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प्रश्न: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में श्री अरबिंदो के योगदान और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के उनके दर्शन का परीक्षण कीजिए। 

Examine the contributions of Sri Aurobindo to India’s freedom struggle and his philosophy of spiritual nationalism.

उत्तर: श्री अरबिंदो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, योगी, दार्शनिक और कवि थे। उन्होंने राष्ट्रवाद को आध्यात्मिक चेतना से जोड़ते हुए भारत की स्वतंत्रता को एक दिव्य उद्देश्य माना। उनका मत था कि भारत की मुक्ति केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण से भी संभव है, जिससे राष्ट्र आत्मनिर्भर और सशक्त बन सके।

श्री अरबिंदो का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

(1) क्रांतिकारी गतिविधियाँ: श्री अरबिंदो ने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने युवाओं को राष्ट्रवाद के लिए प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता को अनिवार्य लक्ष्य बताया, जिससे राष्ट्रवादी चेतना को बल मिला।

(2) स्वराज की अवधारणा: उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता (स्वराज) की वकालत की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चरमपंथी गुट से जुड़े। उनका मत था कि स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मजागरण से भी जुड़ा हुआ है, जिससे भारत सशक्त बन सके।

(3) अलीपुर बम कांड: 1908 में उन्हें अलीपुर बम कांड में गिरफ्तार किया गया, जहाँ उन्होंने जेल में गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया। इस अनुभव ने उनके राष्ट्रवादी विचारों को आध्यात्मिकता से जोड़ दिया, जिससे उनके चिंतन में क्रांतिकारी बदलाव आया।

(4) वंदे मातरम् पत्रिका: उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ पत्रिका के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी विचारों का प्रचार किया। इस पत्रिका ने भारतीय समाज में राष्ट्रवादी चेतना को जागृत किया और युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति प्रेरित किया।

(5) पांडिचेरी में प्रवास: जेल से रिहा होने के बाद वे पांडिचेरी चले गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का प्रचार किया। उन्होंने ध्यान और योग के माध्यम से राष्ट्र की चेतना को जागृत करने का प्रयास किया तथा भारतीय संस्कृति को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया।

आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का दर्शन

(1) एकात्म योग: उन्होंने ‘इंटीग्रल योग’ की अवधारणा दी, जो व्यक्तिगत और सामाजिक चेतना के उत्थान पर केंद्रित थी। यह भारत के आध्यात्मिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक था, जिससे राष्ट्र आत्मनिर्भर और सशक्त बन सके।

(2) राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता: उन्होंने भारत की स्वतंत्रता को एक आध्यात्मिक पुनर्जागरण के रूप में देखा, जो संपूर्ण मानवता को प्रभावित करेगा। उनका मत था कि राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता का समन्वय भारत को विश्व नेतृत्व प्रदान करेगा।

(3) मानव चेतना का विकास: उनका मत था कि भारत को अपनी आध्यात्मिक विरासत के माध्यम से विश्व का नेतृत्व करना चाहिए और आध्यात्मिक जागरण से राष्ट्र को सशक्त बनाना चाहिए। उनकी विचारधारा ने भारतीय समाज में आत्मनिर्भरता और जागरूकता को बढ़ावा दिया।

(4) ऑरोविले की स्थापना: उन्होंने एक सार्वभौमिक नगर ‘ऑरोविले’ की कल्पना की, जहाँ सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ रह सकें। यह सामाजिक एकता और वैश्विक चेतना को बढ़ावा देने का प्रयास था, जिससे आध्यात्मिक राष्ट्रवाद को साकार किया जा सके।

(5) श्री अरबिंदो आश्रम: उन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम की स्थापना की, जो उनके आध्यात्मिक और राष्ट्रवादी विचारों का केंद्र बना। यह आश्रम भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रचार में सहायक सिद्ध हुआ, जिससे राष्ट्रवाद को गहराई मिली।

श्री अरबिंदो का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद दोनों में महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण के रूप में देखा। उनकी शिक्षाएँ आज भी भारतीय समाज और वैश्विक आध्यात्मिक चेतना को प्रेरित करती हैं, जिससे भारत एक आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र बन सके।

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