प्रश्न: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में अंतरिक्ष क्षेत्र के योगदान का विश्लेषण कीजिए। साथ ही भविष्य की आर्थिक वृद्धि को गति देने और अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाने में अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमता पर चर्चा कीजिए।
Analyse the contribution of the space sector to India’s GDP. Also discuss the potential of the space sector to drive future economic growth and enhance India’s global position in space exploration.
उत्तर: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र वैज्ञानिक प्रगति, रणनीतिक सक्षमता और आर्थिक विकास का एक बहुआयामी मंच है। यह केवल उपग्रह प्रक्षेपण या अनुसंधान का क्षेत्र न होकर अब राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, संचार, कृषि, रक्षा और वैश्विक सहयोग के लिए आधारशिला बन चुका है। इसकी परिधि अब आर्थिक नीतियों से जुड़ चुकी है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में अंतरिक्ष क्षेत्र का वर्तमान योगदान
(1) सीमित प्रत्यक्ष आर्थिक योगदान: 2022-23 में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का प्रत्यक्ष वित्तीय आकार ₹15,000 करोड़ था, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.06% है। यद्यपि यह अनुपात न्यून प्रतीत होता है, किंतु अंतरिक्ष क्षेत्र का बहुस्तर प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों पर अप्रत्यक्ष रूप से अधिक व्यापक और निर्णायक रूप में विद्यमान है।
(2) बहुपरतीय सेवा मूल्य संवर्धन: अंतरिक्ष आधारित सेवाओं—जैसे मौसम पूर्वानुमान, संचार और उपग्रह चित्रण—से कृषि, आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन तथा परिवहन में दक्षता बढ़ती है। ये सेवाएं देश की आर्थिक उत्पादकता और नीति-निर्धारण को दक्ष बनाती हैं, जिससे GDP का सेवा क्षेत्र सूक्ष्म रूप से लाभान्वित होता है और समग्र विकास को गति मिलती है।
(3) वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण से राजस्व: 2023 तक भारत ने 431 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर ₹6,000 करोड़ से अधिक का राजस्व अर्जित किया है। ये वाणिज्यिक प्रक्षेपण भारत को वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाते हैं और विदेशी मुद्रा भंडार को सुदृढ़ कर GDP के बाह्य क्षेत्रीय संतुलन को सहारा प्रदान करते हैं।
(4) रोजगार और कौशल वृद्धि: ISRO और उससे जुड़े सार्वजनिक व निजी संस्थान तकनीकी मानव संसाधनों को व्यापक रोजगार प्रदान करते हैं। अंतरिक्ष अभियंता, अनुसंधानकर्ता और विश्लेषक उच्च कौशल वाले रोजगार सृजन के माध्यम से न केवल सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता को बढ़ाते हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था में नवाचार और उत्पादकता को भी प्रेरित करते हैं।
(5) निजी स्टार्टअप और MSME भागीदारी: 2023 तक भारत में 150 से अधिक स्पेस स्टार्टअप सक्रिय हो चुके हैं, जिनमें Pixxel, Skyroot और Agnikul जैसे अग्रणी नाम हैं। ये निजी कंपनियाँ प्रौद्योगिकीय नवाचार और उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर GDP के औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा, निवेश और मूल्यवर्धन उत्पन्न कर रही हैं।
भविष्य की आर्थिक वृद्धि को गति देने में अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमता
(1) कृषि उत्पादकता में सटीकता: रिमोट सेंसिंग और भू-स्थानिक विश्लेषण कृषि भूमि के बेहतर प्रबंधन, फसल स्वास्थ्य मूल्यांकन और सिंचाई योजना में सहयोग करते हैं। इससे उत्पादन बढ़ता है, संसाधनों का न्यूनतम दुरुपयोग होता है और किसानों की आय में सुधार होता है, जो ग्रामीण GDP में गुणात्मक वृद्धि का आधार बनता है।
