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प्रश्न: भारत में असंगठित क्षेत्र के उद्यमों में महिलाओं की हिस्सेदारी का आकलन कीजिए। इसके साथ ही चुनौतियों, अवसरों, आर्थिक सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता पर प्रभाव का पता लगाइए।  

Assess the share of women in unorganised sector enterprises in India. Also explore challenges, opportunities, economic empowerment and impact on gender equality.

उत्तर: भारत की महिला कार्यबल असंगठित क्षेत्र में व्यापक रूप से संलग्न है क्योंकि यह लचीलापन, घरेलू परिवेश और पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता की सुविधा देता है। किंतु यह भागीदारी संरचनात्मक असमानता और संस्थागत अवहेलनाओं के कारण स्थायी सशक्तिकरण में रूपांतरित नहीं हो पाती है।

महिलाओं की हिस्सेदारी एवं उससे जुड़ी चुनौतियाँ 

(1) अनौपचारिक श्रम में उच्च महिला भागीदारी: महिलाएं असंगठित क्षेत्र में कृषि, निर्माण, घरेलू कार्य एवं कुटीर उद्योगों में बहुसंख्यक हैं, किंतु यह श्रम अनौपचारिक, अदृश्य एवं असुरक्षित रहता है, जिससे उनकी उत्पादकता और मान्यता सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सीमित हो जाती है।

(2) वित्तीय समावेशन की न्यूनतम उपलब्धता: महिला उद्यमियों को संस्थागत ऋण, बचत योजनाओं और बीमा उत्पादों तक सीमित पहुंच है। यह वित्तीय असुरक्षा उन्हें पारंपरिक पूंजी स्रोतों पर निर्भर बनाती है, जिससे उनका व्यवसाय स्थायित्व, नवाचार और विस्तार के स्तर पर बाधित होता है।

(3) सामाजिक सुरक्षा और श्रम अधिकारों का अभाव: अधिकांश महिला श्रमिक बिना अनुबंध, न्यूनतम वेतन, मातृत्व अवकाश अथवा स्वास्थ्य बीमा के कार्यरत हैं। इस प्रकार का संस्थागत असंरक्षण उन्हें सामाजिक रूप से असहाय और आर्थिक रूप से अनिश्चितता की स्थिति में बनाए रखता है।

(4) पारिवारिक उत्तरदायित्व और सामाजिक वर्जनाएं: महिलाओं पर घरेलू कार्यों का एकतरफा भार, लैंगिक भूमिकाओं का निर्धारण और सामाजिक मान्यताओं का दवाब उन्हें उद्यमिता, स्वायत्तता और निर्णयात्मक पदों तक पहुंचने में बाधित करता है, जिससे उनकी आर्थिक स्वायत्तता सीमित रहती है।

(5) कौशल, विपणन एवं डिजिटल अभिगम की कमी: असंगठित क्षेत्र में महिलाएं औद्योगिक प्रशिक्षण, आधुनिक विपणन तकनीक एवं डिजिटल प्लेटफॉर्मों के उपयोग में पिछड़ी होती हैं। यह ज्ञान एवं तकनीकी अंतर उनके उद्यमों को प्रतिस्पर्धी वातावरण में अस्थिर और सीमित बना देता है।

अवसर, सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता पर प्रभाव 

(1) स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भरता का विस्तार: असंगठित क्षेत्र महिलाओं को पारंपरिक घरेलू भूमिका से बाहर लाकर सीमित संसाधनों में भी स्वरोजगार और आय-सृजन का अवसर देता है, जिससे उनकी आर्थिक भागीदारी और आत्मनिर्भरता सामाजिक दायरे में धीरे-धीरे सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ती है।

(2) संगठित सामूहिकता के माध्यम से सामुदायिक शक्ति: महिलाएं स्वयं सहायता समूहों, महिला सहकारी समितियों और लघु वित्त संस्थानों के माध्यम से सामूहिक वित्त, विपणन और प्रशिक्षण संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करती हैं, जो उन्हें संस्थागत आधार और आर्थिक निर्णयों में सक्रिय भूमिका प्रदान करता है।

(3) नीतिगत हस्तक्षेपों द्वारा समावेशी समर्थन: सरकारी योजनाएं जैसे मुद्रा, स्टैंड-अप इंडिया और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, महिला उद्यमशीलता को वित्त, प्रशिक्षण और विपणन सहायता के माध्यम से संरचित रूप में पोषित कर रही हैं, जिससे उनकी औपचारिकता और स्थायित्व में वृद्धि हो रही है।

(4) ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लैंगिक भागीदारी का सुदृढ़ीकरण: ग्रामीण असंगठित क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता कृषि उप-उद्योगों, पशुपालन, हथकरघा एवं खाद्य प्रसंस्करण में आर्थिक गतिशीलता ला रही है, जिससे न केवल क्षेत्रीय असमानता घट रही है, अपितु लैंगिक भागीदारी का सशक्त रूप विकसित हो रहा है।

(5) लैंगिक समानता की सामाजिक स्वीकृति में प्रगति: जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं, तो वे घरेलू निर्णय, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इससे सामाजिक संरचनाओं में लैंगिक भूमिकाओं के प्रति स्वीकार्यता और समानता की भावना का विस्तार होता है।

भारत में असंगठित क्षेत्र महिला सशक्तीकरण का महत्त्वपूर्ण आधार बन सकता है, यदि उन्हें वित्तीय समावेशन, श्रम अधिकार, तकनीकी प्रशिक्षण और सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से संरचित समर्थन मिले। तभी यह भागीदारी वास्तविक लैंगिक समानता में परिणत हो सकेगी।

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