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प्रश्न: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में लोकमान्य तिलक के योगदान पर चर्चा कीजिए तथा राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सुधार और राजनीतिक जागृति को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।

Discuss the contribution of Lokmanya Tilak to India’s freedom movement and highlight his role in promoting national unity, social reform and political awakening.

उत्तर: लोकमान्य तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम ऐसे नेता थे जिन्होंने स्वराज की मांग को जन-जन का अधिकार बताया और राजनीतिक चेतना को जनता के हृदय में स्थापित किया। उन्होंने राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, सामाजिक सुधार और जनजागरण को एकीकृत करते हुए स्वतंत्रता संग्राम को एक सशक्त विचारधारा प्रदान की।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

(1) स्वराज की अवधारणा को जनांदोलन में परिवर्तित करना: तिलक ने स्वराज को केवल एक राजनीतिक मांग न मानकर, उसे प्रत्येक भारतीय का नैतिक अधिकार घोषित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि स्वतंत्रता की आकांक्षा भारत के हर वर्ग और क्षेत्र में एक समान प्रज्वलित हो।

(2) होम रूल आंदोलन की स्थापना द्वारा संगठित संघर्ष: 1916 में होम रूल लीग की स्थापना के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक स्थायी और संस्थागत आंदोलन की नींव रखी, जिसने देश के विभिन्न क्षेत्रों को स्वतंत्रता की साझा आकांक्षा में संगठित किया।

(3) कांग्रेस में गरम दल का नेतृत्व: तिलक ने कांग्रेस के नरमपंथियों से इतर एक नई राष्ट्रवादी धारा का नेतृत्व किया, जिसने प्रत्यक्ष राजनीतिक विरोध, स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा को स्वाधीनता संग्राम की रणनीति में सम्मिलित कर जनता को आंदोलित किया।

(4) क्रांतिकारियों के वैचारिक प्रेरणास्रोत: हालाँकि तिलक स्वयं हिंसा में विश्वास नहीं करते थे, लेकिन फिर भी उनकी लेखनी और विचारों ने भारतीय क्रांतिकारी युवाओं को आत्मबल, उद्देश्यबोध और औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध संघर्ष की मानसिकता से अनुप्रेरित किया।

(5) धार्मिक और भाषाई विविधता के मध्य एकता का प्रयास: तिलक ने भारत की सांस्कृतिक बहुलता को राष्ट्रीय एकता का आधार मानते हुए आंदोलन को ऐसा स्वरूप दिया जिसमें विभिन्न धर्म, जातियाँ और प्रांतीयता समाहित होकर एक साझा राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए संगठित हो सकें।

राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सुधार एवं राजनीतिक चेतना में योगदान

(1) राजनीतिक उग्रवाद की स्थापना: तिलक ने ब्रिटिश राज की नरम आलोचना करने वाली कांग्रेस की रणनीति को छोड़, स्पष्ट और प्रत्यक्ष विरोध की नीति अपनाई, जिससे राजनीतिक संघर्ष को औपनिवेशिक शासन की सीमाओं से बाहर लाकर आम जनता की भागीदारी से जोड़ा गया।

(2) जन-जागरण के लिए सांस्कृतिक उत्सवों का प्रयोग: उन्होंने गणेशोत्सव और शिवाजी महोत्सव जैसे आयोजनों को सामूहिक राजनीतिक चेतना का माध्यम बनाया, जो धार्मिक भावना को राष्ट्रीय एकता और स्वाभिमान से जोड़ते हुए एकजुटता और आंदोलन के लिए सामाजिक आधार बन सके।

(3) राष्ट्रीय शिक्षा का दृष्टिकोण: तिलक का विश्वास था कि औपनिवेशिक शिक्षा भारतीय आत्मबल को नष्ट कर रही है, इसलिए उन्होंने स्वदेशी संस्थानों के माध्यम से ऐसी शिक्षा को बढ़ावा दिया जो राष्ट्रीय गौरव, आत्मनिर्भरता और वैचारिक स्वतंत्रता का विकास करे।

(4) समाज सुधार में व्यावहारिक दृष्टिकोण: यद्यपि तिलक पारंपरिक मूल्यों के प्रति सम्मान रखते थे, लेकिन उन्होंने समाज सुधार की आवश्यकता को समझते हुए उसे धार्मिक-सांस्कृतिक मूल्यों के भीतर संतुलित करने का प्रयास किया, जिससे सुधार आंदोलन सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त कर सके।

(5) पत्रकारिता के माध्यम से राजनीतिक विचारों का प्रचार: उन्होंने पत्रकारिता को केवल सूचना का माध्यम न मानकर, उसे जनमत निर्माण और वैचारिक सशक्तिकरण का माध्यम बनाया, जिससे जनता में राष्ट्रवाद, स्वराज और ब्रिटिश शासन के प्रति संघर्ष की चेतना उत्पन्न हुई।

लोकमान्य तिलक का योगदान केवल स्वतंत्रता की मांग तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारत की सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक संरचना और राजनीतिक विचारधारा को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ते हुए जनचेतना की वह नींव रखी जिस पर आने वाले दशकों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम दृढ़तापूर्वक खड़ा हो सका।

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