारी राज्य’ का आदर्श किसमें प्रतिष्ठापित है?
(a) उद्देशिका
(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) मूल अधिकार
(d) सातवीं अनुसूची
उत्तर: (b)
भारत के संविधान में ‘कल्याणकारी राज्य’ का आदर्श राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में निहित है। यह तत्त्व संविधान के भाग IV में आते हैं, जिनका उद्देश्य राज्य को नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कल्याण के लिए मार्गदर्शन देना है। इन तत्त्वों के माध्यम से संविधान राज्य को निर्देशित करता है कि वह सभी नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण करते हुए, उन्हें जीवन जीने के लिए आवश्यक संसाधन और अवसर प्रदान करें। यह व्यवस्था राज्य को कमजोर और उत्पीड़ित वर्गों के लिए विशेष कदम उठाने का आदेश देती है, ताकि सामाजिक समानता और न्याय की दिशा में कार्य किया जा सके।
कल्याणकारी राज्य की अवधारणा, राज्य के लिए नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के प्रयासों की आवश्यकता पर बल देती है। यह सुनिश्चित करना कि सभी नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अन्य बुनियादी सेवाओं का समान अधिकार हो, इसका मुख्य उद्देश्य है। संविधान में यह तत्त्व राज्य को निर्देशित करता है कि वह इन सेवाओं को सुलभ और सस्ती बनाए, ताकि कोई भी वर्ग आर्थिक या सामाजिक दृष्टि से पीछे न रह जाए।
राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों के तहत, संविधान यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर उपाय करें। उदाहरण स्वरूप, राज्य को स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, रोजगार और अन्य बुनियादी जरूरतों के लिए योजनाएं बनानी होती हैं। इन तत्त्वों के प्रभावी क्रियान्वयन से समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन होता है, जो समाज में असमानताओं को घटाकर समग्र विकास की दिशा में योगदान करता है।
प्रश्न 90. कृषि उत्पादन में काष्ठ के हलों के स्थान पर इस्पात के हलों का उपयोग निम्नलिखित में से किसका उदाहरण है?
(a) श्रम बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकीय (टेक्नोलॉजिकल) प्रगति
(b) पूंजी बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकीय प्रगति
(c) पूंजी घटाने वाली प्रौद्योगिकीय प्रगति
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरः (b)
कृषि उत्पादन में काष्ठ के हलों के स्थान पर इस्पात के हलों का उपयोग पूंजी बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकीय प्रगति का एक प्रमुख उदाहरण है। काष्ठ के हलों के मुकाबले इस्पात के हलों में अधिक मजबूती और दीर्घायु होती है, जिससे किसानों को उपकरण की बार-बार मरम्मत की आवश्यकता नहीं होती। यह परिवर्तन कृषि कार्यों को अधिक प्रभावी और समयबद्ध बनाता है, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है। इसके अतिरिक्त, इस्पात हलों का उपयोग कृषि में अधिक गहरी जुताई की संभावना उत्पन्न करता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
इस प्रौद्योगिकीय परिवर्तन के कारण पूंजी का निवेश बढ़ता है क्योंकि इस्पात हल महंगे होते हैं। हालांकि, उच्च प्रारंभिक लागत के बावजूद, यह निवेश समय के साथ लाभकारी साबित होता है क्योंकि इससे उत्पादकता में वृद्धि होती है और कार्यक्षमता में सुधार होता है। इसके अलावा, मजबूत उपकरणों के कारण, किसानों को बार-बार उपकरण बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिससे दीर्घकालिक लाभ होता है।
इस बदलाव से कृषि क्षेत्र में श्रम की आवश्यकता भी कम होती है क्योंकि इस्पात हलों की कार्यकुशलता अधिक होती है। इससे कृषि के कार्यों की गति बढ़ती है और किसानों को अपने अन्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है। यह पूंजी और श्रम के संतुलन को पुनः परिभाषित करता है और कृषि उत्पादन में सुधार के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 91. भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार है, क्योंकि
