शिक्षण अभिवृत्ति (भाग 1) – टॉपिक वाइज मटेरियल
शिक्षण: अवधारणाएं, उद्देश्य, शिक्षण का स्तर (स्मरण शक्ति, समझ और विचारात्मक), विशेषताएं और मूल अपेक्षाएं
शिक्षण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जिसका केंद्र बिंदु ज्ञान, कौशल और मूल्यों का सुनियोजित हस्तांतरण है। यह केवल सूचना देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक कला और विज्ञान का मिश्रण है जो शिक्षार्थी की क्षमता को अधिकतम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह औपचारिक और अनौपचारिक दोनों सेटिंग्स में होता है, जो मानवीय विकास की आधारशिला है। शिक्षण की गुणवत्ता शिक्षक की प्रभावशीलता और सीखने के माहौल के निर्माण पर निर्भर करती है।
शिक्षण की मुख्य अवधारणा एक गतिशील, अंतःक्रियात्मक प्रणाली के रूप में कार्य करना है जिसमें शिक्षक, शिक्षार्थी, पाठ्यक्रम और संदर्भ शामिल हैं। इसका उद्देश्य संज्ञानात्मक, भावात्मक और मनो-प्रेरक डोमेन में परिवर्तन लाना है। यह एक उद्देश्यपूर्ण गतिविधि है, जो आकस्मिक संचार से भिन्न है, और एक व्यवस्थित संरचना का पालन करती है ताकि वांछित शैक्षिक परिणाम प्राप्त किए जा सकें।
शिक्षण के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक संज्ञानात्मक विकास है, जिसका अर्थ है ज्ञान और समझ का प्रसार। इसका लक्ष्य छात्रों को तथ्यों, सिद्धांतों और अवधारणाओं से परिचित कराना है। यह उद्देश्य शिक्षार्थियों के लिए एक मजबूत बौद्धिक नींव बनाता है, जिस पर बाद में उच्च-स्तरीय सोच कौशल का निर्माण किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि छात्र अपने आस-पास की दुनिया को तर्कसंगत रूप से समझ सकें।
एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य कौशल अधिग्रहण है। शिक्षण का लक्ष्य छात्रों में व्यावहारिक और हस्तांतरणीय कौशल विकसित करना है। इसमें समस्या-समाधान, आलोचनात्मक विश्लेषण, रचनात्मकता और प्रभावी संचार शामिल हैं। ये कौशल छात्रों को केवल शैक्षणिक रूप से सफल बनाने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्हें वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करने और व्यावसायिक दुनिया में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भी सशक्त बनाते हैं।
शिक्षण का अंतिम उद्देश्य व्यवहारिक परिवर्तन लाना है। यह शैक्षिक प्रक्रिया का अंतिम परिणाम है। यदि शिक्षण प्रभावी रहा है, तो छात्र के दृष्टिकोण, मूल्यों और कार्यों में एक स्थायी और सकारात्मक बदलाव दिखाई देना चाहिए। यह उद्देश्य सुनिश्चित करता है कि शिक्षा व्यक्ति के समग्र आचरण को बेहतर बनाती है और उन्हें समाज का एक जिम्मेदार और उत्पादक सदस्य बनाती है।
शिक्षण का व्यापक उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है। इसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास शामिल है। एक संतुलित शैक्षिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि छात्र अच्छी तरह से विकसित व्यक्ति के रूप में बड़े हों, जो जीवन के सभी पहलुओं में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें। यह उद्देश्य छात्रों को जीवन भर सीखने और अनुकूलन करने के लिए आवश्यक लचीलापन और मानसिकता प्रदान करता है।
शिक्षण का पहला और सबसे बुनियादी स्तर स्मृति स्तर (MEMORY LEVEL) है। यह हर्बार्टियन सिद्धांत पर आधारित है और प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयुक्त है। इसका मुख्य जोर सूचनाओं को याद रखने, पहचानने और बनाए रखने पर है। शिक्षक सक्रिय होते हैं और छात्र निष्क्रिय प्राप्तकर्ता हो सकते हैं। मूल्यांकन में तथ्यों को पुनः प्रस्तुत करने की क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
