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प्रश्न: भारत में कामकाजी महिलाओं को कई सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके पेशेवर विकास और कार्य-जीवन संतुलन में बाधा उत्पन्न करती हैं। चर्चा कीजिए।

Working women in India encounter multiple social challenges that hinder their professional growth and work-life balance. Discuss.

उत्तर: भारत में महिलाएं तेजी से कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौतियां अभी भी उनकी राह में बाधा डालती हैं। लैंगिक असमानता, पारिवारिक दबाव, कार्यस्थल पर भेदभाव और सामाजिक अपेक्षाएं उनके पेशेवर विकास को सीमित करती हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए नीतिगत सुधार, जागरूकता और समावेशी कार्य प्रणाली की आवश्यकता है।

सामाजिक बाधाएं

(1) पितृसत्तात्मक मानसिकता: पारंपरिक समाज में महिलाओं से घरेलू जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है। कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने वाली महिलाओं को कई स्तरों पर अवरोधों का सामना करना पड़ता है। उनकी स्वतंत्रता एवं निर्णय लेने की क्षमता को अक्सर परिवार और समाज सीमित करते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास प्रभावित होता है।

(2) कार्यस्थल पर भेदभाव: भारतीय कार्यक्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलते। वेतन असमानता, पदोन्नति में भेदभाव और निर्णयकारी भूमिकाओं में सीमित भागीदारी उनकी पेशेवर उन्नति को बाधित करता है। कई उद्योगों में महिलाओं को नेतृत्व की जिम्मेदारी देने में हिचकिचाहट होती है, जिससे लैंगिक असमानता बनी रहती है।

(3) यौन उत्पीड़न: कार्यस्थलों पर कई महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास प्रभावित होता है। रिपोर्टिंग प्रक्रिया जटिल होने के कारण अनेक महिलाएं शिकायत दर्ज नहीं कर पातीं। संगठनों को सख्त सुरक्षा नीतियां लागू करनी चाहिए ताकि महिलाएं सुरक्षित और निष्कपट वातावरण में काम कर सकें।

(4) दोहरी ज़िम्मेदारियां: कामकाजी महिलाओं को घरेलू कार्यों और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना कठिन होता है। समाज की अपेक्षा होती है कि वे पारिवारिक दायित्वों को प्राथमिकता दें, जिससे उनके करियर विकास में बाधा आती है। इस दोहरे दबाव से महिलाओं की उत्पादकता प्रभावित होती है और वे मानसिक तनाव का अनुभव करती हैं।

(5) सामाजिक अपेक्षाएं: समाज में महिलाओं को पारिवारिक भूमिकाओं तक सीमित देखने की प्रवृत्ति है। विवाह और मातृत्व के बाद करियर छोड़ने का दबाव कई महिलाओं पर रहता है। ऐसे में उनके पेशेवर विकास की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं। परिवार और समाज को उनकी महत्वाकांक्षाओं को समझना और सहयोग प्रदान करना चाहिए।

कार्य-जीवन संतुलन की चुनौतियां

(1) लचीले कार्य घंटे का अभाव: अधिकांश कंपनियां महिलाओं के लिए अनुकूल कार्य-नीति लागू नहीं करतीं, जिससे उनका कार्य-जीवन संतुलन बाधित होता है। मातृत्व अवकाश, दूरस्थ कार्य और फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स जैसी नीतियों का विस्तार आवश्यक है ताकि महिलाएं अपने निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन बना सकें।

(2) बच्चों की देखभाल की समस्या: विश्वसनीय डे-केयर सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण माताएं अपने बच्चों की देखभाल में कठिनाइयों का सामना करती हैं। यह उनके करियर की निरंतरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। सरकार एवं निजी संस्थानों को गुणवत्तापूर्ण और सुलभ डे-केयर सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु पहल करनी चाहिए।

(3) सामाजिक दबाव: महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पारिवारिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दें, जिससे उनका कार्य प्रदर्शन प्रभावित होता है। सामाजिक मान्यताओं और पारिवारिक दायित्वों के कारण वे अपने करियर में पूरे मनोयोग से योगदान नहीं दे पातीं। समाज को उनकी पेशेवर महत्वाकांक्षाओं को समझकर सहयोग प्रदान करना चाहिए।

(4) निजी विकास पर प्रभाव: घर और कार्यस्थल की जिम्मेदारियों के कारण महिलाएं अपने कौशल विकास और शिक्षा पर ध्यान नहीं दे पातीं। इस वजह से उनके करियर में प्रगति धीमी हो जाती है। संगठनों को महिलाओं के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।

(5) काम से जुड़ी थकान: मानसिक और शारीरिक दबाव से महिलाओं में तनाव, चिंता और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अत्यधिक ज़िम्मेदारियों के कारण उनकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है। संगठनों और परिवारों को सहयोगी वातावरण प्रदान कर महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और कार्य संतुलन को सुधारने में मदद करनी चाहिए।

कामकाजी महिलाओं को सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उनके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है। हालाँकि, नीतिगत सुधार, जागरूकता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर इन बाधाओं को दूर किया जा सकता है। संगठनों, सरकार और समाज को मिलकर ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिसमें महिलाएं निर्बाध रूप से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। 

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