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प्रश्न: राज्यों के बीच केंद्रीय कर राजस्व के वितरण में समानता और दक्षता दोनों सुनिश्चित करने में वित्त आयोग (FC) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

Critically examine the role of the Finance Commission (FC) in ensuring both equity and efficiency in the distribution of Union tax revenue among states.

उत्तर: वित्त आयोग (FC) भारत के संघीय ढांचे में केंद्रीय करों के वितरण हेतु एक संवैधानिक तंत्र है, जो संसाधनों के न्यायसंगत विभाजन, क्षेत्रीय संतुलन और राजकोषीय उत्तरदायित्व के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय शक्ति संतुलित स्थापित करता है।

समानता सुनिश्चित करना

(1) पुनर्वितरण तंत्र: वित्त आयोग जनसंख्या, क्षेत्र और आय अंतर जैसे मानदंडों के आधार पर राज्यों के बीच संसाधनों को पुनर्वितरित करके समानता को प्राथमिकता देता है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य कम आय वाले राज्यों को अधिक संसाधन प्रदान करके क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना है।

(2) निम्न आय वाले राज्यों के लिए सहायता: 14वें वित्त आयोग की अवधि (2015-20) के दौरान, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे निम्न आय वाले राज्यों को पर्याप्त केंद्रीय वित्तीय हस्तांतरण प्राप्त हुआ, जिससे इन राज्यों को अपने सीमित कर राजस्व के बावजूद आवश्यक सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने में मदद मिली।

(3) राजकोषीय उत्तरदायित्व: वित्त आयोग की भूमिका यह सुनिश्चित करने तक है कि वर्तमान राजकोषीय नीतियों का बोझ भविष्य की पीढ़ियों पर न पड़े। इस सिद्धांत का अर्थ है कि राज्यों को वर्तमान व्यय के वित्तपोषण के लिए उधार पर अत्यधिक निर्भर नहीं होना चाहिए, जिससे भविष्य की पीढ़ियों पर ऋण का बोझ स्थानांतरित होने से बचा जा सके।

(4) कर और उधार संतुलन: वित्त आयोग की सिफारिशें राज्यों को जिम्मेदार कर नीतियों और सीमित उधार के माध्यम से अपने राजस्व और व्यय को संतुलित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

दक्षता सुनिश्चित करना

(1) कर प्रयास और राजकोषीय अनुशासन: वित्त आयोग राज्यों के राजकोषीय प्रदर्शन संकेतकों, जैसे- कर प्रयास और व्यय दक्षता के आधार पर कुछ संसाधन आवंटित करता है। हालांकि, ये संकेतक अक्सर इक्विटी संकेतकों की तुलना में कम वजन रखते हैं।

(2) सुधारों को प्रोत्साहित करना: वित्त आयोग राज्यों को अपने कर संग्रह तंत्र में सुधार करने तथा अपने वित्त का अधिक कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे समग्र राजकोषीय अनुशासन में वृद्धि होती है।

चुनौतियाँ और सिफारिशें

(1) इक्विटी बनाम दक्षता संतुलन: वर्तमान सूत्र इक्विटी को बहुत अधिक प्राथमिकता देता है, जो संभावित रूप से राजकोषीय दक्षता को हतोत्साहित करता है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे उच्च आय वाले राज्यों को उच्च कर प्रयासों और बेहतर राजकोषीय प्रबंधन के बावजूद कम हस्तांतरण प्राप्त होता है, जिससे घाटा बढ़ता है।

(2) पुनर्संतुलन की आवश्यकता: वित्त आयोग को वितरण सूत्र में राजकोषीय प्रदर्शन संकेतकों का भार बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। यह परिवर्तन राज्यों को अपने कर प्रयासों को बढ़ाने और व्यय को अधिक कुशलता से प्रबंधित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, जो अंतर-पीढ़ीगत समानता के लक्ष्य के साथ संरेखित होगा।

(3) सतत ऋण प्रबंधन: कुशल राजकोषीय प्रथाओं को बढ़ावा देकर, वित्त आयोग राज्यों को अपने ऋण को सतत ढंग से प्रबंधित करने में सहायता कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भावी पीढ़ियों पर वर्तमान राजकोषीय नीतियों का अनावश्यक बोझ न पड़े।

वित्त आयोग ने अंतर-पीढ़ीगत समानता को सफलतापूर्वक संबोधित किया है, लेकिन राजकोषीय दक्षता बढ़ाने और अंतर-पीढ़ीगत समानता सुनिश्चित करने के लिए इसके दृष्टिकोण को फिर से समायोजित करने की आवश्यकता है। राजकोषीय प्रदर्शन संकेतकों को अधिक महत्व देकर, वित्त आयोग राज्यों में जिम्मेदार वित्तीय प्रबंधन और सतत विकास को बढ़ावा दे सकता है।

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