स्मृति स्तर की मुख्य विशेषता तथ्यात्मक ज्ञान का रटन (ROTE LEARNING) है। इसमें ‘उद्दीपन-प्रतिक्रिया’ (STIMULUS-RESPONSE) संबंध स्थापित किया जाता है, जहाँ सही प्रतिक्रियाओं को सुदृढ़ किया जाता है। इस स्तर पर समझ या अनुप्रयोग की आवश्यकता नहीं होती है। यह बाद के उच्च स्तरों के लिए एक आवश्यक प्रारंभिक बिंदु है, क्योंकि समझ और विचारशीलता के लिए बुनियादी तथ्यों का ज्ञान आवश्यक है।
शिक्षण का दूसरा स्तर समझ स्तर (UNDERSTANDING LEVEL) है। यह स्मृति स्तर से अधिक परिष्कृत है और इसका उद्देश्य तथ्यों के बीच संबंधों और अंतर्निहित सिद्धांतों को समझना है। छात्र केवल याद नहीं करते; वे अवधारणाओं की व्याख्या करना, उदाहरण देना और गैर-उदाहरणों से अंतर करना सीखते हैं। इसमें शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
समझ स्तर की विशेषता अवधारणाओं का सामान्यीकरण (GENERALIZATION) है। छात्र सीखी हुई जानकारी को नए संदर्भों में लागू करना सीखते हैं। मूल्यांकन में अक्सर निबंध प्रश्न, वस्तुनिष्ठ प्रश्न और प्रदर्शन कार्य शामिल होते हैं जो छात्रों की व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक क्षमताओं का परीक्षण करते हैं। यह स्तर छात्रों को स्वतंत्र रूप से सोचने की दिशा में पहला कदम उठाने में मदद करता है।
शिक्षण का तीसरा और सर्वोच्च स्तर विचारात्मक स्तर (REFLECTIVE LEVEL) है। यह सबसे विचारशील और चुनौतीपूर्ण स्तर है। इसे समस्या-केंद्रित शिक्षण भी कहा जाता है। इसका लक्ष्य छात्रों में आलोचनात्मक सोच, तर्कशक्ति और स्वायत्त समस्या-समाधान क्षमताओं को विकसित करना है। शिक्षक की भूमिका एक सूत्रधार (FACILITATOR) की होती है, और छात्र पूरी तरह से सक्रिय होते हैं।
विचारात्मक स्तर की मुख्य विशेषता मौलिक सोच और रचनात्मकता है। छात्र समस्याओं की पहचान करते हैं, परिकल्पनाएँ तैयार करते हैं, डेटा एकत्र करते हैं, और निष्कर्ष निकालते हैं। यह स्तर वास्तविक जीवन की स्थितियों से संबंधित है और छात्रों को बौद्धिक रूप से परिपक्व बनाता है। मूल्यांकन में परियोजनाओं, सेमिनारों और शोध-आधारित असाइनमेंट के माध्यम से उच्च-क्रम की सोच का परीक्षण किया जाता है।
प्रभावी शिक्षण की प्रमुख विशेषताओं में से एक लचीलापन (FLEXIBILITY) है। एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया छात्रों की विविध आवश्यकताओं, सीखने की गति और शैलियों के अनुसार खुद को ढालने में सक्षम होनी चाहिए। एक प्रभावी शिक्षक पाठ योजनाओं को संशोधित कर सकता है और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न विधियों को अपना सकता है, जिससे समावेशिता सुनिश्चित होती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता अंतःक्रियाशीलता (INTERACTIVITY) है। शिक्षण एकतरफा व्याख्यान नहीं होना चाहिए; यह शिक्षक और छात्रों के बीच एक गतिशील संवाद होना चाहिए। सक्रिय भागीदारी, प्रश्नोत्तर सत्र, और समूह चर्चाएँ जुड़ाव को बढ़ाती हैं। यह बातचीत छात्रों को सामग्री के साथ गहराई से जुड़ने और सहयोगात्मक रूप से सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है।
शिक्षण की एक मूल अपेक्षा यह है कि यह उद्देश्यपूर्ण (PURPOSEFUL) होना चाहिए। प्रत्येक सत्र, पाठ और पाठ्यक्रम के स्पष्ट, मापने योग्य उद्देश्य होने चाहिए। ये उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया को दिशा प्रदान करते हैं और मूल्यांकन के लिए एक स्पष्ट ढांचा स्थापित करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि समय और संसाधन इष्टतम शैक्षिक परिणामों को प्राप्त करने पर केंद्रित हैं।
शिक्षण की एक और मूल अपेक्षा यह है कि यह विकासात्मक (DEVELOPMENTAL) होना चाहिए। इसका उद्देश्य छात्रों को स्मृति स्तर से विचारात्मक स्तर तक ले जाना है, जिससे संज्ञानात्मक जटिलता बढ़ती है। शिक्षण को व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देना चाहिए और छात्रों को आजीवन सीखने वाले, अनुकूली और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान करने चाहिए।