शिक्षण अभिवृत्ति (भाग 2) – टॉपिक वाइज मटेरियल
शिक्षार्थी की विशेषताएं: किशोर और वयस्क शिक्षार्थी की अपेक्षाएं (शैक्षिक, सामाजिक/भावनात्मक और संज्ञानात्मक, व्यक्तिगत भिन्नताएं
(A) सामान्य परिचय
(1) शिक्षार्थी की संकल्पना: शिक्षार्थी शिक्षा-प्रक्रिया का केंद्रीय अंग है। उसकी विशेषताएं आयु, सामाजिक स्थिति, भावनात्मक परिपक्वता और संज्ञानात्मक क्षमता पर आधारित होती हैं। इन्हें समझे बिना प्रभावी शिक्षण संभव नहीं है।
(2) किशोर और वयस्क का अंतर: किशोर शिक्षार्थी विकासशील अवस्था में होते हैं, जहाँ पहचान-निर्माण और सामाजिक स्वीकृति की खोज प्रमुख होती है। इसके विपरीत वयस्क शिक्षार्थी व्यावहारिक दृष्टिकोण, आत्मनिर्देशन और अनुभव-आधारित अधिगम पर अधिक निर्भर रहते हैं।
(3) अध्ययन का महत्व: किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताओं का अध्ययन शिक्षण-पद्धति के चयन और क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है। यह भिन्नताओं के अनुरूप शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक अपेक्षाओं को स्पष्ट करता है।
(B) किशोर शिक्षार्थी की विशेषताएं
(1) शारीरिक विशेषताएं: किशोरावस्था तीव्र शारीरिक परिवर्तनों की अवस्था है। इस समय शरीर की वृद्धि तेज़ होती है और यौन परिपक्वता विकसित होती है। ऐसे परिवर्तन उनके आत्मविश्वास, आत्मछवि और व्यवहार पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
(2) बौद्धिक विशेषताएं: किशोर शिक्षार्थियों में अमूर्त चिंतन, तार्किक विश्लेषण और रचनात्मक सोच विकसित होती है। वे केवल तथ्यों को याद नहीं करते बल्कि उनका संबंध और प्रयोग समझने लगते हैं। समस्या-समाधान क्षमता इस चरण में परिपक्व होती है।
(3) भावनात्मक विशेषताएं: भावनात्मक अस्थिरता किशोरावस्था की प्रमुख विशेषता है। वे गुस्सा, चिड़चिड़ापन या संवेदनशीलता जल्दी प्रदर्शित करते हैं। आत्मसम्मान और स्वीकृति की तीव्र आवश्यकता उन्हें समूह और शिक्षक दोनों से मार्गदर्शन की ओर प्रेरित करती है।
(4) सामाजिक विशेषताएं: किशोर अपने साथियों और मित्रों से गहराई से प्रभावित होते हैं। समूह में पहचान पाने और नेतृत्व स्थापित करने की इच्छा रहती है। परिवार से स्वतंत्रता की चाह भी इसी अवस्था में बढ़ती है।
(5) नैतिक विशेषताएं: इस अवस्था में सही-गलत की समझ विकसित होती है। नैतिक मूल्यों, आदर्शों और सामाजिक आचार की नींव पड़ती है। अनुभव की कमी के कारण वे कभी-कभी विरोधाभासी निर्णय ले सकते हैं।
(6) व्यक्तिगत भिन्नताएं: हर किशोर शिक्षार्थी की क्षमताएं, रुचियाँ और अधिगम गति अलग होती है। शिक्षक को इन भिन्नताओं को पहचानकर उपयुक्त शिक्षण पद्धति अपनानी चाहिए ताकि सभी का संतुलित विकास हो सके।
(C) वयस्क शिक्षार्थी की विशेषताएं
(1) आत्मनिर्देशित अधिगम: वयस्क शिक्षार्थी अपनी शिक्षा के प्रति जिम्मेदार होते हैं। वे तय करते हैं कि क्या, क्यों और कैसे सीखना है। उनका अधिगम स्व-प्रेरित और लक्ष्य-उन्मुख होता है।
(2) अनुभव आधारित अधिगम: वयस्कों के पास जीवन का व्यापक अनुभव होता है, जो उनके लिए एक संसाधन की तरह कार्य करता है। वे नए ज्ञान को अपने अनुभव से जोड़कर अधिक गहन समझ विकसित करते हैं।
(3) व्यावहारिकता और उपयोगिता: वयस्क शिक्षार्थी उन विषयों को प्राथमिकता देते हैं जो उनके जीवन, करियर या सामाजिक भूमिकाओं में सीधे उपयोगी हों। उनकी सीखने की प्रवृत्ति समस्या-समाधान केंद्रित होती है।