(a) लोक सभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है
(b) संसद्, संविधान का संशोधन कर सकती है
(c) राज्य सभा को भंग नहीं किया जा सकता
(d) मंत्रिपरिषद्, लोक सभा के प्रति उत्तरदायी है
उत्तरः (d)
भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार है क्योंकि यहाँ कार्यपालिका, विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है, विशेषकर मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। भारतीय संविधान में यह व्यवस्था स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 75 में वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और अन्य मंत्री प्रधानमंत्री की सलाह पर नियुक्त होंगे। यह मंत्रिपरिषद् तब तक पद पर बनी रहती है जब तक उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त होता है। इस उत्तरदायित्व का तात्पर्य यह है कि यदि लोक सभा में मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।
यह उत्तरदायित्व भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा है, जो संसद के प्रति सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है। लोक सभा, जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन है और इसी के प्रति सरकार की जवाबदेही होती है। इस प्रणाली के अंतर्गत प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री लोक सभा में नीतियों, योजनाओं और कार्यों के संबंध में उत्तर देने के लिए बाध्य होते हैं। संसद में प्रश्नकाल, शून्यकाल, स्थगन प्रस्ताव जैसे उपकरणों के माध्यम से कार्यपालिका से जवाबदेही तय की जाती है। इससे न केवल पारदर्शिता बनी रहती है, बल्कि जनता का विश्वास भी शासन में बना रहता है।
इस प्रणाली में मंत्रिपरिषद् की उत्तरदायित्वशीलता लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करती है और शासन को निरंकुश होने से रोकती है। यदि मंत्रिपरिषद् जनहित के विरुद्ध कार्य करती है या संसद का विश्वास खो देती है, तो उसे हटाया जा सकता है। इस व्यवस्था के कारण नीति निर्माण और प्रशासन में संतुलन और नियंत्रण बना रहता है। यह उत्तरदायित्व शासन को अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी और संवेदनशील बनाता है, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है। भारत की राजनीतिक संरचना में यह सिद्धांत शासन की स्थिरता और जवाबदेही का प्रमुख आधार है।
प्रश्न 92. H1N1 विषाणु का प्रायः समाचारों में निम्नलिखित में से किस एक बीमारी के सन्दर्भ में उल्लेख किया जाता है?
(a) एड्स (AIDS)
(b) बर्ड फ्लू
(c) डेंगू
(d) स्वाइन फ्लू
उत्तर: (d)
H1N1 विषाणु का संबंध स्वाइन फ्लू से है, जो एक तीव्र और संक्रामक श्वसन रोग है। यह इन्फ्लुएंजा ए वायरस के H1N1 उपप्रकार से उत्पन्न होता है, जिसमें मानव, सुअर और पक्षियों से जुड़े राइबोन्यूक्लिक एसिड अनुक्रमों का पुनर्संयोजन होता है। 2009 में यह विषाणु वैश्विक महामारी का कारण बना, जिसने यह स्पष्ट किया कि विषाणुजनित रोग किस प्रकार जैविक सीमाओं को पार कर मानव जाति को प्रभावित कर सकते हैं। स्वाइन फ्लू के लक्षण साधारण फ्लू जैसे प्रतीत होते हैं, परंतु इसकी तीव्रता वृद्धों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं सह-रुग्ण व्यक्तियों में घातक स्तर तक पहुँच सकती है। इसके लक्षणों में तेज़ बुखार, गले में खराश, खाँसी, मांसपेशियों में दर्द और श्वसन कष्ट प्रमुख होते हैं।
इस रोग का संचारण मुख्यतः संक्रमित व्यक्ति के श्वसन स्रावों द्वारा होता है, जो हवा में कणों के माध्यम से अथवा संक्रमित सतहों को छूने के पश्चात नाक, मुँह या आंख को स्पर्श करने से होता है। इसकी उच्च संक्रामकता और सामाजिक संपर्कों के माध्यम से फैलने की प्रवृत्ति इसे विशेष रूप से शहरी और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बना देती है। यह विषाणु संक्रमण की श्रृंखला को अत्यधिक तीव्रता से आगे बढ़ा सकता है, जिससे सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य ढाँचा तेजी से चरमराने लगता है। रोग के नियंत्रण हेतु त्वरित पहचान, पृथककरण और उपचार अत्यंत आवश्यक होते हैं, अन्यथा यह महामारी का रूप लेकर अनेक जीवनों को प्रभावित कर सकता है।
