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प्रश्न: क्वाड और ब्रिक्स के साथ अपनी गतिविधियों को संतुलित करने में भारत के सामने आने वाली दुविधाओं पर चर्चा कीजिए। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति इन बहुपक्षीय समूहों में इसकी भूमिका को कैसे प्रभावित करती है?

Discuss the dilemmas faced by India in balancing its engagements with QUAD and BRICS. How does India’s independent foreign policy influence its role in these multilateral groupings?

उत्तर: भारत की विदेश नीति का मूल आधार उसकी रणनीतिक स्वायत्तता है, जिसके अंतर्गत वह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभरने का प्रयास करता है। क्वाड और ब्रिक्स जैसी विरोधाभासी समूहों में समानांतर भागीदारी इसी संतुलनकारी रणनीति की जटिलता को दर्शाती है।

भारत के समक्ष प्रमुख दुविधाएँ 

(1) चीन के साथ प्रतिस्पर्धा बनाम सहयोग की उलझन: भारत क्वाड के माध्यम से चीन की आक्रामकता का संतुलन स्थापित करना चाहता है, किंतु ब्रिक्स में चीन की निर्णायक भूमिका भारत को द्वंद्व की स्थिति में रखती है जहाँ वह विरोध और संवाद दोनों में संतुलन साधने को विवश होता है।

(2) रूस के साथ रणनीतिक संबंधों की जटिलता: भारत की रक्षा निर्भरता और ऐतिहासिक सामंजस्य रूस के साथ गहरे हैं, परंतु क्वाड की अमेरिका-प्रधान संरचना रूस को असहज कर सकती है, जिससे भारत को अपने दोनों रणनीतिक भागीदारों के मध्य नाजुक संतुलन बनाए रखने की चुनौती उत्पन्न होती है।

(3) लोकतांत्रिक मूल्य बनाम व्यवहारिक यथार्थवाद: भारत क्वाड में लोकतांत्रिक मूल्यों और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है, जबकि ब्रिक्स में अधिनायकवादी राष्ट्रों की प्रभावशाली उपस्थिति उसकी वैचारिक स्थिरता को चुनौती देती है, जिससे नैतिक-राजनयिक असंतुलन की स्थिति बनती है।

(4) वैश्विक शासन में सुधार बनाम सत्ता संघर्ष: ब्रिक्स में भारत वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवाज़ बुलंद करता है, किंतु चीन और रूस का अपनी स्थिति बनाए रखने का आग्रह भारत की समान भागीदारी की आकांक्षा को सीमित करता है, जिससे उसकी वैश्विक नेतृत्व की रणनीति बाधित होती है।

(5) क्षेत्रीय सुरक्षा बनाम वैश्विक आर्थिक समन्वय: भारत क्वाड के ज़रिए इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता को साधता है, जबकि ब्रिक्स के माध्यम से वह वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में दक्षिण की आवाज़ को मज़बूती देता है, परंतु दोनों मंचों की प्राथमिकताओं का द्वंद्व संतुलन को कठिन बनाता है।

स्वतंत्र विदेश नीति का प्रभाव

(1) रणनीतिक स्वायत्तता की निरंतरता और व्यावहारिकता: भारत किसी भी सैन्य या वैचारिक गुट में समर्पित रूप से जुड़ने के बजाय विषय-आधारित जुड़ाव को प्राथमिकता देता है, जिससे वह ब्रिक्स और क्वाड दोनों में समावेशी रहते हुए संप्रभु निर्णयों की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रख सकता है।

(2) बहुपक्षीय मंचों में भूमिका का विवेकपूर्ण सीमांकन: भारत ब्रिक्स में वित्तीय सुधार, विकास वित्त और दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर केंद्रित रहता है, जबकि क्वाड में समुद्री सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और आपूर्ति श्रृंखला स्थिरता पर, जिससे वह दोनों मंचों में विषयगत प्राथमिकताओं के अनुरूप संतुलन बनाए रखता है।

(3) असमान गुटों में समावेश की कूटनीति: भारत अपनी विदेश नीति में संतुलन की उस रणनीति को अपनाता है जिसमें वह प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच संवाद और सहयोग को प्राथमिकता देता है, जिससे वह वैश्विक ध्रुवीकरण के बीच भी अपनी समावेशी उपस्थिति बनाए रखने में सक्षम रहता है।

(4) अंतर्विरोधों को कूटनीतिक संवाद द्वारा शमन: भारत क्वाड में चीन विरोधी धारणा को सार्वजनिक रूप से अस्वीकार करता है और ब्रिक्स में किसी गुटबंदी से परे रहकर मुद्दा-आधारित भागीदारी को बढ़ावा देता है, जिससे मंचों के अंतर्विरोधों को न्यूनतम रखते हुए वह अपनी स्थिति को स्थिर बनाए रखता है।

(5) बहुध्रुवीयता की ओर वैश्विक संक्रमण में संतुलनकारी भूमिका: भारत की स्वतंत्र विदेश नीति उसे अमेरिका और चीन के मध्य शक्ति संतुलन का वाहक बनाती है, जिससे वह दोनों ही खेमों में पक्ष लिए बिना एक जिम्मेदार और संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभरने की दिशा में सक्रिय रह सकता है।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति क्वाड और ब्रिक्स जैसे विचारधारात्मक रूप से विषम मंचों में इसकी सक्रिय भूमिका को संभव बनाती है। यह नीति रणनीतिक स्वायत्तता, व्यावहारिकता और बहुपक्षीय समावेशन का संयोजन प्रस्तुत करती है, जो भारत को वैश्विक शक्ति संतुलन में एक लचीली, स्वतंत्र और विश्वसनीय शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक है।

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