(4) सामाजिक और भावनात्मक परिपक्वता: इस अवस्था में भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी अधिक होती है। वे समूह अधिगम में सहयोगी होते हैं और दूसरों के दृष्टिकोण को सम्मान देते हैं।
(5) संज्ञानात्मक क्षमताएं: वयस्कों में विश्लेषण, मूल्यांकन और आलोचनात्मक चिंतन की क्षमता अधिक विकसित होती है। वे गहन अध्ययन और स्वतंत्र निष्कर्ष निकालने में सक्षम होते हैं।
(6) व्यक्तिगत भिन्नताएं: वयस्क शिक्षार्थियों की पृष्ठभूमि, अनुभव, रुचि और अधिगम शैली में काफी विविधता होती है। प्रभावी शिक्षण इन्हीं भिन्नताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
(D) किशोर और वयस्क शिक्षार्थी की व्यक्तिगत भिन्नताएं
(1) शारीरिक भिन्नताएं: किशोर शिक्षार्थी शारीरिक विकास की तीव्र अवस्था से गुजरते हैं, जहाँ ऊर्जा और असंतुलन दोनों देखने को मिलते हैं। इसके विपरीत वयस्क शिक्षार्थियों में शारीरिक स्थिरता अधिक होती है, किंतु थकान और स्वास्थ्य-संबंधी सीमाएं उनकी अधिगम क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।
(2) सामाजिक भिन्नताएं: किशोर अधिकतर साथियों और समूह की स्वीकृति पर निर्भर होते हैं। उनकी शिक्षा पर सामाजिक तुलना और प्रतिस्पर्धा का गहरा प्रभाव पड़ता है। वहीं, वयस्क शिक्षार्थी व्यावसायिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के अनुरूप सामाजिक संबंधों को संतुलित रखते हुए शिक्षा ग्रहण करते हैं।
(3) भावनात्मक भिन्नताएं: किशोर भावनात्मक रूप से संवेदनशील, अस्थिर और आत्म-पहचान की खोज में रहते हैं। उनके निर्णय अक्सर भावनाओं से प्रभावित होते हैं। दूसरी ओर, वयस्क शिक्षार्थी अपेक्षाकृत स्थिर, आत्म-नियंत्रित और जीवन-अनुभवों पर आधारित भावनात्मक परिपक्वता प्रदर्शित करते हैं।
(4) संज्ञानात्मक भिन्नताएं: किशोर ठोस से अमूर्त चिंतन की ओर बढ़ते हैं, जिसमें तर्क-वितर्क और जिज्ञासा प्रबल होती है। वहीं, वयस्क शिक्षार्थी व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हैं और अधिगम को सीधे अनुभव, समस्याओं और वास्तविक जीवन स्थितियों से जोड़ते हैं।
(5) शैक्षिक भिन्नताएं: किशोर शिक्षार्थी विविध विषयों का अन्वेषण करना चाहते हैं और उन्हें मार्गदर्शन व प्रेरणा की आवश्यकता होती है। वयस्क शिक्षार्थी लक्ष्योन्मुखी होते हैं और उनकी प्राथमिकता कैरियर, कौशल-विकास तथा समस्या समाधान पर केंद्रित रहती है।
(6) व्यक्तिगत भिन्नताओं के निहितार्थ: इन व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण-पद्धतियाँ तैयार करनी चाहिए। किशोरों के लिए संवादात्मक, सहयोगात्मक और प्रेरणादायी पद्धति प्रभावी है, जबकि वयस्कों के लिए अनुभव-आधारित, लचीली और आत्मनिर्देशित अधिगम पद्धतियाँ अधिक उपयुक्त सिद्ध होती हैं।
(E) निष्कर्ष
(1) समग्र दृष्टिकोण: किशोर और वयस्क शिक्षार्थियों की विशेषताएं शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और शैक्षिक स्तर पर स्पष्ट भिन्नता प्रस्तुत करती हैं। इन भिन्नताओं का अध्ययन शिक्षण को प्रभावी और शिक्षार्थी-केंद्रित बनाने हेतु अनिवार्य है।
(2) शिक्षण की प्रासंगिकता: यदि शिक्षण-पद्धति शिक्षार्थियों की आयु, रुचि और आवश्यकताओं के अनुरूप ढाली जाए, तो अधिगम न केवल सरल बल्कि सार्थक भी हो जाता है। यही शिक्षण की वास्तविक सफलता है।
(3) शिक्षा का उद्देश्य: शिक्षा का अंतिम उद्देश्य किशोरों में क्षमता-विकास और वयस्कों में जीवन-उपयोगी दक्षताओं का संवर्धन है। इस प्रकार व्यक्तिगत भिन्नताओं का सम्मान ही शिक्षा को सामाजिक, व्यावहारिक और मानवतावादी मूल्य प्रदान करता है।