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वैश्विक शांति की चुनौतियाँ

वैश्विक शांति का लक्ष्य एक आदर्श स्थिति है, जहां सभी राष्ट्र बिना किसी संघर्ष या हिंसा के आपसी सहयोग और सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित रहते हैं। लेकिन इस शांति की राह में कई जटिल चुनौतियाँ हैं, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में असंतोष और अशांति को बढ़ाती हैं।

आर्थिक असमानता वैश्विक शांति की सबसे बड़ी चुनौती है। दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के बीच संसाधनों का असमान वितरण कई बार संघर्षों का कारण बनता है। भारत में, जैसे कि झारखंड और बिहार जैसे राज्य गरीबी और बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं, वहीं पश्चिमी देशों में उन्नति ने असमानताएँ पैदा की हैं, जिनका असर अंतर्राष्ट्रीय शांति पर पड़ता है।

राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष भी शांति के लिए एक महत्वपूर्ण अवरोध है। जब किसी देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं होती, तो इससे आतंकवाद और युद्ध जैसे संकट उत्पन्न होते हैं। अफगानिस्तान और सीरिया में राजनीतिक अस्थिरता ने आतंकवाद और हिंसा को जन्म दिया है, जो वैश्विक शांति के लिए एक गंभीर चुनौती है।

धार्मिक असहिष्णुता और सांस्कृतिक भेदभाव भी वैश्विक शांति की दिशा में एक गंभीर समस्या है। भारत में, जबकि धर्मनिरपेक्षता का आदर्श है, लेकिन फिर भी धार्मिक असहमति और सांप्रदायिक संघर्ष कभी-कभी शांति के प्रयासों को विफल कर देते हैं। इसी प्रकार, मध्य पूर्व देशों में भी धर्म के नाम पर संघर्ष और हिंसा का खतरा बढ़ा है, जो वैश्विक शांति के लिए एक गंभीर चिंता है।

पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन वैश्विक शांति की दिशा में एक बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन, समुद्र स्तर में वृद्धि और बढ़ता प्रदूषण देशों के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है। भारत में बढ़ते सूखा, बाढ़ और तापमान परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय संकट, जबकि विकसित देशों में औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरणीय तनाव उत्पन्न हो रहे हैं, जो शांति की राह में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।

सैन्यीकरण और हथियारों की बढ़ती संख्या भी वैश्विक शांति के लिए खतरनाक है। सैन्य ताकत का विकास और हथियारों की होड़ से अंतर्राष्ट्रीय तनाव और युद्ध की आशंका बनी रहती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों की दौड़ और भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव ने शांति की स्थिति को चुनौती दी है।

संकीर्ण राष्ट्रीय हित और वैश्विक सहयोग की कमी भी शांति के प्रयासों में बाधक है। जब देशों के राष्ट्रीय हित वैश्विक कल्याण से ऊपर हो जाते हैं, तो वैश्विक सहयोग की भावना कमजोर पड़ती है। उदाहरण के तौर पर, ब्रेग्जिट और अमेरिका का पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना, वैश्विक सहयोग को कमजोर करता है, जो शांति की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।

मानवाधिकारों का उल्लंघन और सामाजिक असमानताएँ भी शांति की स्थापना में अवरोध उत्पन्न करती हैं। जब एक समुदाय या जाति के अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो यह संघर्षों को जन्म देता है। म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचार और चीन में उइगर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा इस बात का उदाहरण है कि मानवाधिकार उल्लंघन से शांति कैसे बाधित होती है।

मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव भी शांति के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। गलत जानकारी और नफरत की प्रचारित खबरें समाज में तनाव और विभाजन को बढ़ावा देती हैं। भारत में, जैसे कि केरल और उत्तर-पूर्व में कुछ सांप्रदायिक विवादों को मीडिया ने बढ़ावा दिया, जिससे शांति की राह में कठिनाइयाँ आईं। इसके अलावा, अमेरिका में भी सोशल मीडिया पर राजनीतिक विभाजन और नफरत फैलाने वाली सामग्री ने शांति की दिशा में रुकावटें उत्पन्न की हैं।

स्वास्थ्य संकट, जैसे- महामारी, वैश्विक शांति के लिए एक और बड़ी चुनौती हैं। कोविड-19 महामारी ने न केवल दुनिया भर में स्वास्थ्य संकट उत्पन्न किया, बल्कि इससे सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता भी बढ़ी। भारत और अमेरिका जैसे देशों में महामारी ने असहमति और तनाव को बढ़ावा दिया, जो वैश्विक शांति के प्रयासों को प्रभावित करता है।

शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी भी वैश्विक शांति की दिशा में बड़ी चुनौती है। जब लोग शांति और सहिष्णुता के महत्व को नहीं समझते, तो संघर्षों को रोकना कठिन हो जाता है। भारत में भी शिक्षा का असमान वितरण और सामाजिक असमानताओं के कारण शांति की प्रक्रिया में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। वहीं, अफ्रीका के कई देशों में शिक्षा की कमी और गरीबी के कारण हिंसा और संघर्ष का माहौल बना रहता है।

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की कमजोरी और वैश्विक सहयोग की कमी भी शांति की दिशा में एक बड़ी चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों की सीमित प्रभावशीलता ने शांति की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है। विश्व के अत्यधिक विकसित देशों को इन संस्थाओं को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि शांति स्थापना की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।

अंततः, वैश्विक शांति की स्थापना केवल शांति का आह्वान करने से संभव नहीं है। इसके लिए देशों को अपने आंतरिक और बाहरी संघर्षों को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। भारत, अमेरिका और अन्य देशों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा, ताकि एक स्थिर और समृद्ध दुनिया का निर्माण किया जा सके, जहाँ शांति का साम्राज्य स्थापित हो।

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