मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू और विधानसभा निलंबित
राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने पर लागू किया जाता है। यह अनुच्छेद 356 के तहत लागू होता है और केंद्रीय सरकार को राज्य पर नियंत्रण स्थापित करने की अनुमति देता है। यह व्यवस्था, राज्य में संवैधानिक संकट या अस्थिरता से निपटने के लिए बनाई गई है, ताकि राज्य के नागरिकों का जीवन सुचारू रूप से चलता रहे।
राष्ट्रपति शासन का उद्देश्य राज्य सरकार और विधानसभा के कामकाज में अस्थिरता या संवैधानिक संकट की स्थिति में केंद्रीय शासन को लागू करना है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं करती या उसकी नीतियों में भारी असंवैधानिकता होती है। मणिपुर इसका ताजा उदाहरण है, जहां 2025 में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 356 में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर या अपने विवेक से राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं। यह तब लागू होता है जब राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए, जिससे राज्य की शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। इसमें राज्य सरकार के कार्य और विधानसभा की कार्यवाही निलंबित हो जाती है।
राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के बाद, इसे दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक होता है। अगर संसद अनुमोदन नहीं देती, तो राष्ट्रपति शासन स्वतः समाप्त हो जाता है। एक बार अनुमोदन प्राप्त होने के बाद, यह 6 महीने तक जारी रहता है और हर 6 महीने में इसे संसद की मंजूरी से बढ़ाया जा सकता है, परंतु इसकी अधिकतम अवधि 3 साल होती है।
राष्ट्रपति शासन लागू होने पर, राज्य सरकार की सारी शक्तियां केंद्रीय सरकार के पास चली जाती हैं। राज्यपाल की भूमिका अब केवल एक पर्यवेक्षक की हो जाती है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य राज्य के प्रशासन का संचालन करते हैं और राज्य के कानून व नीति निर्माण की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर आ जाती है।
राष्ट्रपति शासन का राज्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। राज्य सरकार और विधानसभा के निलंबन से स्थानीय राजनीति और प्रशासन अस्थिर हो जाते हैं। यह राज्य के राजनीतिक दलों के बीच सत्ता संघर्ष और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी को जन्म देता है। मणिपुर में इसे महसूस किया गया, जब राज्य सरकार की अस्थिरता के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
राष्ट्रपति शासन का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि राज्य विधानमंडल की शक्तियां संसद को हस्तांतरित कर दी जाती हैं। इसके माध्यम से, केंद्रीय सरकार राज्य के कानूनों और नीतियों के निर्णय में सक्रिय रूप से शामिल होती है। इससे राज्य में लागू होने वाली सभी प्रमुख योजनाओं और कार्यक्रमों पर केंद्रीय नियंत्रण हो जाता है।
राष्ट्रपति शासन के तहत, राज्य का उच्च न्यायालय अपनी कार्यप्रणाली में स्वतंत्र रहता है। इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति शासन का प्रभाव न्यायिक कार्यवाहियों पर नहीं पड़ता है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया किसी बाहरी दबाव के बिना स्वतंत्र रूप से चलती रहे। यह संवैधानिक प्रणाली की स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
राष्ट्रपति शासन के दौरान, संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में एस.आर. बोम्मई मामले में यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति की उद्घोषणा को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। यदि यह असंवैधानिक पाया जाता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है।
राष्ट्रपति शासन का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि यह राज्य के नागरिकों के जीवन को प्रभावित करता है। सरकार के अस्थिर होने से विकास की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। राज्य में केंद्रीय नियंत्रण से स्थानीय मुद्दों का समाधान कम प्राथमिकता प्राप्त करता है, जिससे आम जनता को परेशानी होती है। यह एक प्रशासनिक संकट उत्पन्न कर सकता है।
राष्ट्रपति शासन का एक और पहलू यह है कि यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है। इसका उद्देश्य केवल राज्य में संवैधानिक संकट का समाधान करना होता है। यह एक अस्थायी उपाय है और इसे लंबे समय तक जारी रखना संविधान के मूल्यों के खिलाफ होगा। यह राज्य की शासन व्यवस्था को शीघ्र सामान्य करने का प्रयास करता है।
निष्कर्षतः राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान का एक असाधारण प्रावधान है, जिसका उद्देश्य राज्य में संवैधानिक संकट से निपटना है। हालांकि, यह एक अस्थायी उपाय है और लंबे समय तक नहीं चल सकता। इसके द्वारा केंद्रीय सरकार राज्य पर नियंत्रण स्थापित करती है और राज्य की शासन व्यवस्था को सामान्य बनाने का प्रयास करती है। यह संविधान की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना आवश्यक है।