H1N1 संक्रमण से निपटने के लिए बहुस्तरीय रणनीति अपनाई जाती है, जिसमें वैक्सीनेशन, दवा उपचार, निगरानी और जन-जागरूकता प्रमुख हैं। ओसेल्टामिविर और ज़नामिविर जैसे एंटीवायरल औषधियाँ प्रारंभिक चरण में प्रभावी सिद्ध होती हैं, परंतु इनका उपयोग वैज्ञानिक दिशानिर्देशों के अंतर्गत होना चाहिए। उच्च जोखिम समूहों के लिए वार्षिक टीकाकरण संक्रमण से सुरक्षा का प्रभावी उपाय है। सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना, हाथों की स्वच्छता और सामाजिक दूरी जैसे व्यवहारगत परिवर्तन संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त, एक सशक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र, समयबद्ध डेटा संग्रह और प्रतिक्रिया तंत्र की दक्षता ही इस प्रकार के विषाणुजन्य संक्रमणों के दीर्घकालिक नियंत्रण में सहायक हो सकती है।
प्रश्न 93. भारतीय रेल द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले जैव शौचालयों (बायो-टॉयलेट्स) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1. जैव शौचालयों में मानव अपशिष्ट का अपघटन फंगल इनॉकुलम (fungal inoculum) द्वारा उपक्रमित (इनिशिएट) होता है।
2. इस अपघटन के अंत्य उत्पाद केवल अमोनिया एवं जल वाष्प होते हैं, जो वायुमंडल में निर्मुक्त हो जाते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तरः (d)
भारतीय रेल द्वारा उपयोग किए जा रहे जैव शौचालयों की कार्यप्रणाली एनेरोबिक जैव अपघटन पर आधारित है, जिसमें मानव अपशिष्ट का अपघटन फंगल इनॉकुलम के बजाय विशिष्ट एनेरोबिक बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है। ये बैक्टीरिया रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा विकसित तकनीक के अंतर्गत बायो-डाइजेस्टर टैंक में संरक्षित रहते हैं और ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपशिष्ट पदार्थ को चरणबद्ध रूप से अपघटित करते हैं। यह प्रक्रिया पारंपरिक सीवेज प्रणाली के विपरीत एक स्थायी, जल-स्वतंत्र और स्थलविशिष्ट समाधान प्रदान करती है, जिससे पटरियों पर अपशिष्ट उत्सर्जन की समस्या से निजात मिलती है और पर्यावरणीय स्वच्छता को बढ़ावा मिलता है।
इस जैव अपघटन प्रक्रिया में उत्पन्न अंतिम उत्पाद केवल अमोनिया और जलवाष्प नहीं होते। अपघटन के दौरान अनेक गैसीय और द्रव रूप उत्पाद उत्पन्न होते हैं, जिनमें मुख्यतः मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें शामिल होती हैं। इसके अतिरिक्त, अपघटित अपशिष्ट से शेष जल भी निकलता है, जिसे बाह्य निकास के माध्यम से बाहर छोड़ दिया जाता है। यह जल अपेक्षाकृत स्वच्छ होता है, किंतु इसे पूर्णतः शुद्ध नहीं माना जा सकता। अतः यह दावा कि जैव शौचालयों से केवल अमोनिया और जल वाष्प ही निर्मुक्त होते हैं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से असत्य है और अपघटन की जटिलता को सरलीकृत करता है।
जैव शौचालयों के प्रभावी संचालन हेतु तापमान, पीएच स्तर तथा बैक्टीरिया की सक्रियता जैसे सूक्ष्म पर्यावरणीय मानकों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। यदि ये परिस्थितियाँ अनुकूल न हों, तो अपघटन की गति मंद हो सकती है या प्रक्रिया निष्क्रिय हो सकती है, जिससे दुर्गंध, अवशिष्ट संचय और संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसके रखरखाव हेतु नियमित निरीक्षण, टैंक की सफाई और बैक्टीरियल कल्चर का नवीकरण अनिवार्य होता है। यह प्रणाली पर्यावरणीय संरक्षण, संसाधन दक्षता और स्वच्छता को एकीकृत करती है, परंतु इसके संचालन में वैज्ञानिक अनुशासन और सतत तकनीकी निगरानी की आवश्यकता अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 94. अंतर्राष्ट्रीय नकदी (लिक्किडिटि) की समस्या निम्नलिखित में से किसकी अनुपलब्धता से संबंधित है?
