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प्रश्न: क्षेत्रीय असमानताओं, सामाजिक-आर्थिक कारकों और शैक्षिक प्राप्ति में लैंगिक समानता हासिल करने के लिए आवश्यक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लिंग अंतराल का परीक्षण कीजिए।

Examine the gender gap in education in India, focusing on regional disparities, socio-economic factors and strategies needed to achieve gender parity in educational attainment.  

उत्तर: भारत में शिक्षा में लिंग अंतराल से तात्पर्य उस असमानता से है जो लड़कों और लड़कियों की शिक्षा में उपलब्धता, भागीदारी, गुणवत्ता और परिणामों में परिलक्षित होती है। यह अंतराल न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों का परिणाम है, बल्कि क्षेत्रीय असमानताएँ और आर्थिक कारक भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शिक्षा में लिंग अंतराल को उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक

(1) क्षेत्रीय असमानता और भौतिक बुनियादी ढाँचा: भारत के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा तक पहुँच की अत्यधिक कमी है। इन क्षेत्रों में विद्यालयों की अनुपलब्धता, परिवहन की कमी और संसाधनों का अभाव बालिकाओं के लिए विशेष रूप से शिक्षा की राह को कठिन बनाता है, जिससे लिंग अंतराल गहरा हो जाता है।

(2) सामाजिक-आर्थिक कारक और गरीबी: निम्न-आय वर्ग के परिवारों में प्राथमिकता लड़कों की शिक्षा को दी जाती है, क्योंकि यह माना जाता है कि लड़कियों को ससुराल भेजने के कारण उनकी शिक्षा पर किया गया निवेश आर्थिक दृष्टि से उतना लाभकारी नहीं होता। इसके परिणामस्वरूप, बालिकाओं की शिक्षा के अवसर घट जाते हैं और समाज में असमानताएँ बढ़ती हैं।

(3) पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण: भारत में व्यापक पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों को घर के कामकाज में संलिप्त किया जाता है और उनका स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति होती है। यह मानसिकता विशेषकर ग्रामीण और मध्यवर्गीय परिवारों में अधिक देखने को मिलती है, जिससे लिंग अंतराल में वृद्धि होती है।

(4) सुरक्षा और सामाजिक संरचनाओं की समस्या: लड़कियों के लिए विद्यालयों में शौचालयों की कमी, उनके लिए सुरक्षित परिवहन का अभाव और महिला शिक्षकों की अपर्याप्तता जैसे बुनियादी मुद्दे उनके शिक्षा में भागीदारी को रोकते हैं, जिससे शिक्षा में लिंग अंतराल और बढ़ जाता है।

(5) राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक अक्षमता: कभी-कभी राज्य स्तर पर लैंगिक समानता के प्रति नीतिगत बदलाव और योजनाओं का अभाव होता है। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और प्रशासनिक तंत्र की अक्षमता की वजह से सरकारी योजनाएँ जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं हो पातीं और बालिकाओं की शिक्षा में असमानता बनी रहती है।

लिंग समानता प्राप्त करने के लिए रणनीतियाँ

(1) लक्षित और क्षेत्रीय आधारित नीति-निर्माण: भारत के विविध सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, लिंग समानता के लिए शैक्षिक नीतियाँ बनानी चाहिए। इन नीतियों में प्रत्येक क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं को समाहित करते हुए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाए ताकि किसी भी क्षेत्र में बालिकाओं के लिए शैक्षिक अवसरों की कमी न हो।

(2) सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन: समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं और लड़कियों के शिक्षा के प्रति नजरिए को बदलना जरूरी है। यह सुनिश्चित करना कि समाज और परिवार दोनों में लड़कियों की शिक्षा को एक प्राथमिकता के रूप में देखा जाए, इससे पारंपरिक सोच में बदलाव लाया जा सकता है।

(3) आर्थिक और संरचनात्मक प्रोत्साहन: राज्य सरकारों को आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएँ लागू करनी चाहिए। यह योजनाएँ शैक्षिक उपकरणों, परिवहन सुविधाओं, छात्रवृत्तियों और स्कूल में बुनियादी सुविधाओं के रूप में हो सकती हैं, जिससे बालिकाओं के लिए शिक्षा सुलभ हो।

(4) संवेदनशील शैक्षिक अवसंरचना और शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार: विद्यालयों को शारीरिक रूप से ऐसी संरचनाओं से परिपूर्ण किया जाना चाहिए जो बालिकाओं के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक हो। शौचालयों, महिला शिक्षकों की संख्या, विद्यालयों के परिवहन और लिंग-समावेशी पाठ्यक्रमों की आवश्यकता को महसूस करते हुए, एक समावेशी शैक्षिक प्रणाली का निर्माण किया जाए।

(5) समाज और सरकार के बीच साझेदारी: शैक्षिक कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए समाज, सरकारी निकाय और गैर-सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी जरूरी है। यह साझेदारी सुनिश्चित कर सकती है कि बालिकाओं के लिए शिक्षा तक पहुँच सुलभ, सुरक्षित एवं प्रभावी हो और उन तक शिक्षा के समान अवसर पहुँच सकें।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लिंग अंतराल एक जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो संरचनात्मक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं को प्रभावित करती है। इसे सुलझाने के लिए सरकार, समाज और परिवारों को मिलकर कार्य करना आवश्यक है ताकि हर बालिका को समान शैक्षिक अवसर प्रदान किया जा सके।

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