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सृजनात्मकता का पोषण करने वाली शिक्षा की आवश्यकता

सृजनात्मकता जीवन के हर पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह हमें समस्याओं का समाधान ढूँढने, नए विचार उत्पन्न करने और समाज में नवाचार लाने के लिए प्रेरित करती है। यह क्षमता किसी भी व्यक्ति के मानसिक विकास का अभिन्न हिस्सा होती है और इसका पोषण एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली से ही संभव है।

हमारी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में अधिकतर बच्चों को जानकारी की पुनरावृत्ति और तथ्यों को याद करने पर बल दिया जाता है, जबकि सृजनात्मकता के पोषण के लिए बच्चों को स्वाध्याय, अनुभव और प्रयोग की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में रचनात्मकता का समुचित विकास नहीं हो पाता।

यदि शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाया जाए और छात्रों को ऐसे अवसर दिए जाएं जहां वे अपनी रचनात्मकता का परिचय दे सकें, तो वे न केवल बेहतर सीख पाएंगे, बल्कि समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए सक्षम होंगे। उदाहरण के तौर पर, प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग बच्चों को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का मौका देती है।

जब शिक्षा सृजनात्मकता का पोषण करती है, तो बच्चों में समस्याओं का हल खोजने की क्षमता विकसित होती है। वे पुराने तरीकों से हटकर नए समाधान ढूँढने के लिए प्रेरित होते हैं। यह उन्हें जीवन की चुनौतियों से निपटने की दिशा भी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, थॉमस एडिसन ने बिजली का बल्ब खोजने में कई प्रयोग किए, जो उनकी सृजनात्मकता का परिणाम था।

शिक्षा का असल उद्देश्य केवल तथ्यों का ज्ञान देना नहीं, बल्कि छात्रों को सोचने, समझने और सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने का है। छात्रों को ऐसे वातावरण में रखा जाना चाहिए, जहां वे अपने विचारों और दृष्टिकोणों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें। इसमें कला, संगीत और अन्य रचनात्मक गतिविधियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

सृजनात्मकता के विकास से बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है। जब वे अपनी रचनात्मकता के माध्यम से किसी समस्या का समाधान ढूंढते हैं या कोई नया विचार प्रस्तुत करते हैं, तो उन्हें अपने विचारों पर विश्वास होता है। इससे उनका मानसिक और भावनात्मक विकास भी होता है।

एक शिक्षक की भूमिका इस प्रक्रिया में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। शिक्षक ही वह मार्गदर्शक होते हैं जो बच्चों की रचनात्मक सोच को पहचानते हैं और उन्हें उस दिशा में प्रोत्साहित करते हैं। जब शिक्षक बच्चों को सही मार्गदर्शन देते हैं, तो वे अपनी सृजनात्मकता को और बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकते हैं।

सृजनात्मकता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा बच्चों को आत्मनिर्भर और समाज में परिवर्तन लाने के लिए तैयार करती है। जब छात्र अपने विचारों और दृष्टिकोणों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में सक्षम होते हैं, तो वे समाज में सकारात्मक बदलाव की दिशा में अग्रसर होते हैं। इसका उदाहरण महात्मा गांधी की स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व भूमिका है।

आज के समय में, कई विद्यालय और विश्वविद्यालय अपनी शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए नई तकनीकों और प्रोग्राम्स को अपना रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, ‘डिज़ाइन थिंकिंग’ जैसी प्रक्रियाएँ छात्रों की सृजनात्मकता को बढ़ावा देती हैं और उन्हें समस्याओं के समाधान के लिए नए तरीके सोचने के लिए प्रेरित करती हैं।

सृजनात्मकता का पोषण केवल बौद्धिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। बच्चों को एक ऐसा वातावरण प्रदान करना चाहिए, जो उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने, समझने और उनका सम्मान करने का अवसर दे। यह उन्हें समाज में अपने स्थान को पहचानने में मदद करता है।

सृजनात्मकता के पोषण से बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। जब बच्चे नए विचारों के साथ समस्याओं का समाधान करते हैं, तो वे न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक मार्गदर्शक बनते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान, तकनीकी और चिकित्सा के क्षेत्रों में नवाचार सृजनात्मकता के कारण ही संभव हो सका है।

सर्जनात्मक शिक्षा से बच्चों में एक विशेष मानसिकता विकसित होती है, जो उन्हें विश्व के बदलते संदर्भ में न केवल अनुकूल बनाती है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक भी बनाती है। बच्चों को यह समझने का अवसर मिलता है कि वे किस प्रकार समाज के विकास में भागीदार बन सकते हैं।

सृजनात्मकता का पोषण करने वाली शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता केवल बच्चों के व्यक्तिगत विकास के लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। जब हम बच्चों को स्वतंत्र सोच और रचनात्मकता का अवसर देते हैं, तो हम एक बेहतर और समृद्ध समाज का निर्माण करते हैं।

अंततः, यह स्पष्ट है कि सृजनात्मकता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा से हम ऐसी पीढ़ी तैयार कर सकते हैं जो न केवल अपनी ज़िंदगी में सफल हो, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव ला सके। यह शिक्षा हमें यह सिखाती है कि ज्ञान के साथ-साथ रचनात्मकता और सोचने की स्वतंत्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

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