(a) वस्तुएं और सेवाएं
(b) सोना और चांदी
(c) डॉलर और अन्य दुर्लभ मुद्राएं (हार्ड करेंसीज़)
(d) निर्यात-योग्य बेशी (सरप्लस)
उत्तर: (c)
अंतर्राष्ट्रीय नकदी की समस्या का संबंध वैश्विक विनिमय प्रणाली में प्रयुक्त दुर्लभ मुद्राओं, विशेषकर अमेरिकी डॉलर, यूरो, पाउंड और येन जैसी हार्ड करेंसीज़ की सीमित उपलब्धता से है। वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेन-देन मुख्यतः इन मुद्राओं में ही संपन्न होते हैं, क्योंकि इनकी स्थिरता, परिवर्तनीयता और व्यापक स्वीकार्यता इन्हें अंतर्राष्ट्रीय विनिमय का मानक बनाती है। जब विश्व अर्थव्यवस्था में मांग के अनुपात में इन मुद्राओं की आपूर्ति बाधित होती है, विशेषकर वैश्विक आर्थिक संकट, भू-राजनीतिक तनाव या मौद्रिक कसावट की स्थितियों में, तब यह समस्या तीव्र रूप धारण कर लेती है और अनेक देशों के लिए उनके बाह्य दायित्वों को पूरा करना कठिन हो जाता है।
इस स्थिति में सबसे अधिक प्रभावित वे देश होते हैं जिनकी अपनी मुद्रा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तनीय नहीं होती और जिनके पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं होता। ऐसे देशों को अपने आयात बिल चुकाने, ऋण भुगतान और पूंजीगत आय प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए हार्ड करेंसी की आवश्यकता होती है। यदि निर्यात पर्याप्त नहीं हो या पूंजी प्रवाह बाधित हो जाए, तो भुगतान असंतुलन उत्पन्न होता है। इसके परिणामस्वरूप वे देश मुद्रा अवमूल्यन, विदेशी ऋण पर निर्भरता और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की कठोर शर्तों के अधीन आ जाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक संप्रभुता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और दीर्घकालीन अस्थिरता का खतरा उत्पन्न होता है।
इस संकट के समाधान हेतु कुछ देशों ने विशेष आहरण अधिकारों का उपयोग, द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप समझौते और बहुपक्षीय वित्तीय सहयोग जैसे उपायों को अपनाया है। इसके साथ ही, क्षेत्रीय मुद्राओं में व्यापार को प्रोत्साहन देने तथा मुद्रा भंडार के विविधीकरण की रणनीतियाँ विकसित की जा रही हैं, किंतु फिर भी हार्ड करेंसी पर निर्भरता बनी हुई है। अमेरिकी डॉलर की केंद्रीय भूमिका के कारण वैश्विक विनिमय प्रणाली एकध्रुवीय बनी रहती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय नकदी की समस्या न केवल आर्थिक असंतुलन का परिणाम है, बल्कि यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की संरचनात्मक असमानता और शक्ति-विन्यास को भी प्रतिबिंबित करती है।
प्रश्न 95. ‘फ्यूल सेल्स’ (Fuel Cells), जिसमें हाइड्रोजन से समृद्ध ईंधन और ऑक्सीजन का उपयोग विद्युत पैदा करने के लिए होता है, के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यदि शुद्ध हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन के रूप में होता है, तो फ्यूल सेल उप-उत्पाद (बाइ-प्रोडक्ट) के रूप में ऊष्मा एवं जल का उत्सर्जन करता है।
2. फ्यूल सेल्स का उपयोग भवनों को विद्युत प्रदाय के लिए तो किया जा सकता है, किंतु लैपटॉप कंप्यूटर जैसी छोटी युक्तियों (डिवाइसेज़) के लिए नहीं।
3. फ्यूल सेल्स प्रत्यावर्ती धारा (AC) के रूप में विद्युत उत्पादन करते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तरः (a)
