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किशोर मानस पर फिल्मों का प्रभाव

किशोरावस्था एक ऐसा समय है जब व्यक्ति मानसिक और शारीरिक विकास के प्रमुख दौर से गुजरता है। इस अवस्था में किशोर बाहरी दुनिया से प्रभावित होने लगते हैं और फिल्में इस समय उनके जीवन का अहम हिस्सा बन जाती हैं। फिल्में उनके दृष्टिकोण और व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।

फिल्में किशोरों के मानसिक विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। वे फिल्मों के पात्रों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं। उदाहरण के तौर पर, “तारे ज़मीन पर” जैसी फिल्में किशोरों को अपने अंदर छुपी हुई विशेषताओं को पहचानने का अवसर देती हैं, जो उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती हैं।

फिल्मों के माध्यम से किशोर अपने आदर्शों और सपनों को आकार देते हैं। नायक-नायिका के संघर्ष और उनकी सफलता को देखकर वे प्रेरित होते हैं। “रंग दे बसंती” जैसी फिल्में उन्हें देशभक्ति, संघर्ष और समाज के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराती हैं, जिससे वे अपने सपनों की ओर अग्रसर होते हैं।

किशोरों के मानसिक विकास में फिल्मों का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव यह होता है कि वे रिश्तों और भावनाओं को बेहतर समझ पाते हैं। “कपूर एंड सन्स” जैसी फिल्में न केवल परिवार के रिश्तों की जटिलताओं को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि कैसे किशोर अपने रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखें।

इसके साथ ही, फिल्में किशोरों को जीवन के जटिल पहलुओं पर सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। “3 इडियट्स” जैसी फिल्में शिक्षा प्रणाली और करियर के विषय पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं, और यह बताती हैं कि सफलता का मतलब सिर्फ अच्छे अंक नहीं, बल्कि जीवन में संतुष्टि भी होना चाहिए।

किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी फिल्में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। “गुजारिश” जैसी फिल्में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को उठाती हैं, जिससे किशोर यह समझ पाते हैं कि मानसिक विकार केवल एक बीमारी नहीं, बल्कि इसे सही तरीके से उपचारित किया जा सकता है।

सामाजिक दृष्टिकोण से, फिल्में किशोरों को समाज में हो रहे बदलावों के बारे में जागरूक करती हैं। “पीकू” जैसी फिल्में समाज के विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं और किशोरों को यह सिखाती हैं कि किस तरह से वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं।

किशोरों पर फिल्मों का नकारात्मक प्रभाव भी देखा जाता है। कई फिल्में हिंसा, नशे और अवैध गतिविधियों को महिमामंडित करती हैं। “राम गोपाल वर्मा की एंटरटेनमेंट” जैसी फिल्में किशोरों को गलत आदर्शों की ओर आकर्षित करती हैं, जो उनके मानसिक विकास के लिए हानिकारक हो सकती हैं।

फिल्मों के माध्यम से किशोर कभी-कभी अवास्तविक दुनिया में खो जाते हैं। वे फिल्म के पात्रों को अपना आदर्श मानते हैं और उनकी वास्तविकता से तुलना करने लगते हैं, जिससे वे मानसिक तनाव और असंतोष का शिकार हो सकते हैं। यह स्थिति किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है।

फिल्मों का प्रभाव किशोरों के जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में पड़ता है। सही फिल्में उन्हें समाज, रिश्तों और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती हैं, जबकि गलत फिल्में उन्हें अवास्तविक दुनिया की ओर खींच सकती हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि किशोर फिल्मों का चयन सोच-समझ कर करें।

परिवार और समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वे किशोरों को इस बारे में सही मार्गदर्शन दें। उन्हें यह समझाने की जरूरत है कि फिल्मों का चयन करते वक्त विचारशीलता और संतुलन बनाए रखना जरूरी है। इससे किशोर मानसिक रूप से सशक्त और जागरूक हो सकते हैं।

निष्कर्षत: फिल्में किशोरों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को आकार देती हैं। जहां एक ओर सही फिल्में उन्हें सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शन देती हैं, वहीं गलत फिल्में उनके जीवन में भ्रम और असंतोष उत्पन्न कर सकती हैं। इसलिए, किशोरों को उपयुक्त और सार्थक फिल्मों का चयन करने के लिए सही मार्गदर्शन और समर्थन की आवश्यकता है।

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