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समाज में अंधविश्वासों से चलता संघर्ष

समाज में अंधविश्वासों का प्रचलन एक गंभीर समस्या है, जो लंबे समय से हमारे समाज को प्रभावित कर रहा है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि समग्र समाज में विकास की गति को भी रुकता है। आज के विज्ञान और तर्कसंगत सोच में अंधविश्वास का कोई स्थान नहीं है।

हमारे समाज में अंधविश्वास के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। यह समाज के हर वर्ग में, चाहे वह गरीब हो या अमीर, हर स्थान पर पाया जाता है। तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक और अपशकुन जैसे विश्वास आम हो गए हैं। यह केवल एक धार्मिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दा भी है।

अंधविश्वास का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। जब लोग बिना किसी कारण के डर या भ्रम में जीते हैं, तो उनका मानसिक संतुलन प्रभावित होता है। उदाहरण स्वरूप, जब लोग यह मानते हैं कि किसी घटना से उनका भाग्य जुड़ा है, तो यह मानसिक अस्वस्थता का कारण बनता है।

समाज में इस प्रकार के विश्वासों का प्रचार-प्रसार शिक्षा की कमी का परिणाम है। जब लोगों को तर्क और विज्ञान की जानकारी नहीं होती, तब वे अवैज्ञानिक बातों को सच मान लेते हैं। इसके समाधान के लिए शिक्षा को एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जा सकता है।

युवाओं को अंधविश्वास से बचाने के लिए प्राथमिक शिक्षा महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, कई स्कूलों में ‘विज्ञान मेला’ आयोजित कर छात्रों को तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिचित कराया जाता है। इसके साथ ही, परिवार और समाज का भी यह दायित्व है कि वे बच्चों को सही शिक्षा दें।

मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उदाहरण स्वरूप, ‘दैनिक भास्कर’ और ‘एनडीटीवी’ जैसे समाचार चैनल अंधविश्वास पर आधारित कई डॉक्यूमेंट्री और रिपोर्ट्स प्रसारित करते हैं, जो लोगों को तर्क और विज्ञान के आधार पर सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।

अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने का भी वक्त आ चुका है। यदि सरकार इस दिशा में कदम उठाती है, तो यह एक ठोस कदम हो सकता है। कड़े कानून अंधविश्वास के प्रभाव को नियंत्रित कर सकते हैं और समाज में जागरूकता फैलाने में मदद कर सकते हैं।

समाज में अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष करने वाले समाजसेवियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब ये समाजसेवी या प्रसिद्ध व्यक्ति इस मुद्दे पर आवाज उठाते हैं, तो समाज में जागरूकता फैलती है। उनका प्रभाव बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक कदम साबित हो सकता है।

विज्ञान और तर्क का प्रचार अंधविश्वास से लड़ने का सबसे प्रभावी उपाय है। जब लोग समझेंगे कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से घटनाओं को देखा जाए, तो वे अधिक वास्तविक और प्रमाणिक प्रतीत होती हैं, तब वे अंधविश्वास से मुक्त होकर एक जागरूक समाज की ओर बढ़ेंगे।

हमारे देश में अंधविश्वासों के प्रभावों का सामना कर रहे लोगों को इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें अपने सामाजिक और धार्मिक विश्वासों को पुनः परखने की आवश्यकता है। केवल इस तरह से हम अंधविश्वास को समाप्त कर सकते हैं।

समाज में इस बदलाव को लाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और समाज के अन्य लोगों को जागरूक करना होगा। यह एक सामाजिक आंदोलन बन सकता है, जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आए।

समाज में अंधविश्वास को समाप्त करना केवल एक चुनौती नहीं, बल्कि एक आवश्यकता बन चुकी है। इसके लिए हमें शिक्षा, मीडिया, कानून और समाजसेवी संगठनों के माध्यम से सामूहिक प्रयास करना होगा। तभी हम एक स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले समाज का निर्माण कर सकते हैं।

निष्कर्षतः, अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष निरंतर जारी रखना आवश्यक है। इसे समाप्त करने के लिए शिक्षा, तर्कसंगत सोच और जागरूकता का प्रचार जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर और अंधविश्वास पर चर्चा करके समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।

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