फ्यूल सेल्स में जब शुद्ध हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक अभिक्रिया होती है, तब उप-उत्पाद के रूप में केवल जल और ऊष्मा का उत्सर्जन होता है। इस प्रक्रिया में न तो कार्बन डाइऑक्साइड और न ही अन्य प्रदूषक तत्व बनते हैं। यह एक स्वच्छ और दक्ष ऊर्जा उत्पादन प्रणाली है, जिसमें हाइड्रोजन ईंधन को ऑक्सीजन के साथ संयोजित कर इलेक्ट्रॉनों की गति से विद्युत उत्पन्न की जाती है। यह प्रतिक्रिया एक इलेक्ट्रोलाइट की उपस्थिति में नियंत्रित होती है, जिससे प्राप्त ऊर्जा को उपयोग में लाया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में यदि शुद्ध हाइड्रोजन प्रयुक्त हो, तो केवल जल वाष्प और ऊष्मा ही अंतिम उत्पाद होते हैं।
फ्यूल सेल्स के उपयोग को केवल भवनों तक सीमित मानना एक तकनीकी भ्रांति है। फ्यूल सेल्स को विभिन्न आकारों और क्षमता में विकसित किया गया है, जिनमें लघु आकार की प्रणालियाँ पोर्टेबल और व्यक्तिगत उपकरणों के लिए अनुकूल होती हैं। प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन फ्यूल सेल्स (PEMFC) जैसे स्वरूप, जिनकी ऊर्जा घनता अधिक होती है, का उपयोग लैपटॉप, स्मार्टफोन चार्जर, चिकित्सा उपकरणों, सैन्य संचार साधनों और अंतरिक्ष उपकरणों में भी किया गया है। इन प्रणालियों की कार्यक्षमता और दक्षता उन्हें सीमित नहीं करती, बल्कि उनकी अनुप्रयोग-क्षमता को विविध क्षेत्रों तक विस्तारित करती है। इसलिए यह कथन तथ्यात्मक रूप से असत्य है कि इनका उपयोग केवल भवनों के लिए ही किया जा सकता है।
फ्यूल सेल्स से उत्पन्न विद्युत की प्रकृति दिष्ट धारा (DC) होती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनों की गति एक ही दिशा में होती है। घरेलू एवं औद्योगिक उपकरणों की कार्यप्रणाली के लिए प्रत्यावर्ती धारा (AC) की आवश्यकता होती है। इस अंतर को संतुलित करने के लिए इन्वर्टर का प्रयोग किया जाता है, जो DC को AC में परिवर्तित करता है। फ्यूल सेल की रचना तथा कार्यप्रणाली उसे सीधे AC उत्पादन में सक्षम नहीं बनाती। इस तकनीकी यथार्थ को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह प्रणाली प्रारंभिक रूप में AC विद्युत नहीं देती, बल्कि उसका उत्पादन रूपांतर के उपरांत ही संभव होता है। अतः यह कथन भी तथ्यात्मक रूप से गलत है।
प्रश्न 96. कलमकारी चित्रकला निर्दिष्ट (रेफर) करती है-
(a) दक्षिण भारत में सूती वस्त्र पर हाथ से की गई चित्रकारी
(b) पूर्वोत्तर भारत में बांस के हस्तशिल्प पर हाथ से किया गया चित्रांकन
(c) भारत के पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में ऊनी वस्त्र पर ठप्पे (ब्लॉक) से की गई चित्रकारी
(d) उत्तर-पश्चिमी भारत में सजावटी रेशमी वस्त्र पर हाथ से की गई चित्रकारी
उत्तरः (a)
कलमकारी चित्रकला एक पारंपरिक वस्त्रशिल्प है जो मुख्यतः दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्रों में प्रचलित है। यह चित्रकला सूती कपड़ों पर हाथ से की जाती है, जिसमें बाँस की नोक वाली विशेष कलम का उपयोग होता है। ‘कलम’ से आशय उस उपकरण से है जिससे प्राकृतिक रंगों को कपड़े पर अंकित किया जाता है। इस कला में वस्त्र को पहले हिराड़ या हरड़ के घोल में भिगोया जाता है ताकि वह रंग ग्रहण करने योग्य बन सके। इसके पश्चात विस्तृत और जटिल रेखांकन कर उस पर प्राकृतिक रंगों की अनेक परतें चढ़ाई जाती हैं, जिससे चित्रों को गहराई और सौंदर्य मिलता है।
