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प्रश्न: भारत की विदेश नीति के संदर्भ में प्रधान मंत्री मोदी की ऑस्ट्रिया यात्रा के महत्व का परीक्षण कीजिए। यह यात्रा रूस और पश्चिमी देशों के बीच भारत के संतुलन को किस प्रकार दर्शाती है?

Examine the significance of Prime Minister Modi’s visit to Austria in the context of India’s foreign policy. How does this visit reflect India’s balancing act between Russia and Western nations?

उत्तर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऑस्ट्रिया यात्रा भारत की विदेश नीति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ है, जो तीन दशकों बाद इस यूरोपीय राष्ट्र के साथ उच्चस्तरीय कूटनीतिक पुनर्संलग्नता को दर्शाती है। यह यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों के पुनरुत्थान का संकेत है, अपितु भारत की वैश्विक कूटनीतिक संतुलनकारी रणनीति का भी स्पष्ट परिचायक है।

ऑस्ट्रिया यात्रा का विदेश नीति में महत्व

(1) आर्थिक रणनीतिकीकरण: ऑस्ट्रिया के साथ सहयोग भारत को यूरोप के तकनीकी उन्नत और नवाचार-सक्षम अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ता है, जिससे भारत निवेश, निर्माण और हरित ऊर्जा क्षेत्रों में अपने दीर्घकालिक हितों को संरक्षित कर सकता है।

(2) बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: भारत यूरोपीय संघ (ईयू) से मुक्त व्यापार समझौते जैसी पहलों को आगे बढ़ाने हेतु ऑस्ट्रिया जैसे सदस्य राष्ट्रों के समर्थन का उपयोग कर सकता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में उसकी कूटनीतिक स्थिति सशक्त हो सके।

(3) तकनीकी सहभागिता का संवर्धन: ऑस्ट्रिया के उन्नत विज्ञान, स्मार्ट सिटी तकनीक और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की भागीदारी उसे आंतरिक विकास के साथ-साथ वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाती है।

(4) यूरोप में रणनीतिक उपस्थिति: यह यात्रा भारत की उस नीति का विस्तार है, जिसके तहत वह यूरोप के मध्यम आकार के देशों से जुड़ाव को प्राथमिकता देकर व्यापक महाद्वीपीय प्रभाव सुनिश्चित करता है, जिससे परंपरागत शक्तियों पर निर्भरता कम हो सके।

(5) वैचारिक समानता के माध्यम से जुड़ाव: ऑस्ट्रिया की लोकतांत्रिक व्यवस्था, स्थायित्व और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता भारत की विदेश नीति के मूल्यों के अनुकूल है, जिससे दोनों देशों के बीच नैतिक आधार पर भी सहयोग की संभावना सुदृढ़ होती है।

रूस-पश्चिम संतुलन में यात्रा की भूमिका

(1) रणनीतिक स्वायत्तता का निर्माण: भारत इस यात्रा के माध्यम से रूस के साथ संबंधों को बरकरार रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ बहुआयामी संपर्क स्थापित करता है, जो उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को यथार्थ रूप में परिलक्षित करता है।

(2) ऊर्जा निर्भरता का पुनर्संयोजन: रूस से ऊर्जा आपूर्ति की अनिश्चितताओं को दृष्टिगत रखते हुए, यूरोपीय साझेदारों के माध्यम से भारत ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करता है, जो दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

(3) तटस्थता की पुनः पुष्टि: ऑस्ट्रिया की तटस्थ विदेश नीति भारत को यूक्रेन संघर्ष जैसे विवादों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का नैतिक एवं कूटनीतिक औचित्य प्रदान करती है, जिससे भारत पर पक्षपात के आरोपों की संभावना घटती है।

(4) वैश्विक शक्ति केंद्रों से संतुलन: भारत अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधनों और रूस-चीन ध्रुव के बीच एक स्वतंत्र ध्रुव के रूप में उभरना चाहता है, जिसके लिए ऑस्ट्रिया जैसे राष्ट्रों से जुड़ाव उपयोगी माध्यम बनते हैं।

(5) बहुध्रुवीय व्यवस्था में लचीलापन: भारत की यह यात्रा विश्व में उभरती बहुध्रुवीयता को ध्यान में रखकर की गई एक सक्रिय कूटनीतिक पहल है, जिससे भारत अपनी स्वतंत्र नीति के साथ विभिन्न शक्तिकेंद्रों के साथ संवाद बनाए रखता है।

प्रधानमंत्री मोदी की ऑस्ट्रिया यात्रा भारत की संतुलनकारी विदेश नीति का जीवंत उदाहरण है, जिसमें न तो रूस से दूरी बनाई गई है और न ही पश्चिम से अत्यधिक निकटता। यह यात्रा भारत के गुटनिरपेक्ष मूल्यों को पुनर्परिभाषित करती है, जो बहुध्रुवीय विश्व में एक सक्षम, लचीले और आत्मनिर्भर शक्ति केंद्र के रूप में उसकी भूमिका को रेखांकित करती है।

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