(2) डिजिटलीकरण और सेवा सशक्तिकरण: संचार उपग्रहों से देश के दूरस्थ क्षेत्रों में ई-शिक्षा, टेलीमेडिसिन और डिजिटल बैंकिंग जैसी सेवाएं संभव हो रही हैं। इससे सामाजिक समावेशन को बल मिलता है और सेवा आधारित अर्थव्यवस्था को विस्तार प्राप्त होता है, जिससे GDP का तीसरा खंड—सेवा क्षेत्र—नवीन ऊंचाई प्राप्त करता है।
(3) वैश्विक स्पेस डेटा मार्केट में प्रवेश: ISRO के उपग्रह उच्च गुणवत्ता वाले पृथ्वी अवलोकन डेटा प्रदान करते हैं, जिसकी वैश्विक मांग निरंतर बढ़ रही है। यदि भारत इस क्षेत्र में डेटा विश्लेषण और निर्यात को सशक्त करता है, तो सेवा निर्यात से GDP में योगदान के साथ-साथ रणनीतिक प्रभाव भी सुदृढ़ होगा।
(4) अंतरिक्ष निर्माण और लॉजिस्टिक्स: माइक्रो सैटेलाइट निर्माण, लांच व्हीकल कॉम्पोनेंट्स और स्पेस लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में निजी पूंजी निवेश आकर्षित हो रहा है। यह स्पेस मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री भारत में उभरते उद्योग के रूप में GDP के औद्योगिक घटक को गति दे सकती है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका बढ़ा सकती है।
(5) रक्षा और अंतरिक्ष सुरक्षा निवेश: स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली (NAVIC) और उपग्रह निगरानी क्षमताएं रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ा रही हैं। इसके कारण रक्षा उत्पादन और तकनीकी अधिष्ठान में निजी पूंजी और नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे रक्षा क्षेत्र का आर्थिक स्वरूप सशक्त हो रहा है और GDP में स्थायीत्व भी सुनिश्चित होता है।
अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाने की क्षमता
(1) लागत-दक्षता आधारित नेतृत्व: PSLV जैसे भारत के प्रक्षेपण यान विश्व के सबसे किफायती माने जाते हैं। यह क्षमता भारत को उभरते और विकासशील देशों का प्राथमिक प्रक्षेपण भागीदार बनाती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्पेस मार्केट में हिस्सेदारी बढ़ती है और भारत की वैश्विक आर्थिक छवि सशक्त होती है।
(2) बहुपक्षीय स्पेस कूटनीति: भारत BRICS स्पेस सहयोग, NASA-ISRO मिशनों और वैश्विक जलवायु उपग्रह साझेदारियों में भागीदार है। इस बहुपक्षीय सहयोग से भारत की रणनीतिक गहराई और टेक्नोलॉजिकल नेतृत्व बढ़ता है, जिससे वैश्विक नीति-निर्माण और विदेशी पूंजी निवेश में भारत की प्रासंगिकता निरंतर मजबूत होती जाती है।
(3) वैश्विक डेटा सेवा प्रदाता: भारत Earth Observation डेटा और उपग्रह चित्रण सेवाओं को अन्य देशों को निर्यात कर रहा है। यह सेवा निर्यात नीति-निर्धारण, पर्यावरण निगरानी और शहरी नियोजन में उपयोग होता है, जिससे भारत वैश्विक सूचना अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभा सकता है और मुद्रा प्रवाह में योगदान दे सकता है।
(4) दक्षिण-दक्षिण तकनीकी नेतृत्व: भारत अफ्रीकी और एशियाई देशों को अंतरिक्ष तकनीक, प्रशिक्षण और प्रक्षेपण सेवा उपलब्ध कराकर एक वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। यह तकनीकी राजनय भारत को वैश्विक दक्षिण का नेतृत्वकर्ता बनाता है और विकासशील राष्ट्रों में भारत की रणनीतिक साख को मजबूत करता है।
(5) संयुक्त राष्ट्र मंचों पर उपस्थिति: UNOOSA और COPUOS जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का सक्रिय योगदान अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण और न्यायसंगत उपयोग हेतु वैश्विक सहमति निर्माण में सहायक है। इससे भारत को वैश्विक स्पेस गवर्नेंस में प्रभावशाली भूमिका मिलती है और उसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव क्षेत्र सुदृढ़ होता है।
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और रणनीतिक स्वायत्तता में परिवर्तनकारी भूमिका निभा रहा है। यदि नीति, पूंजी और निजी सहभागिता में संतुलन सुनिश्चित किया जाए, तो यह क्षेत्र आने वाले दशक में भारत को आर्थिक महाशक्ति और वैश्विक नवाचार केंद्र बना सकता है।