कलमकारी की दो प्रमुख शैलियाँ हैं- श्रीकालहस्ती और माचिलिपटनम। श्रीकालहस्ती शैली पूरी तरह हस्तनिर्मित होती है और इसमें धार्मिक तथा पौराणिक कथाओं का चित्रण अत्यंत सूक्ष्मता से किया जाता है। इसमें देवी-देवताओं, महाकाव्य दृश्यों और मंदिरों की कथाओं को रूपायित किया जाता है। इसके विपरीत माचिलिपटनम शैली में पहले से बने लकड़ी के ब्लॉक्स का उपयोग डिज़ाइन को छापने के लिए किया जाता है, किन्तु रंगों और सूक्ष्म विवरणों के लिए हाथ से चित्रण अनिवार्य होता है। दोनों शैलियों में उपयोग होने वाले रंग वृक्षों की छाल, फूलों, गोंद, लाह और अन्य जैविक स्रोतों से तैयार किए जाते हैं।
इस चित्रकला की एक विशेषता यह है कि यह न केवल सौंदर्य के लिए प्रयुक्त होती है बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक सन्देश देने का माध्यम भी है। कलमकारी चित्रण में प्रतीकों, रेखाओं और रंगों के माध्यम से कथ्य की गहनता प्रकट होती है। यह चित्रकला आज भी पारंपरिक वस्त्रों, परिधानों, परदों और दीवार सज्जा में देखी जाती है। वर्तमान में इसे शिल्प सहकारी समितियों, डिजाइन संस्थानों और निजी कलाकारों द्वारा संरक्षण और नवाचार के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है। यह चित्रकला न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत की परिचायक है, बल्कि इसकी सतत प्रासंगिकता को भी रेखांकित करती है।
प्रश्न 97. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ‘बीज ग्राम संकल्पना (सीड विलेज कॉन्सेप्ट)’ के प्रमुख उद्देश्य का सर्वोत्तम वर्णन करता है?
(a) किसानों को अपने ही खेत के बीजों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें दूसरों से बीज खरीदने के लिए हतोत्साहित करना
(b) किसानों को गुणतायुक्त बीज उत्पादन का प्रशिक्षण देने में लगाना और उनके द्वारा दूसरों को समुचित समय पर तथा वहन करने योग्य लागत में गुणतायुक्त बीज उपलब्ध कराना
(c) कुछ ग्रामों को अनन्य रूप से प्रमाणित बीजों के उत्पादन के लिए ही उद्दिष्ट (इयरमार्क) करना
(d) ग्रामों में उद्यमियों को अभिज्ञात (आइडेंटिफाइ) करना तथा उन्हें बीज कम्पनियों की स्थापना करने के लिए प्रौद्योगिकी और वित्त उपलब्ध कराना
उत्तर: (b)
‘बीज ग्राम संकल्पना’ का मूल उद्देश्य स्थानीय स्तर पर बीजों की गुणवत्ता, उपलब्धता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना है। इसके अंतर्गत चयनित गांवों में किसानों को प्रमाणित बीज उत्पादन की तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होता है, जिसमें उच्च उपज देने वाली किस्मों का चयन, फसल चक्र का पालन, रोग और कीट प्रबंधन तथा बीज प्रसंस्करण शामिल होता है। इससे किसान पारंपरिक बीजों की तुलना में अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर पाते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
इन प्रशिक्षित किसानों द्वारा उत्पादित बीजों को अन्य स्थानीय किसानों तक उचित समय और सुलभ मूल्य पर पहुँचाया जाता है। इससे बीज वितरण की कड़ी सुदृढ़ होती है और क्षेत्रीय स्तर पर बीज आपूर्ति श्रृंखला अधिक सक्षम बनती है। बीज ग्राम के किसान स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप अनुकूलित बीजों का उत्पादन करते हैं, जिससे जैविक विविधता के संरक्षण को भी बल मिलता है। इस प्रकार, यह संकल्पना न केवल कृषि उत्पादकता में वृद्धि करती है, बल्कि सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण सशक्तिकरण को भी बढ़ावा देती है।
