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प्रश्न: वैश्विक दक्षिण में टीकों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने में चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिए, विशेष रूप से चल रहे एमपॉक्स प्रकोप के मद्देनजर। वैश्विक स्वास्थ्य समानता को बेहतर बनाने के लिए कोविड-19 महामारी से मिले सबक को कैसे लागू किया जा सकता है?

Analyze the challenges and opportunities in ensuring equitable access to vaccines in the Global South, particularly in light of the ongoing mpox outbreak. How can lessons from the COVID-19 pandemic be applied to improve global health equity?

उत्तर: वैश्विक दक्षिण में टीकों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना स्वास्थ्य समानता के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहल है। एमपॉक्स और कोविड-19 महामारी ने असमान वितरण के प्रभाव को उजागर किया है। इन समस्याओं से निपटने के लिए वित्तीय निवेश, जागरूकता, उत्पादन क्षमता में सुधार और वैश्विक समन्वय जैसे दीर्घकालिक समाधानों की आवश्यकता है।

टीकों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की चुनौतियाँ

(1) आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएँ: कोल्ड स्टोरेज की कमी और वितरण नेटवर्क के अभाव ने टीकों की समान उपलब्धता को बाधित किया है। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँच सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। इन बाधाओं को दूर किए बिना व्यापक टीकाकरण अभियान सफल होना मुश्किल है।

(2) वित्तीय असमानता: वित्तीय संसाधनों की कमी निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए टीकों की खरीद और वितरण को चुनौतीपूर्ण बना देती है। यह समस्या उन्हें व्यापक टीकाकरण अभियान संचालित करने से रोकती है। इस असमानता के कारण टीकाकरण की गति धीमी और क्षेत्रीय भेदभाव बढ़ता है।

(3) बौद्धिक संपदा अधिकार: पेटेंट और बौद्धिक संपदा नियम टीकों की सस्ती उपलब्धता को रोकते हैं। विकासशील देशों को इन बाधाओं के कारण टीकों तक समान पहुंच प्राप्त करने में कठिनाई होती है। वैश्विक स्वास्थ्य समानता सुनिश्चित करने के लिए इन नियमों को संशोधित करना जरूरी है।

(4) टीकाकरण के प्रति झिझक: सांस्कृतिक मान्यताएँ, गलत जानकारी और टीकों के प्रति फैली भ्रांतियाँ टीकाकरण दर को कम करती हैं। जागरूकता की कमी और टीकों के संभावित दुष्प्रभावों पर आशंका के कारण लोग टीकाकरण को स्वीकार नहीं करते।

(5) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की कमी: विकसित देशों की प्राथमिकताओं और वैश्विक समन्वय की कमी के कारण टीकों का समान वितरण सुनिश्चित नहीं हो पाता। यह समस्या स्वास्थ्य समानता के उद्देश्य को बाधित करती है और टीकाकरण को जटिल बनाती है।

कोविड-19 महामारी से मिले सबक और समाधान

(1) स्थानीय उत्पादन क्षमता: घरेलू टीका उत्पादन बढ़ाने से आयात पर निर्भरता कम होगी और सस्ती टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। भारत जैसे देशों को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निवेश और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

(2) सार्वजनिक-निजी साझेदारी: निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों का सहयोग टीकों के अनुसंधान और उत्पादन में आर्थिक और तकनीकी दक्षता लाने में मदद करता है। यह साझेदारी टीकों की लागत कम करने और वितरण को प्रभावी बनाने में सहायक हो सकती है।

(3) पेटेंट प्रणाली का लचीलापन: पेटेंट नियमों में लचीलापन लाने से विकासशील देशों को सस्ती और सुलभ टीका उपलब्ध हो सकेगी। इस पहल से स्वास्थ्य समानता को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक टीकाकरण अभियान को मजबूती मिलेगी।

(4) जागरूकता अभियान: टीकाकरण के प्रति भ्रांतियों को समाप्त करने के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान आवश्यक है। सही जानकारी और शिक्षा प्रदान कर टीकाकरण दर को बढ़ाया जा सकता है।

(5) वैश्विक सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और विकसित देशों से वित्तीय और तकनीकी सहायता लेकर समान टीका वितरण सुनिश्चित करना अनिवार्य है। स्वास्थ्य समानता को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक भागीदारी और समन्वित प्रयास जरूरी हैं।

भारत को टीकों की समान पहुंच के लिए कोविड-19 महामारी से मिले सबक को लागू करना चाहिए। स्थानीय उत्पादन, जागरूकता अभियान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर जोर देकर एमपॉक्स जैसी महामारियों से निपटा जा सकता है। दीर्घकालिक समाधानों और वैश्विक समन्वय से स्वास्थ्य समानता को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

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