प्रश्न: अंधविश्वासी प्रथाओं और शोषणकारी धार्मिक गतिविधियों से निपटने के लिए भारत में मौजूदा कानूनों की पर्याप्तता का परीक्षण कीजिए। क्या कोई राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून होना चाहिए? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
Examine the adequacy of existing laws in India to combat superstitious practices and exploitative religious activities. Should there be a national anti-superstition law? Justify your answer.
उत्तर: हाल ही में, उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक समागम में हुई भगदड़ में 120 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिससे यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या भारत में शोषणकारी धार्मिक और अंधविश्वासी प्रथाओं से निपटने के लिए पर्याप्त कानून हैं।
भारत में मौजूदा कानूनों की पर्याप्तता
(1) सीमित दायरा: भारत में अंधविश्वास को लक्षित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है। ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)’ [अब भारतीय न्याय संहिता (BNS)] हत्या (मानव बलि सहित) जैसे अपराधों को दंडित करती है, लेकिन व्यक्तिगत लाभ के लिए अंधविश्वासों का शोषण करने पर ध्यान नहीं देती है।
(2) राज्य-विशिष्ट अधिनियम: कर्नाटक अमानवीय दुष्ट प्रथाओं और काला जादू रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम, 2017 और महाराष्ट्र काला जादू रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम, 2013, बीमारियों के लिए जादू का उपयोग करने या मानव बलि जैसे विशिष्ट कृत्यों को अपराध मानते हैं। हालाँकि, वे अपने संबंधित राज्य अधिकार क्षेत्र तक ही सीमित हैं।
राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून: पक्ष और विपक्ष
(1) मजबूत निवारण: राष्ट्रीय कानून एक स्पष्ट रूपरेखा और कठोर दंड की व्यवस्था करेगा, जिससे शोषण और अन्य अवैध प्रथाओं को प्रभावी रूप से रोका जा सकेगा। इससे समाज में एक निश्चित अनुशासन स्थापित होगा और अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
(2) एकरूपता: राष्ट्रीय दृष्टिकोण से कानूनों की एकरूपता सुनिश्चित होगी, जिससे पूरे देश में समान न्याय मिल सकेगा। यह राज्य-विशिष्ट कानूनों की खामियों को दूर करेगा और एकजुटता को बढ़ावा देगा, जिससे कानून का पालन सुनिश्चित होगा।
(3) पीड़ितों को सशक्त बनाना: एक स्पष्ट कानूनी ढांचा पीड़ितों को अपनी शिकायतों को रिपोर्ट करने और न्याय प्राप्त करने के लिए सशक्त बना सकता है। इससे पीड़ितों को सुरक्षा मिलती है और वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा सकते हैं।
(4) अंधविश्वास की परिभाषा: अंधविश्वास की परिभाषा व्यक्तिपरक हो सकती है और विभिन्न व्यक्तियों या समुदायों के लिए अलग-अलग हो सकती है। इसे बहुत व्यापक रूप से परिभाषित करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है और समाज में विवाद उत्पन्न कर सकता है।
(5) दुरुपयोग: इस कानून का दुरुपयोग वैध धार्मिक प्रथाओं या पारंपरिक मान्यताओं के खिलाफ किया जा सकता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित कर सकता है और धार्मिक समुदायों के बीच असहमति या तनाव पैदा कर सकता है।
(6) प्रवर्तन चुनौतियाँ: कानून का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षित और सक्षम कानून प्रवर्तन कर्मियों की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, मजबूत सामाजिक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है ताकि लोग इस कानून के महत्व और उद्देश्य को समझें।
राष्ट्रीय कानून का औचित्य
(1) कमजोर समूहों की सुरक्षा: राष्ट्रीय कानून कमजोर समूहों, विशेषकर महिलाओं को अंधविश्वासों पर आधारित हिंसा और शोषण से बचाने में प्रभावी हो सकता है। यह कानून उन्हें सुरक्षा प्रदान करेगा और समाज में उनके अधिकारों का संरक्षण करेगा, जिससे वे शोषण से मुक्त हो सकें।
(2) वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना: यह कानून वैज्ञानिक सोच और आलोचनात्मक तर्क को बढ़ावा देने में मदद करेगा। यह निराधार मान्यताओं और अंधविश्वासों को चुनौती देने का कार्य करेगा, जिससे समाज में विवेक और तर्कसंगत दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा।
(3) मानकीकरण और जागरूकता: राष्ट्रीय ढांचा जागरूकता को बढ़ावा देगा और विभिन्न प्रक्रियाओं को मानकीकृत करेगा। इससे राज्यों में कानून का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित होगा और लोग इस बारे में अधिक जागरूक होंगे, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा।
यद्यपि चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन फिर भी एक सुव्यवस्थित राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून, सामुदायिक पहुंच और शिक्षा के साथ मिलकर, शोषण पर काफी हद तक अंकुश लगा सकता है तथा अधिक तर्कसंगत समाज को बढ़ावा दे सकता है।