बीज ग्राम संकल्पना का कार्यान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में बीजों की गुणवत्ता में सुधार का एक प्रभावी माध्यम बन चुका है। इससे किसानों की बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों पर निर्भरता कम होती है और वे आत्मनिर्भर बनते हैं। स्थानीय बीज उत्पादन से परिवहन और भंडारण की लागत भी घटती है, जिससे बीज वितरण अधिक समयबद्ध और सुलभ हो जाता है। दीर्घकालिक रूप से यह पहल स्थायी कृषि विकास को गति देती है और कृषि क्षेत्र में तकनीकी सशक्तिकरण का आधार तैयार करती है। यह संकल्पना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नवाचार और सहकारिता की भावना को प्रोत्साहित करती है।
प्रश्न 98. वर्ष-प्रतिवर्ष निरंतर घाटे का बजट रहा है। घाटे को कम करने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सी कार्रवाई/कार्रवाइयां की जा सकती है/हैं?
1. राजस्व व्यय में कमी लाना
2. नई कल्याणकारी योजनाएं आरंभ करना
3. उपदानों (सब्सिडीज़) का युक्तिकरण करना
4. उद्योगों का विस्तार करना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तरः (a)
लगातार बढ़ते राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की दिशा में सबसे प्राथमिक और प्रभावी उपाय राजस्व व्यय में कटौती है। राजस्व व्यय वे खर्च हैं जो सरकार की मूलभूत प्रशासनिक आवश्यकताओं, ब्याज भुगतान, पेंशन, वेतन और अनुत्पादक योजनाओं पर होते हैं। जब इन व्ययों पर नियंत्रण रखा जाता है, तब सरकार के व्यय पक्ष पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे घाटा सीमित होता है। इसके लिए अनावश्यक या कम प्रभावी योजनाओं की समीक्षा, प्रशासनिक दक्षता में सुधार और पारदर्शी व्यय प्रणाली की आवश्यकता होती है ताकि संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित हो सके।
घाटा कम करने की दूसरी निर्णायक रणनीति उपदानों का युक्तिकरण है। भारत जैसे देश में ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक क्षेत्रों में दी जा रही सब्सिडियों की मात्रा अत्यधिक होती है, जो कि सार्वजनिक वित्त पर गंभीर दबाव बनाती है। यदि इन सब्सिडियों को लक्षित लाभार्थियों तक ही सीमित कर दिया जाए, तो व्यय पर नियंत्रण पाया जा सकता है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) जैसी प्रणालियों के माध्यम से रिसाव को रोका जा सकता है। साथ ही, सब्सिडी की आवश्यकता और प्रभावशीलता की समय-समय पर समीक्षा आवश्यक है ताकि उनका बोझ अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम बना रहे और पारदर्शिता में वृद्धि हो।
उपरोक्त दोनों उपायों को लागू करने से सरकार के व्यय की दक्षता में सुधार होता है और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित किया जा सकता है। घाटे को कम करने के लिए नए कल्याणकारी कार्यक्रमों की शुरुआत या अल्पकालिक आर्थिक योजनाएं कारगर सिद्ध नहीं होतीं, क्योंकि वे व्यय को और बढ़ा देती हैं। घाटे को दीर्घकालिक रूप से नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है कि सरकार मौजूदा संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करे और केवल उन्हीं योजनाओं पर व्यय करे जिनका दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव स्पष्ट हो। इससे वित्तीय स्थायित्व को बल मिलता है और आर्थिक संतुलन बना रहता है।
प्रश्न 99. निम्नलिखित में से किसको/किनको ‘भौगोलिक सूचना (जिओग्राफ़िकल इंडिकेशन) की स्थिति प्रदान की गई है?
1. बनारसी जरी और साड़ियाँ
2. राजस्थानी दाल-बाटी-चूरमा
3. तिरुपति लड्डू
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
बनारसी ज़री और साड़ियों को भौगोलिक संकेतक का दर्जा प्राप्त है क्योंकि यह पारंपरिक हथकरघा शिल्प उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र से गहराई से जुड़ा हुआ है। इन साड़ियों की विशिष्टता उनके बारीक ज़री के कार्य, रेशमी धागों से बनी जटिल डिज़ाइन और धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्त्व में निहित है। इनके निर्माण में प्रयुक्त तकनीक और कलात्मकता पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक विधियों पर आधारित है, जो वाराणसी के बाहर की अन्य बुनाई से इन्हें भिन्न और विशिष्ट बनाती है। इस विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान के कारण इसे भौगोलिक संकेतक का प्रमाणन प्राप्त हुआ।
तिरुपति लड्डू को भी भौगोलिक संकेतक प्राप्त है, क्योंकि यह विशेष प्रकार का प्रसाद केवल तिरुपति बालाजी मंदिर में ही निर्मित और वितरित किया जाता है। इसकी तैयारी की विधि, सामग्री की गुणवत्ता और मंदिर की आध्यात्मिक परंपरा से इसका गहरा संबंध है। यह लड्डू श्रद्धालुओं के लिए केवल मिठाई नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का प्रतीक है। इसकी विशिष्ट पहचान, सीमित उत्पादन क्षेत्र और संस्कृति से जुड़े मूल्यों ने इसे भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने योग्य बनाया, जिससे इसकी प्रामाणिकता और गुणवत्ता को विधिक संरक्षण भी प्राप्त हुआ।
राजस्थानी दाल-बाटी-चूरमा को अभी तक भौगोलिक संकेतक का दर्जा नहीं मिला है, यद्यपि यह एक प्रमुख पारंपरिक व्यंजन है और राजस्थान की खानपान संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी लोकप्रियता और विशिष्ट स्वाद इसे क्षेत्रीय रूप से विशिष्ट अवश्य बनाता है, परंतु इसे GI टैग मिलने के लिए आवश्यक दस्तावेजीकरण, विशिष्ट निर्माण प्रक्रिया और कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है। इसके विपरीत, GI टैग केवल उन्हीं उत्पादों को मिलता है जिनकी उत्पादन पद्धति, क्षेत्रीयता और गुणवत्ता विशिष्ट प्रमाणित की जा सके।
प्रश्न 100. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/है?
1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (c)
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है जिसे 1987 में नवकरणीय ऊर्जा स्रोतों के वित्तपोषण और संवर्धन के उद्देश्य से स्थापित किया गया। यह कंपनी नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करती है। इसका पंजीकरण कंपनियों अधिनियम, 1956 के अंतर्गत हुआ और यह पूर्णतः भारत सरकार के स्वामित्व में है। इस संस्था का उद्देश्य भारत में स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी को राष्ट्रीय ऊर्जा मिश्रण में बढ़ाना है।
यह एजेंसी एक पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी भी है जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग कंपनी’ के रूप में मान्यता दी है। यह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास, लघु जलविद्युत, अपशिष्ट से ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता जैसे क्षेत्रों में ऋण, इक्विटी निवेश और अन्य वित्तीय साधनों द्वारा समर्थन प्रदान करती है। इसके द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं परियोजनाओं के पूर्व-निधिक मूल्यांकन, जोखिम विश्लेषण और क्रियान्वयन की निगरानी तक फैली होती हैं, जिससे स्थायित्व और गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है।
IREDA हरित वित्त (ग्रीन फाइनेंस) के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाती है। यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग कर ग्रीन बांड जारी करती है, जिससे पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं के लिए सस्ती और दीर्घकालिक पूंजी उपलब्ध हो सके। इसके प्रयास भारत को जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान करते हैं और टिकाऊ विकास की दिशा में ठोस आधार निर्मित करते हैं। इस एजेंसी की कार्यप्रणाली पारदर्शिता, नवाचार और जवाबदेही पर आधारित है, जिससे यह संस्था स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में एक कुशल वित्तीय स्तंभ के रूप में कार्य करती है।